जनसुरक्षा जैसे काक्वनून विशेष परिस्थितियों के लिए बनाए जाते हैं। जब सरकार को यह लगता है कि मौजूदा कानून, आईपीसी, सीआरपीसी आदि के जरिए विघटनकारी या राष्ट्र विरोधियों को नहीं संभाला जा सकता है, कानून की बारीकी के लिए या राष्ट्रविरोधी कार्य करने वालों से कड़ाई से निपटने के लिए सरकारें ऐसा कानून बनाती हैं। जहां तक छग जनसुरक्षा कानून और मीडिया के संबंध का सवाल है, मेरी जानकारी में इसमें मीडिया के लिए अभी अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है। पत्र छापने के संबंध में मेरी जानकारी के अनुसार नक्सलवाद अभी प्रतिबंधित नहीं हुआ है। यह एक विचार धारा के रूप में -जाना जाता है, जो आतंकवादी संगठन होते हैं, उससे इसे अभी कंपेयर नहीं किया जा रहा है। नक्सलियों के फेवर में जो चीज आएंगी या प्रचार में या छवि बनानेमें सहायक होगीं, उनके कार्यों को अच्छा बताने की कोशिश करनी वाली सामाग्री को तो एक नजर में उनके द्वारा भेजा हुआ माना जा सकता है। रही बात इनके स्रोत पता करने की तो अभी तो पुलिस ऐसा उपाय कर रही है, टेलीफोन आदि माध्यमों से वह इनका पतासाजी करती रहती है। मेरे हिसाब से अब देश-प्रदेश में जो हालात बने है उसको देखते हुए सरकार को चाहिए कि बाजार, स्टेशनों, चौराहों आदि सार्वजनिक स्थानों में क्लोज सर्किट टीवी लगनी ही चाहिए, सरकार को जागकर अब यह करना चाहिए, नक्सलवाद पहले विचारधारा व सोच थी, लेकिन अब यह भटक गया है, मगर अब आम इंसानों पर हमले होने के बाद यह बदल गया है, अब इसके प्रति लोगों की सोच बदलनी चाहिए। अब इसे समाज सुधारक के रूप में नहीं देखा जा सकता। जहां तक नक्सलियों के बीच पत्रकारों के जाने का सवाल हो तो पत्रकार को इसमें दूत के रूप में देखा जाना चाहिए, वह यह प्रयास करता है कि नक्सलियों की बात या विचार को सामने लाए, ताकि इसका शांति के लिए उपयोग हो, पत्रकार यह समाज हित में करता है, हालांकि पत्रकार को किसी तरह से नक्सलवाद को बढ़ावा देने से बचना चाहिए। उसे सिर्फ नक्सलियों की बातें सामने लानी चाहिए। उसके पक्ष में उसे खड़ा नहीं होना चाहिए। सूत्रों के नाम बताने के संबंध में जो कानून है, उसमें प्रावधान है कि पुलिस अपने मुखबिर, वकील अपने क्लाइंट, पति-पत्नी के बीच की बातचीत किसी को भी न बताने के लिए व्यवस्था है, उसे यह अधिकार प्रदान किया गया है। लेकिन पत्रकार के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, उसे सूत्र का नाम कानूनी रूप से बताना होगा, अगर सरकार या अदालत चाहे। मीडिया स्वतंत्र हैं, मेरा व्यक्तिगत विचार है कि अगर नक्सल सामाग्री राष्ट्रविरोधी है तो इसे नहीं छापना चाहिए। यह देखना चाहिए कि कहीं उसका जनहित, शांति या समाज के मनोबल पर विपरीत असर न पड़े। रही बात स्वतंत्र पत्रकार की तो कोई भी व्यक्ति अगर गलत काम या राष्ट्रविरोधी काम करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए। फिर वह चाहे पत्रकार, नेता, वकील, अधिकारी कोई भी हो।
फैजल रिजवी
वरिष्ठ अधिवक्ता
रायपुर
वरिष्ठ अधिवक्ता
रायपुर
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