समस्या से निजात दिलाने के लिए शुरू किये गये अभियान का जायजा लेने पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम को ग्रामीणों से सीधे संवाद में काफी खरी-खोटी सुननी पड़ी। अपनी करुणगाथा सुनाते हुए ग्रामीणों ने चिंदबरम से साफ कहा कि एक तरफ अराजकता, तो दूसरी ओर उन्हे नक्सली बनाम पुलिस के बीच पिसना पड़ रहा है। पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत लालगढ़ थाने में रविवार को दौरे के क्रम में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के अधिकारियों के साथ करीब पौने घंटे की बैठक के बाद चिदंबरम की सर्वोच्च प्राथमिकता थाने के पास स्थानीय ग्रामीणों से सीधी वार्ता करने की रही। हालांकि इसमें भाषा एक बड़ी बाधा थी लेकिन जिलाधिकारी नारायण स्वरूप निगम द्वारा दुभाषिये की भूमिका निभाने से संवाद में चिदंबरम ने ग्रामीणों से अपील की कि वे नक्सलियों को किसी भी तरह से मदद न करे, क्योंकि नक्सली उनके हितैषी नहीं, बल्कि शत्रु हैं। वे निरीह लोगों को मार रहे है। गरीबी और पिछड़ेपन की समस्या को स्वीकार करते हुए चिदंबरम ने कहा कि समस्यायें है, उनका निराकरण भी होगा लेकिन लोगों को नक्सलियों से दूर रहना चाहिए। इस पर ग्रामीणों ने अपने अंदाज में जवाब पेश किया। उनकी प्राथमिकता बुनियादी जरूरतों की पूर्ति की रही। लोग सबसे ज्यादा आजिज आये दिन होने वाले बंद से थे। स्थानीय महिलाओं में मिठू सिंह व हीरा राय ने जानना चाहा कि दो जून की रोटी को फिक्रमंद रहने वाला उनका परिवार भला नक्सलियों के खिलाफ संघर्ष में सरकार की क्या मदद कर सकता है, जबकि लालगढ़ में बुनियादी ढांचे का ही घोर अभाव है। किसी के बीमार पड़ने पर उसे इलाज के लिए चिकित्सा केंद्र तक ले जाने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बच्चों की पढ़ाई में मुश्किलें पेश आती हैं। स्थानीय महिला बिसका कमार ने सरकारी संसाधनों के वितरण में विसंगतियों का आरोप लगाते हुए कहा कि हमें सिर्फ जंगल ने ही बचा रखा है। अन्यथा भूखों मरना पड़ता। लालगढ़ स्वास्थ्य केंद्र में अस्थायी कर्मचारी के रूप में काम करने वाली आरती डल ने सरकार के खिलाफ गहरा रोष व्यक्त करते हुए कहा कि वह पिछले 20 साल से एक सरकारी महकमे में सिर्फ सौ रुपये मासिक मेहनताने पर काम कर रही है। उसने सवाल किया कि क्या इतने रुपये में कोई आदमी अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति कर सकता है। बातचीत के दौरान ग्रामीणों को जब चिदंबरम ने माओवाद के खिलाफ एकजुट होने को कहा, तो ग्रामीणों ने उन्हें ही खरी-खोटी सुनाते हुये कहा कि वे माओवादियों के खिलाफ एक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि माओवादी हथियार के बल पर उन्हें डराते-धमकाते हैं और उनका हमला रात्रि के दौरान ही अधिक होता है, जिस समय सूचना मिलने पर भी पुलिस उनकी सहायता को नहीं आती है।
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