Thursday, February 11, 2010

हर तरफ क्यों है इतनी विवशताओं का घेरा ?:

हितेश कुमार शर्मा
आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद तथा माओवाद यह ऐसे वाद हैं, जिनके विवाद का किसी को पता नहीं। आतंकवादी भारत को नुकसान पहुंचाते रहते हैं, उग्रवादी विस्फोट करते रहते हैं, नक्सलवादी अपहरण कर हत्या कर देते हैं, माओवादी इन सबसे ऊपर हैं। हमारी विवशता है कि हम इन चारों वादों को मिटा सकते हैं लेकिन मिटाते नहीं। आवश्यकता है अमेरिका की तरह दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाते हुए अफगानिस्तान जैसे हमले की। हमारे ही बहुत से लोग उग्रवाद, नक्सलवाद और माओवाद के समर्थक हैं तथा आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं। विधान में प्रावधान होने के बावजूद हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं बना सके हैं। न्यायपालिका एवं कार्यपालिका में अंग्रेजी का ही प्रयोग होता है। प्रान्तीय भाषाएं भी हिन्दी पर हावी हैं। देश में बहुत से ऐसे स्थान हैं जहां दुकानों के बोर्ड पर भी हिन्दी नहीं मिलती। यह हमारी विवशता है कि हम अपने ही देश में अपनी ही भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने में असमर्थ हैं। इजराइल ने अपनी मृतप्राय भाषा हिब्रू को राष्ट्रभाषा घोषित कर पुनर्जीवित कर लिया, कदाचित उसके सामने कोई विवशता नहीं थी। आरक्षण हमारी दूसरी सबसे बड़ी विवशता है। हम इसे समाप्त नहीं कर सकते और इसके माध्यम से किसी को लाभ भी नहीं पहुंचा सकते। जिन लोगों को आरक्षण प्रदान किया गया, अथवा जिन्हें आरक्षित वर्ग घोषित किया गया उनमें से किसी को भी वांछित लाभ नहीं मिला। नतीजा यह है कि आरक्षित वर्गों के लोग भी आरक्षण शब्द से घृणा करने लगे हैं। फिर भी, हमारी विवशता देखिए कि हम आरक्षण को समेटने की जगह इसका दायरा फैलाते ही जा रहे हैं। हमारी विवशता देखिए कि हम जानते हैं कि पॉलीथीन की थैलियों का प्रयोग पशुओं की मृत्यु का कारण है, नालियों में जल भराव का कारण है और गन्दगी को बढ़ाता है लेकिन वाह री हमारी विवशता...! हम पॉलीथीन की थैलियों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते क्योंकि इनका प्रयोग 'सुविधा शुल्क' के कारण जीवित है और सुविधा शुल्क भारतीय अर्थव्यवस्था की जान है। पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम एक ऐसी गले की हड्डी बन गई है जो न उगलते बनती है और न हीं निगलते। यह कार्यक्रम चलाते रहना ऐसी विवशता हो गई है कि लगातार बार-बार पोलियो उन्मूलन टीमों के पिटने के बावजूद हम दवा पिलाने के लिए अधिकारियों को बार-बार उन इलाकों में भेजते हैं जहां बच्चों को दवा पिलाने से इन्कार करते हुए स्वास्थ्यकर्मियों को पीटा गया था। हम पिटने के लिए विवश हैं अथवा पोलियो उन्मूलन के लिए विवश हैं इसकी जानकारी कैसे हो? विवशता का पर्दाफाश कैसे हो? क्रिकेट का खेल तो हमारी विवशता ही नहीं, हमारी आदत बन चुका है और आदत कभी नहीं जाती। 24 घंटे तीसों दिन पूरे साल क्रिकेट का खेल जारी रहता है। हम हारते रहते हैं। खिलाड़ी थके होते हैं। फिर भी क्रिकेट का खेल जारी है, क्योंकि यह हमारी विवशता है। हम क्रिकेट को बन्द नहीं कर सकते। इसे बन्द करते ही क्रिकेट को समर्पित मंत्री जी सत्ता से समर्थन वापस ले लेंगे। आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद तथा माओवाद यह ऐसे वाद हैं, जिनके विवाद का किसी को पता नहीं। आतंकवादी जानते हैं कि वह भारतवर्ष पर कब्जा नहीं कर सकते किन्तु नुकसान पहुंचाते रहते हैं। उग्रवादी विस्फोट करते रहते हैं। नक्सलवादी अपहरण कर लेते हैं और हत्या कर देते हैं, माओवादी इन सबसे ऊपर हैं। हमारी विवशता है कि हम इन चारों 