सिलीगुड़ी । नक्सली आंदोलन के जनक कानू सान्याल की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गयी। दिन के एक बजे उनका शव नक्सलबाड़ी ब्लॉक के शिवदेलाजोत स्थित उनके घर में नॉयलान की रस्सी से लटकता पाया गया। उनकी मौत को लेकर रहस्य बना हुआ है। प्राथमिक तौर पर मामला आत्महत्या से जोड़ कर देखा जा रहा है। शव मिलने के बाद नक्सलबाड़ी में कोहराम मच गया। लोगों की भीड़ जमा हो गयी। वयोवृद्ध नक्सली नेता को ओखर आत्महत्या करने की जरूरत क्यों पड़ी, लोग समझ नहीं पा रहे हैं।सुबह छह बजे उठे थे कानू सान्याल की करीबी रही 68 वर्षीय शांति उरांव बताती हैं वह रोज की तरह सुबह छह बजे उठे थे। इसके बाद हाथीघीसा मोड़ तक टहलने भी गये। वहां से लौट कर कपड़े धोने के लिए कहा। नहाने के बाद दोपहर 12 बजे खाना भी खाया। हालांकि अन्य दिनों से अलग मंगलवार को खाना खाने के बाद अखबार पढ़ने लगे। यह देख मैं अपने घर चली गयी। इसके बाद क्या हुआ, किसी को नहीं पता।
शांति उरांव ने दोपहर एक बजे कानू सान्याल के घर की खिड़की से नजर डाली, तो वह बिस्तर पर नहीं थे। वह अंदर गयी। देखा कि कानू सान्याल लकड़ी से बने घर की बीम से लटक रहे थे। शांति ने तुरंत आसपास के लोगों को बुलाया। जो भी इस घटना के बारे में सुना, अवाक रह गया। शांति उरांव का कहना है मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि कानू सान्याल आत्महत्या कर सकते हैं। नक्सल आंदोलन में शांति उरांव कानू सान्याल के साथ थी। वह बताती हैं घर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। अब सवाल यह है कि क्या आत्महत्या करने से पहल कानू सान्याल ने घर का दरवाजा बंद करना जरूरी क्यों नहीं समझा। पुलिस भी इस मामले में फ़िलहाल कुछ नहीं बता रही है।कौन थे कानू सान्यालकानू सान्याल का जन्म 1932 में हुआ था। वर्ष 1967 से पहले तक कानू सान्याल बंगाल की सत्ता में बैठी माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक थे। माकपा नेता स्वर्गीय ज्योति बसु व स्वर्गीय प्रमोद दासगुप्ता से वैचारिक मतभेद होने के बाद नक्सल पंथी संगठन की स्थापना हुई। चारू मजूमदार और कुछ नेताओं के साथ मिल कर कानू सान्याल ने 24 मई 1967 में नक्सबाड़ी से नक्सली आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन को सशस्त्र आंदोलन के नाम से जानते हैं। इसके बाद यह आंदोलन विकराल रूप लेता चला गया। बंगाल सरकार ने स्थिति की विकरालता को देखते हुए नक्सल पंथी संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया। 28 जुलाई 1972 को पुलिस कस्टडी में सीपीआइ (एमएल) के संस्थापक सदस्य चारू मजूमदार की मौत हो गयी थी। इसके बाद कानू सान्याल ने सशस्त्र आंदोलन से अपने आप को अलग कर लिया। लगभग डेढ़ साल पहले श्री सान्याल हार्ट अटैक के बाद लकवे से ग्रसित हो गये थे। इसके बाद वह नक्सलबाड़ी में मिट्टी व काठ से बने एक छोटे से घर में जीवन के अंतिम दिन काट रहे थे। सीपीआइ (एमएल) को अपना योगदान नहीं दे पाने के कारण वह काफ़ी हताश-निराश थे। उन्हें इस बात का मलाल था कि वह अपना समय और ऊर्जा पार्टी को नहीं दे पा रहे हैं। हाल में वह कहीं आ-जा भी नहीं रहे थे।
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