Wednesday, February 24, 2010

माओवादी सेना में भर्ती के लिए विज्ञापन



एक तरफ नक्सली सरकार के खिलाफ हथियार डालने की बात कहते हैं वहीं दूसरी ओर माओवादी सेना को मजबूत करने ग्रामीण युवक-युवतियों के लिए पीएलजीए में भर्ती होने विज्ञापन जारी कर रखा है। पुलिस इंटलीजेंस की इस बात को नकारा नहीं जा सकता की फोर्स के दबाव के बाद वापस छिन्न-भिन्न हुए नक्सली एकजुट होने के लिए जो समय चाहते हैं, इसी के चलते वे सरकार के सामने हथियार डालने की पेशकश कर रहे हैं। संगठित होने और युवक-युवतियों को जोड़ने जंगलों में व्यापक प्रचार-प्रसार जारी है।दक्षिण बस्तर के जंगलों में पोस्टरों व पर्चों के द्वारा चलाये जा रहे विज्ञापनों की ही तर्ज पर वर्गवार जानकारियां दी गई हैं। जिसमें युवक-युवतियों से माओवादी सेना में जुड़ने का आह्वान किया जा रहा है। मजे की बात यह है कि भर्ती के नक्सली विज्ञापनों में पुलिस में भर्ती न होने की अपील भी की गई है व इसके कारण गिनाये गये हैं। नई दुनिया के पास उपलब्ध एक ऐसे ही पर्चे में २ दिसंबर से १० फरवरी तक भर्ती अभियान चलाने की बात कही गई है।


पर्चे में पीएलजीए में भर्ती क्यों के कालम में बस्तर की जनता के शोषण व दमन के खिलाफ लड़ने के लिए, शोषित जनता के हितो की रक्षा के लिए, बस्तर की संपदा को बड़े दलाल पूंजीपतियों को सौंपे जाने के खिलापᆬ लड़ने के लिए, सरकारी नरसंहार रोकने के लिए, जल जंगल जमीन पर जनता का हक कायम करने के लिए, शोषण विहीन समता मूलक समाज की स्थापना के लिए जैसी बातें लिखी हैं।


भर्ती की योग्याताओं में १६ वर्ष से अधिक के सामान्य कद काठी के सभी युवक युवतियां जो स्वार्थी न हों व कुर्बानी के लिए तैयार हों, लंपट, भ्रष्ट, अराजकतावादी, अत्याचारी, दारूबाज, चरित्रहीन लालची न हो, शोषण, दमन से नफरत करते हों तथा सादा जीवन कठोर परिश्रम के लिए तैयार हों जैसी अर्हतायें निर्धारित की गई हैं।


वेतन भत्ता के कालम में कोई वेतन भत्ता नहीं लिखा है। इसमें कहा गया है कि जनता पर निर्भर होकर खानपान की व्यक्तिगत जरूरतें पूरी की जायेंगी। परिजनों की मदद का भी वादा किया गया है। अंत में लिखा है कि पीएलजीए के योद्घा शोषण विहीन समाज की स्थापना का सपना संजोये मजदूर वर्गीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लैस, पीड़ित जनता के चहेते बन जन सैनिक का काम करेंगे। शहीद होने पर जनता के दिलो दिमाग में अमर रहेंगे। पर्चे के दूसरी ओर सरकारी सशस्त्र बलों में भर्ती न होने की बात लिखी है। इसमें लिखा है कि सरकारी बलों की भर्ती बस्तर की आदिवासी जनता को मार भगाने के लिए होती है।


इसके तहत हत्यारों, लुटेरों, बलात्कारियों, गुंडों को तैयार कर बस्तर की आदिवासी संस्कृति, जीवन शैली को तहस नहस किया जाता है। पुलिस, सीआरपीएएफ एसपीओ में भर्ती के तौर तरीके वाले कालम में पहली पंक्ति में लिखा है घूसखोरी के जरिये। इसमें कहा गया है कि फोर्स में भर्ती घोटाला कई बार सामने आ चुका है। बस्तर में गोपनीय सैनिकों की भर्ती में भी रिश्वतखोरी का मामला प्रकाश में पहले ही आ चुका है। भर्ती में जनविरोधी, लंपट, अराजकतावादी, अत्याचारी, दारूबाज, चरित्रहीन एवं गुंडा तत्वों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाते हुए नक्सलियों ने कहा है कि कुआकोंडा ब्लाक के समेली गांव के लिंगाराम को जबरन एसपीओ बनाया गया था हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसने इस्तीफा दिया। वेतन भत्ता में लिखा है कि जान गंवाने के एवज में विशेष भत्ता दिया जाता है। एसपीओ को भीख की तरह १५ सौ रूपये प्रतिमाह दिये जाते हैं। चोरी, लूट, बलात्कार की खुली छूट मिलती है व मरने पर चप्पल घिसने से मुट्ठी भर रूपये नसीब हो सकते हैं। अंत में कहा गया है कि फोर्स में भर्ती होकर लंपट, भ्रष्ट, दारूबाज, चरित्रहीन, लुटेरा आदि बनकर जनता के घृणा के पात्र बन जाते हैं। मरने पर जनता खुशियां मनाती है। लोग याद करना भी पसंद नहीं करते। भर्ती का यह विज्ञापन पर्चे की शक्ल में प्रचार ब्यूरो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सीपीआई माओवादी की ओर से जारी किया गया है।

अनिल मिश्रा,
संवाददाता, नई दुनिया
दंतेवाड़ा

No comments:

Post a Comment