Tuesday, February 16, 2010

ग्रीन हंट का जवाब पीस हंट

ऑपरेशन ग्रीन हंट के जवाब में ऑपरेशन पीस हंट। प।बंगाल के सिल्दा में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के शिविर पर नृशंस हमला बोलकर माओवादियों ने एकबार फिर अपनी मंशा साफ कर दी किवे हिंसा का रास्ता छोड़ने वाले नहींहैं। अभी 6 दिन पहले ही ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत हुई है। यह राज्य सरकारों और केन्द्रीय सुरक्षा बलों का नक्सलवाद के खिलाफ संयुक्त अभियान है। इस महीने के प्रारंभ में माओवादी हिंसा से प्रभावित प।बंगाल, झारखंड, बिहार और उड़ीसा के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद गृहमंत्री पी।चिदम्बरम ने माओवादियों को चेतावनी दी थी कि यदि वे हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत के लिए तैयार नहींहोते तो ग्रीन हंट में तेजी लाई जाएगी। यह दिख रहा है कि गृहमंत्री की चेतावनी को माओवादियों ने जरा भी तवाो नहींदी और न ही ऐसे कोई संकेत दिए जिससे लगे कि वे बातचीत के इच्छुक हैं। माओवादियों के नेता किशनजी ने साफ कहा कि यह हमला ग्रीन हंट का जवाब है। हिंसा सरकार की ओर से शुरू हुई है, इसलिए रोकने की पहल भी उसी ओर से होनी चाहिए। वामपंथ के गढ़ में माओवाद के नाम पर अविचारित हिंसा पिछले कुछ अरसे में बेहद बढ़ गई है। लेकिन यह हमला अब तक हुए हमलों में सबसे जघन्य है। ऐसा नहींहै कि आनन-फानन में नक्सलियों ने हमला किया। इसके लिए बाकायदा पुख्ता योजना बनाई गई। इलाके की इत्मीनान से टोह लेकर नक्सलियों ने हमले का वक्त तय किया। ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स शिविर नया है और सुरक्षा के पूरे इंतजाम, गश्त आदि की व्यवस्था वहां नहींथी। जिस वक्त नक्सलियों ने धावा बोला शिविर में मौजूद जवान खाना बनाने व अन्य कार्यों में लगे थे। यकायक हुए आक्रमण ने उन्हें मोर्चा संभालने का मौका ही नहींदिया। अंधाधुंध फायरिंग कर नक्सलियों ने शिविर को आग के हवाले कर दिया। इसमें 21 जवान शहीद हो गए और 10 घायल हुए हैं, 10-12 जवान लापता हैं। नक्सलियों का एक दल गोलियां बरसा रहा था और दूसरा दल शिविर से हथियार बटोरने में लगा था। पुलिस के मुताबिक हमलावर अत्याधुनिकहथियारों से लैस थे। इस घटना ने सुरक्षा तंत्र की खामियों की बखिया फिर उधेड़ कर रख दी है। ऑपरेशन ग्रीन हंट को नक्सलवाद के खिलाफ एक सशक्त अभियान के रूप में देखा जा रहा था। क्योंकि इसमें केंद्र व राज्य दोनों की सहभागिता है। लेकिन शुरुआत में ही इस अभियान को करारा झटका नक्सलियों ने दे दिया। उनका तंत्र प्रशासनिक तंत्र से कहींमजबूत नजर आ रहा है। जो यह पता लगाने में सफल रहा कि कौन सा शिविर नया है, वहां सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं, हमला करने के लिए कौन सा वक्त माकूल रहेगा। लेकिन सरकार का सुरक्षा तंत्र यह पता नहींलगा पाया कि नक्सलियों ने किस तरह इस योजना को अंजाम दिया। दोपहर 1 बजे के आसपास प।बंगाल का खुफिया विभाग एलर्ट जारी करता है कि सिल्दा से 20-25 की दूरी पर कुछ नक्सली एकत्र हो रहे हैं, बावजूद इसके सतर्कता नहींबरती जाती और शाम होते-होते एक भयंकर घटना घट जाती है। वे मोटरसाइकिलों, कारों पर सवार होकर आते हैं, हमले के बाद बारूदी सुरंगे बिछाते हैं और गोलियों, हथगोले से आक्रमण कर आराम से चले जाते हैं। आपरेशन ग्रीन हंट के प्रारंभ होने पर नक्सलियों ने 72 घंटे के बंद का आह्वान अपने प्रभाव वाले राज्यों में किया था, इसमें उन्हें सफलता भी मिली थी। केंद्र व राज्यों को इसे ध्यान रखते हुए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहींहुआ। सिल्दा लालगढ़ से लगा हुआ है, जहां नक्सल गतिविधियां पिछले कुछ अरसे में बेहद बढ़ी हैं। कम से कम इस नाते ही सिल्दा के शिविर में सुरक्षा इंतजाम मजबूत होने चाहिए थे। सिल्दा हमले से सबक लेते हुए ग्रीन हंट पर आगे बढ़ना चाहिए। माओवादी पीस हंट की बात कर रहे हैं, पर उनकी गतिविधियों से लगता नहींकि पीस यानि शांति शब्द के मायनों को सार्थकता देने में उन्हें कोई दिलचस्पी है। (संपादकीय,देशबंधु, १७ फरवरी, २०१०)

No comments:

Post a Comment