Saturday, February 27, 2010

विस्फोटक से भरे 300 डिब्बे और 6000 डेटोनेटर बरामद

रांची ! झारखण्ड के गुमला जिले में शनिवार को एक घर से विस्फोटकों से भरे 300 डब्बे और 6000 डेटोनेटर बरामद किए गए।

पुलिस के अनुसार, राजधानी से 140 किलोमीटर दूर स्थित भैनबाथन गांव में एक घर पर झारखण्ड पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की संयुक्त छापामारी के दौरान ये विस्फोटक बरामद हुए।

एक पुलिस अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, ''छापेमारी के दौरान विस्फोटक और फ्यूज तार से भरे 300 डब्बे बरामद किए गए। इसके अलावा 6000 डेटोनेटर भी जब्त किए गए। मामले की पूछताछ के लिए एक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है।''
पुलिस के अनुसार, इन सामग्रियों को नक्सलियों को आपूर्ति किया जाना था।

बिहार में नक्सलियों के बंद का मिलाजुला असर

पटना। प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) द्वारा बिहार सहित पांच राज्यों में शनिवार को एक दिवसीय बंद के आह्वान का बिहार में मिलाजुला प्रभाव देखा जा रहा है। बंद के मद्देनजर राज्य में सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। पश्चिम बंगाल में अपने महत्वपूर्ण साथियों की गिरफ्तारी तथा संदिग्ध नक्सली मोहन टुडू को कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मार गिराने के विरोध में नक्सलियों द्वारा एक दिवसीय बंद का बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ प्रभाव देखा जा रहा है जबकि शहरी इलाकों में इसका का कोई प्रभाव नजर नहीं आ रहा है। गया, औरंगाबाद, जमुई, मुंगेर, रोहतास और जहानाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों में बंद का व्यापक असर पड़ा है। इधर, पुलिस के अनुसार बंद के दौरान अब तक कहीं से कोई अप्रिय घटना की सूचना नहीं है। राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक यू़ एस़ दत्त ने शनिवार को बताया कि नक्सलियों के बंद के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशनों तथा पटरियों को नक्सलियों द्वारा बंद के दौरान निशाना बनाए जाने की आशंका को लेकर रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है तथा कई स्थानों पर सड़कों पर पुलिस गश्त बढ़ा दी गई है।उल्लेखनीय है कि नक्सलियों ने बिहार सहित झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में बंद का एलान किया है।

तीन ग्रामीणों को नक्सलियों ने पेड़ से बांधा

एक चंगूल से छूटकर पहुंचा थाने,दर्ज कराई रिपोर्ट कांकेर । तीन ग्रामीणों को नक्सलियों द्वारा घर से हाथ पैर बांधकर तथा आंख में पट्टी जंगल मे ले जाकर बांध दिये जाने की घटना की जानकारी पुलिस को तब हुई जब उनमें से एक भाग कर थाने पहुंचा और पूरी घटना की जानकारी दी। पुलिस द्वारा नक्सलियों के खिलाफ मामला दर्ज कर बंधे दो ग्रामीणों को छुड़ाने में जुटी है। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार कोयलीबेड़ा थाना क्षेत्र के ग्राम करसादंड के रायसिंह पिता रूपसिंह याचला को 22 फरवरी की रात लगभग 9 बजे वर्दीधारी नक्सली नागेश,रूपेश, राजु,सोनू,उर्मिला, परमिला,मंगल, सुनील तथा अन्य 20-25 सशस्त्र नक्सली घर से निकालकर हाथ पीछे बांध दिये तथा आंख में पट्टी लगाकर अपने साथ ले गये और चिरईपदर के जंगल में ले जाकर पेड़ से बांध दिया। जहां पर दो और ग्रामीणों को नक्सलियों ने पेड़ से बांध कर रखा था। प्राथी रायसिंह जैसे तैसे उनके चुंगल से छूटकर 24 फरवरी को कोयलीबेड़ा थाने पहुंच कर घटना की जानकारी देते हुए बताया कि सोनसाय कोमरा ग्राम सिकसोड़ व बहाुदूर आचला ग्राम बड़गांव अभी भी चिरईपदर के जंगल में पेड़ से बंधे हैं। रायसिंह की रिपोर्ट पर पुलिस ने वर्दीधारी नक्सली नागेश,रूपेश, राजु,सोनू, र्मिला,परमिला,मंगल,सुनील तथा अन्य 20-25 सशस्त्र नक्सली के खिलाफ भादवि की धारा 346,368,147,148,149 एवं 25-27 आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कर जांच में जुटी है।

झारखंड का बाल दस्ता



दिल्ली
झारखंड के ग्रामीण इलाकों और जंगलों से गुजरते हुए अगर किसी छोटे बच्चे के हाथ में कोई हथियारनुमा सामान नज़र आए तो आप उसे खिलौना समझने की भूल मत कीजिएगा. वह सच में हथियार हो सकता है. सौ फीसदी असली.झारखंड में पीपुल्स वार ग्रूप और एमसीसी जैसे नक्सली संगठनों में पहले भी बच्चों का इस्तेमाल होता रहा है. बाद में इन दोनों संगठनों के विलय के बाद बने सीपीआई माओवादी ने तो संगठन में बजाप्ता बाल दस्ते का गठन ही कर लिया. अब हालात ये हैं कि राज्य में फैले अधिकांश नक्सली संगठनों में बच्चे सक्रिय लड़ाई में शामिल हो गए हैं.सीपीआई माओवादी में 13-14 साल के बच्चे पहले भी हथियारबंद लड़ाई में शामिल रहे हैं. कम से कम राज्य की पुलिस तो ऐसा ही मानती है. राज्य सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियान में बाल नक्सलियों की तस्वीर के साथ पूरे-पूरे पन्ने के पोस्टर और विज्ञापन भी छापे हैं. बच्चों के इस्तेमाल को सार्वजनिक करने के बाद माना जा रहा था कि नक्सली संगठनों में इस पर रोक लगेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नक्सली संगठनों ने इस ओर कुछ ज्यादा ही ध्यान देना शुरु कर दिया. सीपीआई माओवादी से अलग हो कर बनाई गई तृतीय प्रस्तुति कमेटी ने तो झारखंड में अपने हरेक इलाके में बच्चों का दस्ता तैयार कर लिया है. और अगर इनके नेताओं पर भरोसा किया जाए तो आने वाले दिनों में किशोर उम्र के कैडर पर अधिक ध्यान देने के लिए संगठन ने कमर कस ली है.तृतीय प्रस्तुति कमेटी यानी टीपीसी पलामू के सबजोनरल कमांडर गिरी जी कहते हैं- “संगठन को मज़बूत करने के लिहाज से यह ज़रुरी था कि हम बच्चों पर ध्यान दें. ये बच्चे ही कल की लड़ाई लड़ेंगे.”हालांकि गिरी जी इस बात से इंकार करते हैं कि उनके संगठन में इन बच्चों को हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. गिरी जी के अनुसार दूसरे माओवादी संगठन तो ऐसा कर रहे हैं लेकिन उनके संगठन में सोलह साल तक के बच्चों को हथियारों से दूर रखा जा रहा है.एक और सबज़ोनल कमांडर छोटू जी बताते हैं- “ हम माओवादियों की तरह बच्चों को हथियार की लड़ाई में नहीं झोंक रहे हैं. इन बच्चों को हथियारों की प्राथमिक जानकारी तो इसलिए दी जाती है, जिससे कभी भी आपात स्थिति में ये बच्चे दुश्मन से निपट सकें लेकिन हमारा सारा ध्यान इनके मानसिक विकास में हैं. इसलिए हम इन बच्चों के लिए सुविधानुसार स्कूल भी चला रहे हैं.”सीपीआई माओवादी और टीपीसी, दोनों ही संगठन अपने बाल दस्ता के सदस्यों से गुप्त सूचनाओं का आदान प्रदान करने, गीत व नाटकों के माध्यम से अपना संदेश फैलाने व समान ढोने का काम लेते है. दोनों ही संगठन अपने इलाके में इन बच्चों के अधिकतम इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं. टीपीसी ने तो सीपीआई माओवादी के बाल दस्ते के कई सदस्यों को अपने संगठन में शामिल भी किया है.आख़िर नक्सली संगठनों को बच्चों पर इतना जोर क्यों है, इसका जवाब झारखंड के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी देते हैं- “बच्चों पर कोई शक नहीं करता, इसका लाभ ये नक्सली संगठन ले रहे हैं. हमारे लिए नक्सलियों के बाल दस्ते से निपटना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.” इस पुलिस अधिकारी के अनुसार मुठभेड़ के दौरान जब बच्चों से सामना हो जाता है तो उन पर गोली भी चलाई नहीं जाती. ये बच्चे जब खबरों का आदान प्रदान करते है या कोई आग्नेयास्त्र लेकर एक जगह से दूसरी जगह जाते है तो उनपर किसी को शक नहीं होता. अगर ये पकड़े गये तो इन्हें हिरासत में रखना भी कम मुश्किल नहीं है. इसके अलावा मानवाधिकार संगठनों के कारण पुलिस इनके खिलाफ कोई सख्त कदम भी नहीं उठा

नक्सलवाद के जहरीले डंक

विमलेश झा
१९६७ में एक छोटी सी जगह नक्सलवाड़ी से किसान विद्रोह के रूप में शुरू हुई नक्सलवादी समस्या आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्या के रूप में खड़ी है ।जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते है तो वो देश के २० राज्यों के लगभग २२३ जिलों में पैर पसार चुके उस जहरीले नाग की ओर इशारा करते है जिसके डंक ने अबतक हजारो निर्दोषों को मौत की नींद सुला दिया है । सितम्बर २००४ में जब वामपंथी संगठनों ने मिल कर सी पी आई माओवादी ग्रुप की स्थापना की तबसे उनकी बढती ताकत को पुरे देश ने बढती हिंसा के रूप में महसूस किया है । अब पानी सर के ऊपर निकल चुका है और पूरा देश इस समस्या का कोई ठोस ,स्थाई और त्वरित समाधान चाहता है ।
वास्तव में माओवादी समस्या के पनपने की उर्वर जमीन सामाजिक शैक्षिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वे जंगली और आदिवासी क्षेत्र है जहाँ विकास की रौशनी अभी तक नहीं पहुच पाई है ।छतीसगढ़ जो कि इस समस्या से सर्वाधिक ग्रस्त राज्य है के कुछ चौकाने वाले आंकड़े इस सच्चाई को साफ बयां करते है ।इस राज्य के 18 में से १० जिलों में जिला अस्पताल नहीं है। शिशु मृत्यु दर ८६% है । ६८% के पास बिजली और ४९% के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। टेलीफ़ोन तक केवल १% जनता कि पहुँच है जबकि राज्य की मात्र २७% सड़के ही पक्की है ।राज्य कि ३१.७६ आबादी आदिवासी है तथा कूल क्षेत्रफल का ४३.75% जंगल है । कमोबेश यही स्थिति अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की भी है ।अत: नक्सलवाद एक सामाजिक - आर्थिक समस्या है जो हिंसक रूप धारण कर चुकी है ।
समस्या की व्यापकता तथा इसकी विकरालता को देखते हुए वर्तमान सरकार नींद से जग चुकी है तथा इसके समाधान के लिए हर मोर्चे पर लड़ाई लड़ने को तैयार दिख रही है ।सबसे पहली जरूरत एक राष्ट्र के रूप में हमें इस समस्या से लड़ने के लिए दृढ - संकल्पित होने की है। हमें अपने सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर इस समस्या को जड़ से मिटाना होगा ।
माओवादी हिंसा से निपटने का पहला समाधान सैन्य कार्रवाई है । केंद्र सरकार ने लगभग ७०००० सुरक्षा बलों की तैनाती कर माओवादिओं पर दबाब बनाने की कोशिस की है ।लेकिन यह ध्यान देना होगा की हमारे जैसे लोकतान्त्रिक देश में सैन्य कार्रवाई मानवाधिकारों का उल्लंघन न करे। हमारे सुरक्षाबलों को बड़े धैर्य के साथ आम जनता का विश्वास जीतते हुए हिंसक तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी। यह एक श्रमसाध्य और समयसाध्य प्रक्रिया है ।सैन्य कार्रवाई के पश्चात् तुरत ही उन क्षेत्रों में सिविल प्रशासन की स्थापना करनी होगी। देश के आर्थिक संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर इन क्षेत्रों में आधारभूत संरचनाओं का त्वरित विकास करना होगा ।
मुख्यत: इन्ही दो तरीकों से इस समस्या को जड़ से मिटाया जा सकता है । परन्तु यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि इन्हें आधे अधूरे मन से लागू न किया जाये ।राजनितिक मजबूरियों के चलते कई बार पूर्व में एक कदम आगे चलने और दो कदम पीछे हटने की तरकीब अपनाई जाती रही है जिससे यह समस्या और विकराल होती जा रही है ।जब हम पूरी प्रतिबद्धता से इस लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार हो जायेंगे तो हमें सैन्य कार्रवाई और विकास के समन्वित उपायों को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए कई आवश्यक तैयारियां करनी होगी ।
सबसे पहले हमें अपने सुरक्षाबलों को इस कठिन लड़ाई के लिए तैयार करना होगा। सुरक्षाबलों में खाली पदों को भरने से लेकर उनके गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की मांग को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना होगा ।उनका मनोबल बनाये रखने के लिए वेतन विसंगतियों को दूर कर उन्हें समाज में उचित मान सम्मान देना होगा । जंगल में लड़ाई लड़ने के लिए आवश्यक उपकरण तथा तकनिकी सहयोग उपलब्ध कराने होंगे ।एकीकृत कमान की स्थापना कर आसूचना का आदान प्रदान करना होगा । इस सम्बन्ध में वर्तमान गृह मंत्री श्री पी चिदम्बरम का गृह मंत्रालय के पुनर्गठन करने की मंशा सराहनीय है । नक्सल प्रभावित राज्यों को आपसी ताल मेल कायम कर एक साथ साझा अभियान चलाने की जरूरत है । सुरक्षाबलों की कार्रवाई को संचालित करने के लिए अच्छे अधिकारिओं की तैनाती करनी होगी । मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए हर कार्रवाई पर कड़ी निगरानी रखनी होगी ।इन सब तैयारियों के साथ हमें अपने सुरक्षाबलों को इस कठिन लड़ाई में उतारना होगा ।
सुरक्षाबलों को जब कहीं किसी क्षेत्र में कामयाबी मिलती है तो उस क्षेत्र में जितनी जल्दी हो सके सिविल प्रशासन की स्थापना करनी होगी । बड़े पैमाने पर विकास कार्य शुरू करने होंगे । इसके लिए हमें पहले से ही आर्थिक संसाधन जुटा कर रखने होंगे ताकि उस वक़्त किसी किस्म की देर न हो । विकास कार्यों के लिए पहले से ही बजट और योजनाये तैयार रखनी होंगी ।विकास कार्यों को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए केंद्रीय स्तर पर कड़ी निगरानी रखनी होगी वरना सारी मिहनत पर पानी फिर सकता है । विकास कार्यों में क्षेत्रीय विषमता और राजनितिक स्वार्थों से बचना होगा । ऐसा तभी हो सकता है जब विकास का कार्य केंद्रीय एजेंसिओं के माध्यम से हो ।गैर सरकारी संगठनों को विकास कार्यों की निगरानी का दायित्व दिया जा सकता है । इन तैयारियों के साथ हमें नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को देश के विकास की मुख्या धारा से जोड़ना होगा ।
उपरोक्त तैयारियों के साथ-साथ सिविल सोसाइटी को भी देश की इस विकराल समस्या को मिटाने के लिए आगे आना होगा । निगरानी तथा मार्गदर्शन के लिए देश के विशेषज्ञों और चिंतकों का एक संगठन गठित करना होगा जो कार्रवाई के दौरान पूरी प्रक्रिया पर सरकार को आवश्यक सलाह दे सके ।
प्राचीन काल से ही एक राष्ट्र के रूप में हमने अनेक समस्यों का सफलतापूर्वक सामना किया है और इस समस्या का भी हम बखूबी सामना करेंगे ।बस जरूरत है कमर कस कर इस मैदान में उतरने की ।ऐसे ही इकबाल ने नहीं कहा था कि -- "कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...."