'वादों' को मिटा सकते हैं लेकिन मिटाते नहीं। आवश्यकता है अमेरिका की तरह दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाते हुए अफगानिस्तान जैसे हमले की। हमारे ही बहुत से लोग उग्रवाद, नक्सलवाद और माओवाद के समर्थक हैं तथा आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं। यह सभी वाद जीवित रखना हमारी विवशता बन गई है क्योंकि यदि हम इनके खिलाफ कार्यवाही करते हैं तो वह लोग नाराज हो जाएंगे जो इनके समर्थक हैं। पाकिस्तान भी हमारी एक बहुत बड़ी विवशता है। उसे हम नेस्तनाबूद नहीं कर सकते और पाकिस्तान हमें चैन से बैठने नहीं दे सकता। देश में आतंकवादी हमले पाकिस्तान की ही देन हैं। वैश्विक दबाव के कारण हम पाकिस्तान का अस्तित्व बरकरार रखने के लिए विवश हैं। बिजली गांव-गांव में पहुंचाने की सरकारी इच्छा अच्छी होने के बावजूद केवल कागजों में ही रह गई। बिजली का उत्पादन उतना हो नहीं रहा जितनी बिजली की आवश्यकता है। जब बिजली का उत्पादन पूरा नहीं होगा तो गांव क्या, शहरों में भी बिजली पूरी नहीं पड़ेगी। हम विवश हैं बिजली गांव-गांव में पहुंचाने का आश्वासन देने के लिए और उससे अधिक विवश हैं बिजली का उत्पादन न करने के लिए। अगर हम चाहते तो पूरे हिन्दुस्तान में सड़कों पर सौर ऊर्जा के द्वारा रौशनी हो सकती थी और बचाई गई बिजली गांवों को दी जा सकती थी। सरकारी कार्यालयों में और औद्योगिक संस्थानों में एसी लगाने पर पाबंदी लगा सकते थे लेकिन हमारी विवशता है कि हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते हैं जिससे वोटर नाराज हो जाएं। हम विवश हैं चारित्रिक पतन के साथ जीने के लिए। चारित्रिक पतन की सीमा कहां तक पहुंच चुकी है इसकी जानकारी केवल वही दे सकता है, जिसका चारित्रिक पतन चरम सीमा तक हो चुका हो। जिस व्यक्ति का वेतन एक लाख रुपए मासिक है, वह भी एक हजार रुपए की रिश्वत लेना पसन्द करता है। अपनी सुन्दर बीबी के होते हुए भी दौरे पर डाक बंगले में शराब और शबाब की प्रतीक्षा करता है। समलैंगिकता चारित्रिक पतन का एक और बड़ा संकेत है। हम विवश हैं इस चारित्रिक पतन को सहन करने के लिए क्योंकि इस खेल में आंखों पर पट्टी बांधकर सभी शामिल हैं। संसद और विधानसभाओं में भी हमारी विवशता देखते बनती है। विधानसभा अध्यक्ष के हाथ से माइक छीन लेना मुफ्ती महबूबा सईद की ताकत नहीं बल्कि विधायकों का चारित्रिक पतन कहा जा सकता है। संसद में जो कानून बनता है वह देशहित या जनहित में नहीं होता बल्कि सांसदों के हित में होता है, उनके वोट बैंक के अनुकूल होता है। हमारी विवशता है कि हमें यदि राज्यसभा सदस्य बनाना है तो नेताओं के परिवार से ही चुनना पड़ेगा और यदि राज्यपाल बनाना है तो नेताओं के खानदान का ध्यान रखना ही होगा। हमारी विवशता देखिए कि हम हत्या में संलिप्त व्यक्ति को भी अपना सांसद बनाने के लिए टिकट प्रदान करते हैं और उस सांसद को भरपूर सुविधाएं दी जाती हैं, भले ही टीवी पर उसकी शक्ल देखकर आपको सरकार से और उस सांसद से घृणा होने लगे, लेकिन विवशता का लाभ उठाकर वह सांसद तो बना हुआ है ही। वोट के नाम पर जनता को झूठे आश्वासन देना मंत्रियों को कमांडो सुरक्षा के घेरे में चलने को विवश करते हैं। वोट बैंक बनाने के लिए देश का बलिदान कोई विशेष बात नहीं है। देश में लोकतंत्र फेल हो चुका है लेकिन विश्व की नजरों में इसी तंत्र को जीवित रखना हमारी विवशता है। कहीं-कहीं मुख्यमंत्री सहित परिवार के सभी सदस्य राजनीति में हैं और किसी-किसी परिवार के 8-8 व्यक्तियों का सत्ता पर कब्जा है। विवशताएं तो और भी हैं, विवश व्यक्ति केवल रो सकता है, सो भी नहीं सकता। ईश्वर हमारी विवशताओं को समाप्त करें यही प्रार्थना है।

No comments:

Post a Comment