सीआरपीएफ के जवानों ने सुनाई आप-बीती
मलेरिया, जहरीले कीड़ों और सांपों से खुद को बचाने में असहाय
दोरनापाल ! पिछले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक कैंप का दृश्य। यह चेक पोस्ट भी है और जवानों के रहने और सोने की जगह भी। छह साल से सरकार गला फाड़-फाड़ कर यह चिल्ला रही है कि भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा माओवादी हैं। इसके बावजूद भारत सरकार अपने सैनिकों को भूखे-प्यासे और बिना मेडिकल सुविधाओं के उन्हें माओवादियों से लड़ने के लिए भेज रही है। घने जंगलों में माओवादियों के खिलाफ लड़ रहे सीआरपीएफ के जवानों का कहना है कि उनके लिए सबसे बड़ा खतरा ( माओवादियों ) एक ही है। चिंतलनार कैंप में सीआरपीएफ की 62 वें बैटालियन के जवान ठहरे हैं , उनका कहना है कि वह माओवादियों के हमले से खुद को बचा सकते हैं , लेकिन मलेरिया , जहरीले कीड़े-मकोड़ों और सांपों से खुद को बचाने में असहाय हैं। दूसरे कैंपों की हालात भी कुछ अच्छी नहीं है। यह बात एक जवान ने अपनी पहचान छुपाए रखने की शर्त पर बताई।
कैंप में रहने वाले एक जवान ने बताया कि हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या मलेरिया से जूझना है। जवान लगातार बीमार हो रहे हैं। हममें से कुछ लोगों को बीमारी के चलते छुट्टी लेनी पड़ी। इससे भी बदत्तर हालात है कि हमारे पास किसी तरह की मेडिकल सुविधा नहीं है। उन्होंने बताया- आप क्वॉलिफाइड डॉक्टरों की बात तो भूल ही जाइए यहां ढंग की दवाई की दुकानें तक नहीं हैं। स्थानीय डॉक्टर आपको मलेरिया जैसी बीमारियों के लिए भी रेग्युलर दवाइयां दे देंगे। सबसे नजदीकी हॉस्पिटल भी मीलों दूर है। यह दुर्दशा सिर्फ हमारी नहीं है, बल्कि घने जंगलों में बनाए गए हर कैंप का यही हाल है। जवान इन्हीं हालात से गुजर रहे हैं।
सीआरपीएफ के एक कॉन्स्टेबल ने कहा- मेडिकल सुविधाओं का अभाव तो है ही, जवानों को जहरीले कीड़े- मकोड़े और सांप भी काट रहे हैं। रात में कब क्या आपको काट जाए आप कह ही नहीं सकते। गश्ती दल की बात तो छोड़िए कैंप में भी जवान सुरक्षित नहीं है। अगर किसी जवान को कोई जहरीला कीड़ा या सांप वगैरह काट ले तो उसे बचाने का कोई उपाय नहीं है।
कई जवानों ने यह भी बताया कि कई बार गश्त पर जाने वाली टुकड़ियों के पास पर्याप्त भोजन भी नहीं होता। सेना के जवानों को ऑपरेशन के समय पर्याप्त मात्रा में ड्राइ फ्रुट्स और खाने-पीने की दूसरी चीजें मिलती हैं, लेकिन हमें भूखे-प्यासे लड़ना पड़ता है। सीआरपीएफ के एक जवान ने कहा कि जिन परिस्थितियों में हमारे जवानों को लड़ना पड़ता है उन्हें उसी के मुताबिक भोजन चाहिए।
एक जवान ने कहा- कैंपों में पानी की कमी भी एक बड़ी समस्या है। कैंपों में कुछ पंपों की व्यवस्था हो सकती है, लेकिन बिजली के अभाव में वह भी बेकार है। यहां पानी एक बहुत बड़ी परेशानी है। उन्होंने कहा कि हमें समझ नहीं आता कि इस तरह के माहौल में जहां हमें काम करना है, जहां दिन में भीषण गर्मी पड़ती है, वहां बिना पानी के हम कैसे काम करें। उन्होंने कहा- पर्याप्त पानी ले जाने की कोई व्यवस्था न होने के कारण जवानों को कई बिना पानी के गश्त पर जाना पड़ता है। आगे उन्हें पानी मिल जाएगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती। कई बार हम उन्हीं तालाबों का पानी पीते हैं जहां जानवर पानी पीते हैं। ऐसे अनहाइजिनिक माहौल में रहते हुए जवान बीमार पड़ रहे हैं। इसके अलावा कई बार अनुशासन के नाम पर हम लोगों को उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ता है।
एक जवान ने कहा- दिल्ली में बैठे नेताओं के लिए बड़े- बड़े दावे करना और छाती ठोकना आसान है, लेकिन जमीन पर असली लड़ाई में जूझने वाले कहते हैं कि वे इस स्तर की लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि, हम ऐसी लड़ाई में जान गंवा रहे हैं, जिसका कभी हल नहीं निकल सकता। और भी कई तरीके हैं, जिनके जरिए हमारी ताकत का बेहतर तरीके से उपयोग किया जा सकता है।
