अनिल मिश्रा, नई दुनिया, दंतेवाड़ा।
करीब तीन दशक पहले बस्तर आए नक्सलियों ने यहां अपनी तीसरी पीढ़ी तैयार कर ली है। आपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के बाद नक्सलियों ने डिवीजन स्तर तक की कमान स्थानीय आदिवासियों को सौंप दी है। सूत्रों से मिली जानकारी मुताबिक नक्सलियों ने अपनी प्रदेश समिति की सीमाएं भी पुनर्निर्धारित की है। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी से अब महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, उड़ीसा के मलकानगिरी को अलग कर दिया गया है। जबकि रायपुर, धमतरी व राजनांदगांव के नक्सल प्रभावित इलाकों को इसमें शामिल किया गया है।
दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में भी बदलाव करने की खबर है। जोनल कमेटी का मुख्यालय अबूझमाड़ में अज्ञात जगह पर है। इस इलाके में आजादी के ६२ साल बाद भी सरकार की कोई पकड़ नहीं है। अंदरूनी इलाकों में नक्सली वन भूमि के पट्टे बांटते हैं व आदिवासियों से लगान वसूल करते हैं। अबूझमाड़ में गुडसा उसेंडी, कोसा, राजू, वेलू आदि बड़े नेताओं की हुकूमत चलती है। नक्सली समानांतर व्यवस्था में गांवों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जनमिलिशिया सदस्यों पर होती है। बस्तर के गांवों में नक्सलियों की जनताना सरकार चलती है। यहां भारतीय संविधान का कोई मतलब नहीं है। अपराध पर फैसला नक्सली जन अदालत लगाकर करते हैं। अपने इलाके में बुनियादी सुविधाओं की जिम्मेदारी भी नक्सली उठाते हैं। नक्सलियों की विद्या विभाग कमेटी ने प्राथमिक शिक्षा के लिए स्थानीय गोंडी बोली में पाठ्यक्रम तैयार किया है। दक्षिण बस्तर में ही नक्सलियों के १० बड़े रेसीडेंसियल स्कूल चल रहे हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों व अर्दली को एक समान एक हजार रुपए वेतन दिया जाता है। नक्सली इलाकों में जहां सरकार की पहुंच नहीं है, वहां उनके अपने डाक्टर भी हैं। कृषि तकनीक व सिंचाई सुविधाओं के विस्तार जैसे काम भी जनताना सरकार में किए जाते हैं। अपनी ताकत बढ़ाने नक्सली हर साल बड़े पैमाने पर नई भर्तियां करते हैं। इसके लिए जंगल में पोस्टर व पर्चों के माध्यम से प्रचार अभियान चलाया जाता है। नक्सली संगठन में बच्चे भी शामिल होते हैं, जो सूचना तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। नक्सली स्कूलों में बचपन से ही क्रांति की शिक्षा दी जाती है। लकड़ी के हथियारों से शस्त्र शिक्षा भी दी जाती है। जंगलों में नक्सलियों के हथियार बनाने के कारखाने चल रहे हैं। सिंगनमड़गू में पिछले दिनों पुलिस ने एक हथियार फैक्ट्री ध्वस्त की थी।
बस्तर में नक्सलियों की आय का प्रमुख साधन तेंदूपत्ता व अन्य वनोपज से मिलने वाली लेवी है। विस्फोटकों को लगाने, रेल पटरी उड़ाने व सड़कें खोदने जैसे काम वे ग्रामीणों से ही कराते हैं। जंगल में नक्सलियों को गांवों से भरपूर मदद मिलती है। संगठन में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं। मुठभेड़ों में महिला नक्सली बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। जोनल कमेटी के अधीन सात रीजनल कमेटी हैं। इनके सेके्रटरी जोनल कमेटी में भी सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। दक्षिण बस्तर में दक्षिण रीजनल ब्यूरो की कमान गत दो दशकों से बस्तर के जंगलों में आतंक का पर्याय बन चुके रमन्ना के हाथों में है।
दक्षिण रीजनल कमेटी के अधीन तीन डिवीजन हैं। इसमें दरभा डिवीजन का गठन हाल ही में हुआ है। इसका प्रभाव जगदलपुर तक है। इस डिवीजन का सचिव गणेश उईके है। कोंटा इलाके में दक्षिण बस्तर डिवीजन की कमान व्येंकटेश के हाथों है। बीजापुर जिले में पश्चिम बस्तर डिवीजन की कमान माधवी नाम की एक आदिवासी महिला कमांडर के हाथों में है। दक्षिण बस्तर में क्रांतिकारी मजदूर संघ, क्रांतिकारी आदिवासी महिला संघ, चेतना नाट्य मंच आदि विभिन्न नक्सली संगठनों में हजारों आदिवासी सदस्य हैं।
