क्यानक्सली हिंसा से निपटने के लिए सशस्त्र अभियान ही अब एकमात्र विकल्प रह गया है?र्पहले सख्ती करके नक्सलवादियों को यह दिखा दिया जाना जरूरी है कि उन्हें कुचलने में सरकार सक्षम है, फिर वे स्वयं वार्ता का प्रस्ताव करेंगे। पढ़ें लोगों के विचार.....
वे शांतिपरक बात करने को तैयार नहीं हों और हिंसा नहीं छोड़ें, तब सशस्त्र अभियान ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। यह सब केन्द्र और राज्य सरकारों पर निर्भर है। - प्रेमनारायण वेद
कहते हैं सरकार और कानून के हाथ लंबे होते हैं ,फिर नक्सली हिंसा के सामने वो बोने क्यों बनते जा रहे हैं। उनके द्वारा फैलाई जा रही हिंसा को रोकने के लिए सरकार कड़े कदम उठाए ताकि निर्दोषों की हत्याएँ बंद हों और उन क्षेत्रों में दहशत खत्म हो सके। -महेश नेनावार
नक्सली हिंसा द्वारा लोकतंत्र को समाप्त कर सत्ता परिवर्तन में विश्र्वास करते हैं। हिंसा के सामने सभी अहिंसक तरीके व्यर्थ साबित हुए हैं। -डॉ। एस शंकरसिंह
सशस्त्र अभियान तो काफी पहले ही शुरू कर देना चाहिए था। किसी भी हिंसा के लिए लोकतंत्र में स्थान नहीं है, नक्सली अपनी माँगों को मनवाने के लिए निर्दोष लोगों की हत्याओं का सहारा लेते हैं, जो उचित नहीं है। - राहुल राव
नक्सली अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। बिहार में उन्होंने नरसंहार किया और छत्तीसगढ़ में भी बड़ी वादात की आशंका जताई गई है। इसके मद्देनजर राजनांदगॉंव और कांॅकेर में हाई अलर्ट कर दिया गया है। यह निश्चय ही नक्सलियों की बौखलाहट का परिणाम है। उनके खिलाफ राज्य में चलाए जा रहे संयुक्त अभियान और ऑपरेशन ग्रीन हंट से वे यह समझ गए हैं कि अब ज्यादा दिन वे नंगा नाच नहीं कर पाएंॅगे, इसलिए यह दिखा रहे हैं कि वे इस कार्रवाई से डरे नहीं हैं, बल्कि मोर्चे पर डटे हुए हैं। जबकि सचाई यह है कि वे पूरी तरह टूट चुके हैं। अगर इसी तरह कार्रवाई जारी रही तो वह दिन दूर नहीं, जब राज्य नक्सली समस्या से मुक्त हो जाएगा। समझ में नहीं आता कि नक्सली चाहते क्या हैं? अगर वे सत्ता चलाना चाहते हैं तो मुख्यधारा में आकर चुनाव लड़ें। इस तरह पीठ पर वार करने से क्या फायदा? वे जिन आदिवासियों के हिमायती बनते हैं, उन्हीं पर जुल्म ढा रहे हैं। विकास कार्य रोक कर, हिंसा करके वे क्या सिद्घ करना चाह रहे हैं? सच तो यह है कि वे आतंक फैला कर लूटमार के पैसे पर ऐश कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो वे मानवता के दुश्मन क्यों बने हुए हैं? माना कि आज सरकारें भ्रष्ट हैं। लेकिन सुधार का वे कौन-सा आदर्श उपस्थित कर रहे हैं? हिंसा वे कर रहे हैं और जब सरकार लोगों की सुरक्षा के लिए आगे आती है तो उनके समर्थक उस पर आरोप लगाते हैं कि वह निर्दोषों को मार रही है। जब निर्दोष मरते हैं, तब कथित मानवतावादी कहॉं चले जाते हैं? नक्सलियों का मानवाधिकार है तो उन निरीह लोगों का क्यों नहीं, जिन पर नक्सली जुल्म ढा रहे हैं? -राजा "बेखौफ", रायपुर
नई दुनिया रायपुर से साभार
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