Friday, February 26, 2010

ताकि न बढ़े नक्सलवाद


संजीव गौतम

जिस प्रकार हृदय शरीर के लिए महत्व रखता है वैसे ही मध्यप्रदेश का महत्व भारत के लिए विशेषकर सुरखा के प्रतिमान के लिहाज से, शायद यही सोचकर कि यह प्रदेश भारत का हृदय प्रदेश है अमन-चैन के दुश्मन देश के भीतर तक पैठ बना कर सब तरफ यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारा संगठन सारे भारतवर्ष में फैला है म.प्र. उनका प्रिय क्षेत्र है तो उनकी चुनौतियों का मुँह तोड़ जवाब देना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का लक्ष्य । स्थानीय समस्याओं जैसे दस्यु समस्या सहित म.प्र. में अन्य अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से पैर पसारने संगठित अपराधी भी सक्रिय हैं, जैसे आतंकवादी और नक्सलवादी ।
नक्सलवाद का म.प्र. में सतत्‌ विस्तार और उसकी जड़ों में कड़ा प्रहार यह पिछले दिनों खुफिया कार्रवाईयों की एक प्रमुख प्राथमिकता रही है । प्रदेश के ४८ जिलों में से ३० जिले सीमावर्ती राज्यों की सीमाओं से लगे होने के कारण उन राज्यों की आपराधिक गतिविधियों से भी प्रभावित होते आये हैं । ३.०८ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले हमारे प्रदेश की जनसंख्या लगभग ७ करोड़ है । अपने सीमित संसाधन विस्तृत भूभाग, इतनी बड़ी आबादी और विचारधारा के नाम अपराध की जहरीली खरपतवार उगाने वालों को अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग निरन्तर म.प्र. सरकार की पुलिस विभाग की नींद उड़ा रहा है । किन्तु इस सबके बावजूद शिवराज सिंह चौहान के कड़क रवैये से पुलिस को अधिकतम शांतिपूर्ण व्यवस्था बनाये रखने में महत्वपूर्ण सहयोग मिला है ।
यही कारण है कि नक्सली गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण रखने में म.प्र. सरकार काफी हद तक सफल रही है । भाजपा सरकार ने १६१९८ करोड़ रूपया पुलिस आधुनिकीकरण योजना पर खर्च किए । जिससे पुलिस बल को अधिक जननोन्मुखी बनाने, प्रशिक्षण, पुलिस थाना चौकी स्थापना उन्नयन, वाहन अस्त्र-शस्त्र थानों में कम्प्यूटरीकरण सहित पुलिस कर्मचारियों के आवास को बेहतर बनाने के कार्य किये गये, इस सबका बड़ा लाभ यह रहा कि बड़े संगठित अपराधियों, नक्सलवादियों को घातक विचारधारा और हिंसक कार्रवाईयों को रोकने के कार्य में लगे पुलिसकर्मियों-खुफिया सेवकों में आत्मविश्वास बढ़ा है । शिवराज सरकार आगे भी कुछ अच्छा करने का संकल्प पहले ही व्यक्त कर चुके हैं, उनकी सरकार के गृहमंत्री जगदीश देवड़ा पुलिस का मनोबल बढ़े इस हेतु प्रदेश पुलिस मुख्यालय का औचक अवलोकन सहित थाना चौकी स्तर तक नक्सलवादी प्रभावित क्षेत्रों जैसे बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी आदि की स्थिति पर नजर रख रहे हैं । इसके अलावा धार, झाबुआ, बड़वानी, बैतूल, छिन्दवाड़ा, कटनी, सीधी, शहडोल, होशंगाबाद, रतलाम, सिवनी आदि क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों पर म.प्र. सरकार निरन्तर नजर बनाए हुए है । शिवराज सरकार का प्रयास आर्थिक उत्थान, शिक्षा के समुचित प्रचार प्रसार पक्सली विचारधारा के रूख को राष्ट्रप्रेम की, विकास की विचारशक्ति में बदलने का है । सरकार न केवल पुलिस बल में पद बढ़ा कर मुखबिरों को संरक्षण सहित बड़े पैमाने पर जहाँ नक्सली विस्तार की संभावना है वहाँ गंभीरतापूर्वक जनजागृति के लिए प्रतिबद्ध और दूरगामी प्रभाव वाली रणनीति पर काम कर रही है ।
आर्थिक असमानता, रोजगार के अवसर एक प्रभावी पहल है जिससे नक्सली विस्तार रोकने में काफी सहायता प्राप्त हो रही है ।
इसी क्रम में सी.पी.आई. (एम) किसान क्रांतिकारी कमेटी, क्रांतिकारी जन कमेटी को म.प्र. विशेष अधिनियम सुरक्षा २००० के अन्तर्गत प्रतिबंधित किया गया है ।
सतनामी नगर भोपाल में पुलिस ने १० जनवरी २००७ को एक बेहद गोपनीय तरीके से सफलतापूर्वक नक्सलियों की हथियार फैक्ट्री पर छापा मारकर जिस तरह से नक्सलियों की जड़ों में भोपाल में भट्टा डाला उसने भी नक्सलियों को नयी रणनीति पर काम करने को विवश किया साथ ही शिवराज सिंह चौहान और म.प्र. पुलिस को भी कुछ और सचेत, गंभीर, मुस्तैद, सूचना के प्रभावी संकलन तथा अधिक प्रभावी कार्रवाई के लिए ललकारा भी है । जाहिर है लड़ाई बड़ी लंबी है एक दो दिन में लड़ी और जीती नहीं जा सकती फिर भी जैसी सोच शिवराज सिंह चौहान की, म.प्र. पुलिस की अभी है इसमें और मजबूती लाकर कुछ अच्छा करके दिखाने से हमारी सरकार और पुलिस बखूबी अपना कर्त्तव्य निभाने का उदाहरण आगे भी पेश कर सकती है । शायद जनांदोलन बनाकर कुछ और बेहतर ढंग से । (राष्ट्रधर्म)

अकेला पड़ता लालगढ़

नई दुनिया से साभार

मुठभेड़ में एक नक्सली ढेर

कांकेर । वर्दीधारी नक्सली मारा गया। नक्सली के पास से एक भरमार व पिठ्ठू भी बरामद किया गया। मृत नक्सली की शिनाख्त नहीं हो सकी है। पुलिस का अनुमान है कि इस मुठभेड़ में और भी नक्सली हताहत हुए होंगे।पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस अधीक्षक अजय यादव के मार्गदर्शन में बीती रात तीन अलग-अलग पार्टियां गश्त पर निकली थी। रावघाट थाना प्रभारी के नेतृत्व में हुरतराई से लौट रही पार्टी पर सुबह चार बजे के करीब रेकाभाठ और बैहासाल्हेभाठा के पास नक्सलियों ने घात लगाकर फायरिंग की। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने भी पोजिशन लेकर फायरिंग की। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बालाजी राव ने बताया कि करीब एक से डेढ़ घंटे तक मुठभेड़ चली और दोनों ओर से रूक-रूक कर फायरिंग होती रही। नक्सलियों द्वारा फायरिंग बंद किए जाने और उजाला होने के बाद घटनास्थल की तलाशी की गई। तलाशी के दौरान एक अज्ञात वर्दीधारी नक्सली का शव बरामद किया गया। पास में एक भरमार और एक पिट्ठू भी मिला। मृत नक्सली की शिनाख्त नहीं हो सकी है।

सी आर पी एफ के जवान सीख रहे गोंडी

नई दुनिया, २७ फरवरी, 2010

आपरेशन ग्रीन हंट को ले सीएम ने की बैठक

पुरुलिया। आपरेशन ग्रीन हंट की रणनीति तय करने एवं पुरुलिया के नक्सल प्रभावित विभिन्न सुरक्षा कैंपों को मजबूत करने समेत विभिन्न विषयों को लेकर शुक्रवार की शाम साढ़े पांच बजे मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने जिला प्रशासन एवं पुरुलिया, बांकुड़ा व पश्चिम बंगाल के पुलिस अधीक्षकों को लेकर बैठक की। इस बैठक में मुख्य रूप से सीआरपीएफ के डीजी विजय रमण, पश्चिम बंगाल राज्य पुलिस के एडीजी सहित मुख्यमंत्री के ओएसडी अरविंद कुमार मालिवाल, पुरुलिया के एसपी राजेश कुमार यादव, बांकुड़ा के एसपी विशाल गर्ग समेत विभिन्न पुलिस अधिकारी शामिल हुए। शुक्रवार को पुरुलिया सर्किट हाउस में रात्रि विश्राम के बाद शनिवार को मुख्यमंत्री बांकुड़ा की ओर रवाना होंगे।

रहस्यमय है सिम नक्सलियों के पास होना

खड़गपुर। नक्सल प्रभावित पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत सबसे ज्यादा संवेदनशील थाना क्षेत्र बेलपहाड़ी से अपहृत और बाद में रिहा कर दिये गये पुलिस जवान के मोबाइल सिम का नक्सलियों के पास रह जाने को पुलिस बनाम नक्सलियों के बीच चल रहे शह और मात के खेल की एक और कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। पूरे घटनाक्रम के पीछे पुलिस की लापरवाही थी या कोई सोची समझी रणनीति, इस पर बेशक सवाल दर सवाल उठ रहे है, लेकिन रणनीतिक कौशल के दृष्टिकोण से माना जा रहा है कि आपरेशन ग्रीन हंट से पहले केंद्र सरकार से बातचीत के लिए गृह मंत्रालय को यही नंबर देकर शीर्ष नक्सली नेता किशनजी ने पुलिस को चकमा देने का काम किया है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2009 में बेलपहाड़ी थाना क्षेत्र के तामाझुड़ी से नक्सलियों ने दो पुलिस जवानों हितेश्वर सिंह व शिशिर नाग का अपहरण कर लिया था। चूंकि यह घटना पीसीपीए समिति के शीर्ष नेता छत्रधर महतो की गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद ही हुई थी, लिहाजा इससे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था। उसी दौरान नक्सलियों ने झारखंड से अपहृत एक पुलिस अधिकारी की कूरतापूर्वक हत्या कर दी थी, इस वजह से भी नक्सलियों से जूझ रहे पुलिस जवानों के परिजनों का अपहृत जवानों को छुड़ाने के लिए अधिकारियों पर काफी दबाव था। अप्रत्याशित तरीके से नक्सलियों ने अपहृत जवानों को बिना किसी शर्त के छोड़ भी दिया। लेकिन शिशिर नाग का मोबाइल सिम नक्सलियों के पास ही रह गया। आपरेशन ग्रीन हंट से पहले जब यही नंबर किशनजी ने केंद्रीय गृहमंत्रालय को दिया, तो हर तरफ हड़कंप मचना स्वाभाविक था। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि एक पुलिस जवान का मोबाइल नक्सलियों द्वारा छीन लिये जाने के बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। क्या इस वाकये को भी मोबाइल खोने व चोरी की सामान्य शिकायतों के रूप में लिया गया, या जान बचने की आपाधापी में घटना को ही गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि अधिकारी इस पर पूरी तरह से खामोश हैं। बचाव में कहा जा रहा है कि इस संबंध में खड़गपुर टाउन थाने में शिकायत दर्ज करायी गयी थी। लेकिन थाने के जिम्मेदार अधिकारी कह रहे है, कि किसी भी वस्तु की छिनतई व खो जाने की सूचना उसी थाने में दर्ज करायी जा सकती है, जहां घटना हुई हो, ऐसे में इतनी दूर के थाने में कैसे शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। संभावना जतायी जा रही है कि नक्सली गतिविधियों का पता लगाने के लिए पुलिस ने जानबूझ कर मोबाइल व सिम छोड़ा हो, लेकिन इस रणनीति के तहत कहा जा सकता है, कि सरकार को बातचीत के लिए यही नंबर देकर नक्सलियों ने पुलिस के नहले पर दहला मारने की कोशिश ही की है।

सलुवा पहुंचे राज्यपाल, परिजनों को बंधाया ढाढस


खड़गपुर, पश्चिमी मेदिनीपुर जिले के शिल्दा में गत 15 फरवरी को हुए नक्सली हमले में प्राण गंवाने वाले ईस्टर्न फ्रंटियर रायफल्स के 24 जवानों के परिजनों से शोक जताने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम. के. नारायणन शुक्रवार की सुबह बल मुख्यालय सलुवा पहुंचे। तय कार्यक्रम के अनुरूप राज्यपाल ने पहले शोकाकुल परिजनों से मुलाकात की, इसके बाद पुलिस व ईएफआर अधिकारियों से मंत्रणा की। बातचीत में राज्यपाल ने कहा कि उनके आने का एकमात्र उद्देश्य नक्सली हमले में शहीद जवानों के परिजनों से मुलाकात और उन्हें ढांढस बंधाना है। वे शहीद जवानों के परिजनों का दु:ख समझ सकते है। पीड़ित परिवारों की क्षतिपूर्ति के संबंध में सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है। यहां आकर उन्होंने स्थितियों को देखा, शीघ्र ही इस संबंध में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य व अन्य मंत्रियों से बातचीत करेगे।
इस बीच पुलिस संत्रास प्रतिरोध जन साधारण समिति के अध्यक्ष लाल मोहन टुडू का शव चौथे दिन भी झाड़ग्राम अस्पताल के मुर्दाघर में पड़ा रहा। व्यापक पुलिस बंदोबस्त के चलते शव को लेने के लिए कोई वहां पहुंच नहीं रहा है। मिली जानकारी के अनुसार शव से बदबू उठने लगी है और वह क्षरण की स्थिति में पहुंच गया है। इधर टुडू की विधवा लक्खीमणि टुडू ने एक रिश्तेदार के माध्यम से कहा है कि गुरुवार को आदिवासी रीति से लाल मोहन टुडू का अंतिम संस्कार कर दिया गया है। इसलिए अब परिवार को शव की जरूरत नहीं है। पुलिस को जो करना है, करे। टुडू की हत्या के खिलाफ चल रहा बंद शुक्रवार को भी जारी रहा। जंगल महल (पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुड़ा व पुरुलिया) में यह बंद का तीसरा दिन था। शुक्रवार को झाड़ग्राम सहित अन्य कस्बों में कुछ दुकानें खुलने से लोगों ने राहत की सांस ली लेकिन ज्यादातर इलाका बंद ही रहा। इस दौरान सड़क पर आवागमन ठप रहा। स्कूल बंद रहे और सरकारी कार्यालयों में उपस्थिति भी बहुत कम रही। झाड़ग्राम कस्बे के मानिकपाड़ा इलाके में रामकृष्ण बाजार मोड़ पर बीती रात माओवादियों ने एक नकली केन (देसी) बम रखकर पुलिस को परेशान व लोगों को भयभीत किया। अपराह्न करीब तीन बजे मेदिनीपुर से पहुंचे बम निरोधक दस्ते ने छानबीन के दौरान केन में बालू भरी पाई। इसके बाद उसे वहां से हटा दिया गया।

माओवादी समस्या विपक्ष की देन : किरण

कालियागंज (उत्तर दिनाजपुर): कालियागंज अन्तर्गत रसीदपुर स्टेडियम मैदान में सोसलीस्ट पार्टी का सम्मेलन शुक्रवार को आयोजित हुआ। इस मौके पर मुख्य अतिथि मत्स्यमंत्री किरणमय नंद ने कहा कि सुबे में माओवादी समस्याएं विपक्ष की देन है। अब वे जनता को गुमराह करने के लिए इसका ठिकरा वामपंथियों पर फोड़ रही है। उन्होंने सवाल किया कि उड़िसा, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड और मध्यप्रदेश में क्या वामफ्रंट की शासन है? राज्य मे विपक्षी दल हिंसा को बढ़ावा दे राहा है और आरोप प्रत्यारोप का माहौल बनाकर राज्य सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।

गिरफ्तारी माओवादी से मिला अहम सुराग


कोलकाता। पश्चिम मेदिनीपुर के सिलदा में ईएफआर कैंप पर हुये नक्सली हमले के मामले में गिरफ्तार माओवादी एक्शन स्क्वायड के सदस्य सुखलाल सोरेन (23 वर्ष) से पुलिस व सीआईडी को कुछ अहम सुराग मिले हैं। सीआईडी अधिकारियों के मुताबिक सुखलाल ने गुरुवार को पुलिस की पूछताछ में स्वीकार किया है कि हमले के वक्त उसने भी गोली चलाई थी। जिन दो गाड़ियों ने माओवादियों ने हमले को अंजाम दिया था उस को सूत्र बना कर पुलिस ने माओवादियों के लिए गाड़ी खरीदने के आरोप में मानस महतो और अमित महतो को गिरफ्तार करने के बाद पूछताछ कर रही है। खबर मिली है कि इन तीनों से हमले के संबंध में कई महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।

सीआईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस मामले में गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ कर हमला करने वाले माओवादियों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। कुछ लोगों के नाम का पता चला है जिसकी तलाश की जा रही है। ईएफआर कैंप पर हमले की साजिश कब और कहां कैसे रची गयी इसकी पूरा पता लगाया जा रहा है। साथ ही कितने माओवादियों ने हमले को अंजाम दिया और हमले के दौरान पुलिस की गोली से मारे गये माओवादी कहां के हैं इसकी भी जानकारी ली जा रही है।

ज्ञात हो कि हमले के बाद पुलिस भी कैंप पर कितने नक्सलियों ने हमला किया था इसकी संख्या को लेकर संशय में है। पहले कहा गया था कि चालीस से पचास बाद में कहा गया कि 60 से 70 माओवादियों के गिरोह ने हमला किया था और उसमें कुछ महिलाएं भी शामिल थीं।

नक्सलियों के रेड कोरीडोर में बच्चों की शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त

जमुई। माओवादियों द्वारा अघोषित रेड कोरीडोर इलाके में बड़े तो बड़े बच्चे भी कुचक्र में फंसकर शिक्षा से दूर हो गये हैं। कोड़ासी गांव में घटित माओवादी नरसंहार की घटना अथवा रिपोर्ट के मुताबिक, माओवादियों ने 12 से 17 साल की उम्र तक के बच्चों को अपने निशाने पर ले लिया है। माओवादी यह भी स्वीकारते हैं कि बच्चों को अपनी टीम में शामिल कर रहे हैं। फुलवरिया-कोड़ासी गांव में माओवादियों ने तो बाल दस्ते का बखूबी इस्तेमाल भी किया। इधर गरीबी और माओवादियों के खौफ के चलते बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो चुका है। बिहार-झारखंड की सीमा से सटे कोड़ासी, चरकापत्थर का इलाका हो अथवा मुंगेर की सीमा से सटा चोरमारा, गुरमाहा, जमुनियाटांड, माओवादियों के इस रेड कोरीडोर में शैक्षणिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच जारी संघर्ष की वजह से बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे हैं। पिछले पांच वर्षो में वन क्षेत्रीय इलाके में नक्सलियों ने कई स्कूलों की इमारतों को ध्वस्त किया है। ताजा घटना महेश्वरी गांव की है जहां नक्सलियों ने सिर्फ इसलिए स्कूल भवन को उड़ा दिया कि उन्हें सूचना थी कि उक्त भवन में पुलिस शिविर बनाया जायेगा। इसके पूर्व भी जमुनियाटांड़ में स्कूल भवन को उड़ा दिया गया। इस मामले में जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग यह जुगलबंदी कर रही है कि माओवादी शिक्षा के दुश्मन हैं। नतीजतन नक्सल प्रभावित इलाके की तालिमी व्यवस्था भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने की ढपोरशंखी विभागीय बातों का ह्रस नक्सल प्रभावित इलाके में देखा जा सकता है। जमुनियाटांड, फुलवरिया-कोड़ासी गांव में अब बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। कोड़ासी में भय का आलम व्याप्त है तो जमुनियाटांड में स्कूली भवन ध्वस्त हो चुका है। माओवादी व पुलिस के बीच संघर्ष में बच्चे हथियार बन गये हैं। शिक्षा विभाग के लिए नक्सल प्रभावित इलाके के विद्यालय आय का जरिया बन गया है तो माओवादियों को बाल दस्ता बनाने का मुफीद मौका । सूत्रों की माने तो भीमबांध वनक्षेत्र के अलावे सोनो, चकाई प्रखंड के बच्चे गांधी व महावीर की अहिंसावादी उपदेशों के बजाय माओवादी विचार धारा की पाठ पढ़ रहे हैं।

