Thursday, February 18, 2010

पहले सुरक्षा, फिर विकास



प्रेम से समझाइश का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। नक्सली विकास की मुख्यधारा में आना ही नहीं चाहते । नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य तेज करने से ही नक्सली समस्या से निपटा जा सकता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में व्याप्त नक्सली हिंसा पर गहन चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ग्रामीण नक्सली न बनने पाएँ, इसके लिए उन्हें रोजगार से जोड़ कर मुख्यधारा में लाया जाए। लेकिन अहम सवाल यह है कि विकास कार्य आखिर हो कैसे? इसके लिए जरूरी है, नक्सल प्रभावित गाँवों में लोगों की सुरक्षा। नक्सलियों ने गाँवों का विकास अवरुद्ध कर रखा है। वे विकास कार्य होने ही नहीं देते। उनके आतंक से अधिकारी और ठेकेदार निर्माण कार्य करने से डरते हैं। धुर नक्सली क्षेत्रों में सड़क बनाना अत्यंत दुष्कर कार्य है। सड़क निर्माण कार्य में लगे वाहनों को आग के हवाले कर नक्सली कई अधिकारियों, ठेकेदारों और उनके कर्मचारियों की हत्या कर चुके हैं। विस्फोट करके वे कई भवन उड़ा चुके हैं। टेलीफोन के टॉवर तथा बिजली के ट्रांसफार्मर को भी वे नुकसान पहुँचा रहे हैं। सरकार पर शोषण का आरोप लगाने वाले नक्सली नहीं चाहते कि वनवासियों तथा वन क्षेत्रों का विकास हो। जाहिर है कि अगर विकास हुआ तो वनों से उनका वर्चस्व खत्म हो जाएगा। जहाँ वे अभी चैन से रह रहे हैं, वहाँ सड़क बन जाने से उनकी नींद हराम हो जाएगी। इसलिए वे हरगिज नहीं चाहते कि विकास हो। विकास के हिमायती ग्रामीणों को वे डराते-धमकाते रहते हैं। सरकार का साथ देने वाले कई लोगों को वे मौत की नींद सुला चुके हैं। भयवश लोग खुलकर सरकार का साथ नहीं दे पाते, क्योंकि उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं है। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा जवानों के साए में विकास कार्य कराए जा रहे हैं। ग्रीन हंट योजना के तहत अब तक काफी हद तक सफलता मिली है। सुरक्षा जवान नक्सलियों के बीच बेखौफ जाकर ग्रामीणों को सुरक्षा का विश्वास दिला रहे हैं। पुलिस का साथ मिलने से ग्रामीणों का हौसला बढ़ा है और वे विकास कार्यों में रुचि लेने लगे हैं। पुलिस नक्सलियों के कई ठिकाने ध्वस्त कर चुकी है। सुरक्षा जवान वहाँ पहुँचने लगे हैं, जो क्षेत्र नक्सलियों के लिए काफी सुरक्षित माने जाते रहे हैं। उनके गढ़ नेस्तनाबूद किए जा रहे हैं। राज्य की सरकार जवानों का हौसला बढ़ा रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य हों, इसके लिए वहाँ सुरक्षा उपाय किए जा रहे हैं। क्योंकि जब तक सुरक्षा नहीं होगी, लोग विकास कार्यों से नहीं जुड़ पाएँगे। कथित मानवाधिकारवादी मिथ्या आरोप लगाते हैं कि सरकार निर्दोषों को मार रही है। जबकि सरकार ने विकास कार्यों तथा ग्रामीणों के जानमाल के लिए सुरक्षा व्यवस्था कर रखी है। किसी की जान लेना उसका मकसद नहीं है। विकास में बाधक बनने या हिंसा का रास्ता अख्तियार करने वालों को दी हथियार से जवाब दिया जाता है। क्योंकि नक्सली हथियार की ही भाषा समझ रहे हैं। प्रेम से समझाइश का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। नक्सली विकास की मुख्यधारा में आना ही नहीं चाहते। जो नक्सली समर्पण करते हैं, उन्हें बेहतर जिंदगी जीने के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं। सरकार उनके प्रति अभी भी नरम रुख अपनाए हुए है। लेकिन वह विकास कार्यों से समझौता नहीं करने वाली।यही ठीक भी है। भय के वातावरण में विकास नहीं हो सकता।

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