Friday, February 19, 2010

पुलिस की नाकामी से नक्सलियों ने मारे 11 लोगपुलिस की नाकामी से नक्सलियों ने मारे 11 लोग

भागलपुर [संजय सिंह]। बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा थाना क्षेत्र के फुलवरिया-कोड़ासी गांव में बुधवार रात बदले की भावना से माओवादियों ने 11 लोगों की जान ले ली और 57 घर फूंक दिए। गांव के हर व्यक्ति की जुबान सिर्फ यही कह रही है कि यदि पुलिस की मदद मिली होती तो यह भूमि रक्तरंजित नहीं होती।

घटना की पृष्ठभूमि एक फरवरी से ही तैयार हो गई थी। बता दें कि पहाड़ से सटे फुलवरिया-कोड़ासी गांव के रास्ते पिछले दिनों कुछ नक्सली सिकंदरा पुलिस पिकेट पर हमला करने के उद्देश्य से जा रहे थे। इसी दौरान तीन नक्सलियों को खैरा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बाकी रहस्यमय ढंग से लापता हो गए। माओवादियों को आशंका हुई कि पुलिस की मिलीभगत से उनके साथियों को मार डाला गया है। बाद में माओवादियों ने हत्या का आरोप कोड़ासी के ग्रामीणों पर मढ़ दिया। हालांकि, आज भी ग्रामीण इस आरोप से इनकार करते हैं।

नक्सली संगठन के प्रवक्ता अविनाश ने अपने मृतक साथियों की सूची जारी की, जिसमें पलाटून कमांडर आकाश उर्फ प्रकाश मरांडी, सेक्सन कमांडर सुशील सोरेन उर्फ सुमारसल, सेक्सन कमांडर सौरव उर्फ विजय टुडू, सेक्सन कमांडर संजय वर्णवाल, जमुई जिला क्रांतिकारी किसान कमेटी के उप सचिव राजेश साव, पीएलजे सदस्य सोनू हेम्ब्रम, विरेन्द्र सोरेन और रामलाल शामिल थे। इसके बाद नक्सली प्रवक्ता ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 17 फरवरी को पूर्व बिहार बंद और 18-19 फरवरी को शहादत दिवस मनाने की घोषणा की। इस घोषणा के साथ ही फुलवरिया-कोड़ासी गांव के लोग सशंकित थे कि माओवादी उनके गांव पर हमला कर सकते हैं। ग्रामीणों की आशंका सच साबित हुई।

बुधवार की रात 11:35 बजते ही लछुआड़ जंगल के रास्ते 50-60 माओवादियों [जिसमें महिलाएं भी थीं] ने आकर गांव घेर लिया। माओवादियों के घेरे जाने की सूचना ग्रामीणों ने मोबाइल के जरिए पुलिस अधिकारियों को भी दी। इस बीच ग्रामीणों ने परंपरागत हथियार तीर-धनुष से लगभग एक घंटे तक माओवादियों से लोहा लिया, लेकिन आधुनिक हथियारों से लैस माओवादियों के आगे ग्रामीणों का हौसला पस्त हो गया। दो घंटे तक चले इस युद्ध को रोकने की पुलिस ने जहमत तक नहीं उठाई। इस बीच माओवादियों ने एक-एक कर 57 घरों में आग लगा दी। इस भीषण अग्निकांड में फुलेश्वर कोड़ा की पत्नी रीता देवी व उसका पांच वर्षीय बेटा रामाशीष राख हो गए। वहीं डेटोनेटर से घर उड़ाए जाने के कारण ओंकार राय व शुकरी देवी की मौत मलबे में दबकर हो गई। शेष दुर्गा राय, श्याम सुन्दर कोड़ा, टूसिया देवी, रामजनम कोड़ा, राम कोड़ा, महाराज कोड़ा और रामदेव कोड़ा की हत्या बारी-बारी से गोली मारकर कर दी गई। दर्जन भर लोगों को बुरी तरह मारपीट कर माओवादियों ने जख्मी कर दिया। गांव की कई महिलाएं, पुरुष और बच्चे जान बचाने के लिए पड़ोसी गांवों में भाग गए और वहीं शरण लिए हुए हैं।

गांव के शेखर कोड़ा, लखन कोड़ा व बालदेव कोड़ा ने कहा कि बुधवार को दिन में सूचना मिल गई थी कि रोपावेल गांव में माओवादी हमले की नियत से एकत्रित हो रहे हैं। इसकी जानकारी सिकंदरा थाना प्रभारी हरेराम साव तथा लछुआड़ में एसटीएफ कैम्प के प्रभारी को दी गई थी। पुलिस के आला अधिकारियों ने भरोसा दिया था कि हमला होने पर वे बीस मिनट में गांव पहुंचकर ग्रामीणों की मदद करेंगे पर घटना के दौरान ऐसा कुछ नहीं हुआ। हमला शुरू होते ही गांव के कुछ लोग भागकर लछुआड़ स्थित एसटीएफ शिविर पर भी गए पर पुलिस दो घंटे बाद वारदात स्थल पर पहुंची। तब तक माओवादी लछुआड़ जंगल के रास्ते गिरिडीह [झारखंड] की ओर चले गए। बाद में भारी संख्या में पुलिस बल को लेकर एसपी राकेश राठी, डीएसपी अशोक कुमार सिंह माओवादियों की टोह में जंगल में घूमते रहे। गांव का हर व्यक्ति पुलिस को कोस रहा था। ग्रामीणों का कहना था कि यदि पुलिस गरीबों को हथियार ही दे देती तो यह हृदय विदारक दृश्य आज नहीं देखने को मिलता। आक्रोशजदा ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के घटनास्थल पर आने की मांग रखकर शवों को उठाने से मना कर दिया है।

जिलाधिकारी प्रेम सिंह मीणा ने मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की। भागलपुर क्षेत्र के आईजी विनय कुमार, मुंगेर के डीआईजी अमित कुमार की बातें भी मानने को ग्रामीण तैयार नहीं थे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर गृह सचिव अमीर सुबहानी, पुलिस महानिदेशक आनंद शंकर, एडीजीपी मुख्यालय यूके दत्ता घटनास्थल पर पहुंचे। ग्रामीणों ने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पुलिस की लापरवाही का बखान किया। इधर डाक्टरों की टीम ने घटनास्थल पर ही शवों का पोस्टमार्टम किया। ग्रामीण पुलिस की लापरवाही से इस कदर आक्रोशित थे कि वे माओवादियों को बेहतर और पुलिसकर्मियों को निकम्मा कह रहे थे।

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