नक्सलियों ने की गला रेतकर युवक की हत्या



जमुई। बुधवार की रात्रि झाझा थानांतर्गत उग्रवाद प्रभावित मानिकबथान गांव में दर्जनों नक्सलियों ने पुलिस मुखबिरी करने के आरोप में एक व्यक्ति की तेज हथियार से गला रेतकर हत्या कर दी जबकि एक किराना व्यवसायी को जमकर पीटा । जानकारी के अनुसार रात्रि मानिक बथान गांव में 50-60 की संख्या में नक्सलियों ने धावा बोलते हुए पुलिस मुखबिरी करने के आरोप लगाते हुए अरूण यादव को खोजना शुरू किया। बाद में घर में छिपे अरूण यादव को नक्सलियों ने निकाल कर हत्या कर दी। इसी क्रम में नक्सलियों ने गांव के किराना दुकानदार रविन्द्र यादव को बंदूक के बट एवं लाठी-डंडा से जमकर पीटा। जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गया। घटनास्थल पर नक्सलियों ने कई पर्चे भी छोड़े जिसमें कहा गया है कि पुलिस मुखबिरी करने वाले को मौत की सजा। उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र रहने के कारण झाझा पुलिस अपने दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंचकर मृतक की लाश को कब्जे में लेते हुए पोस्टमार्टम हेतु जमुई भेज दिया गया। जबकि घायल किराना व्यवसायी रविन्द्र यादव का इलाज स्थानीय रेफरल अस्पताल में किया जा रहा है। घायल व्यक्ति के सिर एवं दोनों हाथ पर जख्म है। नक्सली द्वारा किये गये घटना से मानिक बथान के ग्रामीणों में दहशत व्याप्त है। घटनाक्रम में दर्जनों ग्रामीण गांव से फरार हो जाने की बात सामने आयी है।

मुठभेड़ में नक्सली कैम्प ध्वस्त

जमुई। बिहार-झारखंड की सीमा पर चकाई थाना अंतर्गत हांसीकोल गांव से सटे जंगल में गुरूवार को पुलिस-नक्सली मुठभेड़ हुई। इस दौरान पुलिस ने बड़ी मात्रा में हथियार व अन्य सामान बरामद किया। मुठभेड़ के द्वारा नक्सलियों द्वारा किया गया केन बम विस्फोट में सीआरपीएफ के तीन जवान मामूली रूप से जख्मी हो गये। दोनों ओर से सैकड़ों चक्र गोलिया चलने की सूचना है। जानकारी के अनुसार बोंगी पंचायत अंतर्गत हांसीकोल गांव में लगभग 400 की संख्या में नक्सली इकटठा थे। पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि नक्सली सिकन्दरा थाना के फुलवरिया गांव में लगा पुलिस कैम्प पर हमले की योजना बना रहे हैं। सूचना पर पुलिस कप्तान के निर्देश में चकाई, चन्द्रमंडी, सिमुलतला एवं सोनो पुलिस सीआरपीएफ एवं सैप जवान के साथ पैदल रास्ते हांसीकोल पहुंची। इसी बीच नक्सलियों ने पुलिस को देखकर केन बम विस्फोट कर ताबड़तोड़ गोलियां चलाना शुरू किया। विस्फोट में सीआरपीएफ के तीन जवान मामूली रूप से जख्मी हो गये। सीआरपीएफ की ओर से गोलियां व मोटार्र चलते देख नक्सली जंगल की ओर भाग खड़े हुए। पुलिस ने घटनास्थल से दर्जनों राइफल, चाइनीज कैमरा फ्लैस 20, चादर 70, पुलिस वर्दी एवं टोपी -सौ-सौ, जूता 40, महिला चप्पल 30 जोड़ा, दवा, नक्सली साहित्य व पर्चा, नेपाली चाकू 50, चाइनीज डेटोनेटर 30, तिरपाल 40, कंबल 70, दर्जनों मोबाइल सहित कई सामान बरामद किया। इसके अलावा पुलिस ने खाना बनाने का बड़ा बर्तन एवं 150 आदमी का तैयार खाना भी घटनास्थल पर पाया। पुलिस सूत्रों के अनुसार उक्त स्थल पर नक्सलियों का कैम्प चल रहा था। हालांकि झाझा एसडीपीओ राकेश कुमार सिन्हा ने दो राइफल बरामद होने की पुष्टि की है।

बिहार में पुलिस-नक्सली मुठभेड़


जमुई। बिहार-झारखंड की सीमा पर चकाई थाने के हासीकोल गांव के समीप शुक्रवार को पुन: पुलिस की नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हुई। दोनों ओर से लगभग चार हजार चक्र गोलियां चलीं। इस गोलीबारी में एसटीएफ का एक जवान घायल हो गया है। लगभग छह घंटे चली इस मुठभेड़ में कई नक्सलियों के मारे जाने की संभावना जताई गई है। जमुई के चंद्रमंडी थाना प्रभारी सकलदेव यादव ने बताया है कि घटनास्थल से पुलिस ने एक देशी रायफल बरामद की है। कुछ लोग भी हिरासत में लिए गए हैं। पुलिस का तलाशी अभियान शनिवार को भी जारी रहेगा।

जानकारी के अनुसार गुरुवार को हासीकोल गांव में चल रहे नक्सली कैंप को पुलिस ने खोजकर बड़ी मात्रा में हथियार व सामान बरामद किया था। शुक्रवार को पुलिस कैंप के इर्दगिर्द तलाशी अभियान चला रही थी। पूर्वाह्न लगभग दस बजे पुलिस बल के जवानों पर माओवादियों ने अचानक हमला बोल दिया। इसमें एसटीएफ का एक जवान जख्मी हो गया। जवाबी कार्रवाई में पुलिस बल के जवानों ने भी सैकड़ों राउंड गोलियां चलाईं एवं मोर्टार से गोले दागे। बिहार-झारखंड सीमा पर जमुई और गिरिडीह जिलों की पुलिस सीआरपीएफ व एसटीएफ के साथ मिलकर इन दिनों तलाशी अभियान चला रही है। यह अभियान हाल ही में फुलवरिया कोड़ासी गांव में हुए नक्सली हमले में शामिल माओवादियों को पकड़ने के लिए चलाया जा रहा है।

पुलिस-नक्सली के बीच मुठभेड़, हजारों चक्र गोलियां चली

जमुई। शुक्रवार को बिहार-झारखंड की सीमा पर चकाई थाने के हासीकोल गांव के समीप पुन: पुलिस-नक्सली मुठभेड़ प्रारंभ हो गयी। दोनों ओर से लगभग चार हजार चक्र गोलियां चली। इस गोली-बारी में एसटीएफ के एक जवान घायल हो गये। लगभग छह घंटे तक चली मुठभेड़ में कई नक्सलियों के मारे जाने की संभावना जतायी जा रही है। जानकारी के अनुसार गुरुवार को हासीकोल गांव में चल रहे नक्सली कैम्प को पुलिस ने ध्वस्त कर बड़ी मात्रा में हथियार व नक्सली सामान बरामद किया था। पुन: शुक्रवार को पुलिस कैंप के इर्दगिर्द आपरेशन सर्ज चला रही थी। लगभग दस बजे पुलिस बल के जवानों पर माओवादी के लड़ाकू दस्ते ने अचानक हमला बोल दिया। जिसमें एसटीएफ के एक जवान जख्मी हो गये। जवाबी कार्रवाई में पुलिस बल के जवानों ने भी सैकड़ों राउंड गोलियां चलायी एवं मोर्टार लांचर से गोले दागे। जमुई एवं गिरीडीह पुलिस के सीआरपीएफ, एसटीएफ एवं सैप के जवान लगातार जंगली क्षेत्रों में कोड़ासी नरसंहार में शामिल माओवादियों के गिरफ्तारी हेतु जंगली इलाकों को चारो ओर से घेर कर लोंग रैंज पेट्रोलिंग कर रहे हैं। गुरूवार को नक्सली होने के संदेह पर पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार भी किया है।

धर्मान्तरण और नक्सली देश के लिए सबसे बड़ा खतरा : विहिप


पूर्णिया। धर्मान्तरण और नक्सली को विश्व हिन्दू परिषद् ने देश के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया है। संगठन ने इसके अलावा भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण सहित कई ज्वलंत मुद्दों पर सरकार द्वारा लापरवाही बरतने को आगे के लिए बड़ी समस्या बताते हुए इसके लिए केन्द्र सरकार को सावधान किया है। गुरूवार को संघ कार्यालय में विहिप की धर्मरक्षा निधि की हुई बैठक में किशनगंज में अलीगढ़ विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा को दुर्भाग्यजनक बताया गया। बैठक को संबोधित करते हुए विहिप के जिला अध्यक्ष पंचानंद यादव ने कहा कि इन सभी मुद्दों से निजात के लिए हिन्दू समाज को संगठित होकर विरोध करने की अपील की। इसके अलावा प्रत्येक प्रखंड तथा पंचायत में संगठन के विस्तार कर लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया गया। संभाग अध्यक्ष अमरनाथ सिंह ने हिन्दुओं से जातिगत भावना से उपर उठकर हिन्दु समाज के लिए काम करने की जरूरत बतायी। इस मौके पर कार्याध्यक्ष डा। विजय कुमार घोष, नंद किशोर यादव, भास्कर सिंह, विनोद कुमार, श्रवण कुमार, अमरेन्द्र गुप्ता, श्रीकांत तिवारी, रणधीर राज भदोरिया , प्रदीप चौधरी आदि मौजूद थे ।

नक्सली बंद : रेल मंडल में रेड अलर्ट


चक्रधरपुर, । पुलिस जुल्म विरोधी जन साधारण कमेटी के अध्यक्ष लाल मोहन टुडू की कथित हत्या के विरोध में नक्सलियों द्वारा झारखंड समेत तीन राज्यों में शनिवार को आहूत बंद के मद्देनजर चक्रधरपुर रेल मंडल में रेल अलर्ट जारी कर दिया गया है। सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियों ने बंद के दौरान चक्रधरपुर मंडल के नक्सलग्रस्त रेल खंडों को नक्सलियों द्वारा साफ्ट टारगेट बनाए जाने की आशंका जताई है। जिसके बाद शुक्रवार की आधी रात से शनिवार की आधी रात तक आरपीएफ को विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं। बंद से निपटने के लिए रेल मंडल प्रशासन ने संवेदनशील रेलवे स्टेशनों में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की है। वहीं मनोहरपुर व चक्रधरपुर जैसे स्टेशनों में आरपीएफ की टुकड़ी को रिजर्व भी रखा जायेगा। चक्रधरपुर से राउरकेला के बीच यात्री ट्रेनों को पायलटिंग कर चलाने के निर्देश दिए गए हैं। रेलवे के अलावा जिला पुलिस द्वारा चक्रधरपुर अनुमंडल के सभी थानों को सतर्क कर दिया गया है। नक्सली बंद से निपटने की कार्रवाई के दौरान मनोहरपुर, सोनुवा, गोईलकेरा, बंदगांव, कराईकेला, टेबो आदि थानों को विशेष एहतियात बरतने के निर्देश दिए गए हैं। झारखंड पुलिस के जवानों को भी रेलवे की सुरक्षा में तैनात किया गया है।

पुलिस-नक्सली मुठभेड़ - जवान घायल


गिरिडीह, देवरी, जमुई जिले के राजडुमर गांव में 24 घंटे से पुलिस और नक्सलियों के बीच चल रही मुठभेड़ शुक्रवार शाम खत्म हो गयी। इसमें गिरिडीह जिला पुलिस ने बिहार पुलिस का बढ़चढ़ कर सहयोग किया। मुठभेड़ में बिहार पुलिस का एक जवान घायल हो गया जिसका इलाज गिरिडीह में चल रहा है। इसकी पुष्टि गिरिडीह पुलिस कप्तान ने की है।

इसकी सूचना मिलते ही भेलवाघाटी थाना में कैंप कर मुठभेड़ के दौरान आवश्यक दिशा निर्देश दे रहे गिरिडीह पुलिस कप्तान रविकांत धान व एएसपी संजय कुमार घटना स्थल पहुंचे। वहां से उन्होंने गिरिडीह के चिकित्सक डा. दीपक बगेड़िया को पुलिस जवान के घायल होने की सूचना दी। साथ ही इलाज के लिये अपने अस्पताल में व्यवस्था करने की बात कही। घायल जवान को देवरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में प्राथमिक उपचार के बाद गिरिडीह रेफर कर दिया गया। यहां नव जीवन नर्सिग होम में जवान के लाते ही डा. बगेडिया समेत अन्य चिकित्सक इलाज में जुट गये। वहीं रेडक्रास की ओर से जवान को एक बोतल खून भी दिया गया। डा. बगेडिया ने बताया कि घायल जवान का नाम निर्भय कुमार सिंह है। इस बीच पुलिस कप्तान धान ने दूरभाष पर बताया कि बिहार पुलिस का एक जवान जख्मी है, जिसका इलाज गिरिडीह में चल रहा है। एक सवाल पर एसपी ने बताया कि पूरे आपरेशन में बिहार पुलिस को गिरिडीह जिला पुलिस ने पूरा सहयोग किया। उन्होंने कहा कि मुठभेड़ शुक्रवार चार बजे शाम में खत्म हो गयी।

नक्सल उन्मूलन में कोई शिथिलता नहीं : रघुवर

रांची। नक्सल उन्मूलन के संदर्भ में केंद्र सरकार की नई नीतियों से जहां सहमति जताते हुए उपमुख्यमंत्री रघुवर दास का कहना है कि उनकी सरकार नक्सल उन्मूलन योजना में कोई शिथिलता नहीं बरतेगी, वहीं नेता प्रतिपक्ष ने शिबू सरकार की नीतियों पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा, वे याद रखें केंद्र सरकार के पास बहुत फंडा है। शुक्रवार को विधानसभा के बजट सत्र के विधायी कार्यो के बाद पत्रकारों से बातचीत में दोनों नेताओं के एक-दूसरे के प्रति तल्ख तेवर देखने को मिले। रघुवर ने कहा, नक्सल उन्मूलन बिना विकास के संभव नहीं। इस कारण हमने केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम से अतिरिक्त राशि की मांग की है, जो अगले वित्ताीय वर्ष में मिलेगी। उधर, राजेंद्र ने कहा, जब से ये लोग सरकार में आए हैं, तब से नक्सल मामले में इनकी आगे-पीछे की बयानबाजी हर कोई देख रहा है। किस सूरत में ये लोग चिदंबरम साहब के बार-बार के बुलावे पर दिल्ली गए, हर कोई जानता है। अब इधर-उधर करेंगे तो न जनता माफ करेगी, न ही हम, न ही केंद्र सरकार।

नक्सली घटना के पीड़ितों को हर संभव सहायता : एसपी

नक्सली घटना के पीड़ितों को हर संभव सहायता : एसपी
लोहरदगा। विशुनपुर थाना क्षेत्र में नक्सली घटना में मारे गए खलासी राजेन्द्र गोप और इस घटना से प्रभावित लोहरदगा जिले के दो ट्रक मालिकों को हर संभव सहायता देने की बात एसपी सुबोध प्रसाद ने कही है। श्री प्रसाद बाक्साइट ट्रक मालिक, चालक, सह चालक कल्याण समिति के अध्यक्ष भी है। इन्होंने घटना की निंदा करते हुए कहा कि नक्सली अपने को गरीबों का मसीहा कहते-फिरते है, लेकिन इनके कृत्यों से गरीबों की ही जिन्दगी तबाह हो रही है। राजेन्द्र गोप के गांव नीचे बगडू को लोहरदगा पुलिस ने गोद ले रखा है। इस गांव में विकास और जन कल्याण के कार्य पुलिस करती रही है। इस नाते भी एसपी ने राजेन्द्र के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए इन्हे हर संभव सहायता देने की बात कही है।

उधर किस्को और कुडू थाना पुलिस ने थाना प्रभारी सुनील कुमार तिवारी और अंजनी कुमार की अगुवाई में संयुक्त छापामारी अभियान चलाया। किस्को थाना क्षेत्र के अंबापावा में भाकपा माओवादी और झारखंड जनमुक्ति परिषद के नक्सलियों के बीच मुठभेड़ की सूचना मिलने पर पुलिस ने नक्सलियों को घेरने का प्रयास किया। हालांकि इसमें पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली।


जमशेदपुर। राज्य गठन के 10 साल बाद भी पहचान और विकास को तरसते आदिवासियों का गुस्सा शुक्रवार को उपायुक्त कार्यालय पर फूट पड़ा। झारखंड रक्षा संघ और दलमा बुरु समिति की अगुवाई में बड़ी संख्या में आदिवासियों-मूलवासियों ने परंपरागत हथियारों से लैस होकर रैली निकाली। उपायुक्त कार्यालय पर रैली की शक्ल में पहुंचे आदिवासियों ने एक घंटे से भी अधिक समय तक विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान नेताओं ने आदिवासियों व मूलवासियों के समक्ष उत्पन्न संकट पर चिंता जतायी। नेताओं का कहना था कि राज्य का निर्माण तो आदिवासी व मूलवासियों की पहचान को कायम रखने के लिए किया गया था लेकिन यह सपना आज धरा रह गया। नेताओं ने आपरेशन ग्रीन हंट पर भी खुलकर भड़ास निकाली। झारखंड रक्षा संघ और दलमा बुरु समिति के नेताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस नक्सली जांच के नाम पर घरों में घुसकर खतियान फाड़ रही है। विकास के नाम पर उनका शोषण किया जा रहा है और राज्य में आदिवासियों-मूलवासियों के समक्ष ही संकट उत्पन्न हो गया है। प्रदर्शन के बाद उपायुक्त के माध्यम से 18 सूत्री ज्ञापन राष्ट्रपति को भी भेजा गया। इस पत्र पर दलमा बुरु सेंदरा समिति और झारखंड रक्षा संघ के पदाधिकारियों ने हस्ताक्षर किये हैं। इनमें राकेश हेम्ब्रम, डा. छोटे हेम्ब्रम, संग्राम मार्डी, डीबर समद, लाल सिंह गगराई, कान्हू टुडू, दिवाकर सोरेन, बेंडे बीरजो, गोपाल सरदार आदि शामिल हैं।

बस्तर में हिंसा जारी, 24 घंटे में तीन हलाक


जगदलपुर। संघर्ष विराम के प्रस्ताव के बावजूद आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में पिछले 24 घंटे से हिंसा जारी है। इस दौरान माआोवादियों द्वारा अब तक तीन व्यक्तियों को मारे जाने की खबर है जिसमें एक डाक्टर भी शामिल है।

पुलिस सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार दंतेवाड़ा जिले के सुकमा तहसील के निकटवर्ती ग्राम केरलापाल में माओवादियसों द्वारा आज डाक्टर खलील की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसी प्रकार कल देर रात कोण्डागांव के मेले में गुड्डू की चाकू मारकर हत्या कर दी गई।
कल बीजापुर जिले के भैरमगढ़ थाना क्षेत्र में सतीश गुप्ता नामक एक ठेकेदार का शव बरामद किया गया था। पुलिस का कहना है कि मंगलवार को माटवाड़ा साप्ताहिक बाजार से ठेकेदार गुप्ता का अपहरण कर लिया गया था।

इसी बीच कांकेर जिले के कोयलीवेड़ा थाना क्षेत्र से माओवादियों द्वारा अगवा कर लिया गया एक व्यक्ति उनके चंगुल से भाग निकला है। पुलिस का कहना है कि 53 वर्षीय राय सिंह आचला नामक इस आदिवासी को पुलिस मुखबिरी के आरोप में कोयलीबेड़ा क्षेत्र के ग्राम कसादण्ड से अगवा कर लिया गया था।

रायसिंह आचला की शिकायत पर कोयलीबेड़ा पुलिस ने आज अज्ञात माओवादियों के विरुद्ध अपराध कायम कर लिया है।

Thursday, February 25, 2010

देंग ने साम्यवाद का चरित्र बदला


चीनी जनता इस अर्थ में महान है कि उसने अपने देश के शासकों, खासकर देंग जियाओ पिंग की बातों पर विश्वास किया और सबसे भयानक जोखिम उठाया। स्वेच्छा से सुरक्षित जीवनशैली वाले समाजवादी मॉडल को त्यागकर असुरक्षा वाले भूमंडलीकृत पूंजीवाद के मॉडल को स्वीकार किया और ईमानदारी के साथ उसे लागू किया। बड़े पैमाने पर संपदा पैदा की। चीन के समग्र तंत्र और संरचनाओं में नए सिरे से प्राणों का संचार किया।


नए भूमंडलीकृत पूंजीवाद में दाखिल होने से वस्तुओं, भवनों, सड़कों आदि इंफ्रास्ट्रक्चर का अभूतपूर्व विकास हुआ। साथ ही नयी सामाजिक संरचनाओं और वर्गों का भी उदय हुआ। चीन के विगत 35 साल के विकास की दो बड़ी उपलब्धियां हैं नयी विराटकाय भौतिक संरचनाओं का निर्माण और नए वर्गों के रूप में पूंजीपतिवर्ग और मध्यवर्ग का उदय। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर सत्ता और पूंजी के नए केन्द्रों का उदय। मसलन् पहले चीन में मध्यवर्ग नहीं था। नयी व्यवस्था आने के साथ तेजी से मध्यवर्ग पैदा हुआ है। आज चीन में मध्यवर्ग का सालाना एक फीसदी की दर से विकास हो रहा है। समाजविज्ञान अकादमी चीन के अनुसार सन् 2003 में दर्ज आंकड़ों के अनुसार सकल आबादी का 19 फीसदी हिस्सा मध्यवर्ग में आ चुका है। चीन के मध्यवर्ग में 150,000 से 300,000 यूआन की संपत्ति के मालिकों को रखा गया है। अमरीकी डालर के अनुसार जिस व्यक्ति के परिवार के पास 18,072 -36,144 डालर तक संपत्ति है, वह मध्यवर्ग की केटेगरी में शामिल है। सन् 2020 तक चीन की कुल जनसंख्या का 40 फीसद मध्यवर्ग में पहुँच जाएगा।


देंग जियाओ पिंग ने सही पहचाना था चीन में साम्यवाद ठहराव का शिकार हो गया था। उसका विकास बंद हो गया था। जब कोई विचारधारा अथवा व्यवस्था गतिरोध में फंस जाए तो उस गतिरोध से निकलना अपने आप में क्रांतिकारी काम है। देंग ने साम्यवादी गतिरोध से चीन को निकालकर मानव सभ्यता की सबसे बड़ी सेवा की है। देंग ने माओ के द्वारा संचालित और प्रतिपादित रास्ते से एकदम हाथ खींच लिया और नया मार्ग चुना और इसे ‘सुधार’ का नाम दिया।


देंग के आने के बाद ‘सुधार’ पदबंध का व्यापक प्रयोग चीन की सैध्दान्तिकी और राजनीतिक भाषा में हुआ है। दूसरा पदबंध जो जनप्रिय हुआ है वह ”समृद्ध बनो प्रभावशाली बनो।” चीन का समूचा लेखन,चिन्तन और एक्शन इन दो पदबंधों के इर्दगिर्द घूमता रहा है। नियोजित अर्थव्यवस्था की जगह बाजार अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया गया। ‘ऑटोक्रेसी’ की जगह ‘खुलेपन’ की तरजीह दी गयी। जिसके कारण अर्थव्यवस्था में रोमांचित कर देने वाला उछाल आया।


”खुले दरवाजे’ की नीति ने विदेशी पूंजी निवेश का मार्ग खोला और अनंत नयी संभावनाओं के द्वार खोले। सन् 1979 से लेकर 1997 के बीच में विकासदर 9.8 प्रतिशत सालाना रही है। इसके फलस्वरूप सात करोड़ लोगों को दरिद्रता के स्तर से ऊपर उठाने में मदद मिली। चीन में बैंकों में नागरिकों के जमा धन में 220 गुना वृद्धि हुई। जनता की बैंकों में जमा पूंजी 21 विलियन यूआन (तकरीबन 2.5 बिलियन अमरीकी डालर) से बढ़कर 4,628 बिलियन यूआन (तकरीबन 550बिलियन डालर) हो गयी। कभी किसी एक पीढ़ी ने मानवसभ्यता के इतिहास में इतनी ज्यादा दौलत नहीं कमायी है। यह इस बात संकेत है कि विश्व पूंजीवादी विकास के मार्ग का सटीक अनुकरण किया जाए तो फल अच्छे हो सकते हैं।
चीनी नागरिकों में ज्यादा से ज्यादा दौलत कमाने की भूख पैदा हो गयी है। जो अमीर हैं और बड़े अमीर होना चाहते हैं गरीब अपनी मुक्ति के लिए हाथपैर मार रहे हैं। संपदा के पुनर्रूत्पादन ने नए किस्म का वर्ग विभाजन पैदा कर दिया है। आज अमरीकी सपने चीन के नागरिकों की फैंटेसी का हिस्सा हैं। कल तक चीन को मजदूरों का स्वर्ग कहा जाता था आज चीन अमीरों का स्वर्ग है। अप्रवासी चीनी नागरिकों का मानना है कि अमरीका में अमीर बनना बेहद मुश्किल है किंतु चीन में अमीर बनना आसान है। इस अनुभूति के कारण चीन के जो लोग बाहर रहते थे वे दौड़कर चीन आए और अपने अमीरी के सपनों को सबसे पहले उन्होंने साकार किया,बादमें बहुराष्ट्रीय निगमों ने इन सपनों को संपदा में तब्दील किया। आज चीन मजदूरों का देश नहीं सपनों का देश है, अमीरों का देश है। जिस गति से चीन में अमीर पैदा हो रहे हैं उस गति से अमरीका, ब्रिटेन में अमीर पैदा नहीं हो रहे। चीन में पैदा हुई अमीरी की चमक ने सभी पंडितों को स्तब्ध कर दिया है।


सन् 1975 में जार्ज बुश जब चीन गए थे तो उस समय चीन में चंद कारें थीं। सारा देश साईकिल पर चल रहा था। स्वयं बुश भी बीजिंग में साईकिल पर घूमे थे। चीनी मजदूर नीले और हरे रंग के कपड़े पहने हुए थे। उस समय चीन में किसी के पास निजी कार नहीं थी, चंद लोगों के पास निजी घर थे। किंतु जब बुश ने सन् 2002 के फरवरी माह में चीन की यात्रा की तो देखकर अचम्भित रह गए। सारा शहर कारों से भरा हुआ था। उस समय अकेले बीजिंग में रजिस्टर्ड तीन हजार से ज्यादा बीएमडब्ल्यू कारें थीं। हजारों मर्सडीज कारें थी, और 20 से ज्यादा पोर्चेज कारें थीं। एक साल बाद ही बीएमडब्ल्यू ने अपना कार उत्पादन केन्द्र चीन में खोल दिया।


चीन में कितने अमीर हैं इसके प्रामाणिक आंड़े अभी सरकार ने जारी नहीं किए हैं इसका प्रधान कारण है कि कहीं आंकड़ें देखकर जन असन्तोष न भड़क उठे। एक मर्तबा चीन के टीवी केन्द्र ने अमीरों के ऊपर एक वृत्ताचित्र बनाने का निर्णय लिया और उसकी शूटिंग भी शुरू कर दी गयी,किंतु अचानक ऊपर के दबाव में काम बंद कर दिया गया। सत्ता में बैठे अधिकांश लोगों का मानना था कि जो लोग सुधार के दौर में अमीर बने हैं ये वे लोग हैं जिन्होंने कानून तोडे हैं अत: कानूनभंजकों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए। सन् 2001 में समाजविज्ञान अकादमी के द्वारा कराए सर्वे से पता चलता है कि चीन की बैंकों में बीस फीसद लोगों के खातों में 894 बिलियन डालर की पूंजी जमा है।
-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

वामपंथी चिंतक, कलकत्‍ता वि‍श्‍ववि‍द्यालय के हि‍न्‍दी वि‍भाग में प्रोफेसर।

मीडि‍या और साहि‍त्‍यालोचना का वि‍शेष अध्‍ययन।

कोलकाता

माओवादियों से मुठभेड़ में पुलिस अधिकारी शहीद


पुरुलिया। पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिलांतर्गत सारेंगा में बुधवार की रात माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में सारेंगा थाने के सर्किल इंस्पेक्टर रविलोचन मित्र (45) शहीद हो गए। इस दौरान एक माओवादी के मरने व एक के घायल होने की भी सूचना है।

मिली जानकारी के अनुसार बुधवार की रात सारेंगा बाजार निवासी माकपा नेता तथा पंचायत सदस्य ताराशंकर पात्र के घर पर सशस्त्र माओवादियों ने हमला कर दिया। माओवादी ताराशंकर को गोली मारने के बाद उन्हें मरा समझकर चले गए, हालांकि ताराशंकर की जान बच गई। इस घटना की जानकारी होने पर सारेंगा थाने के सर्किल इंस्पेक्टर रविलोचन मित्र ने सुरक्षा बलों के साथ माओवादियों का पीछा किया। घटनास्थल से छह किलोमीटर दूर लालगढ़ जंगल में माओवादियों के साथ बलों की मुठभेड़ शुरू हो गई। इसी दौरान माओवादियों की गोली लगने से सर्किल इंस्पेक्टर रविलोचन पात्र की मौके पर ही मौत हो गई। मौके से एक घायल माओवादी मृत्युन दुले पकड़ा गया है। अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है। जबकि मरने वाले माओवादी का नाम जगन्नाथ दुले बताया गया है। इधर माओवादियों की गोली से घायल माकपा नेता ताराशंकर पात्र को भी बांकुड़ा मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

एक अन्य मामले में पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत झाड़ग्राम थाना क्षेत्र के विकास भारती शिक्षा निकेतन के कुएं से बुधवार रात पुलिस ने एक व्यक्ति की लाश बरामद की। शव की शिनाख्त शालबनी निवासी माकपा कार्यकर्ता तथागत महतो के तौर पर की गई है। बताया जा रहा है कि मृतक इसी स्कूल की प्रबंध समिति में भी था। महतो गत 18 फरवरी से लापता था। आशंका जताई जा रही है कि उसकी हत्या माओवादियों ने की है। इस संबंध में उसके परिजनों द्वारा थाने में 19 फरवरी को प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी।

मुठभेड़ में दो नक्सली गिरफ्तार, ट्रेनिंग कैंप ध्वस्त


गिरिडीह, देवरी, संसू। देवरी प्रखंड अंतर्गत भेलवाघाटी सीमा से सटे बिहार के चकाई थाना क्षेत्र के हासीकोल गांव में गुरुवार को चकाई पुलिस और उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ हुई। किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। मौके पर पुलिस ने दो राइफल, स राउंड गोली, नक्सली साहित्य, कंबल आदि बरामद किए हैं। पुलिस ने ट्रेनिंग कैंप को ध्वस्त कर दो नक्सलियों को गिरफ्तार कर लिया है।

भेलवाघाटी थाना प्रभारी नारायण प्रजापति ने बताया कि चकाई पुलिस के एलआरपी के क्रम में गुरुवार दोपहर उग्रवादियों ने सड़क पर केन बम विस्फोट किया था। जिसमें चकाई पुलिस बाल बाल बची। फिर पुलिस और उग्रवादियों के बीच लगभग तीन घंटे तक गोलीबारी हुई। इस क्रम में पुलिस ने उग्रवादियों का एक ट्रेनिंग सेंटर उड़ा दिया। वहीं दो उग्रवादियों को पकड़ कर चकाई पुलिस थाना ले गई। उग्रवादियों का नाम खबर लिखे जाने तक पता नहीं चल पाया था। थाना प्रभारी श्री प्रजापति ने बताया कि वरीय पदाधिकारी के निर्देश पर इस मुठभेड़ में भेलवाघाटी पुलिस ने भी सहयोग किया है। इसी क्षेत्र के राजाडुमर गांव में पांच जनवरी को देवरी व भेलवाघाटी पुलिस के साथ उग्रवादियों से मुठभेड़ हुई थी जिसमें लगभग पांच घंटे की गोलीबारी हुई थी।

नक्सलियों ने स्कूल भवन को उड़ाया

गिरिडीह, कास। गिरिडीह जिले के माओवादी 'ग्रीन हंट' की आंच के बीच फिर धमाके की राह पर उतर आए है। हालांकि यह दीगर बात है कि जिले में 'ग्रीन हंट' आपरेशन शुरू किए जाने की अधिकारिक पुष्टि किसी भी अधिकारी ने नहीं की है पर माओवादियों ने पीरटांड़ थाना क्षेत्र के कुडको इलाके में एक सरकारी भवन में विस्फोट कर यह साफ कर दिया कि उनके मनोबल में कोई गिरावट नहीं है। धमाके की वजह के पीछे पुलिस मानती है उस भवन में उनका डेरा जमता था।
ग्रामीणों के मुताबिक माओवादियों ने बुधवार-गुरुवार की आधी रात के करीब स्कूल भवन में जबर्दस्त धमाका किया। इस धमाके में उत्क्रमित मध्य विद्यालय के कमरे काफी क्षतिग्रस्त हो गये है। हालांकि भवन पूरी तरह से ध्वस्त नहीं कर पाए नक्सली। धमाके में केन बम का उपयोग किया गया है। 15-20 किलो का केन बम होगा। पीरटांड़ पुलिस घटना स्थल का जायजा लेने दोपहर के करीब वहां पहुंची। थाना के पुलिस अधिकारी योगेंद्र प्रसाद खुद स्कूल का निरीक्षण करने गये थे। धमाका से जुड़े भवन में बारूद पसरा पड़ा था। विस्फोट से जुड़ा केन भी पुलिस ने जब्त कर लिया है।

