चीनी जनता इस अर्थ में महान है कि उसने अपने देश के शासकों, खासकर देंग जियाओ पिंग की बातों पर विश्वास किया और सबसे भयानक जोखिम उठाया। स्वेच्छा से सुरक्षित जीवनशैली वाले समाजवादी मॉडल को त्यागकर असुरक्षा वाले भूमंडलीकृत पूंजीवाद के मॉडल को स्वीकार किया और ईमानदारी के साथ उसे लागू किया। बड़े पैमाने पर संपदा पैदा की। चीन के समग्र तंत्र और संरचनाओं में नए सिरे से प्राणों का संचार किया।
नए भूमंडलीकृत पूंजीवाद में दाखिल होने से वस्तुओं, भवनों, सड़कों आदि इंफ्रास्ट्रक्चर का अभूतपूर्व विकास हुआ। साथ ही नयी सामाजिक संरचनाओं और वर्गों का भी उदय हुआ। चीन के विगत 35 साल के विकास की दो बड़ी उपलब्धियां हैं नयी विराटकाय भौतिक संरचनाओं का निर्माण और नए वर्गों के रूप में पूंजीपतिवर्ग और मध्यवर्ग का उदय। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर सत्ता और पूंजी के नए केन्द्रों का उदय। मसलन् पहले चीन में मध्यवर्ग नहीं था। नयी व्यवस्था आने के साथ तेजी से मध्यवर्ग पैदा हुआ है। आज चीन में मध्यवर्ग का सालाना एक फीसदी की दर से विकास हो रहा है। समाजविज्ञान अकादमी चीन के अनुसार सन् 2003 में दर्ज आंकड़ों के अनुसार सकल आबादी का 19 फीसदी हिस्सा मध्यवर्ग में आ चुका है। चीन के मध्यवर्ग में 150,000 से 300,000 यूआन की संपत्ति के मालिकों को रखा गया है। अमरीकी डालर के अनुसार जिस व्यक्ति के परिवार के पास 18,072 -36,144 डालर तक संपत्ति है, वह मध्यवर्ग की केटेगरी में शामिल है। सन् 2020 तक चीन की कुल जनसंख्या का 40 फीसद मध्यवर्ग में पहुँच जाएगा।
देंग जियाओ पिंग ने सही पहचाना था चीन में साम्यवाद ठहराव का शिकार हो गया था। उसका विकास बंद हो गया था। जब कोई विचारधारा अथवा व्यवस्था गतिरोध में फंस जाए तो उस गतिरोध से निकलना अपने आप में क्रांतिकारी काम है। देंग ने साम्यवादी गतिरोध से चीन को निकालकर मानव सभ्यता की सबसे बड़ी सेवा की है। देंग ने माओ के द्वारा संचालित और प्रतिपादित रास्ते से एकदम हाथ खींच लिया और नया मार्ग चुना और इसे ‘सुधार’ का नाम दिया।
देंग के आने के बाद ‘सुधार’ पदबंध का व्यापक प्रयोग चीन की सैध्दान्तिकी और राजनीतिक भाषा में हुआ है। दूसरा पदबंध जो जनप्रिय हुआ है वह ”समृद्ध बनो प्रभावशाली बनो।” चीन का समूचा लेखन,चिन्तन और एक्शन इन दो पदबंधों के इर्दगिर्द घूमता रहा है। नियोजित अर्थव्यवस्था की जगह बाजार अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया गया। ‘ऑटोक्रेसी’ की जगह ‘खुलेपन’ की तरजीह दी गयी। जिसके कारण अर्थव्यवस्था में रोमांचित कर देने वाला उछाल आया।
”खुले दरवाजे’ की नीति ने विदेशी पूंजी निवेश का मार्ग खोला और अनंत नयी संभावनाओं के द्वार खोले। सन् 1979 से लेकर 1997 के बीच में विकासदर 9.8 प्रतिशत सालाना रही है। इसके फलस्वरूप सात करोड़ लोगों को दरिद्रता के स्तर से ऊपर उठाने में मदद मिली। चीन में बैंकों में नागरिकों के जमा धन में 220 गुना वृद्धि हुई। जनता की बैंकों में जमा पूंजी 21 विलियन यूआन (तकरीबन 2.5 बिलियन अमरीकी डालर) से बढ़कर 4,628 बिलियन यूआन (तकरीबन 550बिलियन डालर) हो गयी। कभी किसी एक पीढ़ी ने मानवसभ्यता के इतिहास में इतनी ज्यादा दौलत नहीं कमायी है। यह इस बात संकेत है कि विश्व पूंजीवादी विकास के मार्ग का सटीक अनुकरण किया जाए तो फल अच्छे हो सकते हैं।
