नई दिल्ली. 22 फरवरी. उच्चतम न्यायालय ने नक्सलियों से निपटने के नाम पर दलितों और आदिवासियों को सुरक्षा बलों द्वारा निशाना बनाए जाने को लेकर केंद्र सरकार की आज आडे हाथों लिया। न्यायमूत बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूत एस एस निार की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की याचिका की सुनवाई के दौरान कहा नक्सलियों के खिलाफ अभियान के नाम पर क्या सभी प्रकार के आदेश की अनुमति दी जानी चाहिए। हम यह जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों इस तरह की घटनाएं होती हैं। खंडपीठ ने कहा कि नक्सलियों से कथित तौर पर सहानुभूति जताने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा है, जो उचित नहीं है। न्यायालय ने कहा कि पहले सरकार कहती है कि नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। फिर वह कहती है कि नक्सलियों से सहानुभूति रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। उसके बाद यह कहेगी कि नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले से जुडे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। आखिर यह सब है क्या। इससे पहले, केंद्र सरकार ने न्यायालय को अवगत कराया कि केंद्र सरकार देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में विकास कार्यों के लिए 7300 करोड़ रुपये की योजना के अमल पर विचार कर रही है। अटर्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती ने दलील दी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस योजना को हरी झंडी दे दी है. लेकिन सरकार नक्सलियों के हस्तक्षेप की वजह से इन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर संशय की स्थिति में है। श्री वाहनवती ने कहा कि सरकार जल्दी ही इन योजनाओं का लेखा-जोखा हलफनामे के रूप में न्यायालय को सौंपेगी। उच्चतम न्यायालय ने मामले की पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि सरकार नक्सली समस्या का समाधान हथियारों के बजाय विकास कार्यों से करे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment