Monday, February 22, 2010

स्कूली बच्चों की हत्या ये कैसा नक्सलवाद

तपेश जैन
सामाजिक कार्यकर्ता
रायपुर

नक्सलवाद एक विचारधारा है, जो शोषित-पीडित आदिवासियों के हक के लिये संघर्षरत है। समाजिक न्याय की लडाई लड रहे लोगों का दल है, जिसका मानना है कि सशस्त्र आंदोलन से देश का भ्रष्टाचार और समाज में फैली अराजकता समाप्त हो जाएगी, समतावादी समाज की संरचना के साथ ही श्रम का सही मूल्य वांचितो को मिले, ये लक्ष्य है। लेकिन इन तमाम बातों और सिद्धांतों के विपरीत एक वीभत्स चेहरा है जो उन लोगों की हत्या करता है जो बेगुनाह हैं। ये अमानवीय चेहरा एक बार फिर छत्तीसगढ राज्य के दक्षिण बस्तर के दो स्कूली छात्रों की हत्या के बाद उजागर हो गया है। नारायणपुर आश्रम के स्कूल के दो छात्र सनऊराम सोढी और मंगाराम की नक्सलियों ने इस लिये हत्या कर दी कि ये दोनों छात्र सेना में भर्ती होना चाहते थे। ये पहला अवसर नहीं है। जब नक्सलियों ने स्कूली छात्रों की हत्या की है। इससे पहले भी वे इस तरह का दुष्कृत्य कर चुके हैं। बीजापुर के स्कूली छात्र माडवी राजू को भी वे मौत के घाट उतारकर अपना वीभत्स रुप दिखा चुके हैं।

सामाजिक न्याय की लडाई लडने का दावा करने वाले नक्सलवाद पंथियों के इस क्रूरता से कई सवाल खडे हो गये हैं। वैचारिक दिशाहीनता की कई घटनाओं से यह लगा है कि लोक-लुभावन बातों के पीछे उद्देश्य कुछ और ही है। नक्सलवाद की चिंगारी पश्चिम बंगाल के नक्सलबाडी क्षेत्र में सन १९६७ में सुलगी थी। उस दौरान कतिपय जमीदारों ने किसानों की जमीनें हथिया ली थी। तब हिंसा के माध्यम से हक छीनने का विचार जन्मा और उसके बाद वामपंथ के कई गुट इसमें शामिल हो गए। गरीब, पीडित और शोषितों के अधिकार की लडाई का माध्यम बन गया नक्सलवाद। लेकिन पिछले दस सालों में इस विचारधारा से जुडे लोग विपरीत कार्यों में जुट गये हैं। जिसके लिए संघर्ष का नारा था वे ही लोग दमन का शिकार होने लगे। जिन्होंने पनाह दी उनके ही घर लूटने लगे।

जो आदिवासी नक्सलियों को अपना शुभचिंतक समझते थे वे ही उनके दुश्मन हो गये हैं। नक्सलवाद की मशाल जलाने वाले कानू सान्याल का मोह भंग हो चुका है। श्री सान्याल का कहना है कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए हथियारबंद संघर्ष जरुरी है लेकिन इसे लोगों का समर्थन मिलना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि रेलगाडी का अपहरण, पुलिस स्टेशन को लूटना या किसी को अगवा करने से आंदोलन को कोई फायदा नहीं पहुंचता और निर्दोष आदिवासियों की हत्या तो पूरी तरह अनुचित है।

स्कूली बच्चों की हत्या के साथ ही नक्सलियों द्वारा स्कूल भवन को बम धमाकों से उडाने के पीछे नक्सलियों का उद्देश्य यह है कि इन भवनों का उपयोग सुरक्षा बल के सैनिकों का ठिकाना न बन सके। नक्सलियों का मकसद सुरक्षा बलों को स्कूली भवनों से बेदखल करना है। इसके झारखंड के कई स्कूली बच्चों ने प्रदर्शन भी किया है। अब छतीसगढ के कई स्थानों में स्कूली बच्चों ने हत्या के विरोध में रैली निकालकर अपना विरोध प्रदर्शन कर सवाल उठाया है कि ये कैसा नक्सल्वाद है ?

आतंकवाद में तब्दील होती नक्सलवादियों की कार्यप्रणाली को नक्सलवाद समर्थक मानव अधिकार संगठनों को अब मुंह छिपाना पड रहा है। कभी ये संगठन नक्सलियों की छतरी का काम करते रहे हैं और सरकार के लिये खासे सिरदर्द भी। वामपंथ विचारधारा से प्रभावित स्वयंसेवी संगठनों के पास इस बात का कोई जवाब है कि ये कौन सा वाद है जो स्कूली बच्चों की हत्या करता है ?

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