करीब तीन दशक पहले बस्तर आए नक्सलियों ने यहां अपनी तीसरी पीढ़ी तैयार कर ली है। आपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के बाद नक्सलियों ने डिवीजन स्तर तक की कमान स्थानीय आदिवासियों को सौंप दी है। सूत्रों से मिली जानकारी मुताबिक नक्सलियों ने अपनी प्रदेश समिति की सीमाएं भी पुनर्निर्धारित की है। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी से अब महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, उड़ीसा के मलकानगिरी को अलग कर दिया गया है। जबकि रायपुर, धमतरी व राजनांदगांव के नक्सल प्रभावित इलाकों को इसमें शामिल किया गया है।
दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में भी बदलाव करने की खबर है। जोनल कमेटी का मुख्यालय अबूझमाड़ में अज्ञात जगह पर है। इस इलाके में आजादी के ६२ साल बाद भी सरकार की कोई पकड़ नहीं है। अंदरूनी इलाकों में नक्सली वन भूमि के पट्टे बांटते हैं व आदिवासियों से लगान वसूल करते हैं। अबूझमाड़ में गुडसा उसेंडी, कोसा, राजू, वेलू आदि बड़े नेताओं की हुकूमत चलती है। नक्सली समानांतर व्यवस्था में गांवों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जनमिलिशिया सदस्यों पर होती है। बस्तर के गांवों में नक्सलियों की जनताना सरकार चलती है। यहां भारतीय संविधान का कोई मतलब नहीं है। अपराध पर फैसला नक्सली जन अदालत लगाकर करते हैं। अपने इलाके में बुनियादी सुविधाओं की जिम्मेदारी भी नक्सली उठाते हैं। नक्सलियों की विद्या विभाग कमेटी ने प्राथमिक शिक्षा के लिए स्थानीय गोंडी बोली में पाठ्यक्रम तैयार किया है। दक्षिण बस्तर में ही नक्सलियों के १० बड़े रेसीडेंसियल स्कूल चल रहे हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों व अर्दली को एक समान एक हजार रुपए वेतन दिया जाता है। नक्सली इलाकों में जहां सरकार की पहुंच नहीं है, वहां उनके अपने डाक्टर भी हैं। कृषि तकनीक व सिंचाई सुविधाओं के विस्तार जैसे काम भी जनताना सरकार में किए जाते हैं। अपनी ताकत बढ़ाने नक्सली हर साल बड़े पैमाने पर नई भर्तियां करते हैं। इसके लिए जंगल में पोस्टर व पर्चों के माध्यम से प्रचार अभियान चलाया जाता है। नक्सली संगठन में बच्चे भी शामिल होते हैं, जो सूचना तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। नक्सली स्कूलों में बचपन से ही क्रांति की शिक्षा दी जाती है। लकड़ी के हथियारों से शस्त्र शिक्षा भी दी जाती है। जंगलों में नक्सलियों के हथियार बनाने के कारखाने चल रहे हैं। सिंगनमड़गू में पिछले दिनों पुलिस ने एक हथियार फैक्ट्री ध्वस्त की थी।
बस्तर में नक्सलियों की आय का प्रमुख साधन तेंदूपत्ता व अन्य वनोपज से मिलने वाली लेवी है। विस्फोटकों को लगाने, रेल पटरी उड़ाने व सड़कें खोदने जैसे काम वे ग्रामीणों से ही कराते हैं। जंगल में नक्सलियों को गांवों से भरपूर मदद मिलती है। संगठन में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं। मुठभेड़ों में महिला नक्सली बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। जोनल कमेटी के अधीन सात रीजनल कमेटी हैं। इनके सेके्रटरी जोनल कमेटी में भी सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। दक्षिण बस्तर में दक्षिण रीजनल ब्यूरो की कमान गत दो दशकों से बस्तर के जंगलों में आतंक का पर्याय बन चुके रमन्ना के हाथों में है।
दक्षिण रीजनल कमेटी के अधीन तीन डिवीजन हैं। इसमें दरभा डिवीजन का गठन हाल ही में हुआ है। इसका प्रभाव जगदलपुर तक है। इस डिवीजन का सचिव गणेश उईके है। कोंटा इलाके में दक्षिण बस्तर डिवीजन की कमान व्येंकटेश के हाथों है। बीजापुर जिले में पश्चिम बस्तर डिवीजन की कमान माधवी नाम की एक आदिवासी महिला कमांडर के हाथों में है। दक्षिण बस्तर में क्रांतिकारी मजदूर संघ, क्रांतिकारी आदिवासी महिला संघ, चेतना नाट्य मंच आदि विभिन्न नक्सली संगठनों में हजारों आदिवासी सदस्य हैं।
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