Wednesday, March 24, 2010

अलविदा कामरेड

सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग) : नक्सल आंदोलन के जनकों में एक कानू सान्याल बुधवार शाम 6.30 बजे पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके हजारों समर्थकों व जानने-चाहने वालों ने सिलीगुड़ी के किरणचंद्र घाट पर अंतिम विदाई दी। शहर के उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज अस्पताल से पूर्वाह्न 11.30 बजे से निकली शव यात्रा शाम 6.30 बजे तक पूरे इलाके का भ्रमण करती रही। भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव की इस अंतिम यात्रा में शामिल लोग 'कामरेड कानू लाल सलाम' का नारा लगाते रहे। पार्टी ने उनके शोक में अपना झंडा तीन दिनों तक झुकाये रखने का फैसला किया है। किरणचंद्र घाट पर उनके समर्थक 'श्रमिकों और किसानों का नेता कैसा हो कानू सान्याल जैसा हो,' 'कामरेड कानू सान्याल हम न तुम्हे भूले हैं और न कभी भूलेंगे' आदि नारे लगा रहे थे। अपने नेता के अंतिम दर्शन के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने बताये मार्ग पर चलते हुए किसानो, श्रमिकों और बेसहारों की लड़ाई आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। भाकपा माले के राज्य सचिव व केंद्रीय कमेटी सदस्य सुब्रत बसु ने पत्रकारों से कहा कि वाहन नहीं मिल पाने के कारण केंद्रीय कमेटी के ज्यादातर सदस्य बुधवार को कामरेड कानू सान्याल की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सके। जल्द ही केंद्रीय कमेटी की टीम हाथीघिसा के सेफतुलाजोत पहुंचेगी। वहां बैठक में कामरेड कानू दा की 'हत्या या आत्महत्या' के मुद्दे पर मंथन किया जाएगा। उस मंथन से निकले निष्कर्ष के आधार पर ही पार्टी आगे की कार्रवाई करेगी। उन्होंने कहा कि कानून दा इस बात से खिन्न रहते थे कि पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के शासन में 'लाल हटाओ, देश बचाओ' का नारा लग रहा है। ऐसा नारा न लगे इसके लिए पार्टी संघर्ष करेगी। कानू दा के निधन से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। उनकी कमी को फिलहाल पूरी नहीं हो पाएगी। उन्होंने कहा कि बागडोगरा थाने के आईसी से पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांगी गई है। आईसी ने एक सप्ताह के अंदर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। नक्सली नेता की अंतिम यात्रा में नक्सलबाड़ी, खोरीबाड़ी, फांसीदेवा, पानीटंकी, बतासी तथा आसपास के इलाकेसे भारी संख्या में लोग आये थे। इन में चाय बागानों के श्रमिकों की संख्या काफी थी। उनके अलावा कोलकाता से आये भाकपा माले के राज्य सचिव सुब्रत बोस, आशीष घोष, सत्देव बनर्जी, धीरेन दास, शिखा दास, अतुल मन्ना, नारायण दास, दामू सोरेन, शिवेन सरकार, योगेन विश्वकर्मा, भाकपा माले के केंद्रीय कमेटी नेता सुशांत झा, राज्य कमेटी सदस्य वीरेन सरकार, रतन सेन, जिलाध्यक्ष श्रीधर मुखर्जी, भाकपा माले लिबरेशन के पोलित ब्यूरो सदस्य कार्तिक पाल, जिला सचिव अभिजीत मजूमदार, बादल सरकार तथा सैकड़ों समर्थक मेडिकल कालेज अस्पताल से ही शवयात्रा में शामिल थे। 60 दशक तक जिन गरीब किसानों और मजदूरों के लिए कानू दा लड़ते रहे, उनकी संख्या इस अंतिम यात्रा में ज्यादा थी। वे बार-बार एक ही प्रश्न कर रहे थे-अब हमारी लड़ाई कौन लड़ेगा। मेडिकल कालेज अस्पताल से लेकर हाथीघिसा, नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी के बाबूपाड़ा व मित्र सम्मेलनी गली तक श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों का तांता लगा रहा। उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले दूसरे दलों के नेताओं में जीवेश सरकार (माकपा), नांटू पाल (कांग्रेस), कविता भौमिक (गणतांत्रिक महिला समिति), हरि साधन घोष (माकपा), अनिमेष बनर्जी (भाकपा), विमल बनिक (भाजपा) ,दीपक होड़ा राय, कृष्णेंदु दास (भाजपा) ,जीवन मजूमदार (कांग्रेस), काशीनाथ मजूमदार (कांग्रेस), तुलसी भट्टराई (पूर्व सांसद), सुविन भौमिक (कांग्रेस), पार्थो सेन गुप्ता (कांग्रेस), राजू गुप्ता (छात्र परिषद), सुजीत राहा (सृजन सेना) के अलावा शांति चक्रवर्ती, सुरजीत पाल, असीम चक्रवर्ती, गौतम देव, दीपक मैत्र, प्रदीप सरकार, अरविंदम सान्याल, अरुण सरकार, अमल राय,गौतम चक्रवर्ती आदि शामिल थे। अंतिम यात्रा बागडोगार थाने के सीआई गौतम घोष, सब इस्पेक्टर विश्वजीत दास सहित विभिन्न थानों की पुलिस मौजूद थी।

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