Thursday, April 15, 2010

नक्सली धमकी से कई योजनाओं पर ग्रहण

लातेहार। लातेहार जिले में सड़क की जर्जर अवस्था के लिए नक्सल समस्या सबसे बड़ा कारक बना हुआ है। नक्सली धमकी के कारण कई सड़कें अधर में लटकी हुई हैं। पुल-पुलिया का निर्माण भी बाधित है। ऐसे में यह तय हो गया है कि जिले में नक्सलियों की समानांतर सरकार चल रही है। भले ही जिला प्रशासन इस बात को झुठला दे, लेकिन अगर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास योजनाओं पर नजर डाली जाए तो यह अपने-आप प्रमाणित हो जाता है। छह वर्ष पूर्व लातेहार-गारू मार्ग पर चौपत व कोयल नदी पर पुल निर्माण की स्वीकृति विशेष प्रमंडल द्वारा मिली थी। टेंडर भी डाले गए थे, लेकिन नक्सली धमकी के कारण ठेकेदार ने काम नहीं किया। इस पथ के बन जाने से गारू समेत महुआडांड़ व नेतरहाट की दूरी जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर कम हो जाएगी। पुल निर्माण के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई पहल भी नहीं किया गया। एनएच 75 व 99 के लिए आवंटन का अभाव मुख्य कारक बना हुआ है। इन सड़कों पर गड्ढों का अंबार है। लातेहार की प्रमुख बाईपास सड़क भी जर्जर अवस्था में है। मनिका का रांकीकला पुल भी नक्सलियों की धमकी के कारण अधूरा पड़ा हुआ है। वैसे इस कार्य के लिए पुन: टेंडर डाले गए हैं। अगर जिले के मनिका प्रखंड को ही देखा जाए तो यहां की दर्जन भर योजनाएं नक्सलियों के फरमान के कारण बंद पड़ी हैं। उदाहरणस्वरूप 3 करोड़ 87 लाख रुपए की लागत से बनने वाली मनिका-कुमंडीह पथ का निर्माण छह माह से रुका है। यह योजना प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से ली गई है। आलम यह है कि धमकी के कारण संवेदक इस ओर देखना भी मुनासिब नहीं समझ रहे हैं। मनिका में ही मनिका से आंटीखेता तक बननेवाली 14 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कार्य रुका है। यह योजना तीन करोड़ 87 लाख रुपए की है, जहां सिर्फ मेटल ही गिरा है। इसी प्रकार, सधवाडीह से जान्हो तक आठ किलोमीटर, कोरिद बयांग से खीराटांड़, मनिका-बरवैया पथ में तीनमुहान से बरवैया तक आठ किलोमीटर, रांची-डालटनगंज पथ से हेरहंज तक 28 किलोमीटर, कुई मोड़ से कोपे तक सड़क निर्माण का कार्य ठप पड़ा है। मनिका से कुमंडीह जाने वाले रास्ते में औरंगा नदी पर पुल निर्माण की निविदा निकाली गई, लेकिन मारे भय के कोई भी ठेकेदार विपत्र नहीं खरीद सका। रांकीकला में औरंगा नदी पर पुल निर्माण का कार्य अधर में लटका हुआ है। इसी प्रकार जिले के सभी प्रखंडों में कमोबेश यही हालत है। चूंकि माओवादियों द्वारा लेवी की राशि वसूल करने के लिए ठेकेदारों को धमकी देने व काम बंद कराने की घटनाएं लगातार होती है। होता यह है कि लेवी वसूलने के बाद नक्सली काम करने की अनुमति भी दे देते हैं, लेकिन कई रास्ते ऐसे हैं, जिनके बन जाने से उनकी आवाजाही प्रभावित हो व पुलिस पहुंच जाए। इस कारण इन कार्यो पर रोक लगा दी जाती है। आलम यह है कि नक्सलियों के आदेश के बिना विकास का एक भी काम होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है। इस सवाल का जवाब जिला प्रशासन के पास नहीं है या वे कुछ बोलना नहीं चाहते। ठेकेदार भी नक्सलियों के खिलाफ थाना पुलिस तक नहीं पहुंचाते। नतीजतन, पुलिस अधिकारी भी यह बात कहकर अपना पल्ला झाड़ ले रहे हैं कि हमें नक्सलियों की धमकी के कारण विकास कार्य बंद होने की सूचना नहीं है।

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