Monday, April 12, 2010

माओवादियों से भिड़ सकती है माले

पटना पूर्वी बिहार के माओवादी घुसपैठ वाले इलाकों में भाकपा(माले) ने अपने जनाधार विस्तार की योजना बनायी है। इस क्रम में माओवादियों से उनके सीधे टकराव की संभावना है। मध्य बिहार में विभिन्न माओवादी संगठनों की घुसपैठ नाकाम बनाने के बाद माले ने यह रणनीति बनायी है। हालांकि इस क्रम में पिछले तीन दशकों में इसके 250 से अधिक कार्यकर्ताओं को इन संगठनों ने मौत के घाट उतारा है। पूर्वी बिहार के जिन इलाकों में माले ने अपने विस्तार की योजना बनायी है उनमें माओवादियों की उपस्थिति वाले जमुई, खगड़िया, अररिया और सुपौल शामिल हैं। जमुई में पिछले दिनों आठ लोगों की हत्या के बाद माओवादियों द्वारा बदले की कार्रवाई में पांच ग्रामीणों की हत्या किये जाने की घटना के बाद से भाकपा वहां की गतिविधियों पर नजर रखे है। पार्टी सूत्रों ने बताया कि वंचित तबके ने अपने हितों की रक्षा के लिए वहां माओवादियों से आस लगाना शुरू कर दिया था। परन्तु हाल की घटना के बाद उनका मोह भंग हुआ है। वे अब माले से संपर्क कर रहे हैं। पार्टी जमुई में इनकी मदद को जाएगी और इस क्रम में माओवादियों से टकराव हो तो भी इसकी परवाह नहीं की जाएगी। सूत्रों ने कहा कि हमारे लिए ये कोई नयी बात नहीं होगी। जिन माओवादी संगठनों-एमसीसी, पार्टी यूनिटी और पीपुल्स वार को मिलाकर माओवादी संगठन भाकपा(माओवादी) बना है, उसके घटक दलों से पिछले तीन दशकों से हमारा टकराव होता रहा है। तीस साल पहले जब भोजपुर से माले ने अपनी शुरूआत की तब प्रचार के क्रम में हमें एमसीसी और पार्टी यूनिटी दोनों से धमकी मिलती थी। ये संगठन राजनीतिक लड़ाई के बदले सीधे टकराव को अधिक पसंद करते थे। इसके चलते जनता के बीच से हमें उन्हें राजनीतिक तौर पर दरकिनार करने में सफलता मिली। माले ने फिर जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद और गया में अपनी सक्रियता बढ़ाई। नतीजतन इन इलाकों से पार्टी यूनिटी और एमसीसी को हटना पड़ा। यह भी हुआ कि जातीय आधार पर बनी निजी सेनाओं से नहीं लड़ पाने और कई प्रमुख जनसंहार में गवाहों की अदालत में उपस्थिति सुनिश्चित नहीं कर पाने के कारण भी जनता से ये दूर होते गये। वैसे, मध्य बिहार में इन माओवादी संगठनों के निशाने पर सबसे अधिक माले कार्यकर्ता ही रहे। अब तक करीब 250 से अधिक माले कार्यकर्ताओं की हत्या इनके द्वारा की जा चुकी है। वीरेंद्र विद्रोही, रामेश्वर मुनी जैसे माले नेता इनके हमलों में मारे गए। 90 के दशक में तो सत्ताधारी दल ने इन नक्सली संगठनों की मदद की। 2005 में पाली स्थित माले कार्यालय में पांच माले कार्यकर्ताओं को माओवादियों ने मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना में उस वक्त के विधायक दीना यादव भी नामजद अभियुक्त बनाये गये। उनकी पार्टी ने इस हत्याकांड में शामिल होने के कारण उन्हें छह माह के लिए पार्टी से निलंबित भी कर दिया। यह मुकदमा अभी भी न्यायालय में लंबित है।

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