गोरखपुर । केंद्र सरकार के निर्देश पर कमोबेश सभी राज्यों ने नक्सलियों के सफाये का अभियान जरूर चला दिया है, लेकिन उन तक पहुंचना आसान नहीं है। नक्सली बड़े ही रणनीतिक अंदाज में सबको चकमा देकर अपने मिशन को अंजाम दे रहे हैं। वे रात में जत्थे के रूप में चलते हैं। खेत-मेड़ और पगडंडियां ही उनके रास्ते हैं। चिकनी, साफ-सुथरी सड़कों पर चलना उनका उसूल नहीं है। वे गरीबों के गांव में ठहरते हुए एक गांव-एक रात का मिशन पूरा करने में जुटे हुए हैं।
अपने विदनेही विचारों को इंटरनेट या मेल के जरिये वे आसानी से समर्थकों तक पहुंचा रहे हैं और पुलिस है कि उनकी टोह भी नहीं ले पा रही। उसके सामने सबसे बड़ा संकट नक्सलियों की पहचान का है।
सरकार की पहल के बाद बड़ी संख्या में माओवादी या नक्सली पकड़े गए हैं। सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ कई वामपंथी मानते हैं कि ये लोगों का बन्ेनवाश कर माओवादी विचार थोप रहे थे। इनके सुनियोजित मिशन का ही असर है कि नक्सलियों की गतिविधियां थामे नहीं थम रहीं। इनका जनसंपर्क अभियान जारी है और इंटरनेट के जरिये तो ये आग उगल रहे हैं।
यही कारण है कि माओवादी विचारधारा तेजी से फैलती जा रही है। हाल में पत्रकार जान मेडल और गौतम लक्खा ने किसी अनजान जगह पर भाकपा [माओवादी] के राष्ट्रीय महासचिव गणपति अक्कामुपला लक्ष्मणराव का इंटरव्यू किया है। यह इंटरव्यू ब्लाग के जरिये कई वामपंथियों तक पहुंच गया है। भारत में नक्सली आंदोलन के अगुवा चारू मजूमदार और कन्हाई चटर्जी को आदर्श मानने वाले गणपति ने अपने इंटरव्यू में दो टूक कहा है कि जंग जीतने का यही सर्वोत्तम समय है क्योंकि अभी राजसत्ता बंटी हुई है।
हालांकि आंधन् पन्देश में गणपति को गिरफ्तार कर लिया गया और उससे मिली जानकारी के आधार पर छापे भी मारे जा रहे हैं। इस दौरान काफी लोग पकड़े भी गए लेकिन पुलिस के हाथ पुख्ता सुराग नहीं लगे हैं। इस छापे का ही परिणाम था कि गोरखपुर में आशा मुंडा और उसका भाई राजेन्द्र मुंडा पकड़े गए तो इलाहाबाद में विश्वविजय और सीमा आजाद। पुलिस अभी इनसे कुछ उगलवाने की कोशिश में ही जुटी हुई है। यानी पुलिस को विशेष मनोवैज्ञानिक रणनीति बनानी होगी तभी बन सकती है बात।
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