Wednesday, April 21, 2010

ओडिशा-बस्तर के नक्सली हुए एक


जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के उग्रवाद प्रभावित बस्तर संभाग में माओवादियों से निबटने के लिए तैनात किए गए अद्र्धसैनिक बलों की हालात चिंताजनक स्थिति में जा पहुंची है। एक तरफ सरकार जहां ऑपरेशन ग्रीनहंट अभियान पर करोड़ों रुपए फूंक रही है, वहीं दूसरी तरफ इस अभियान से जुड़े जवानों को बुनियादी मौलिक सुविधाओं से भी महरूम होना पड़ रहा है। बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में छह अप्रैल को माओवादी हमले में मारे गए 76 जवानों के बाद भी स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। ठीक इसके विपरीत माओवादियों के छापामार दस्ते आक्रामक रुख बनाए हुए हैं। पुलिस विभाग की खुफिया शाखा के अनुसार, ओडिशा और बस्तर के छापामार दस्तों को माओवादी नेताओं द्वारा एक किया जा चुका है। इस एकता के बाद से सुरक्षा बल के जवानों पर हमले का खतरा ज्यादा बढ़ गया है। दक्षिण-पश्चिम बस्तर के दूरस्थ अंचलों में जबरदस्त अविश्वास का महौल देख जा रहा है। चिंतलनार से जगरगुंडा तक जाने वाली 12 किमी लंबी सड़क को माओवादियों द्वारा जगह-जगह विस्फोट कर ध्वस्त किया जा चुका है। माओवादियों द्वारा सड़क मार्ग को पूरी तरह नष्ट कर दिए जाने के कारण अब जगरगुंडा कैंप में हवाई मार्ग से जवानों को रसद पहुंचाया जा रहा है। सुरक्षा बल के जवानों का कहना है कि छह माह के लिए जगरगुंडा कैंप में राशन एकत्रित कर दिया जाता है। इसी बीच यदि कहीं माओवादियों ने धावा बोल दिए तो स्थिति बिगड़ सकती है। दोरनापाल से चिंतलनार तक फैले 58 किमी लंबे सड़क मार्ग पर वीरानी सी छाई हुई है। इस मार्ग पर सुरक्षा बल के जवान तभी निकलते हैं जब कोई विशेष अभियान चलाना हो। पोलमपल्ली से चिंतागुफा तक तो स्थिति और भी जटिल हो गई है। इस मार्ग पर सर्चिंग ऑपरेशन चला रहे एक अभियान दल में शामिल सुरक्षा बल के जवानों ने स्वीकार किया कि उन्हें बुनियादी सुविधाओं से महरूम किया जा रहा है। यहां तक कि उन्हें अपने परिवार से मोबाइल फोन पर बात किए हुए भी महीनों गुजर जाते हैं। एक जवान ने तो यहां तक कह दिया कि यदि वे बीमार हो जाते हैं तो उन्हें समय पर दवा तक नहीं मिल पाती।

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