Thursday, April 15, 2010

पुलिस व अर्धसैनिक बल के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को लिखा डीजीपी ने


पुलिस व अर्धसैनिक बल के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों के नाम


मित्रो !

यह सारेदेशवासी के लिए दुखद है कि 6 अप्रैल, 2010 को दंतेवाड़ा के चिंतलनार में हमारे 76 जवान एक साथ शहीद हो गये । यह उनके कर्तव्यपरायणता का सर्वोच्च उदाहरण है । यह कुर्बानी और देशभक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण है । यह अपने देश, समाज, संविधान, प्रजातंत्र की रक्षा के लिए अब तक का सबसे महत्वपूर्ण त्याग है, जिसे देश का हर सिपाही, सैनिक और नागरिक सदियों तक याद रखेगा । शहीदों को नमन करेगा।


चिंतलनार की जघन्य हत्या से साबित हो गया है कि वे पुलिस, अर्धसैनिक बल के दुश्मन हो चुके हैं । दरअसल नक्सली उस हर व्यक्ति के विरोधी हैं जो शांति के पक्ष में है, जो कानून के पक्ष में है, जो देश के संविधान के पक्ष में है, जो भारतीय प्रजातंत्र के पक्ष में है । दरअसल वे भारतीय प्रजातंत्र को ध्वस्त करके उसके स्थान पर ऐसी ही हिंसक, आतंककारी और अराजक व्यवस्था लाने के लिए लड़ रहे हैं। यही उनका मुख्य उद्देश्य है । वास्तविकता यही है कि वे ग़रीब, मजदूर, कमजोर, आदिवासी के हितैषी हैं ही नहीं ।


सच तो यही है कि उन्होंने अब देश को युद्ध में झोंक दिया है । और हम इस युद्ध से मुँह नहीं मोड़ सकते। इसके लिए किन्तु, परन्तु का सवाल खड़ा नहीं कर सकते, क्योंकि हमने आंतरिक सुरक्षा और शांति बहाली और अपने संविधान को बचाने की शपथ ली है । यदि हम भावावेश में आकर इसी तरह की बातें करने लगें जो हमारे ही मनोबल को तोड़ने लगे तो हम नक्सली हिंसा का मुँहतोड़ जवाब कैसे दे सकते हैं और तब उन गरीबों का क्या होगा जो आप पर विश्वास कर रहे हैं कि राज्य और देश को एकदिन ज़रूर नक्सलियों की हिंसा और आंतक से मुक्ति मिलेगी ?


10 हज़ार हिंसक नक्सली चाहते हैं कि देश की पुलिस, अर्धसैनिक बल, एसपीओ सहित प्रजातंत्र को बचाने में लगे हुए लोगों का मनोबल गिर जाये, वे उनकी अवैध, असंवैधानिक शर्तों के आगे घुटना टेक दें । उनकी मंशा को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि हम नये सिरे से कर्तव्यों को याद करें, अपने शपथ को याद करें । यदि हम विचलित होंगे तो देश सुरक्षित नहीं रहेगा । तब हम भी ऐसे हिंसक व्यवस्था के गुलाम बनने को बाध्य हो जायेंगे।


नक्सलियों द्वारा चिंतलनार की घटना सिर्फ़ छत्तीसगढ़ राज्य के विरोध में नहीं है । यह सिर्फ़ हमारी पुलिस तंत्र के विरोध में नहीं है । यह समूचे भारतीय राज्यों, शांतिप्रिय नागरिकों के विरोध में है। यह नक्सलवाद का भारतीयता पर आक्रमण है । इसे सहज ढंग से नहीं लिया जाना चाहिए । इस कार्रवाई को उथले ढ़ंग से भी नहीं सोचा जाना चाहिए ।


यह समय धैर्य बाँधने का है । यह समय अधिक सतर्कता और चालाकीपूर्ण कौशल दिखाने का है । यह समय देश के दुश्मनों को सबक सिखाने का है । यह समय निजी विचारों, मान्यताओं में उलझ जाने नहीं है । यह समय देश को बचाने का है । यह समय हमारे 76 सैनिकों के बलिदान को याद में ताउम्र बनाये रखने के लिए संकल्प लेने का है । यह समय और अधिक सतर्कता से नक्सलियों को सबक सिखाने का है । यह समय ज़रूर हृदयविदारक है, किन्तु यही वह समय है, जब हम ऐसे हिंसक तत्वों को देश से सदा के लिए मिटाने के लिए नये विश्वासों के साथ खड़े हो सकते हैं । जो सिपाही ऐसी घटनाओं से टूट जाता है, वह अपने पीछे सारे लोग, समाज, देश को गुलाम बनने के लिए छोड़ जाता है । क्या हम ऐसी घटनाओं से घबरानेवाले सिपाही हैं ? कतई नहीं । 76 शहीदों के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम और अधिक लगन से इस अभियान को सार्थक बनाये ।


आप सभी जानते हैं - नक्सली अब मारक गुरिल्लावार और मोबाइल वारफेयर का उपयोग कर रहे हैं । ख़तरनाक एबूंस का प्रयोग कर रहे हैं । अतः यह ज़रूरी है कि हम एरिया डोमिनेशन करते समय सही स्ट्रेटेजी एवं टैक्टिस का कड़ाई से पालन करें और हर समय सतर्क रहें । गश्त में जाते समय अधिकतम सतर्कता बरतें । जिस रास्ते से जायें उस रास्ते से दोबारा वापस ना आयें । जब भी चलें, मुख्य मार्ग से हटकर चलें । जब भी चलें, जंगल को समझते चलें । जब पैदल गश्त के लिए निकलते हों, जिस किसी स्थान पर विश्राम करने के लिए रूकते हैं, एक पूर्व निर्धारित स्थान पर ना रूकें । जिस स्थान पर रूकते हैं वहाँ कोई ऐसी अजनबी या अनहोनी चीज़ दिखे तो तत्काल सतर्कता बरतनी चाहिए ।


चिंतलनार घटना से हमें यह भी सीख लेनी होगी कि हम स्थानीय गाँववासियों का दिल जीते बिना नक्सलियों से स्थानीय क्षेत्र, गाँव को मुक्त नहीं करा सकते । गाँववाले जब तक हमारे साथ नहीं होंगे, तब तक हम नक्सलियों से जुड़ी सूचनाएँ एकत्र नहीं कर सकते । नक्सलियों की मंशा और कार्ययोजना की जानकारी समयपूर्व जानने के लिए ग्रामवासियों को अपनी ओर मिलाना अनिवार्य है । परन्तु हर सूचना जो ग्रामवासी देता है उसे परखना भी जरूरी है कि वह सच है या नहीं ।


भविष्य में नक्सली और अधिक धूर्तता से आप पर हमला बोल सकते हैं । इससे बचने और उनके कैंपों को ध्वस्त करने के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि अधिकतम सतर्कता बरती जावे । यह समय डरने का नहीं है, नक्सलियों पर कारगर कार्यवाही करने का है । भारत के सभी 76 वीर पुत्रों को श्रद्धांजलि के साथ


विश्वरंजन

डीजीपी

छत्तीसगढ

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