मलेरिया, जहरीले कीड़ों और सांपों से खुद को बचाने में असहाय
दोरनापाल ! पिछले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक कैंप का दृश्य। यह चेक पोस्ट भी है और जवानों के रहने और सोने की जगह भी। छह साल से सरकार गला फाड़-फाड़ कर यह चिल्ला रही है कि भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा माओवादी हैं। इसके बावजूद भारत सरकार अपने सैनिकों को भूखे-प्यासे और बिना मेडिकल सुविधाओं के उन्हें माओवादियों से लड़ने के लिए भेज रही है। घने जंगलों में माओवादियों के खिलाफ लड़ रहे सीआरपीएफ के जवानों का कहना है कि उनके लिए सबसे बड़ा खतरा ( माओवादियों ) एक ही है। चिंतलनार कैंप में सीआरपीएफ की 62 वें बैटालियन के जवान ठहरे हैं , उनका कहना है कि वह माओवादियों के हमले से खुद को बचा सकते हैं , लेकिन मलेरिया , जहरीले कीड़े-मकोड़ों और सांपों से खुद को बचाने में असहाय हैं। दूसरे कैंपों की हालात भी कुछ अच्छी नहीं है। यह बात एक जवान ने अपनी पहचान छुपाए रखने की शर्त पर बताई।
कैंप में रहने वाले एक जवान ने बताया कि हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या मलेरिया से जूझना है। जवान लगातार बीमार हो रहे हैं। हममें से कुछ लोगों को बीमारी के चलते छुट्टी लेनी पड़ी। इससे भी बदत्तर हालात है कि हमारे पास किसी तरह की मेडिकल सुविधा नहीं है। उन्होंने बताया- आप क्वॉलिफाइड डॉक्टरों की बात तो भूल ही जाइए यहां ढंग की दवाई की दुकानें तक नहीं हैं। स्थानीय डॉक्टर आपको मलेरिया जैसी बीमारियों के लिए भी रेग्युलर दवाइयां दे देंगे। सबसे नजदीकी हॉस्पिटल भी मीलों दूर है। यह दुर्दशा सिर्फ हमारी नहीं है, बल्कि घने जंगलों में बनाए गए हर कैंप का यही हाल है। जवान इन्हीं हालात से गुजर रहे हैं।
सीआरपीएफ के एक कॉन्स्टेबल ने कहा- मेडिकल सुविधाओं का अभाव तो है ही, जवानों को जहरीले कीड़े- मकोड़े और सांप भी काट रहे हैं। रात में कब क्या आपको काट जाए आप कह ही नहीं सकते। गश्ती दल की बात तो छोड़िए कैंप में भी जवान सुरक्षित नहीं है। अगर किसी जवान को कोई जहरीला कीड़ा या सांप वगैरह काट ले तो उसे बचाने का कोई उपाय नहीं है।
कई जवानों ने यह भी बताया कि कई बार गश्त पर जाने वाली टुकड़ियों के पास पर्याप्त भोजन भी नहीं होता। सेना के जवानों को ऑपरेशन के समय पर्याप्त मात्रा में ड्राइ फ्रुट्स और खाने-पीने की दूसरी चीजें मिलती हैं, लेकिन हमें भूखे-प्यासे लड़ना पड़ता है। सीआरपीएफ के एक जवान ने कहा कि जिन परिस्थितियों में हमारे जवानों को लड़ना पड़ता है उन्हें उसी के मुताबिक भोजन चाहिए।
एक जवान ने कहा- कैंपों में पानी की कमी भी एक बड़ी समस्या है। कैंपों में कुछ पंपों की व्यवस्था हो सकती है, लेकिन बिजली के अभाव में वह भी बेकार है। यहां पानी एक बहुत बड़ी परेशानी है। उन्होंने कहा कि हमें समझ नहीं आता कि इस तरह के माहौल में जहां हमें काम करना है, जहां दिन में भीषण गर्मी पड़ती है, वहां बिना पानी के हम कैसे काम करें। उन्होंने कहा- पर्याप्त पानी ले जाने की कोई व्यवस्था न होने के कारण जवानों को कई बिना पानी के गश्त पर जाना पड़ता है। आगे उन्हें पानी मिल जाएगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती। कई बार हम उन्हीं तालाबों का पानी पीते हैं जहां जानवर पानी पीते हैं। ऐसे अनहाइजिनिक माहौल में रहते हुए जवान बीमार पड़ रहे हैं। इसके अलावा कई बार अनुशासन के नाम पर हम लोगों को उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ता है।
एक जवान ने कहा- दिल्ली में बैठे नेताओं के लिए बड़े- बड़े दावे करना और छाती ठोकना आसान है, लेकिन जमीन पर असली लड़ाई में जूझने वाले कहते हैं कि वे इस स्तर की लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि, हम ऐसी लड़ाई में जान गंवा रहे हैं, जिसका कभी हल नहीं निकल सकता। और भी कई तरीके हैं, जिनके जरिए हमारी ताकत का बेहतर तरीके से उपयोग किया जा सकता है।
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