दूरभाष पर पुलिस अधिकारी ने बताया कि रात बारह बजे के बाद माओवादियों ने स्कूल भवन में बारूदी विस्फोट किया है। विस्फोट से भवन की दीवारें क्षतिग्रस्त हो गयी है। उनके मुताबिक माओवादियों ने ही घटना को अंजाम दिया है। केन बम दो किलो के लगभग का होगा। जहां केन बम रखा गया था, वहां की जमीन काफी गहरी भी हो गयी है। पूछने पर उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस लांग रेज पेट्रोलिंग के दौरान उस स्कूल में ठहरती थी। थाने में प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है। सनद रहे कि 27 फरवरी को नक्सलियों ने झारखंड समेत पांच राज्यों में बंदी की भी घोषणा की है। बंदी के पूर्व धमाके को माओवादियों के दबदबे से भी जोड़ा जा रहा है।

नक्सली गिरफ्तार

पलामू। शहर थाना पुलिस ने गुरुवार को परिसदन रोड से दिलावर यादव नामक जेपीसी के एक नक्सली को गिरफ्तार कर लिया। बताया जाता है कि वह बालूमाथ के कई मामले में नामजद अभियुक्त है। वह पांकी थाना के केकरगढ़ का निवासी है। बताया जाता है कि गुप्त सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया है। बताया जाता है कि पुलिस ने चार लोगो को पकड़ा, परंतु तीन अन्य निर्दोष पाये गये। गिरफ्तार नक्सली को पांकी थाना पुलिस के हवाले कर दिया है।

उड़ीसा में 3 नक्सली गिरफ्तार

भुवनेश्वर। उड़ीसा के क्योंझर जिले के रासोल गांव से पुलिस ने तीन संदिग्ध नक्सलवादियों को गिरफ्तार किया है।

गिरफ्तार नक्सलवादियों की पहचान रेंगल मुंडा, दैतारी मुंडा और झूला मुंडा के रूप में की गई है।
क्योंझर के पुलिस अधीक्षक आशीष कुमार सिंह ने जानकारी दी कि जिन तीन नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है वे कई वारदातों में शामिल थे।

नक्सलियों ने ट्रक चालक के सहायक की हत्या की, ट्रकों में आग लगाई

रांची। झारखण्ड के गुमला जिले में गुरुवार सुबह नक्सलियों ने एक ट्रक चालक के सहायक को गोली मारने के बाद जला दिया और बाक्साइट से लदे तीन ट्रकों को आग के हवाले कर दिया।

पुलिस अधीक्षक नरेंद्र कुमार सिंह ने कहा, "नक्सलियों ने ट्रक चालक के सहायक को गोली मारने के बाद उसे आग लगा दी। नक्सलियों ने तीन ट्रकों में भी आग लगा दी।"
बाक्साइट से लदे ट्रक हिंडाल्को फैक्टरी जा रहे थे। ट्रक चालक मौके से बच निकलने में सफल रहे।
एक नक्सली संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) ने घटना की जिम्मेदारी ली है।
पीएलएफआई के एरिया कमांडर भूषण लाकरा ने मौके पर छोड़े गए पर्चो में कहा कि पीएलएफआई हिंडाल्को के साथ कुछ सार्वजनिक समस्याओं को हल करना चाहता है लेकिन हिंडाल्को इन मुद्दों को सुलझाने के लिए आगे नहीं आ रहा है। यह घटना हिंडाल्को के उदासीन रवैये का परिणाम है।
पुलिस अधीक्षक ने कहा कि संभवत: हिंडाल्को से वसूली के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया।
गुमला और लोहरदग्गा जिलों में माओवादियों द्वारा बाक्साइट से लदे ट्रकों को आग लगाने की घटनाएं आम हैं।

नक्सलियों ने की डाक्टर की गोली मारकर हत्या

0 चार नक्सली पुलिस के हत्थे चढ़े0 नक्सलियों ने युवक को चाकू से गोदाजगदलपुर !
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में आज सुबह नक्सलियों ने एक आरएमपी डॉ खलील खान की गोली मारकर हत्या कर दी। बस्तर संभाग में संभवत: नक्सलियों द्वारा किसी डाक्टर की हत्या की पहली घटना है।आधिकारिक सूत्रों के अनुसार दंतेवाड़ा जिले के दोरनापाल थाना क्षेत्र के केरलापाल के गांव में प्राईवेट क्लीनिक संचालित करते करते थे। आज सुबह लगभग दस बजे अचानक की तीन नकाबपोश आए और उन्होंने रिवाल्वर से उन्हें गोली मार दी। खलील खान की मौकाएवारदात पर ही मौत हो गई । बस्तर आई जी टी जे लांगकुमेर ने बताया कि हत्या का कारण अज्ञात है। जिसकी छानबीन की जा रही है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में आज दोपहर नक्सलियों के ठिकाने में दबिश देकर पुलि स ने चार नक्सलियों को गिरफ्तार किया है। जिनके कब्जे से हथियार और गोला बारूद बरामद किया। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार पुलिस को सूचना मिली थी कि उसूर थाना क्षेत्र में सीतापुर गांव के जंगल में नक्सली वारदात के इरादे से छिपे हुए हैं। तत्काल पुलिस के संयुक्त बल द्वारा इलाके की घेराबंदी की गई और भागते हुए चार नक्सलियों को गिरफ्तार कर लिया गया। पकड़ गए नक्सलियों के कब्जे से हथियार एवं भारी मात्रा में दैनिक उपयोग की सामग्री बरामद की गई हैं।भानुप्रतापुर क्षेत्र में पुलिस ने एक संघम सदस्य को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की। मिली जानकारी के अनुसार कांकेर जिले के भानुप्रतापुर पुलिस ने बाला सिंह नामक एक संघम सदस्य को भरमार बंदुक के साथ गिरफ्तार किया। पकड़े गए संघम सदस्य की पुलिस को काफी दिनो से तलाश कर रही थी। बीती रात कोंडागांव के मेले में गुड्डू नामक एक युवक की नक्सलियों ने चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी। घटना के संबध में मिली जानकारी के अनुसार मृतक ग्राम कुसमा का निवासी था। एक अन्य घटना क्रम में नक्सलियों द्वारा पुलिस मुखबीर के शक में पकड़ा गया ग्रामीण उनके चंगुल से भाग निकला। बताया गया कि कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा क्षेत्र से नक्सलियों ने 53 वर्षीय रायसिंह आचला को पुलिस मुखबीर होने के शक में ग्राम कसादण्ड से अगवा कर लिया था। लेकिन रायसिंह नक्सलियों को चकमा देकर उनक चंगुल से भाग निकला।

नक्सली हर विकास प्रक्रिया में बाधा

केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल द्वारा चिकित्सा शिविर का आयोजनजगदलपुर ! ''मौसले'' की जरूरत संबंधी ''पिरामिट थ्योरी'' के अनुसार सबसे निचले पायदान में स्थित भोले-भाले आदिवासी सत्ता के भूखे नक्सलियों के स्वार्थ पूर्ति के लिए सबसे आसान शिकार है। जनता को प्रशासन और सुरक्षा बलों की पहुंच से दूर रखने के लिए नक्सली हर विकास प्रक्रिया में बाधा पहुंचाते हैं। ताकि भोले-भाले आदिवासी बाहरी दुनिया से दूर रह सके और ''लाल-गलियारो'' की सपने की पूर्ति के लिए कच्चे माल के रूप में आदिवासी कटते-मरते रहे। नक्सलवाद की जंड निश्चित रूप से आर्थिक कारणों से गहरी हुई है। लेकिन इसके लिए पूर्ण रूप से नक्सली ही जिम्मेदार हैं। अगर ऐसा नही है तो फिर स्कूल भवन को उंडाना, बिजली खम्भा तोंडना, संडक निर्माण रोकना ये सब काम नक्सली क्यो कर रहे हैं। ऐसे में आम आदिवासी जनता की रक्षक और उन्हें मूलभूत सुविधाओं दिलाने का बींडा, बस्तर में तैनात केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की 80 वीं बटालियन ने भीे उठाया है। विदित हो कि 18 फरवरी को 80 बटालियन, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ने बीजापुर के धूर नक्सल प्रभावित इलाके के 8 से 14 वर्ष के 70 बच्चों को बस्तर की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले जगदलपुर का भ्रमण कराया। इसके अन्तर्गत बच्चों को चित्रकोट जलप्रपात, रेल्वे स्टेशन और अन्य दर्शनीय ज्ञानवर्धक स्थानों का भ्रमण कराया गया। जो कि अभी तक इन बच्चों की कल्पना में ही साकार होता था। उल्लेखनीय है कि 80 वीं बटालियन केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल 08 में अपनी तैनाती के बाद से ही अपने कार्यक्षेत्र में आक्रामक परिचालनिक अभियानों के साथ-साथ आम जनता के दुख-दर्द की साथ ही रही है। इसी क्रम में 24 फरवरी को 80 बटालियन केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ने अपने सी800 कम्पनी के तैनाती स्थल ग्राम पैद्दा कौडेपाल, जिला बीजापुर में ''मुफ्त चिकित्सा शिविर'' का आयोजन किया। जिसमें लगभग 300 ग्रामीण जो कि बीजापुर के बीहंड जंगलों और सामाजिक रूप से अज्ञात गांवों से आए लाभान्वित हुए। इस शिविर में 80 बटालियन के डॉ। जयवालन, डॉ। एस.के.राय, फार्मसिस्ट हजारिका, नर्सिग असिस्टेंड सुरेश कुमार, फार्मासिस्ट टिर्की ने ग्रामीणों का ईलाज किया तथा डॉ. द्वय ने ग्रामीणों को स्वस्थ रहने के बारे में विस्तारपूर्वक समझाया। चिकित्सा शिविर में जांच के दौरान 2 ग्रामीणों इब्राहिम 6 वर्ष ग्राम नीमेंड को एसाटिस, बुधिरी 29 वर्ष ग्राम केका को एनीमिया से अत्यंत रूप से ग्रसित होना पाया गया। डॉक्टर की सलाह पर उन्हें तत्काल ही बेहतर चिकित्सा के लिए 80 बटालियन के एम्बुलेंस द्वारा महारानी अस्पताल जगदलपुर लाया गया तथा उनका नियमित उपचार शुरू किया गया।इस अवसर पर कमाण्डेंट श्री सिंह ने ग्रामीणों को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के मित्रवत चेहरे से परिचित कराया तथा शर्मीले स्वभाव के आदिवासियों के बाकि दुनिया से रूबरू होने के लिए उत्साहित किया। अब तो ग्रामीण जनता के और भी करीब जाने के लिए सी.आर.पी.एफ. जवान स्थानीय ''गोण्डी'' भाषा भी सीख रहे हैं। ताकि उनके बीच संवाद स्थापित हो सके तथा जनता की समस्याओं से रूबरू होने में स्थानीय भाषा बाधक न बन सके। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल इस तरह से जनता की मित्र है। सी.आर.पी.एफ. की मदद और सुरक्षा से बस्तर अंचल में विकास कार्य तेज गति से आगे बंढ रहा है। यही समय है कि जनता प्रशासन का सहयोग करें और नक्सल समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पाए। ग्रामीणों ने भविष्य में भी इसी तरह से मदद की अपेक्षा की तथा केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल को धन्यवाद ज्ञापित किया। ग्रामीणों ने बहुत ही उत्साह के साथ इस शिविर में भाग लिया तथा केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की इस फिक्रमन्दी के लिए अभिभूत हुए।

नक्सली गतिविधियों के कारण शेरों की गिनती नहीं


रायपुर । इंद्रावती लैंड स्केप में नक्सली गतिविधियों के कारण शेरों की गिनती नहीं हो पा रही है। वन मंत्री विक्रम उसेंडी ने आज विधानसभा में यह जानकारी दी।विपक्षी सदस्य महंत रामसुंदर दास का लिखित में सवाल था प्रदेश के किन-किन अभ्यारण्य एवं प्रोजेक्ट टाइगर में कितने शेर है? प्रदेश में शेरों की गिनती कब-कब की जाती है? अंतिम बार गणना कब की गई थी? वन मंत्री विक्रम उसेंडी ने लिखित जवाब में बताया कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली एवं भारतीय वन्य प्राणी संस्थान देहरादून की रिपोर्ट 2008 के अनुसार अचानकमार लैंड स्केप में 18-22 बाघ तथा उदंती-सीतानदी लैंड स्केप में 6-8 बाघ प्रतिवेदित है। इंद्रावती लैंड स्केप में नक्सली गतिविधियों के कारण बाघों की गिनती नहीं की जा सकी। इसके अतिरिक्त राज्य के उत्तरी व दक्षिणी भाग में भी विरल बाघ रहवास होने संबंधी आंकलन किया गया है। प्रतिवेदन अनुसार राज्य में कुल 23-28 बाघ प्रतिवेदित किये गए हैं इसमें इंद्रावती लैंड स्केप सम्मिलित नहीं है। राज्य बाघ रहवास क्षेत्र 3069 वर्ग किलो मीटर उल्लेखित किया गया है राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली के दिशा निर्देश वर्ष 2009 के अनुसार बाघ के चिन्हों से संबंधित आंकड़े संरक्षित क्षेत्रों में वर्ष में दो बार एवं अन्य वन क्षेत्रों में 4 वर्ष में एक बार एकत्रित किये जाते हैं। बाघ एवं अन्य वन्य प्राणियों के आंकलन हेतु अंतिम बार विभिन्न आंकड़े वर्ष 2006 में एकत्रित किये गए थे। इनके विश्लेषण पश्चात आंकलन प्रतिवेदन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली एवं भारतीय वन्य प्राणी संस्थान देहरादून द्वारा वर्ष 2008 में दिया गया।

संघर्ष विराम का दोहरा सच !


नीरज सारस्वत
माओवादियों ने नक्सली संघर्ष के कसते घेरों को महसूस करते हुए, अब एक नई युक्ति के तहत ७२ दिनों के संघर्ष-विराम की पेशकश की है। इस सशर्त संघर्ष-विराम के तहत माओवादियों ने पुलिस, अर्ध सैन्य बलों की कार्रवाई को भी रोक दिए जाने की मंशा जाहिर की है। साथ ही, उनकी यह भी धारणा रही है कि इन सुरक्षा टुकड़ियों को संघर्षग्रस्त क्षेत्रों से अलग कर दिया जाए। केंद्र सरकार की ओर से इस पूरे मुद्दे की मीमांसा कर रहे, केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने सरकार के रुख का खुलासा करते हुए, इस तरह की शर्तों को स्पष्ट तौर पर नकार दिया है। इस पूरे मामले में केंद्र सरकार की यह स्पष्ट राय रही है कि पहले माओवादी हिंसा छोड़ने के लिए तैयार रहें, तभी कोई आगे की बात बन सकती है। संघर्ष-विराम को घुमावदार शैली में लपेट कर नक्सली मसले का मुकम्मल समाधान नहीं निकाला जा सकता। यह इसलिए भी कहा जा सकता है कि ७२ दिनों तक संघर्ष-विराम की घोषणा अगले ही दिन माओवादियों ने तोड़कर रख दी। पश्चिम बंगाल में सुरक्षाबलों के एक शिविर पर इन्होंने धावा बोला और फिर एक वारदात में आंध्रप्रदेश में बीएसएनएल के कंट्रोल रूम में आग लगा दी। क्या ऐसे दोहरे मानदंड से किसी तरह का सार्थक निष्कर्ष निकाला जा सकता है? ऐसे पेचीदे मसले को अपना हित साधने की दृष्टि से कतई सुलझाया नहीं जा सकता। क्योंकि, कहीं भी शांति वार्ता और हिंसा साथ-साथ नहीं चल सकती। इसके लिए खुली मानसिकता का होना भी जरूरी है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के राज्यों ने भी स्पष्ट तौर पर नक्सलियों के इस चालाकी-भरे संघर्ष-विराम को बेतुका करार दिया है। इसी क्रम में,उन्होंने यह मंशा भी जताई है कि बगैर हिंसा का त्याग किए ऐसे जटिल मसले का समाधान नहीं ढूँढ़ा जा सकता। छत्तीसगढ़ और उसके सरहद से जुड़े राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी इस तरह के संघर्ष-विराम की कड़ी भर्त्सना की है तथा साफ तौर पर बातचीत का मानस तैयार करने के लिए पहल किए जाने की तथ्य को तरजीह दी है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने तो इस मुद्दे पर विचारविमर्श का सारा दारोमदार केंद्र सरकार के अधीन बताया है और तत्संबंध में ऐसे सशर्त संघर्ष-विराम को एक अनुचित पहल करार दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में, वामदल समर्थक आरएसपी और फारवर्ड ब्लॉक ने माओवादियों के प्रस्ताव पर केंद्र की तल्ख प्रतिक्रिया के मद्देनजर दोनों पक्षों को हथियार डालकर, वार्ता की मेज पर आने की सलाह दी है। संघर्ष-विराम किसी माओवादी नेता के एसएमएस के जरिए संदेश भेज देने से ही पूरा नहीं होगा, बल्कि इसके लिए एक माकूल पृष्ठभूमि रचकर वार्ता के मसौदों को तैयार करना होगा, तब कहीं जाकर इस बात को दिशा दी जा सकेगी। यही संघर्ष-विराम के दारोमदार की कसौटी है। यह मसला दरअसल जटिलता की खान है पर इसके समाधान के लिए विश्वनीयता जरूरी है।

बीजापुर में चार नक्सली गिरफ्तार :

बीजापुर के उसूर थाना क्षेत्र के सीतापुर गाँव में पुलिस ने चार नक्सलियों को पकड़ा। घेरेबंदी कर पुलिस ने सीतापुर गाँव निवासी नक्सली मड़कम भीमा(३०), मड़कम नंदा (२५), मिचाकी नंदा(३५) व कोसा (२३) को गिरफ्तार किया।

