जमुई। माओवादियों द्वारा अघोषित रेड कोरीडोर इलाके में बड़े तो बड़े बच्चे भी कुचक्र में फंसकर शिक्षा से दूर हो गये हैं। कोड़ासी गांव में घटित माओवादी नरसंहार की घटना अथवा रिपोर्ट के मुताबिक, माओवादियों ने 12 से 17 साल की उम्र तक के बच्चों को अपने निशाने पर ले लिया है। माओवादी यह भी स्वीकारते हैं कि बच्चों को अपनी टीम में शामिल कर रहे हैं। फुलवरिया-कोड़ासी गांव में माओवादियों ने तो बाल दस्ते का बखूबी इस्तेमाल भी किया। इधर गरीबी और माओवादियों के खौफ के चलते बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो चुका है। बिहार-झारखंड की सीमा से सटे कोड़ासी, चरकापत्थर का इलाका हो अथवा मुंगेर की सीमा से सटा चोरमारा, गुरमाहा, जमुनियाटांड, माओवादियों के इस रेड कोरीडोर में शैक्षणिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच जारी संघर्ष की वजह से बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे हैं। पिछले पांच वर्षो में वन क्षेत्रीय इलाके में नक्सलियों ने कई स्कूलों की इमारतों को ध्वस्त किया है। ताजा घटना महेश्वरी गांव की है जहां नक्सलियों ने सिर्फ इसलिए स्कूल भवन को उड़ा दिया कि उन्हें सूचना थी कि उक्त भवन में पुलिस शिविर बनाया जायेगा। इसके पूर्व भी जमुनियाटांड़ में स्कूल भवन को उड़ा दिया गया। इस मामले में जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग यह जुगलबंदी कर रही है कि माओवादी शिक्षा के दुश्मन हैं। नतीजतन नक्सल प्रभावित इलाके की तालिमी व्यवस्था भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने की ढपोरशंखी विभागीय बातों का ह्रस नक्सल प्रभावित इलाके में देखा जा सकता है। जमुनियाटांड, फुलवरिया-कोड़ासी गांव में अब बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। कोड़ासी में भय का आलम व्याप्त है तो जमुनियाटांड में स्कूली भवन ध्वस्त हो चुका है। माओवादी व पुलिस के बीच संघर्ष में बच्चे हथियार बन गये हैं। शिक्षा विभाग के लिए नक्सल प्रभावित इलाके के विद्यालय आय का जरिया बन गया है तो माओवादियों को बाल दस्ता बनाने का मुफीद मौका । सूत्रों की माने तो भीमबांध वनक्षेत्र के अलावे सोनो, चकाई प्रखंड के बच्चे गांधी व महावीर की अहिंसावादी उपदेशों के बजाय माओवादी विचार धारा की पाठ पढ़ रहे हैं।
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