जनसुरक्षा अधिनियम और उसमें मीडिया से संसंधित कानूनों की जानकारी नहीं है, इसलिए मैं इस पर कुछ नहीं कहूंगा। हां इतना जरूर है कि मीडिया को हमेशा समाज की सच्चाई बगैर किसी भेदभाव व लगाव के जनता के सामने लानी चाहिए। जहां तक नक्सलियों के पत्र छापने का सवाल है तो मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि मीडिया इसे छाप सकता है, लेकिन उसे यह जरूर देखना चाहिए कि कहीं वह सामग्री समाज या राष्ट्रविरोधी तो नहीं और कहीं उसका समाज के मनोबल पर विपरीत असर तो नहीं पड़ रहा। यह काम तो हो सकता, लेकिन मीडिया की भी अपनी आचार संहिता होती है, मेरे हिसाब से उसका काम किसी भी चीज की जांच करने का नहीं है। वह सिर्फ पाठकों-दर्शकों तक सूचना पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होता है। बाकी प्रशासन का काम है कि वह तथ्यों की जांच करें। जो लोग नक्सलियों के पास जाकर बातचीत करके समाचार लाते हैं, मैं इसे भी गलत नहीं मानता, क्योंकि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का हक है। पत्रकार उनकी बात, विचार सामने लाते हैं, वे ही नक्सलियों के नरसंहार या और समाज विरोधी काम को भी जनता के सामने लाते हैं। इसलिए मैं नक्सलियों के संपर्क में सिर्फ समाचार के लिए रहने वाले पत्रकारों को उनके काम का हिस्सा मानता हूं। हालांकि मैं ये भी मानता हूं कि मीडिया को भी अपने सामाजिक दायित्व को समझना चाहिए और बेवजह नक्सलियों को महिमामंडित नहीं करना चाहिए। एक मीडिया वाले की नक्सलियों के साथ संलिप्तता को जो सवाल है, उसमें मैं यह कहना चाहूंगा कि एक की वजह से पूरी बिरादरी को गलत नहीं कहा जा सकता। जो लोग पत्रकारिता की नैतिकता के विरूध्द जाकर अपने निजी स्वार्थ या फायदे के लिए राष्ट्रविरोधी काम करने लगते हैं, उन्हें पत्रकार नहीं माना चाहिए। पत्रकार को सच्चाई जनता के सामने लानी चाहिए। उसे किसी लाभ के लिए पत्रकारिकता का लबादा नहीं ओढ़ना चाहिए।
एक व्यक्ति द्वारा किसी समाजविरोधी के साथ विध्वसंक कार्य करने का उसके समूह या बिरादरी असर नहीं पड़ता। इसे ऐसा भी समझा जा सकता है कि आतंकवादी गतिविधियों में 99 प्रतिशत मुस्लिम समाज के लोग शामिल पाए जाते हैं, लेकिन इसकी वजह से आप पूरे समाज को इस नजर से नहीं देख सकते हैं। कुछ गिनती के लोगों की हरकत के लिए किसी बिरादरी को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।
एक व्यक्ति द्वारा किसी समाजविरोधी के साथ विध्वसंक कार्य करने का उसके समूह या बिरादरी असर नहीं पड़ता। इसे ऐसा भी समझा जा सकता है कि आतंकवादी गतिविधियों में 99 प्रतिशत मुस्लिम समाज के लोग शामिल पाए जाते हैं, लेकिन इसकी वजह से आप पूरे समाज को इस नजर से नहीं देख सकते हैं। कुछ गिनती के लोगों की हरकत के लिए किसी बिरादरी को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।
श्री वीरेन्द्र पांडेय
वरिष्ठ राजनीतिज्ञ व छत्तीसगढ़ राज्य वित्त
आयोग के पूर्व अध्यक्ष
वरिष्ठ राजनीतिज्ञ व छत्तीसगढ़ राज्य वित्त
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