Monday, February 22, 2010

नक्सली संघर्ष विराम को तैयार

न लालग़ढ़ में सुरक्षा बलों का अभियान जारी रहेगा
कोलकाता। नक्सल प्रभावित इलाकों में ऑपरेशन ग्रीन हंट रोकने पर माओवादी अपनी ओर से ७२ दिनों का संघर्ष विराम कर देंगे । पश्चिम बंगाल के लालग़ढ़ और आसपास के इलाकों में सक्रिय माओवादी कमांडर एम कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने सरकार से बातचीत के लिए अपनी ओर से यह शर्त रखी है। केन्द्रीय गृह मंत्री चिदंबरम ने शिल्दा कांड के बाद कहा था कि नक्सलियों के हथियार डालने के ७२ घंटों के भीतर सरकार उनसे बातचीत करेगी। गृह मंत्री के इसी बयान को लेकर मेदिनीपुर से ४० किमी दूर कनाईशोल के जंगलों में पिछले दो दिनों से नक्सली संगठन सीपीआई (माओइस्ट) की केन्द्रीय कमेटी के ३० सदस्यों की बैठक चल रही थी। सोमवार को किशनजी ने कहा, ऑपरेशन ग्रीन हंट रोकने की प्राथमिक शर्त अगर सरकार मान लेती है तो इसके ७२ दिनों के बाद बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की मध्यस्थता में वे लोग वार्ता को तैयार हैं। माओवादियों की ओर से ऐसे प्रस्ताव पहले भी आए हैं। केन्द्र और पश्चिम बंगाल की सरकार शुरू से ही सशर्त बातचीत की संभावना से मना करती रही हैं। कई बार गृह मंत्री चिदंबरम और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा भी कि संघर्ष विराम का प्रस्ताव बिना शर्त हो तभी कोई विचार होगा। माओवादियों को पहले हथियार डालना होगा। माकपा की ओर से पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम और भाकपा के सांसद गुरुदास दासगुप्ता ने कहा है कि माओवादी हथियार डालें, तभी बातचीत होनी चाहिए। बंगाल के मुख्य सचिव अशोक मोहन चक्रवर्ती ने स्पष्ट किया है कि लालग़ढ़ में सुरक्षा बलों का अभियान जारी रहेगा। यह जरूर है कि खुली जगहों पर स्थित पुलिस के शिविर हटाए जा रहे हैं। शिल्दा कांड के बाद कई बार गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ने सुरक्षा बलों का अभियान जारी रखने के बयान दिए और माओवादियों से हथियार रखने की अपील की। इन बयानों की आलोचना करते हुए कोलकाता के कुछ बुद्धिजीवियों ने शनिवार को मध्यस्थता की पेशकश की थी। तृणमूल कांग्रेस के खेमे की बुद्धिजीवी सांवली मित्र और उनके साथियों ने कहा था कि अगर सुरक्षाबलों का अभियान रोक दिया जाए तो वे लोग सरकार और माओवादियों के बीच मध्यस्थ बनने को तैयार हैं। शनिवार से ही कनाईशोल के जंगलों में माओवादियों की केन्द्रीय कमेटी की बैठक शुरू हुई, जिसमें गोपीनाथजी उर्फ दुर्गा हेम्ब्रम की अगुवाई वाले गुट ने जल्द बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव रखा। किशनजी फिलहाल हमले करते रहने के पक्षधर हैं।
दीपक रस्तोगी
नई दुनिया, दिल्ली

नक्सलियों का संघर्षविराम का प्रस्ताव
कोलकाता। केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा माओवादियों को हथियार डालकर वार्ता के लिए दी गई 72 घंटे की मोहलत पर माओवादी नेता किशनजी ने सोमवार शाम प्रतिक्रिया व्यक्त की। किशनजी ने इस मोहलत को बढ़ाकर 72 दिन किए जाने की शर्त रखी है। 25 फरवरी से 7 मई के बीच की इस अवधि में केंद्र व राज्य सरकार के सुरक्षा बलों की ओर से किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
इस बीच आदिवासी इलाकों में विकास कार्य शुरू होने चाहिए। तब सरकार के साथ शांति वार्ता की स्थितियां बन पाएंगी। किशनजी ने ये बातें एजेंसी से अज्ञात स्थान से किए गए फोन के जरिए कहीं। इधर, नई दिल्ली में गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है कि सरकार माओवादियों के प्रस्ताव का अध्ययन कर रही है। सही समय पर माओवादियों को जवाब दिया जाएगा।
गृह मंत्रालय के ही एक अन्य अधिकारी ने कहा है कि माओवादी बिना शर्त बातचीत का प्रस्ताव रखते हैं, तो सरकार विचार कर सकती है। किशनजी ने कहा है कि अगर समस्या 72 दिनों में सुलझ सकती है, तो यह कोई बड़ा समय नहीं है। बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों और जन संगठनों से मूल समस्या को समझने का अनुरोध करते हुए किशनजी ने कहा है कि वे आगे आएं सरकार से होने वाली बातचीत में बिचौलिए की भूमिका निभाएं।
जैसे ही सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा खत्म हो जाएगी, वैसे ही माओवादी भी उसका प्रतिकार बंद कर देंगे। माओवादी नेता ने कहा कि सरकार को हिंसा बंद करने में पहल करनी होगी। पश्चिम बंगाल और झारखंड सीमा पर घने जंगलों में भाकपा की केंद्रीय कमेटी की दो दिन की बैठक के बाद किशनजी ने ये बातें कही हैं।
किशनजी ने कहा कि बंगाल के जंगल महल इलाके में निर्दोष लोगों की हत्या रोककर सरकार अगर वहां पर विकास के सही कार्य शुरू करती है, तो माओवादी अपने-आप शांत हो जाएंगे। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा माओवादियों को कायर कहे जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माओवादी नेता ने कहा कि पिछले एक साल में चार सौ निर्दोष लेकिन हमारे समर्थक ग्रामीणों को सुरक्षा बलों द्वारा मारा जाना, तीन सौ को घायल करना और महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने की घटनाओं से पता चलता है कि कायर कौन है?

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