खड़गपुर। नक्सल प्रभावित पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत सबसे ज्यादा संवेदनशील थाना क्षेत्र बेलपहाड़ी से अपहृत और बाद में रिहा कर दिये गये पुलिस जवान के मोबाइल सिम का नक्सलियों के पास रह जाने को पुलिस बनाम नक्सलियों के बीच चल रहे शह और मात के खेल की एक और कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। पूरे घटनाक्रम के पीछे पुलिस की लापरवाही थी या कोई सोची समझी रणनीति, इस पर बेशक सवाल दर सवाल उठ रहे है, लेकिन रणनीतिक कौशल के दृष्टिकोण से माना जा रहा है कि आपरेशन ग्रीन हंट से पहले केंद्र सरकार से बातचीत के लिए गृह मंत्रालय को यही नंबर देकर शीर्ष नक्सली नेता किशनजी ने पुलिस को चकमा देने का काम किया है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2009 में बेलपहाड़ी थाना क्षेत्र के तामाझुड़ी से नक्सलियों ने दो पुलिस जवानों हितेश्वर सिंह व शिशिर नाग का अपहरण कर लिया था। चूंकि यह घटना पीसीपीए समिति के शीर्ष नेता छत्रधर महतो की गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद ही हुई थी, लिहाजा इससे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था। उसी दौरान नक्सलियों ने झारखंड से अपहृत एक पुलिस अधिकारी की कूरतापूर्वक हत्या कर दी थी, इस वजह से भी नक्सलियों से जूझ रहे पुलिस जवानों के परिजनों का अपहृत जवानों को छुड़ाने के लिए अधिकारियों पर काफी दबाव था। अप्रत्याशित तरीके से नक्सलियों ने अपहृत जवानों को बिना किसी शर्त के छोड़ भी दिया। लेकिन शिशिर नाग का मोबाइल सिम नक्सलियों के पास ही रह गया। आपरेशन ग्रीन हंट से पहले जब यही नंबर किशनजी ने केंद्रीय गृहमंत्रालय को दिया, तो हर तरफ हड़कंप मचना स्वाभाविक था। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि एक पुलिस जवान का मोबाइल नक्सलियों द्वारा छीन लिये जाने के बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। क्या इस वाकये को भी मोबाइल खोने व चोरी की सामान्य शिकायतों के रूप में लिया गया, या जान बचने की आपाधापी में घटना को ही गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि अधिकारी इस पर पूरी तरह से खामोश हैं। बचाव में कहा जा रहा है कि इस संबंध में खड़गपुर टाउन थाने में शिकायत दर्ज करायी गयी थी। लेकिन थाने के जिम्मेदार अधिकारी कह रहे है, कि किसी भी वस्तु की छिनतई व खो जाने की सूचना उसी थाने में दर्ज करायी जा सकती है, जहां घटना हुई हो, ऐसे में इतनी दूर के थाने में कैसे शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। संभावना जतायी जा रही है कि नक्सली गतिविधियों का पता लगाने के लिए पुलिस ने जानबूझ कर मोबाइल व सिम छोड़ा हो, लेकिन इस रणनीति के तहत कहा जा सकता है, कि सरकार को बातचीत के लिए यही नंबर देकर नक्सलियों ने पुलिस के नहले पर दहला मारने की कोशिश ही की है।
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