मगध । नक्सलियों और अपराधियों की 'कुंडली' कम्प्यूटर की फ्लापी में दर्ज हो चुकी है। जरूरत है सिर्फ माउस को क्लिक करने की। मगध प्रमंडल के पांचों जिलों गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा और अरवल के कई थानों को कम्प्यूटराइज किया जा चुका है। जिला मुख्यालय पर पुलिस कप्तान के आवासीय कार्यालय में भी कम्प्यूटर का 'सदुपयोग' हो रहा है। इसके बावजूद कई बड़ी घटनाओं में अपराधियों और नक्सलियों के 'मोड आफ आपरेंडी' का पता लगाने में पुलिस विफल साबित हो रही है। दूसरी ओर केन्द्रीय गृह विभाग ने क्राइम रिकार्ड ब्यूरो से पटना मुख्यालय को जोड़ रखा है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा समय-समय पर राज्य क्राइम रिकार्ड ब्यूरो को बड़े-बड़े अपराधियों व नक्सलियों के साथ ही शातिर अपराधियों का बायो-डाटा उपलब्ध कराया जाता रहा है। राज्य सरकार ने इसकी महत्ता को देखते हुए एक डीआईजी संवर्ग के अधिकारी का पद राज्य क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के लिए सृजित कर रखा है। पूर्व में एनसीआर द्वारा भेजे गये तकनीशियन अपनी फ्लापी में उपलब्ध सूचनाएं जिला पुलिस के कम्प्यूटर में डाउन लोड करते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह प्रक्रिया बंद है। इस संबंध में मगध क्षेत्र की डीआईजी अनुपमा एस. निलेकर ने बताया कि प्रमंडल के सभी जिलों के टाउन थानों को कम्प्यूटराइज किया जा चुका है। जिला पुलिस बल के जवानों को एनसीआर से आये प्रशिक्षकों ने पूर्व में प्रशिक्षित किया था। डीआईजी श्रीमती निलेकर ने माना कि इन दिनों एनसीआर से जिला पुलिस की 'कनेक्टिविटी' नहीं है। ऐसे में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा निर्गत अद्यतन सूचना बिहार पुलिस को उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
वहीं दूसरी ओर कुछ सालों से थाना स्तर पर 'पुलिसिंग' नहीं हो पा रही है। कारण अधिकारियों पर कार्य का अत्यधिक बोझ होना बताया जाता है। हालात यह है कि एक अधिकारी ओडी डयूटी पर है। फिर उसी को लंबित कांडों के अनुसंधान के लिए क्षेत्र में जाना है। इसके बाद उसके ऊपर केस डायरी 'अप टू डेट' कर अदालत में समर्पित करने की भी जिम्मेवारी है। फिर यदि कहीं विधि व्यवस्था की समस्या सामने आयी तो क्षेत्र में जाना अनिवार्य है। ऐसे में थाने स्तर पर छह पंजी में 'इंट्री' नहीं हो पाती। जबकि छह पंजियां थाना क्षेत्र के अपराध और अपराधियों का 'आईना' होती हैं। उदाहरण के लिए घटना को अंजाम देते वक्त अपराधियों ने घर के अंदर कैसे प्रवेश किया? पीड़ित व्यक्तियों के साथ अपराधियों का कैसा व्यवहार था? घटना स्थल पर पहुंचने और फरार होने के समय किस वाहन का इस्तेमाल किया गया? ऐसी कई जानकारियां पंजी के पन्नों को पलटते ही अधिकारियों को अपराधियों तक पहुंचाने में मदद करती थीं।
अब ऐसी पंजी किसी वरीय अधिकारी के थाना निरीक्षण के पूर्व आधी-अधूरी जानकारी के साथ 'अप टू डेट' की जाती है। गया के पुलिस अधीक्षक सुशील एम. खोपडे ने बताया कि शहरी क्षेत्र के सिविल लाइन्स और मुफ्फसिल थानों में कम्प्यूटर लगाये जा चुके हैं। दोनों थानों में कम्प्यूटर की फ्लापी में अद्यतन सूचनाएं दर्ज है। जहानाबाद में
पुलिस की कार्य प्रणाली को आन लाइन करने के उद्देश्य से कम्प्यूटरीकरण की योजना बनायी गयी थी जो अधिकारियों की उदासीनता से दम तोड़ रही है। योजना के तहत प्राथमिकी की पूरी जानकारी कम्प्यूटर में दर्ज होनी थी। राज्य के थानों को पुलिस मेट 01 से जोड़ना था, ताकि किसी जिले के किसी थाने और क्षेत्र की वांछित की जानकारी मिनटों में मिल सके।
नवादा में नगर थाना सहित हिसुआ, रजौली, वारिसलीगंज, कौआकोल, पकरीबरावां, नरहट, सिरदला, गोविन्दपुर व अकबरपुर थानों में कम्प्यूटर रूम बनाये जाने के साथ ही इससे संबंधित कुछ आवश्यक सामान लगाये गये है। कम्प्यूटर चलाने के लिए पुलिस वालों को प्रशिक्षित भी किया गया। लेकिन आज भी थानों में कागज पर ही प्राथमिकी दर्ज की जा रही है। बिहार पुलिस के कम्प्यूटरीकरण की योजना पुलिस मुख्यालय स्तर से वर्तमान डीजीपी नीलमणि व एडीजी अभ्यानंद ने बनायी थी। पुलिस कप्तान अनिल किशोर यादव बताते है कि अब तक कम्प्यूटर की आपूर्ति न होने से योजना लागू नहीं हो पा रही है। औरंगाबाद में थानों के कम्प्यूटरीकरण की योजना अधर में लटक गई है। यहां एक भी थाने का कम्प्यूटरीकरण नहीं किया गया है। एसपी निशांत कुमार तिवारी ने बताया कि सिपा प्रोग्राम के तहत थानों का कम्प्यूटरीकरण किया जाना था। नगर थाने का कम्प्यूटरीकरण किया गया परंतु कार्य आधा अधूरा ही रह गया। पुलिस मुख्यालय ने इसी को ध्यान में रखते हुए थानों को कम्प्यूटराइज करने की योजना शुरू की थी। लेकिन यह अपने लक्ष्य को हासिल करने में अब तक सफल नहीं हो सकी है। कारण कहीं आपरेटर नहीं, तो कहीं आंकड़े नहीं है।
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