धनबाद। 24 मई 1967 को पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से चारू मजुमदार के साथ मिलकर नक्सली आंदोलन की शुरूआत करने वाले कानू सान्याल ने ही 70 के दशक में टुंडी, तोपचांची, पीरटांड़ इलाके में नक्सलवाद की नींव डाली थी जो देखते ही देखते पूरे झारखंड में फैल गया। करीब एक दशक से भी अधिक समय तक कानू सान्याल, चारू मजुमदार, कन्हाई चटर्जी एवं अमूल्य सेन ने इस क्षेत्र को अपना कार्य क्षेत्र बनाया था और यहां के लोगों विशेषकर आदिवासियों को नक्सली विचारधारा से जोड़ने का काम किया था।
पश्चिम बंगाल की सिद्धार्थ शंकर राय की सरकार ने वर्ष 72 में नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ा था। सरकार के बढ़ते दबाव को देखते हुए नक्सलियों के उपरोक्त शीर्ष नेता भूमिगत हो गए और बंगाल छोड़ बिहार के छोटानागपुर क्षेत्र जो अब झारखंड है को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। गोला प्रखंड के जिलगा पहाड़ के नीचे रहने वाले जीवलाल जो आसनसोल में कार्यरत थे कानू व मजुमदार के संपर्क में आए थे। नक्सली नेताओं का पहला लक्ष्य सबसे पहले आदिवासी समुदाय को जोड़ना था। उस वक्त आदिवासी समाज के प्रतिनिधि के तौर पर टुंडी के दक्षिणी क्षेत्र के गुवाकोला के रहने वाले विधायक लखीराम सोरेन एवं पश्चिमी टुंडी के नावाटांड के रावण मांझी सरकार की ओर से मनोनीत थे। बताया जाता है कि वर्ष 72 में जीवलाल को लेकर चारो नक्सली नेता गुवाकोला पहुंचे और लखीराम को नक्सली विचारधारा से लैस करने का प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हो सके। इसके बावजूद नक्सली नेताओं ने हिम्मत नहीं हारी। कई साल तक प्रयास करने के बावजूद जब वे सफल नहीं हुए तो रावण मांझी के पास पहुंचे। रावण उनके विचारधारा से काफी प्रभावित हुए। शुरूआत में वे रावण को लेकर उनके रिश्तेदारों के गांव बैगनकोचा, सिलवारीटांड़, मछियारा, कोलाहीर आदि गांव गए और आदिवासियों को गोलबंद कर संगठन खड़ा किया। कार्यकत्र्ताओं को जरूरत पड़ने पर चिकित्सा एवं धन कन्हाई चटर्जी उपलब्ध कराते थे। इसके बाद तो पीरटांड़, तोपचांची, डुमरी का क्षेत्र इनके प्रभाव में आ गया। इस क्षेत्र में संगठन खड़ा करने के लिए नक्सलियों को झामुमो से मुकाबला करना पड़ा था। इस संघर्ष में कई माओवादी एवं झामुमो कार्यकत्र्ताओं की मौत हुई थी। पीरटांड़ के जंगली क्षेत्रों में वर्ष 80 तक कानू सान्याल एवं उनके साथी कार्यकत्र्ताओं को प्रशिक्षण देने आते थे। बंगाल एवं अन्य क्षेत्र के भी लोग यहां प्रशिक्षण लेने आते थे। बताया जाता है कि हर प्रशिक्षण में कानू सान्याल नक्सलबाड़ी की आग को पूरे देश में फैलाने का लक्ष्य कार्यकत्र्ताओं को देते थे। कन्हाई चटर्जी पीरटांड़ क्षेत्र में ही मलेरिया से पीड़ित हुए थे। पश्चिमी टुंडी के पलमा में माओवादी अपने नेताओं कन्हाई चटर्जी, अमूल्य सेन, रावण मांझी आदि का शहादत दिवस 23 मार्च को मनाते थे। हाल के दो वर्षो से अब वहां शहीद दिवस नहीं मनाया जा रहा है। अब माओवादी किसी दूसरे जगह पर शहीद दिवस मनाते हैं।
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