रायपुर। माओवादियों से लोहा लेने का सिरदर्द पुलिसकर्मियों के लिए काफी नहीं है क्योंकि छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान में जुटी पुलिस को एक और मोर्चे पर जूझना पड़ता है तथा काफी समय अदालतों के चक्कर काटते गुजरता है।
शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने आज कहा कि पुलिस को अक्सर विभिन्न अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं। उनके खिलाफ दायर मानवाधिकार हनन के कथित मामलों से जूझना पड़ता है जिससे नक्सल प्रभावित राज्य में अभियान में लगी पुलिस को मानव संसाधनों को किसी दूसरी जगह लगाना पड़ता है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के माध्यम से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार के कारण राज्य के पुलिसकर्मियों को वकीलों के साथ अधिक समय बिताना पड़ता है।पुलिस के पक्ष पर जोर देने के लिए माओवादियों के गढ़ दंतेवाड़ा कांड का उदाहरण दिया गया। जिले के पुलिस अधीक्षक अमरेश मिश्रा को दायर की गई एक जनहित याचिका के कारण अपना आधा समय वकीलों के साथ दिल्ली के चक्कर लगाने में बिताना पड़ता है। मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने यह याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की। उनका आरोप है कि फर्जी मुठभेड़ों में 13 लोगों की हत्या कर दी गई।
डीजीपी विश्वरंजन ने कहा कि सचाई यह है कि 13 लोग जीवित हैं और उनके बयान दिल्ली की एक अदालत में दर्ज कराए गए हैं।उन्होंने प्रेस ट्रस्ट से कहा, ''इन आरोपों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मेरे पुलिस अधीक्षक को वकीलों को सूचना देने के लिए दिल्ली के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
No comments:
Post a Comment