चीनी नागरिकों में ज्यादा से ज्यादा दौलत कमाने की भूख पैदा हो गयी है। जो अमीर हैं और बड़े अमीर होना चाहते हैं गरीब अपनी मुक्ति के लिए हाथपैर मार रहे हैं। संपदा के पुनर्रूत्पादन ने नए किस्म का वर्ग विभाजन पैदा कर दिया है। आज अमरीकी सपने चीन के नागरिकों की फैंटेसी का हिस्सा हैं। कल तक चीन को मजदूरों का स्वर्ग कहा जाता था आज चीन अमीरों का स्वर्ग है। अप्रवासी चीनी नागरिकों का मानना है कि अमरीका में अमीर बनना बेहद मुश्किल है किंतु चीन में अमीर बनना आसान है। इस अनुभूति के कारण चीन के जो लोग बाहर रहते थे वे दौड़कर चीन आए और अपने अमीरी के सपनों को सबसे पहले उन्होंने साकार किया,बादमें बहुराष्ट्रीय निगमों ने इन सपनों को संपदा में तब्दील किया। आज चीन मजदूरों का देश नहीं सपनों का देश है, अमीरों का देश है। जिस गति से चीन में अमीर पैदा हो रहे हैं उस गति से अमरीका, ब्रिटेन में अमीर पैदा नहीं हो रहे। चीन में पैदा हुई अमीरी की चमक ने सभी पंडितों को स्तब्ध कर दिया है।
सन् 1975 में जार्ज बुश जब चीन गए थे तो उस समय चीन में चंद कारें थीं। सारा देश साईकिल पर चल रहा था। स्वयं बुश भी बीजिंग में साईकिल पर घूमे थे। चीनी मजदूर नीले और हरे रंग के कपड़े पहने हुए थे। उस समय चीन में किसी के पास निजी कार नहीं थी, चंद लोगों के पास निजी घर थे। किंतु जब बुश ने सन् 2002 के फरवरी माह में चीन की यात्रा की तो देखकर अचम्भित रह गए। सारा शहर कारों से भरा हुआ था। उस समय अकेले बीजिंग में रजिस्टर्ड तीन हजार से ज्यादा बीएमडब्ल्यू कारें थीं। हजारों मर्सडीज कारें थी, और 20 से ज्यादा पोर्चेज कारें थीं। एक साल बाद ही बीएमडब्ल्यू ने अपना कार उत्पादन केन्द्र चीन में खोल दिया।
चीन में कितने अमीर हैं इसके प्रामाणिक आंड़े अभी सरकार ने जारी नहीं किए हैं इसका प्रधान कारण है कि कहीं आंकड़ें देखकर जन असन्तोष न भड़क उठे। एक मर्तबा चीन के टीवी केन्द्र ने अमीरों के ऊपर एक वृत्ताचित्र बनाने का निर्णय लिया और उसकी शूटिंग भी शुरू कर दी गयी,किंतु अचानक ऊपर के दबाव में काम बंद कर दिया गया। सत्ता में बैठे अधिकांश लोगों का मानना था कि जो लोग सुधार के दौर में अमीर बने हैं ये वे लोग हैं जिन्होंने कानून तोडे हैं अत: कानूनभंजकों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए। सन् 2001 में समाजविज्ञान अकादमी के द्वारा कराए सर्वे से पता चलता है कि चीन की बैंकों में बीस फीसद लोगों के खातों में 894 बिलियन डालर की पूंजी जमा है।
-जगदीश्वर चतुर्वेदी
वामपंथी चिंतक, कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर।
मीडिया और साहित्यालोचना का विशेष अध्ययन।
कोलकाता
bahut acchaa lekh.......,
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