आप पढ़ें और अंदाजा लगायें
ये चाहते क्या हैं
किसके ओर से बोल रहे हैं
किसके खिलाफ जानबुझकर नहीं बोल रहे
फिर निर्णय लीजिए
आपको किसके साथ रहना है -
जन गण मन
यह वक्तव्य को जारी करने की पहल सन्हित ने है। सन्हति(www।sanhati.com) शैक्षिणक संस्थानों और विभन्न संघटनों से जुड़े हुए कायर्कतार्ओं का एक समूह है। यह वेब ग्रुप भारत के जनांदोलनों के बारे में जानकारी और प्रतिक्रियायें लोगों तक अपनी वेबसाइट द्वारा पहुंचाता रहा है।
माननीय डॉ. मनमोहन सिंह ,
प्रधान मंत्री, भारत सरकार,
साउथ ब्लाक, रायसीना हिल,
नई दिल्ली, भारत, ११००११
यह अपील भारत सरकार के प्रस्तावित नक्सल-विरोधी सैन्य अिभयान के सन्दभर् में ज़ारी की जा रही है । भारत के पिछड़े और आदिवासी-बहुल इलाकों- छत्तीसगढ़, झारखण्ड, महाराष्ट्, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल- में छेड़ा जानेवाला यह कथित अभियान हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।
इस प्रस्तावित सैन्य कारवाई के जिरयेभारत सरकार किथत रूप सेइन इलाकों को माओवादियों सेमुक्त करना चाहती है। लेकिन इस अिभयान के चलतेगरीब और भी बेघरबार होंगे और अपने रोजी़रोटी के सीमित साधनों से हाथ धो बैठेंगे। माओवादियों का सफाया करने की आड़ में राजनैतिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों पर यह हमला न सिर्फ निंदनीय है बल्कि समस्या जनक भी है। इस सन्दभर् में गौरतलब बात यह हैकी पिछले कुछ वर्षों से सलवा जुडुम जैसे निजी सेनाओंके साथ मिलकर पुलिस तथा सुरक्षा बलों ने पहले से ही छत्तीसगढ़ जैसे इलाकों में हाहाकार रचा रखा है। इस तरह की हिथयारबंद लडाइयों में अब तक सैकड़ों नेअपनी जानें गई है और हजारों बेघरबार हुए हैं। ऐसे में यहाँ प्रस्तावित सैन्य कारवाई समस्या को सिर्फ और जटिल ही बनाएगी। इसके चलते आदिवासियों और गरीब िकसानों को भुखमरी, बेदखली और बेईज्ज़ती के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। सदियों सेबदहाल भारतीय आदिवासियों की स्थिति 1990 के दशक़ से चालू हुई आर्थिक नीतियों के चलते और भी बदतर हो गई है। विशेष आर्थिक झोन और आद्योिगक विकास को बढावा देने के नाम पर सरकार ने इन क्षेत्रों की जनता से जल-जंगल-ज़मीन पर उनके रहे सहे अधिकार भी छीन लिए हैं।
खनिज पदार्थों से भरे हुए इन आदिवासी क्षेत्रों पर औद्योगिक घरानों और कारपोरेशनों की नज़रें काफ़ी दिनों सेलगी हुई हैं। मल्टीनैशनल कंपिनयों और भारतीय औद्योगिक घराने इन क्षेत्रों में अपना बेरोक-टोक विस्तार चाहते हैं ।
इन प्रस्तावित विकास' कायर्कमों के चलते इस क्षेत्रों की जनता को भयंकर विस्थापन और बदहाली झेलनी पड़ेगी। इस संभावना के चलतेइन क्षेत्रों की जनता ने विकास' के इन प्रयासों का जबरदत विरोध किया है और कई जगहों पर तो औद्योगिक घरानों और सरकार को मुंह की खानी पड़ी है। आज सरकार इन्ही क्षेत्रों और एक अविश्वनीय स्तर का सैन्य अिभयान छेड़नेजा रही है। हमें संदेह हैकी नक्सल विरोध की आड़ में सरकार असल में इन क्षेत्रों के आंदोलनों का गला घोटना चाहती है। जन विरोध को ख़त्म करके यह सरकार बडी़कंपिनयों को प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय यौन के शोषण की मनमानी छूट देना चाहती है। कारपोरेट पूंजी के साथ सरकारी ताल की इस मिलीभगत के चलतेगरीबी और बेदखली का जो कुचब चल निकला है वही आज जनांदोलनों और राजनैितक हिंसा को बढ़ावा देरहा है। लेकिन इस समस्या के जड़ को समझने के बजाय सरकार सैन्य अभियान की तैयारी कर रही है। गरीबी के बजाय गरीबों का सफाया करना ही आज भारत सरकार की नीति है।
हमारा दृढ् विश्वास है कि अपनी ही जनता पर इस तरह की सैन्य कारवाई भारतीय तंत्र के लिए शमर्नाक है। दुनिया के तमाम हिस्सों और भारत के विभिन्न क्षेत्रों मे जब-जब राजनैतिक और आिथर्क समस्याओं को सैन्य बल से दबानेकी कोशिश हुई हैतब तब बबार्दी और बदहाली बढ़ी है। सरकार का यह प्रस्तावित नया अभियान किसी भी समस्या का निदान कर पायेगा इसका हमें गहरा संदेह है। इसिलए हम भारत सरकार सेयह अपील करते हैं कि वह अपनेजनता पर हमलेके इस प्रस्ताव को तुरंत स्थगित करे। इस सैन्य करवाई के चलतेभारत के अन्दर एक ऐसा युद्घ शुरू हो जाएगा जिसका फायदा सिर्फ उन पूंजीपितयों और कारपोरेशन घरानों को िमलेगा जो प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित इस्तेमाल करना चाहते हैं। जनता के कमज़ोर वर्गों के हाथ भुखमरी और विस्थापन के अलावा कुछ और नही आएगा। हम सभी जनतांत्रिक सोच वाले लोगों का आह्वान करते हैं कि वे भारत सरकार की इस कायर्वाई का विरोध करें और इस अपील में हमारा साथ दें।
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