नक्सलियों ने डॉक्टर

कोंटा/दंतेवाड़ा/बीजापुर/जशपुरनगर । सुकमा के केरलापाल बस्ती में चिंतुर निवासी डा. मोहम्मद खलील की नक्सलियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इसकी वजह का पता नहीं लग पाया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे झारखंड के विशुनपुर थाना क्षेत्र में पीएलएफआई दस्ते ने हिंडालको के बाक्साइट माइंस जा रहे तीन ट्रकों में आग लगा दी, जिससे खलासी राजेन्द्र महेता की जलने से मौत हो गई। डॉ. मोहम्मद खलील आरएमपी थे तथा केरलापाल बस्ती में करीब १२ सालों से उनकी क्लिनिक है। वहाँ उनका मकान बन रहा है। बुधवार को वे मजदूरों से काम करा रहे थे। सुबह करीब पौने १० बजे एक नक्सली ग्रामीण वेशभूषा में उनके पास पहुँचा और बात करने लगा। तभी पीछे से हथियारबंद तीन लुंगीधारी नक्सली पहुँचे। जिसमें से एक ने डॉ. खलील की पीठ पर देशी कट्टे से गोली मार दी। डॉक्टर के गिरते ही नक्सलियों ने उन्हें पत्थर से कुचल दिया। जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। इसके बाद नक्सली हवाई फायर तथा नारेबाजी करते जंगल की ओर भाग गए। दिन दहाड़े हुई घटना के बाद से आसपास के इलाके में दहशत का माहौल है। विशुनपुर थाना क्षेत्र के हिंडालको में गुरुवार सुबह ३.३० बजे ड्राइवर नारायण यादव को गोली मारी गई, जिसे गंभीर अवस्था मे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस घटना की जिम्मेदारी पीएलएफआई के भूषण दिलू दस्ते ने ली है। पीएलएफआई सुप्रीमो ने ३ फरवरी को गुमला,लोहरदगा में चल रहे हिंडालको माइंस को बंद करने की चेतावनी दी थी। संगठन ने माँग की थी कि माइंस से निकाले गए मजदूरों को पुनः काम दिया जाए और अस्थायी मजदूरों को स्थायी किया जाए। इसके अतिरिक्त जमीन मुआवजे व कृषकों की सिंचाई व्यवस्था सहित कई माँग इस प्रतिबंधित संगठन ने की थी।

फोन पर वार्ता नहीं

मीडिया को माओवादियों द्वारा दिया गया नंबर एक हवलदार का निकला है। यह वोडाफोन का नंबर ९७३४६९५७८९ है, जो शिशिर कांति नाग के नाम पर है। इस हवलदार को पीसीपीए के छत्रधर महतो को रिहा करने के लिए अगुवा किया गया था। केंद्रीय गृहमंत्री को यह नंबर पहुँचाया गया था, ताकि शांति वार्ता के बारे में बात की जा सके। इसकी सिम खडगपुर से ली गई थी। यह पता नहीं चल सका है कि यह किस डीलर से ली गई है। पुलिस के एक आला अधिकारी ने बताया कि हम संबंधित हवलदार से पूछताछ कर रहे हैं। नाग का सेल नंबर कोटेश्वर राव (किशनजी) द्वारा संभवतः उपयोग किया गया था। गृहमंत्री से कहा था कि इस नंबर पर शाम पाँच बजे बात कर लीजिए। ज्ञात रहे कि नाग और उसके साथी सीतेश्वर प्रसाद को २६ सितंबर को पश्चिम मिदनापुर के तमाजहुरी में बस से अगुवा किया गया था। देर रात को नाग को रिहा कर दिया था।

युद्ध विराम हो सकता है नक्सली रणनीति का हिस्सा

72 दिन तक माओवादियों द्वारा की गई युद्ध विराम की घोषणा के समाचार को पुलिस गंभीरता से ले रही है। आईजी बस्तर रेंज टीजे लांगकुमेर ने बताया कि बीजापुर, दंतेवाड़ा, बस्तर, नारायणपुर तथा कांकेर जिलों के कुछ हिस्सों में आपरेशन ग्रीनहंट के साथ-साथ त्रिशुल अभियान भी चलाया जा रहा है। जिसमें ग्रामीणों के सहयोग से पुलिस को सफलता मिल रही है। जिसके चलते नक्सलियों पर लगातार दबाव बढ़ा है। पिछले कुछ समय से पुलिस पार्टियां दूर-दराज के इलाकों में पहुंचकर अभियान चला रही हैं।अबुझमाड़ के कुछ क्षेत्रों से ग्रामीणों के हिस्से का चावल नक्सलियों द्वार लेने की सूचना मिली है लेकिन ग्रामीणों के विरोध के चलते वे इस काम में सफल नहीं हो पाए हैं। दूसरी ओर युद्ध विराम को लेकर पुलिस को किसीभी तरह का आधिकारिक निर्देश नहीं मिला है। पुलिस रुटिन में अपना काम करती रहेगी। इस संबंध में यदि कोई निर्देश मिलेगा तो उसके अनुसार काम किया जाएगा । खास बात यह है कि ग्रामीण एवं दूर-दराज के क्षेत्रों में गश्त करते समय या अपने दायित्वों को अंजाम देते समय यदि कोई उन पर गोलीबारी करता है तो आत्मरक्षा के लिए पुलिस भी उन्हे जबाव देगी। कानून हाथ में लेने किसी को अधिकार नहीं है। युद्ध विराम को माओवादियों की किसी रणनीति का हिस्सा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।गौरतलब है कि माओवादियों की ऐसी घोषणाओं के बीच आईजी ने पांचों जिला के एसपी, डीआईजी स्तर के अधिकारियों को विशेष तौर पर सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। तय रणनीति के मुताबिक गश्त करनी है तथा आपरेशन चलाना है। क्या हो पाएगी वार्ता ? माओवादियों की युद्ध विराम की घोषणा की चर्चा में अभी तक न तो शासन स्तर पर कोई जबाव आया हैऔर ना ही प्रशासन को उच्चस्तरीय कोई दिशा-निर्देश मिले हैं। ऐसी स्थिति में किसी वार्ता की संभावना नहीं लगती। सूत्रों के मुताबिक आंध्र प्रदेश सहित एक-दो दूसरे स्थानों पर शासन एवं नक्सलियों के बीच वार्ता के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं। पुलिस ने पूरी परिस्थिति पर नजर रखी हुई है।

कोई नहीं करेगा फोन नक्सली नेता को

नई दिल्ली. 25 फरवरी. केंद्र सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ युध्द विराम की घोषणा की पहल करने से इंकार कर दिया है, जबकि नक्सली नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी द्वारा इसके लिए कथित रूप से तय की गई समय सीमा गुरुवार को समाप्त हो गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी के नेता किशन जी के मोबाइल नंबर पर फोन करने का सवाल ही नहीं उठता। हमें लगता है कि भ्रमित करने वाला फोन नक्सलियों से सहानुभूति रखने वालों ने किया था। केंद्रीय गृह मंत्री पी। चिदंबरम की नक्सलियों से हिंसा छोड़ने की अपील के बाद किशन जी ने कहा था कि यदि केंद्र सरकार नक्सलियों के साथ शांति वार्ता चाहती है तो वह गुरुवार तक बात करे। गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा- मंत्रालय से कोई भी इस नंबर पर बात करने नहीं जा रहा है। वैसे भी नक्सली नेता द्वारा दिया गया यह नंबर पहुंच से बाहर है। केंद्र के साथ वार्ता का विरोध करने वाले किशन जी ने सोमवार को एकाएक अपना रुख बदलते हुए युध्द विराम के प्रयास के लिए अपनी तरफ से 72 घंटे की समय सीमा तय की थी। उन्होंने कहा था कि यदि सुरक्षा बल पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और उड़ीसा में नक्सलियों के विरुध्द चलाए जा रहे अभियानों को बंद कर दें तो उन लोगों की तरफ से हिंसा नहीं होगी। किशन जी की इस घोषणा के तुरंत बाद सशस्त्र विद्रोहियों ने पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले में सुरक्षा बलों के एक कैंप पर हमला कर दिया था। उधर, गृह मंत्री ने दोहराया है कि नक्सली यदि हिंसा छोड़ने और बिना शर्त बातचीत का प्रस्ताव रखते हैं तो सरकार इस पर सकारात्मक रुख अपनाएगी।

Wednesday, February 24, 2010

माओवादियों ने अब कुत्तों को मारना शुरू किया


पुरुलिया । जंगलमहल में माओवादियों को अब सबसे ज्यादा खतरा सुरक्षा बल के विभिन्न कैंप में रखे गये पालतू कुत्तों से महसूस होने लगा है। यही कारण है कि अब वे इन्हें निशाना बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जंगलमहल के विभिन्न गांव के लोगों को माओवादियों ने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि यदि उनके घर में कुत्ते हैं तो वे उन्हें जहर देकर मार दें। राज्य पुलिस की ओर से आपरेशन ग्रीन हंट शुरू करने के पहले पुरुलिया, बांकुड़ा एवं पश्चिम मेदिनीपुर के जंगलमहल के सभी थाना एवं सुरक्षा कैंप में कुत्ता पालने की सलाह दी गयी थी। इससे पूर्व 2004 में भी पुलिस प्रशासन ने इस सिलसिले में औपचारिक निर्देश जारी किया था, क्योंकि माओवादियों की गतिविधियों की पूर्व सूचना पुलिस को कुत्तों से ही मिलती है। कुत्तों के भौंकने से सुरक्षा बल सतर्क हो जाते हैं एवं इससे जानमाल की हानि कम होती है। खुफिया विभाग के अनुसार पिछले कुछ दिनों से जंगल महल में माओवादियों द्वारा जहर देकर कुत्तों को मारने की साजिश का पता चला है। पुरुलिया के वान्दोयान, बलरामपुर, बाघमुंडी, बराबाजार, झालदा के माओवाद प्रभावित क्षेत्र की सुरक्षा बलों के कैंप में बड़ी संख्या में पालतू कुत्ते थे। इस क्षेत्र के विभिन्न थानों में भी पालतू कुत्ते हैं। इधर बांकुड़ा जिले के माओवाद प्रभावित बारीकुल, सारेंगा, राइपुर, रानीबांध थाना क्षेत्र में एवं पश्चिम मेदिनीपुर जिला के बलपहाड़ी बिनपुर में माओवादियों की चेतावनी से भयभीत कई ग्रामीणों ने अपने पालतू कुत्तों की जान बचाने के लिए उन्हें दूसरे गांव में रहे अपने रिश्तेदारों के घर पहुंचा दिया है। खुफिया विभाग का दावा है कि बांकुड़ा जिला के बारीकुल थाना क्षेत्र के कुल पांच गांव समेत पश्चिम मेदिनीपुर जिला के बीनपुर एक नंबर ब्लाक के कुछ गांव में कुत्तों की संख्या में अस्वाभाविक रूप से कमी हुई है।

माओवादियों से वार्ता की पहल पर असमंजस में सरकार

कोलकाता। केंद्र सरकार द्वारा माओवादियों से वार्ता की की पहल करने के बावजूद वाममोर्चा सरकार इस मुद्दे पर उदासीन है। लालगढ़ और आस-पास क्षेत्रों में मओवादियों के खिलाफ संयुक्त पुलिस अभियान चलने के दौरान मुख्यमंत्री वार्ता शुरू करने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों के मुताबिक श्री भंट्टाचार्य ने राज्यपाल एमके नारायणन को इस मुद्दे पर सरकार के रूख से अवगत कराया है। राइटर्स बिल्डिंग के सूत्रों के मुताबिक श्री नारायण के बुलावे पर मुख्यमंत्री ने मंगलवार को राजभवन जाकर उनसे मुलाकात की। समझा जाता है कि माओवादियों के साथ बातचीत की संभावना व राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति पर मुख्यमंत्री की राज्यपाल से बातचीत हुई। मुख्यमंत्री ने लालगढ़ व आस-पास के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस के संयुक्त अभियान को लक्ष्य तक पहुंचाने की इच्छा जाहिर की। पुलिस अभियान के किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले मुख्यमंत्री माओवादियों के साथ वार्ता शूरू करने के पक्ष में नहीं है।

बताया जाता है कि राज्यपाल ने राज्य के विभिन्न भागों में अवैध हथियार जमा होने पर चिंता जतायी। मुख्यमंत्री ने अवैध हथियार जब्त करने को लेकर राज्यपाल को आश्वस्त किया। उल्लेखनीय है कि सोमवार को कांग्रेस और तृणमूल के प्रतिनिधियों ने राजभवन में जाकर राज्यपाल को राज्य की गिरती कानून व्यवस्था से उन्हें अवगत कराया। प्रतिनिधि मंडल ने राज्य के विभिन्न भागों में अवैध हथियारों का जखिरा जमा होने की शिकायत की। उसके बाज राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को राजभवन में तलब किया। सिलदा मे इएफआर कैंप पर माओवादियों के हमले के बाद राज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री की पहली बैठक को राजनीतिक हलकों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

निर्दोष ग्रामीण भी होंगे ग्रीन हंट के शिकार


गिरिडीह (तिसरी)। ग्रीन हंट अभियान नक्सल समस्या का समाधान नहीं है। क्योंकि निर्दोष ग्रामीण भी इस अभियान के शिकार होंगे। ये बातें भाकपा माले जिला सचिव मनोज भक्त ने बुधवार को तिसरी मुख्यालय में प्रखंड कमेटी की आहूत बैठक में बतौर मुख्य अतिथि कही।

उन्होंने कहा कि निर्दोष लोग ग्रीन हंट में वेबजह फंसेंगे। उसके लिए भी सरकार को विचार करना चाहिए ताकि निर्दोष को दोषी करार नहीं दिया जा सके। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी कई प्रकार की जानकारी दी। बैठक की अध्यक्षता कर रहे जय नारायण यादव ने कहा कि सरकार ने राज्य के बेरोजगार युवकों को रोजगार देने के लिए नरेगा लागू किया। लेकिन प्रखंड के पदाधिकारी की मिलीभगत से तालाब, रोड, सतलीकरण योजना में धड़ल्ले से जेसीबी मशीन का उपयोग हो रहा है, जो जिला प्रशासन से छिपा हुआ नहीं है। मौके पर प्रेस प्रवक्ता नारायण यादव, पिंकेश सिंह, भोला साव, मो. सत्तार, सिकंदर, चेतलाल राय, टुपाली राय, मो. सत्तार, सुरेश यादव, मनोज शर्मा समेत कई लोग मौजूद थे।

पूर्व नक्सली ने दी आत्महत्या की धमकी

गढ़वा। नगर उंटारी थाना क्षेत्र के कमता निवासी पूर्व नक्सली उपलेश सिंह उर्फ बबल सिं ने पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर मदद की गुहार लगाई है। उसने एसपी को दिए आवेदन में कहा है कि वह नक्सली दस्ता कब का छोड़ चुका है तथा मुख्य धारा से जुड़ना चाहता है मगर पिपरी के संजीत सिंह द्वारा उसे बार-बार झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भेज दिया जाता है और मारपीट व धमकी भी दी जाती है। इस संबंध में थाने में वर्ष 2009 में ही संजीत सिंह व सहयोगियों के विरूद्घ नगर उंटारी थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। मगर उन्हें पुलिस गिरफ्तार नहीं कर रही है। उसने कहा है कि पुलिस अधीक्षक से वह पूरी उम्मीद लेकर आया है आशा है मदद मिलेगी। उपलेस का कहना है कि मैं एक किसान का बेटा हूं तथा उक्त लोगों की प्रताड़ना से परेशान हूं। इसके पूर्व भी मेरे द्वारा आवेदन दिया गया था मगर संजीत सिंह व उसके सहयोगी खुलेआम घूम रहे है और मुझे धमकी दे रहे हैं। उसने आवेदन में कहा है कि मैं आपके न्याय का इंतजार कर रहा हूं न्याय नहीं मिलने पर पूरे परिवार के साथ आत्महत्या कर लूंगा।

शिबू ने कहा नक्सल उमूलन पर केन्द्र के साथ


रांची। मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने केन्द्र सरकार को आश्वस्त किया है कि वह नक्सल समस्या के निदान के प्रति गंभीर हैं। केन्द्र के नक्सल विरोधी अभियान में राज्य सरकार बढ़-चढ़ कर अपनी सक्रियता दिखा रही है। साथ ही उग्रवाद उन्मूलन के लिए प्रदेश केन्द्र के साथ है। गृह मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता में चार राज्यों की दिल्ली में आहूत बैठक में मुख्यमंत्री अपना पक्ष रख रहे थे।

मुख्यमंत्री ने अभियान को सुस्त करने जैसी बातों का पुरजोर खंडन करते हुए कहा कि अभियान की सफलता से देखा जा सकता है कि राज्य सरकार इस मामले में कितनी गंभीर है। नक्सल प्रभावित चार राज्यों बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल व झारखंड में चल रहे नक्सल विरोधी अभियान के संबंध में चर्चा के दौरान राज्य सरकार की ओर से अब तक की गयी कार्रवाई से केन्द्र सरकार को अवगत कराया गया। अभियान की सफलताओं का ब्योरा दिखाते हुए राज्य सरकार ने केन्द्र को बताया कि प्रदेश में दूसरे राज्यों की तुलना में पुलिस अधिक सक्रियता के साथ कार्य कर रही है। बाद में केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को अभियान की बारीकियों से अवगत कराया, अभियान के स्वरूप को स्पष्ट किया। साथ ही राज्य को आवश्यकतानुसार अतिरिक्त पुलिस बल भी उपलब्ध कराने का आश्वासन केन्द्र ने दिया। बैठक में मुख्यमंत्री के अलावा उप मुख्यमंत्री रघुवर दास व सुदेश महतो भी शामिल थे। इनके अलावा मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह, गृह सचिव जेबी तुबिद, पुलिस महानिदेशक नेयाज अहमद समेत अन्य अधिकारी बैठक में उपस्थित थे।

