Thursday, February 18, 2010

विकास से दूर रखना बस्तर की नियति

प्रदेश कांग्रेस जनसमस्या निवारण प्रकोष्ठ के महामंत्री संजीव शर्मा ने जारी बयान में कहा कि बस्तर को विकास से कोसों दूर रखने की शायद नियति बन गई। जब-जब भी यहां उद्योग की बात चली तो कोई न कोई नेता विरोध में खड़ा हो गया। मुकुंद स्टील, डायकेम, बारसूर जैसे प्रोजेक्ट आए किंतु राजनैतिक दलों के नेताओं के विरोध के चलते शुरू ही नहीं हो सके। लगभग ४५ करोड़ रूपये बोधघाट परियोजना में खर्च हो गया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और जनता का पैसा पानी में बह गया। अब एनएमडीसी और टाटा उद्योग के लगने की शुरूआत तो हुई किंतु इतने वर्षों के बाद भी हम वहीं के वहीं खड़े हैं। जब एनएमडीसी के लिए ग्रामीण भूमि देने के लिए विरोध कर रहे थे तो तात्कालिक अध्यक्ष संयंत्र को दूसरे स्थान पर लगाया जाने की एक प्रकार से वकालत कर रहे थे और जब जनता ने संयंत्र को भूमि उपलब्ध करा दी तो प्रबंधन कान में तेल डालकर चुपचाप बैठ गया। विकास की परिभाषा सिपर्ᆬ मांग बनकर अखबारों की सूर्खियां रह गई है। इसी प्रकार टाटा स्टील प्लांट के लिए शासन प्रशासन और राजनैतिक दलों ने हो हल्ला तो खूब मचाया। मुख्यमंत्री भी हमेशा इस तरह के बयान देते रहे जैसे आज ही प्लांट लग जाएगा। लेकिन आज तक यह तय नहीं हो सका की प्लांट लगेगा या नहीं? अभी हाल ही में विधानसभा में भी जनप्रतिनिधियों द्वारा बस्तर की विकास विधानसभा में नहीं उठायी। राज्य सरकार भी बस्तर के लोगों को औद्योगिकरण का सब्जबाग दिखाती रही है और पहल के नाम पर वास्तव में कुछ नहीं दिख रहा है। औद्योगिकरण के लिए अब सड़क से विधानसभा एवं संसद तक संघर्ष की लड़ाई की जरूरत है। जनता बस्तर के नेताओं के कथनों पर भरोसा छोड़कर विकास के लिए संघर्ष के लिए कमर कसकर स्वयं तैयार हो जाएगी। जल्द ही बस्तर में औद्योगिकरण के लिए समाज प्रमुखों एवं प्रमुख संस्थाओं से चर्चा कर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी एवं विरोधियों को बेनकाब कर दिया जाएगा।

No comments:

Post a Comment