रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने बस्तर के पिछड़ेपन के लिए नक्सलियों को जिम्मेदार ठहराया है तथा कहा है कि आदिवासियों के विकास में रुकावट डालने वालों को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कल यहां ''भारत की अनुसूचित जनजातियां: कल, आज और कल'' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि 21वीं सदी के इस आधुनिक दौर में भी यदि के बस्तर संभाग के आदिवासी 18वीं सदी का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं तो इसके लिए नक्सली और नक्सल हिंसा पूरी तरह जिम्मेदार है जिन्होंने वहां अपनी विध्वंसक गतिविधियों के जरिए जनता के विकास के तमाम रास्ते बंद कर दिए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सलियों ने 'लोकतंत्र की बुनियाद' पंचायतों पर हमले किए, स्कूल भवन, सड़कें और पुल नहीं बनने दिए, बिजली के टावरों को उड़ाकर अंधेरा फैलाया, निहत्थे और निरीह ग्रामीणों की हत्या की, वनवासियों को साल बीज और तेन्दूपत्ता इकट्ठा करने से रोका और उनकी रोजी-रोटी पर हमला किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए वचनबद्ध है और उनके जीवन में खुशहाली लाने के लिए वहां कई योजनाएं लागू कर रही है।
रमन सिंह ने कहा कि बस्तर का आदिवासी समाज नक्सल हिंसा से तंग आ चुका है। वह अपनी आत्मा की आवाज पर अहिंसक और गांधीवादी तरीके से सलवा जुडूम जैसे स्वस्फूर्त आंदोलन के जरिए नक्सल हिंसा का प्रतिकार कर रहा है। हमारी महान आदिवासी संस्कृति और देश के जनजातीय समाज में बारूदी हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है।
सिंह ने दावे के साथ कहा कि एक दिन नक्सल हिंसा का खात्मा होगा और नक्सल समस्याग्रस्त बस्तर जैसे इलाकों में एक बार फिर शांतिपूर्ण विकास और खुशहाली का वातावरण बनेगा।
आदिवासी क्षेत्रों के विकास में नक्सल हिंसा को सबसे बड़ी बाधा और सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए रमन सिंह ने कहा कि ठेकेदारों और सीधे-सादे छोटे कर्मचारियों को डरा-धमका कर बस्तर से हर साल 300-400 करोड़ रुपए तक तथाकथित लेवी वसूल करने वाले ये नक्सली किसी भी हालत में आदिवासियों के हितैषी नहीं हो सकते।
उन्होंने कहा ''नक्सली वास्तव में वहां का विकास नहीं चाहते हैं। वे अगर वास्तव में भूमि सुधार और आमजनता के जीवन में बेहतरी के इच्छुक हैं तो उन्हें हिंसा छोड़कर सामने आकर मुझ से चर्चा करनी चाहिए। मुख्यमंत्री स्तर से ज्यादा खुला मंच और क्या हो सकता है। वे आएं, चर्चा करें तो मैं उन्हें बताऊंगा कि राज्य सरकार आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए क्या कुछ कर रही है।''मुख्य अतिथि की हैसियत से संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों का बेहतर और संतुलित विकास आज के समय की मांग है। उन्होंने बस्तर की वर्षो से लम्बित बोधघाट जल विद्युत परियोजना का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके लिए 20 साल पहले ही वैकल्पिक वृक्षारोपण किया जा चुका है, फिर भी 200 करोड़ से भी ज्यादा राशि खर्च होने के बावजूद इस परियोजना का काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देश और प्रदेश के वन बहुल आदिवासी क्षेत्रों में सिंचाई तथा अन्य विकास परियोजनाओं के लिए छोटी-छोटी कानूनी रूकावटों को दूर करने के लिए वन और पर्यावरण संबंधी नियमों के सरलीकरण और उन्हें तर्कसंगत ढंग से व्यावहारिक बनाए जाने की जरूरत है ताकि ऐसे इलाकों में सामाजिक-आर्थिक विकास की गति तेज हो सके।
सिंह ने कहा ''विकास के मामले में दोहरी नीति और दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए। कुछ लोग यह चाहते हैं कि टायगर जिंदा रहे, भले ट्रायबल पिछड़ेपन का शिकार होकर पिसता रहे। आज टायगर लॉबी भी देश के लिए खतरनाक साबित हो रही है, जो ऐसे इलाकों में टायगर के नाम पर ट्रायबल का विकास नहीं चाहते।''
संगोष्ठी का आयोजन कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा राज्य शासन के आदिम जाति और अनुसूचित जाति विकास विभाग तथा एक निजी समाजसेवी संस्था के सहयोग से किया गया था।
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