नक्सलियों के खिलाफ नहीं हो सेना का इस्तेमाल : भाकपा



जमशेदपुर। झारखंड भाकपा की सोच है कि नक्सलियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए क्योंकि बल प्रयोग से नक्सलवाद नहीं रुक सकता। संगठन के राज्य सचिव पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता ने नक्सलियों से वार्ता की वकालत करते हुए कहा कि यह कानून व्यवस्था का नहीं अपितु सुदूर इलाके में विकास नहीं होने की वजह से उपजा मामला है। जब तक विकास नहीं होगा, नक्सलवाद नहीं रुक सकता। माओवादी नेता किशनजी की आलोचना करते हुए कहा कि 72 दिन के सीजफायर की घोषणा के अगले दिन दो जगह पर नक्सली हमला किया गया जो अनुचित है। नक्सलियों द्वारा निर्दोषों की हत्या किया जाना गलत है। कान्हू सान्याल एवं चारु मजुमदार ने भी स्वीकार किया था कि 369 निर्दोष लोगों को मारा गया। जमशेदपुर सर्किट हाउस में पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि 5 मार्च को जेल भरो आंदोलन के तहत एटक, इंटक समेत तमाम मजदूर संगठनों द्वारा रेल चक्काजाम एवं सड़कजाम आंदोलन किया जाएगा। झारखंड असंगठित मजदूर यूनियन के बैनर तले कोल्हान प्रमंडल में पांच जगहों पर उग्र आंदोलन होगा। पूर्व सांसद ने बताया कि माकपा, भाकपा, फारवर्ड ब्लाक एवं आरएसपी की ओर से महंगाई के खिलाफ 12 मार्च को दिल्ली मार्च किया जाएगा। इसमें झारखंड के 12 हजार लोग शिरकत करेंगे। झारखंड की राजनीति पर उनका कहना था कि मधु कोड़ा एंड कंपनी द्वारा 4000 करोड़ का घोटाला किए जाने के खुलासे के बावजूद उनकी पत्नी चुनाव जीत गई तो चन्द्रप्रकाश चौधरी के पीए के पास 14 करोड़ मिलने पर भी जनता ने उन्हें दोबारा विधायक बना दिया है। भाकपा का विधानसभा में खाता नहीं खुलने से यह नहीं समझा जाना चाहिए कि यहां संगठन कमजोर हो गया है। उन्होंने न्यूनतम मजदूरी की सीमा 150 रुपये किए जाने की मांग करते हुए कहा कि सरकार द्वारा इसकी अधिसूचना नहीं निकाली गई तो आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने नरेगा में बड़े पैमाने पर गोलमाल का आरोप लगाया है।

ग्रीन हंट अभियान रोकने को फेंका पासा


जमशेदपुर। नक्सलियों ने 72 दिनों के सीजफायर का पासा फेंक कर दूर की कौड़ी खेली है। केन्द्र सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ ग्रीन हंट के नाम से बड़े मुहिम की तैयारी कर रखी है। ग्रीन हंट के शुरू होने से नक्सलियों को काफी नुकसान हो सकता है। इसे नक्सली नेता अच्छी तरह से भांप चुके हैं। उग्रवादियों का प्रयास है कि किसी तरह ग्रीन हंट अभियान मई तक रुक जाये। केन्द्रीय गृह मंत्री पी। चिदंबरम ने बढ़ी नक्सली गतिविधियों पर चिंता व्यक्त करते हुए उग्रवादियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर मुहिम शुरू करने की रूपरेखा तैयार कर ली है लेकिन झारखंड सरकार की ओर से हरी झंडी नहीं मिलने के कारण ग्रीन हंट अभियान में विलंब हो रहा है। गृह मंत्री व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के बीच ग्रीन हंट अभियान के मुद्दे पर बैठक होनी है। इस बीच नक्सलियों ने अपने स्तर से सीजफायर की घोषणा कर दी है। नक्सली मामलों के जानकार बताते हैं कि एकाएक नक्सलियों की ओर से 72 दिनों के सीजफायर की घोषणा करने के पीछे कई राज छुपे हुए हैं। नक्सलियों को पता है कि जून के बाद बारिश का मौसम आ जायेगा। बरसात के मौसम में पुलिस व अ‌र्द्ध सैनिक बलों को जंगल में तलाशी अभियान चलाने में दिक्कत होगी। ऐसे में बारिश के मौसम में अभियान चलाने की अनुमति नहीं मिल पायेगी। बारिश के मौसम में जंगल के रास्ते पहाड़ों की चोटियों पर पहुंचने में पुलिस को भारी परेशानियां होगी, साथ ही सैनिकों के जंगल में फंसने का डर होगा। नवंबर के बाद ठंड का मौसम रहेगा। ऐसे में नक्सली चाहते हैं कि किसी तरह अभी ग्रीन हंट अभियान रुक जाये। इसी वजह से नक्सलियों ने अपने स्तर से सीजफायर की घोषणा कर दी है।

नक्सली संगठन में मतभेद उजागर
जमशेदपुर:
सीजफायर को लेकर नक्सलियों के बीच ही आपसी मतभेद उभर आने की खबर है। सूत्रों के अनुसार किशनजी ने केंद्र सरकार को 72 दिनों के सीजफायर की जो घोषणा की है, उसपर सीपीआई माओवादी की केंद्रीय कमेटी का समर्थन प्राप्त नहीं है। माओवादी नेता गणपति ने युद्धविराम का विरोध किया है। बताया जाता है कि संभवत: इसलिए केंद्र सरकार किशनजी के प्रस्ताव पर किसी भी प्रकार का कदम जल्दबाजी में उठाने के पक्ष में नहीं है।

गृह मंत्रालय का फैक्स ठप, नक्सलियों का फोन जाम

नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्रालय और नक्सलियों के बीच फैक्स और मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान हुआ था, दोनों पक्षों में बातचीत शुरू करने के लिए। इनके बीच बातचीत तो शुरू नहीं हो पाई अलबत्ता, गृहमंत्रालय का फैक्स और नक्सलियों का फोन जरूर जाम हो गया।

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने माओवादी नेता किशनजी के संघर्ष विराम के प्रस्ताव की प्रतिक्रिया में गृह मंत्रालय का एक फैक्स नंबर 011-23093155 उनके लिए जारी किया था। जिस पर नक्सली संघर्ष विराम का प्रस्ताव भेज सकें। नक्सलियों ने भी इसके जवाब में एक मोबाइल नंबर- 09734695789 सार्वजनिक करते हुए गृह मंत्री को 25 फरवरी की शाम 5 बजे तक इस पर फोन करने को कहा था।
सरकार के फैक्स नंबर पर अब तक नक्सलियों की ओर से तो कोई प्रस्ताव नहीं आया, बजाय इसके, इस पर भ्रष्टाचार की शिकायतें, पड़ोसियों से झगड़े और पुलिस के कथित अत्याचार की शिकायतें खूब आ रही हैं। नक्सल समस्या से जूझने के लिए ढेर सारे सुझाव भी आ रहे हैं। इसके चलते फैक्स अक्सर ठप हो जाता है।

इसी तरह नक्सलियों का मोबाइल नंबर सार्वजनिक होते ही उस पर मीडिया वालों ने धड़ाधड़ फोन करना शुरु कर दिया। इसकी वजह से नक्सलियों का फोन भी जाम होने की खबर है।

लोहा लेने पुलिस तैयार : तोमर

कांकेर । डीआईजी महेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ बड़ी लड़ाई के लिए लगभग सारी तैयारी पूरी कर ली गई है। मात्र 4 महीने में जिले के सुदूर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बीएसएफ की 22 कंपनियां तैनात हो गई हैं। शेष 8 कंपनियों की तैनाती फरवरी माह के अंत तक हो जाएगी। वे यहां एक विमोचन कार्यक्रम में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कंपनियों की बैरक आदि के निर्माण कार्य में कम से कम 2 साल का समय लगता है। इस काम को जिला पुलिस बल ने 4 माह में पूर्ण कर दिया है । इससे साबित होता है कि पुलिस नक्सलियों के खिलाफ पूरे जब्जा के साथ लडऩे तैयार है। उन्होंने बताया कि फोर्स के साए में जिले के पिछड़े क्षेत्रों में विकास कार्य कराए जाएंगे। इसके लिए रणनीति बन रही है तथा शीघ्र ही इसे अमलीजामा पहनाया जाएगा । बीएसएफ कंपनियों को दूरस्थ क्षेत्रों में तैनात करने कार्रवाई के दौरान पुलिस तथा नक्सलियों के मध्य 13 मुठभेडें़ हुई , जिनमें बड़ी संख्या में पुलिस को नक्सली हथियार, गोला-बारूद तथा अन्य सामग्री बरामद हुई । इस दौरान पुलिस ने 30 नक्सलियों तथा 13 संघम सदस्यों को गिरफ्तार किया, वहीं 21 हथियार, 64 कारतूस, 72 किलोग्राम के 8 लैंडमाइंस भी बरामद किए गए हैं।

बस्तर में नहीं बन सके दर्जनों पुल

माओवादी गतिविधियों के चलते 13 पुल-पुलियों का निर्माण नहीं कराया जा सका है। ये सभी कार्य पिछले कई सालों से लटके पड़े हैं। इनमें से 7 बड़े पुलों के निर्माण के लिए विभाग को कोई भी ठेकेदार नहीं मिल पा रहा है। साढ़े 12 करोड़ की लागत वाले इन कार्यों के लिए बार बार निविदा बुलाए जाने के बाद भी किसी ने भी कार्य में रूचि नहीं ली है। स्थिति यह है कि इनमें से कुछ कार्यों के लिए 11-11 बार तक निविदा बुलाई जा चुकी है। अंतत: हार कर लोक निर्माण विभाग के जगदलपुर स्थित सेतु निर्माण संभाग ने इन पुलों को बजट से अलग करने की गुहार शासन से की है।लोनिवि की सेतु निर्माण संभाग द्वारा 1 सौ 84 लाख रूपए की लागत से कोड़ेकुर्से-मिचगांव मार्ग पर कोटरी सेतु के लिए 27 सितंबर 2001 को प्रशासकीय स्वीकृति मिली थी। लगातार 11 बार टेंडर बुलाए जाने के बाद भी किसी ने भी निविदा नहीं भरा। सरंडी-इरागांव मार्ग पर तारोकी सेतु का निर्माण साढ़े 72 लाख रूपए की लागत से होना था इसके लिए 12 मार्च 2003 को प्रशासकीय स्वीकृति दी गई थी। कोड़ेकुर्से- लोहत्तर मार्ग के 11 वें किलोमीटर पर कोटरी नदी सेतु का निर्माण 2 करोड़ 43 लाख रूपए की लागत से किया जाना था। इसके लिए प्रशासकीय स्वीकृति 7 जनवरी 2005 को दी गई थी। छठवीं बार निविदा आमंत्रित करने पर भी कोई निविदा नहीं मिली। बीजापुर जिले के भैरमगढ़ क्षेत्र में इंद्रावती नदी पर साढ़े 4 करोड़ की लागत से भैरमगढ़ इतामपारा-छोटे पल्ली मार्ग के 15 वें किमी पर बड़े पुल का निर्माण किया जाना था। इसके लिए 4 करोड़ 40 लाख की प्रशासकीय स्वीकृति 16 नवंबर 2005 को मिली थी। बीजापुर-गंगालूर मार्ग के 14 वें किमी पर पदेड़ा नाला सेतु निर्माण के लिए 1 करोड़ 10 लाख रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति भी 16 नवंबर 2005 को मिली थी। बांदे से पीव्ही 109 मार्ग पर कोड़ेनार नदी पर पुल निर्माण के लए 31 जनवरी 2007 को 1 करोड़ 42 लाख की प्रशासकीय स्वीकृति मिली। पांचवीं बार प्रयास करने के बाद भी किसी ने भी निविदा नहीं भरा। कुटरू-बेदरे मार्ग के 14 वें किमी पर करकेली नाला सेतु के लिए 12 दिसंबर 2007 को 65 लाख रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति मिली थी लेकिन किसी भी ठेकेदार ने कार्य करने में रूचि नहीं ली। कार्यपालन यंत्री एसएस मांझी ने बताया कि उक्त कार्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थित हैं । बार बार निविदा बुलाने के बाद भी कोई भी इन कार्यों में रूचि नहीं ले रहा है। जिससे कार्य करना संभव नहीं हो पा रहा है। इन सभी कार्यों को बजट से विलुप्त करने अधीक्षण यंत्री के माध्यम से शासन को पत्र लिखा गया था।

ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल का अधिकारी नकाब में मीडिया से मुखातिब

सालुआ (पश्चिम बंगाल) ! ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स (ईएफआर) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को नकाब में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। इस दौरान उसने सिल्दा शिविर पर नक्सली हमले के दौरान 24 जवानों की मौत के बाद ईएफआर के मनोबल को लेकर सवाल खड़े किया।
ईएफआर के विशेष महानिरीक्षक बिनॉय चक्रबर्ती ने प्रशासन पर ईएफआर का दुरुपयोग करने और उसके साथ बुरा बर्ताव करने का आरोप लगाया। लेकिन संवाददाता सम्मेलन के दौरान अधिकारी का अपने चेहरे को छुपाए रखने की कोशिश ने मीडिया का ज्यादा ध्यान खींचा।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ''मैं परेशान हूं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। राज्य के पुलिस महानिदेशक भूपिंदर सिंह ने भी सिल्दा में मीडिया को संबोधित किया था, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे को नहीं ढंका था।''

राज्य के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने भी पश्चिम मिदनापुर जिले में स्थित सलुआ शिविर में मंगलवार को मंत्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। मृत जवानों के परिजनों की नाराजगी का बहादुरी से सामना किया था और बिना चेहरे को ढंके लोगों से बातचीत की थी।
बहरहाल, चक्रबर्ती से संपर्क करने की कोशिश सफल नहीं हो पाई है।

लोरिक सेना का सफाया करने की मांग

मानवाधिकार के नाम पर लूट का आरोप
अम्बिकापुर ! मानव अधिकारों की समाज में सर्वमान्यता हेतु जारी नंगे पांव सत्याग्रह ने नवपदस्थ पुलिस महानिरीक्षक श्री पी।एन।तिवारी से सरगुजा के सीमावर्ती ईलाके में सक्रिय लोरिक सेना का सफाया करने की अपेक्षा जताई है। भाकपा माओवादी कुछ विचारधारा को लेकर हिंसा पर आमदा हैं, लेकिन लोरिक सेना के पास कोई विचारधारा नहीं है। यह सिर्फ लुटेरों का नेटवर्क है। कुछ पूर्व पुलिस मुखबिर, कुछ जेल के कैदी व कुछ तथाकथित राजनैतिक कार्र्र्यकत्ता इसमें शामिल हैं। जेल के अंदर से माओवादियों की तर्ज पर मोर्बाईल से लोगों को धमकियाँ दी जाती हैं। लोरिक सेना में शामिल लोगों के विरूद्व जिले के विभिन्न थानों में रिर्पोर्ट दर्ज है, लेकिन इनके विरूद्व कार्यवाही नहीं होने से पुलिस की विश्वसनीयता पर प्रश्चिन्ह लगा है। कुछ माह पूर्व लोरिक सेना के श्री मुनिलाल यादव का पुलिस- हिरासत से फरार हो जाना और अब जक ना पकड़ा जाना, पुलिस की अक्षमता को दर्शाता है।

नंगे पांव सत्याग्रह के संगठक श्री राजेश सिंह सिसौदिया, संगठन समिति सदस्य अन्ना नायडू, संयोजक संजय चौरसिया, व महासचिव नरेश बेक ने नव पदस्थ पुलिस महानिरीक्षक से लोरिक सेना का सफाया करके सरगुजा में शांति बहाल करने की मांग की है।

