Friday, April 16, 2010

सेना का चुनिंदा उपयोग हो नक्सलियों के खिलाफ

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में घातक नक्सली हमले में बड़ी संख्या में जवानों के मारे जाने के संदर्भ में कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों ने नक्सलियों के खिलाफ शुरू किए गए अभियान 'ग्रीन हंट' का नए सिरे से पुनर्गठन करने और थल एवं वायु सेना के चुनिंदा उपयोग की सलाह दी है।

इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस [आईडीएसए] की ताजा रपट में नक्सलियों के खिलाफ थल एवं वायु सेना के चुनिंदा उपयोग करने पर जोर दिया गया है। आईडीएसए के विशेषज्ञ केसी. दीक्षित के अनुसार अगर देश में नक्सल गतिविधियों पर लगाम कसनी है तो सरकार को इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी चाहे इसके लिए थल एवं वायु सेना का चुनिंदा उपयोग करना पड़े।

उन्होंने कहा कि नक्सल विरोधी अभियान में शामिल सुरक्षाकर्मियों को बेहतर प्रशिक्षण और अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराने के साथ पुलिस नेतृत्व पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके साथ नक्सलियों की आपूर्ति व्यवस्था को भी ठप्प करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और विकास गतिविधियों को तेजी आगे बढ़ाने के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। लोगों की सुरक्षा और हिफाजत के तंत्र को भी मजबूत बनाने की सख्त जरूरत हैं तभी व्यवस्था में लोगों का विश्वास जमेगा। हालांकि वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल पीवी नाइक ने कहा कि नक्सलियों से लड़ने के लिए वायुसेना के इस्तेमाल का कोई भी निर्णय कम से कम जनहानि की स्पष्ट नीति के आधार पर होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरी व्यक्तिगत राय है कि माओवादियों से लड़ने के लिए सेना के इस्तेमाल की जरूरत नहीं है।

कुछ दिन पहले थलसेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने नक्सल विरोधी अभियान में सेना के उपयोग के खिलाफ मत प्रकट करते हुए कहा था कि सेना पहले से ही अ‌र्द्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस को प्रशिक्षण एवं अन्य कार्यो में मदद कर रही है।

खुफिया ब्यूरो के पूर्व निदेशक अजीत डोवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के नारायणपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा और कांकेर के घने जंगली क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति समझने के लिए आधुनिक उपकरणों की सख्त आवश्यक्ता है क्योंकि उपग्रह से प्राप्त चित्रों से इन इलाकों की सही स्थिति एवं रास्तों के बारे में सही जानकारी नहीं मिली है।

डोवाल ने कहा कि झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, बिहार जैसे प्रदेश में नक्सल विरोधी अभियान शुरू करने से पहले माओवादियों की हथियार क्षमता, दक्षता, वित्तीय स्थिति, अन्य अलगाववादी संगठनों से गठजोड़, नक्सल नेतृत्व आदि के बारे में व्यापक अध्ययन की जरूरत है क्योंकि इन पहाड़ी व पठारी जंगलों में माओवादी लाभ की स्थिति में हैं। ऐसी स्थिति में सेना का उपयोग एक महत्वपूर्ण विकल्प है।

उन्होंने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की तैनाती के साथ लोगों में विश्वास बहाल करने की जरूरत है जैसे अफगानिस्तान में विकास कार्यो के दौरान भारत तिब्बत सीमा पुलिस को तैनात करने के दौरान किया गया।

सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने कहा कि माओवादी अभियान में पुलिस कर्मियों को बेहतर प्रशिक्षण आवश्यक होने के साथ यह भी जरूरी है कि इनके साथ थल सेना का तालमेल हो ताकि बेहतर रणनीति और क्षमता के साथ इन पर काबू किया जा सके। सिंह ने कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ सरकार के नरम रूख के कारण ही आज यह एक विकट समस्या का रूप ले चुकी है और ये चरमपंथी देश में छोटे राज्यों के गठन के अभियान में भी घुसपैठ कर चुके है।

उन्होंने कहा कि नक्सलवाद कई स्तरों पर देश और लोकतांत्रिक सरकारों को चुनौती दे रही है। आईडीएसए की रिपोर्ट के अनुसार माओवादी शुरू से ही देश में छोटे राज्यों के गठन को जोर शोर से उठाते रहे हैं। माओवादियों ने एक दशक से भी अधिक समय पहले 1997 में अलग तेलंगाना राज्य के गठन के मुद्दे को जोर शोर से उठाया था हालांकि उस समय लोगों ने इसका समर्थन नहीं किया था।

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