Saturday, February 13, 2010

मेले पर भूमकाल की छाया


जगदलपुर। नक्सली भूमकाल सप्ताह के तहत अंदुरुनी इलाके के गांवों में श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर रहे हैं। इस सभा में आदिवासियों को आने के लिए बाध्य तो नहीं किया जा रहा है पर लोग भय से मेले में आने से कतरा रहे हैं। इसलिए कई गांव के लोग मेले में पहुंच ही नहीं रहे हैं।

दूसरी ओर पुलिस द्वारा त्रिशूल और आपरेशन ग्रीन हंट चल रहा है। सुरक्षा के नाम पर आदिवासी और अन्य लोगों से कड़ी पूछताछ और जांच की जाती है। इस झंझट से बचने के लिए लोग मेले में नहीं पहुंच रहे हैं। दुकानें सजने के बाद भी श्रद्धालुओं अपेक्षित संख्या से कम पहुंचे रहे हैं।
मेला अध्यक्ष इस बार कांग्रेस के हीरासिंह देहारी को बनाया गया है इसलिए मेले के लिए सांस्कृतिक विभाग से मिलने वाली राशि के आश्वासन दिया गया पर दी नहीं गई हैऔर न ही बाहर के कलाकारों का सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया है। सरकार की इस दोहरी नीति की अंचल में आलोचना की जा रही है।
आधुनिकता का असर : मावली मेला यहां सदियों पुरानी परंपरा के तहत आयोजित किया जाता है। किसी समय मेले तक पहुंचने के लिए लोगों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। श्रद्धालु दो-तीन दिन का कार्यक्रम बनाकर देवी दर्शन करके मेले का आनंद उठाते थे। पर अब वाहनों से मेले जाते हैं और शाम तक लौट जाते हैं इसलिए रात 10 बजे के बाद मेले में सन्नाटा पसर जाता है।

व्यापारी नाखुश है क्योंकि इस बार दुकानों का किराया दुगुना कर दिया गया है। मेला अध्यक्ष हीरा सिंह देहारी ने मेला राशि के लिए पर्यटन मंत्री केदार कश्यप से मुलाकात की थी। मंत्री ने सांस्कृति उन्नति के नाम पर राशि देने का आश्वासन भी दिया था पर राशि नहीं दी गई और ना ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन ही किया गया। सर्कस और हवाई झूले का लोग आनंद जरूर ले रहे हैं पर इससे आदिवासी संस्कृति का पोषण नहीं होगा।

No comments:

Post a Comment