बस्तर में तेजी से पांव पसार रहा एड्स

प्राकृतिक एवं नैसर्गिक नयनाभिराम दृश्यों सहित प्रचुर वन एवं खनिज संपदा के लिए विख्यात बस्तर की सरजमीं में एड्स के खौफनाक विषाणु तेजी से पैर पसार रहे हैं। 2 नए मरीजों के एचआईवी पाजीटिव पाए जाने के बाद पिछले एक वर्ष में एड्स मरीजों की संख्या ढाई गुनी बढ़कर 102 हो गई है। इस लाइलाज रोग ने अब तक 15 लोगों को लील लिया है। एक वर्ष पहले तक एचआईवी पाजीटिव रोगियों का आंकड़ा 40 था। 102 एड्स रोगियों की पुष्टि होना सरकारी पैमाना है। अनेक निजी क्लीनिकों में एलायजा एवं वेस्टर्न रक्त परीक्षण कराए जाते हैं, जिनकी जानकारी नहीं मिल पाती। अब तक जितने भी एड्स रोगियों की पहचान हुई है, वे आश्चर्यजनक रूप से 25 से 40 वर्ग आयु के हैं। अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ विवेक जोशी के अनुसार एड्स के मरीज ज्यादातर आंध्र व उड़ीसा के सीमाई इलाकों के निवासी हैं, जिनमें अधिकांशत: पेशे से ड्रायवर हैं। बस्तर में इस लाइलाज मर्ज के तेजी से फैलने के आसार हैं, क्योंकि जिनकी एड्स रोगी के रूप में पहचान हुई है, उन पर निगरानी की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसा कोई कानून भी नहीं है। एड्स की गिरफ्त में महिलाएं भी आ गई हैं। जिन 102 लोगों में एचआईवी पाजीटिव पाए गए हैं, उनमें 25 महिलाएं भी शामिल हैं। मेडिकल कालेज में महिला कांऊसलर का पद रिक्त होने से, महिलाओं में एड्स के रोकथाम के उपाय नहीं हो पा रहे हैं। बदनामी के भय से अधिकांश रोगी सामने नहीं आते। यद्यपि जिला अस्पताल प्रबंधन इस मामले के प्रति अत्यंत गोपनीयता एवं सतर्कता बरत रहा है, किंतु इस जानलेवा लाइलाज मर्ज के प्रति जब तक समाज में जागरूकता व चेतना नहीं आएगी, एड्स अपने शिकंजे में समाज को आक्टोपस की तरह जकड़ता रहेगा। एड्स के कारणों पर यदि दृष्टिपात करें तो यह पता चलता है कि, यह मुख्यत: शारीरिक संपर्क और रक्त स्थानांतरण से संक्रमित होता है। एड्स के सबसे बड़े संवाहक वे हैं, जो रोटी-रोटी की तलाश में बड़े शहरों में जाते हैं। अकेलेपन में शारीरिक भूख मिटाने या तो वे समलैंगिक हो जाते हैं अथवा ऐसी महिलाओं के संपर्क में आ जाते हैं, जो जिस्मफरोशी के धंधे में पेशेवर होती हैं। लम्बी अवधि तक घर से दूर रहने वाले तथा इधर-उधर यौन संबंध बनाने की वजह से, अधिकतर इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों के समीप झोपड़ियों में होने वाली वेश्यावृत्ति इस रोग के विस्तारण की अहम कारक है।एड्स का हमला परमाणु हमले से भी अधिक खतरनाक है, क्योंकि परमाणु बम जहां एक निश्चित क्षेत्र की मानव लीला एक बार में समाप्त करता है, वहीं एड्स जैसा भयानक रोग आहिस्ता-आहिस्ता मनुष्य को खोखला कर देता है। परमाणु बम से बचने संधियों जैसे उपाय हैं, किंतु एड्स से निजात पाने अब तक कोई जीवनरक्षक दवा ईजाद नहीं हो पाई है।

धमतरी के ठेकेदार की बस्तर में हत्या

धमतरी निवासी ठेकेदार की बीजापुर जिला के भैरमगढ़ में अज्ञात व्यक्ति द्वारा गला रेतकर हत्या कर दी गई है। मृतक नगर के प्रतिष्ठित गुप्ता परिवार के सदस्य थे। पुलिस घटना की जांच कर रही है।पुलिस से मिला जानकारी के अनुसार बीजापुर जिला के भैरमगढ़ थाना से कुछ दुरी पर बुधवार की सुबह लाश देखी गई, जिसकी शिनाख्ती धमतरी निवासी सतीश गुप्ता के रूप में की गई। मृतक की पहचान होते ही पुलिस ने घटना की सूचना उनके मोबाइल के नंबर से गुप्ता परिवार को दी। बताया जाता है सतीश गुप्ता ठेकेदारी के तहत लोक निर्माण विभाग का काम कर रहे थे। फिलहाल हत्या किसने और क्यों की, इसकी पुष्टी नहीं हुई है। संभावना जताई जा रही है कि हत्या नक्सलियों ने की है। नक्सलियों ने ठेकेदार से रूपयों की डिमांड की थी। रूपए नहीं मिलने पर उन्होंने हत्या कर दी होगी। बहरहाल, पुलिस मामले की जांच कर रही है।
(नई दुनिया, २५ फरवरी, २०१०)

माओवादी सेना में भर्ती के लिए विज्ञापन



एक तरफ नक्सली सरकार के खिलाफ हथियार डालने की बात कहते हैं वहीं दूसरी ओर माओवादी सेना को मजबूत करने ग्रामीण युवक-युवतियों के लिए पीएलजीए में भर्ती होने विज्ञापन जारी कर रखा है। पुलिस इंटलीजेंस की इस बात को नकारा नहीं जा सकता की फोर्स के दबाव के बाद वापस छिन्न-भिन्न हुए नक्सली एकजुट होने के लिए जो समय चाहते हैं, इसी के चलते वे सरकार के सामने हथियार डालने की पेशकश कर रहे हैं। संगठित होने और युवक-युवतियों को जोड़ने जंगलों में व्यापक प्रचार-प्रसार जारी है।दक्षिण बस्तर के जंगलों में पोस्टरों व पर्चों के द्वारा चलाये जा रहे विज्ञापनों की ही तर्ज पर वर्गवार जानकारियां दी गई हैं। जिसमें युवक-युवतियों से माओवादी सेना में जुड़ने का आह्वान किया जा रहा है। मजे की बात यह है कि भर्ती के नक्सली विज्ञापनों में पुलिस में भर्ती न होने की अपील भी की गई है व इसके कारण गिनाये गये हैं। नई दुनिया के पास उपलब्ध एक ऐसे ही पर्चे में २ दिसंबर से १० फरवरी तक भर्ती अभियान चलाने की बात कही गई है।


पर्चे में पीएलजीए में भर्ती क्यों के कालम में बस्तर की जनता के शोषण व दमन के खिलाफ लड़ने के लिए, शोषित जनता के हितो की रक्षा के लिए, बस्तर की संपदा को बड़े दलाल पूंजीपतियों को सौंपे जाने के खिलापᆬ लड़ने के लिए, सरकारी नरसंहार रोकने के लिए, जल जंगल जमीन पर जनता का हक कायम करने के लिए, शोषण विहीन समता मूलक समाज की स्थापना के लिए जैसी बातें लिखी हैं।


भर्ती की योग्याताओं में १६ वर्ष से अधिक के सामान्य कद काठी के सभी युवक युवतियां जो स्वार्थी न हों व कुर्बानी के लिए तैयार हों, लंपट, भ्रष्ट, अराजकतावादी, अत्याचारी, दारूबाज, चरित्रहीन लालची न हो, शोषण, दमन से नफरत करते हों तथा सादा जीवन कठोर परिश्रम के लिए तैयार हों जैसी अर्हतायें निर्धारित की गई हैं।


वेतन भत्ता के कालम में कोई वेतन भत्ता नहीं लिखा है। इसमें कहा गया है कि जनता पर निर्भर होकर खानपान की व्यक्तिगत जरूरतें पूरी की जायेंगी। परिजनों की मदद का भी वादा किया गया है। अंत में लिखा है कि पीएलजीए के योद्घा शोषण विहीन समाज की स्थापना का सपना संजोये मजदूर वर्गीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लैस, पीड़ित जनता के चहेते बन जन सैनिक का काम करेंगे। शहीद होने पर जनता के दिलो दिमाग में अमर रहेंगे। पर्चे के दूसरी ओर सरकारी सशस्त्र बलों में भर्ती न होने की बात लिखी है। इसमें लिखा है कि सरकारी बलों की भर्ती बस्तर की आदिवासी जनता को मार भगाने के लिए होती है।


इसके तहत हत्यारों, लुटेरों, बलात्कारियों, गुंडों को तैयार कर बस्तर की आदिवासी संस्कृति, जीवन शैली को तहस नहस किया जाता है। पुलिस, सीआरपीएएफ एसपीओ में भर्ती के तौर तरीके वाले कालम में पहली पंक्ति में लिखा है घूसखोरी के जरिये। इसमें कहा गया है कि फोर्स में भर्ती घोटाला कई बार सामने आ चुका है। बस्तर में गोपनीय सैनिकों की भर्ती में भी रिश्वतखोरी का मामला प्रकाश में पहले ही आ चुका है। भर्ती में जनविरोधी, लंपट, अराजकतावादी, अत्याचारी, दारूबाज, चरित्रहीन एवं गुंडा तत्वों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाते हुए नक्सलियों ने कहा है कि कुआकोंडा ब्लाक के समेली गांव के लिंगाराम को जबरन एसपीओ बनाया गया था हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसने इस्तीफा दिया। वेतन भत्ता में लिखा है कि जान गंवाने के एवज में विशेष भत्ता दिया जाता है। एसपीओ को भीख की तरह १५ सौ रूपये प्रतिमाह दिये जाते हैं। चोरी, लूट, बलात्कार की खुली छूट मिलती है व मरने पर चप्पल घिसने से मुट्ठी भर रूपये नसीब हो सकते हैं। अंत में कहा गया है कि फोर्स में भर्ती होकर लंपट, भ्रष्ट, दारूबाज, चरित्रहीन, लुटेरा आदि बनकर जनता के घृणा के पात्र बन जाते हैं। मरने पर जनता खुशियां मनाती है। लोग याद करना भी पसंद नहीं करते। भर्ती का यह विज्ञापन पर्चे की शक्ल में प्रचार ब्यूरो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सीपीआई माओवादी की ओर से जारी किया गया है।

अनिल मिश्रा,
संवाददाता, नई दुनिया
दंतेवाड़ा

समझौतों से नक्सली ही जीतेंगे


जोगिंदर सिंह

पूर्व निदेशक

केंद्रीय जाँच ब्यूरी

दिल्ली

नक्सली दलों से नरमाई से पेश आकर राज्य सरकारों ने कमजोरी दिखाई है और उन्हें बढ़ावा दिया है। यही वजह है कि आज उन्होंने अपहरण को अपनी माँगें मनवाने का औजार बना लिया है। जिन किन्हीं भी राज्य सरकारों ने ऐसा किया है उन्होंने कारगर प्रशासन देने के अपने उत्तरदायित्व का उल्लंघन किया है। यही नहीं, ये सरकारें अपने अधिकारियों को संदेश दे रही हैं कि जो जगह असुरक्षित हैं वहाँ न जाएँ।


इसबात में कोई दो राय नहीं की नरम मिजाज देश होने का खामियाजा हिन्दुस्तान को भुगतना पड़ रहा है। नक्सलवादी कहिए, माओवादी कहिए या आतंकवादी, इन हिंसा करने वाले संगठनों को किसी भी नाम से पुकारिए, वे बेखौफ होकर कभी भी, कहीं भी आक्रमण कर देते हैं। जैसा कि पश्चिम बंगाल के शिल्दा में हुआ, जहाँ माओवादियों ने निर्दयी तरीके से पुलिसवालों की नृशंस हत्याएँ कीं। यह हमला उनके योजनाबद्ध आतंकी अभियान का हिस्सा है।भले ही माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हों, पर इसके बावजूद उनमें यह क्षमता है कि वे ऐसे कामों को अंजाम दे सकें।


नक्सलियों का एकमात्र उद्देश्य पुलिस का मनोबल गिराना नहीं बल्कि उन्हें सीमित कर देना भी है जिससे पुलिस अपने क्षेत्र में मुख्यालयों तथा साजो-सामान की रक्षा में लगी रहे। नक्सलियों ने साल २००९ में ६ अप्रैल से १२ जून तक पश्चिम बंगाल के तथा अन्य क्षेत्रों में अपने ऑपरेशन चलाए थे, जिनमें उन्होंने ११२ पुलिस वालों की जानें ले लीं।माओवादियों व नक्सलियों की समस्या से पार पाना कोई असंभव कार्य नहीं है। मुश्किल यह है कि इनसे निपटने की कोई दीर्घकालिक नीति नहीं बनाई गई है। पश्चिम बंगाल में २५ लोगों को मारने के बाद माओवादियों ने फरवरी २०१० के तीसरे हफ्ते में बिहार के कोसारी गाँव में ११ लोगों की हत्या कर दी। इस नरसंहार में १०० से ज्यादा माओवादी शामिल थे जिन्होंने डायनामाइट से घरों को उड़ा दिया। इन मारे गए लोगों के अलावा अन्य २५ लोग भी शिकार हुए जो जलने से या गोली से घायल हुए।वास्तव में राज्यों के नेता इस मुद्दे पर जो दृष्टिकोण रखते हैं, वह केंद्र में बैठे नेताओं तथा देश के बाकी लोगों के मतों से भिन्ना है। बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था कि मैं माओवादियों के खिलाफ बल प्रयोग के खिलाफ हूँ।


जमीनी स्तर पर विकास एवं प्रजातंत्र माओवाद को हल करने का एकमात्र तरीका है। कितना अच्छा होता यदि मुख्यमंत्रीजी का यह बयान सच हो पाता। लेकिन सच यह है कि शांति का कोई विकल्प नहीं है, चाहे वह बंदूक से आए या बातचीत से या फिर आत्मसमर्पण से। दुर्भाग्य से बंदूक के सामने झुकना हमारे देश में एक मान्य परंपरा बन गई है। इसकी शुरुआत १९८९ में हुई थी जब स्थानीय लोगों की मदद से पाकिस्तानी आतंकियों ने अपने साथियों को छुड़वाने के लिए तत्कालीन गृहमंत्री की बेटी को अगवा कर लिया था। इस घटना के बाद से आतंकियों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद उन्होंने अपने साथियों या शुभचिंतकों को छुड़वाने के लिए लोगों को बंधक बनाना आरंभ कर दिया। वर्ष २००८ में एक पुलिस अधिकारी को कैद से छुड़ाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को कुछ माओवादी कमांडरों को रिहा करना पड़ा। २००९ में माओवादियों ने झारखंड में एक पुलिस इंस्पेक्टर का अपहरण करके उसका सिर कलम कर दिया। अब उन्होंने झारखंड के एक प्रखंड विकास अधिकारी को अगवा कर लिया है जिसे छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री १४ माओवादियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गए हैं।यदि गुप्तचर और अन्य स्रोतों की रपटों पर यकीन किया जाए तो पता लगता है कि समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है। जून २००९ के अंत तक ४५५ लोग (२५५ नागरिक व २०० सुरक्षाकर्मी) नक्सलियों ने मार डाले थे और ये कत्लेआम जारी है। ये आँकड़े केंद्रीय गृह मंत्रालय के हैं। इस अवधि में सबसे अधिक यानी ६० प्रतिशत हत्याएँ छत्तीसगढ़ व झारखंड में हुईं जो कि सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित राज्य हैं। आँकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा नक्सली हिंसा होती है। पिछले तीन वर्षों के आँकड़े इस बात के गवाह हैं।


समस्या की भयावहता को स्वीकारते हुए केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने फरवरी २०१० में कहा कि नक्सलवाद का खतरा सरकार की उम्मीद से कहीं अधिक भयंकर है। जब तक हम उन्हें छेड़ेंगे नहीं वे आराम से अपना विस्तार करते रहेंगे। वे तब तक फैलते रहेंगे जब तक हम उन्हें चुनौती नहीं देंगे। लोगों का सहयोग हासिल करने के लिए माओवादी हरसंभव तरीके अपनाएँगे। वे मीडिया को फुसलाएँगे, गलत आरोप लगाएँगे और अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाएँगे। अधिकतर लोग सोचेंगे कि समझौता किया जाए या कोई अन्य बीच का रास्ता अपनाया जाए लेकिन यह बहुत बेवकूफी होगी। सबसे मुश्किल चुनौती जो हमारे सामने है, वह है अच्छी तरह प्रशिक्षित तथा बेहतरीन साजो-सामान से लैस पुलिस बल। नक्सलवाद व माओवाद की समस्या से निपटने के लिए मजबूत दिमाग, उससे भी ज्यादा मजबूत दिल तथा इरादों पर टिके रहने की आवश्यकता है। अल्पकालिक समाधानों से कुछ नहीं होगा। एक मासूम व निहत्थे अफसर का अपहरण कर लिया जाता है और उसे छुड़ाने के लिए १४ पके हुए अपराधियों को छोड़ दिया जाता है, इन सब घटनाओं से माओवादियों के हौसले और बुलंद होंगे। मुँह में खून लगने के बाद नक्सली अब और आगे बढ़ेंगे।


राज्य सरकारें आतंकियों, नक्सलियों व माओवादियों के हाथों खिलौना बन रही हैं। वे जैसे चाहे सरकारों को नचाते हैं और अपनी माँगें मनवाते हैं।नक्सली दलों से नरमाई से बातचीत करके राज्य सरकारों ने कमजोरी दिखाई है और उन्हें बढ़ावा दिया है। यही वजह है कि आज उन्होंने अपहरण को अपनी माँगें मनवाने का औजार बना लिया है। जिन किन्हीं भी राज्य सरकारों ने ऐसा किया है उन्होंने कारगर प्रशासन देने के अपने उत्तरदायित्व का उल्लंघन किया है। खराब हालात झेल रहे क्षेत्रों को विकसित करने के बजाय ये सरकारें अपने अधिकारियों को संदेश दे रही हैं कि कि जो जगह असुरक्षित हैं वहाँ न जाएँ।


कोई भी आतंकी समूह तब तक कोई समझौता नहीं करेगा जब तक कि वह यह जानता है कि वह जीत रहा है। ऐसा पंजाब, असम व अन्य राज्यों में हो चुका है। दुनिया का कोई भी कोना हो, ऐसे तत्वों से निपटने के लिए गोली का जवाब गोली ही एक तरीका होता है । केवल समर्पण के लिए माओवादियों से बात करना एक कदम पीछे हटना हैऔर उस नीति के खिलाफ जाता है जो भारत सरकार ने नक्सलवाद से लड़ने के लिए बनाई थी । और फिर समझौते तभी होते हैं जब किसी एक पक्ष की रीढ़ टूट चुकी होती है । इस किस्म के समझौते से तो सुरक्षा और पुलिस बलों का मनोबल ही टूटेगा जो अपनी जान की बाजी लगाकर ऐसे तत्वों के खिलाफ लड़ रहे हैं ।

नई दुनिया, में प्रकाशित आलेख