Tuesday, January 12, 2010

प्रशांत भूषण की साहित्यकारों द्वारा घोर निंदा

रायपुर । राज्य के साहित्यकारों ने सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण द्वारा राज्य के साहित्यकार और पुलिस प्रमुख श्री विश्वरंजन के खिलाफ़ दिये गये उस हिंसात्मक बयान के प्रति कड़ा विरोध जताया है, जिसमें कहा गया है कि वे छद्म साहित्यकार हैं और उन्हें नक्सलियों द्वारा गोली मार दी जायेगी ।

प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बलदेव, रायगढ़ ने कहा वे न केवल प्रशांत भूषण जैसे हिंसावादी अधिवक्ता की कड़ी निंदा करते हैं बल्कि ऐसे बौद्धिक दीवालियेपन के शिकार वकील को स्थानीय स्तर पर प्रश्रय देनेवालों की भी भर्त्सना करते हैं । विश्वरंजन जैसे कवि, विचारक को किसी भी वकील से सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं । भिलाई के कवि युवा अशोक सिंघई ने कहा कि श्री भूषण का वक्तव्य और उनके विचार किसी भी दृष्टि में देशहित में नहीं है। यह अधिकार किसी भी वकील को नहीं है कि वह साहित्य के मामले में पैरवी करे और निर्णय दे । श्री भूषण द्वारा राज्य की मीडिया को भी भ्रष्ट और कायर कहे जाना भी निंदनीय है। जाने माने आलोचक प्रभात त्रिपाठी के कहा कि विश्वरंजन के साहित्यकार होने के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी वकील की सिफारिश नहीं उनकी रचनात्मकता ही महत्वपूर्ण है जो स्वयं में सिद्ध है और प्रशांत भूषण की जैसे संविधानविरोधी वकील के हिंसक बयान और आक्रोश से भी राज्य का विकास नहीं होगा । लघुकथाकार राम पटवा ने कहा कि जो हिंसा को जायज ठहराकर राज्य के आंतरिक सुरक्षा के प्रमुख को मार डालने के लिए नक्सलियों और युवाओं को भड़काता है उसके राज्य प्रवेश पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए । डीजीपी को मार दिये जाने का वक्तव्य तो खतरनाक नक्सलवादियों ने भी अब तक नहीं दी है। लगता है प्रशांत भूषण जैसे वकील नक्सलियों को उकसाने के लिए ही राज्य के दौरा पर आते हैं । भिलाई के प्रसिद्ध जनवादी शायर मुमताज अपना विरोध प्रकट करते हुए कहा कि प्रशांत भूषण किसी की मौत को तय करनेवाला कौन है ? किसी सर्वोच्च न्यायालय के वकील को इस तरह की टिप्पणी शोभा नहीं देता । यदि नक्सकली बुलैट से विश्वरंजन मारे जाते हैं तो उसका सारा दोष प्रशांत भूषण जैसे अधिवक्ताओं का होगा क्या वे इसका दोष अपने ऊपर लेने के लिए तैयार हैं । दुर्गनिवासी कथाकार विनोद मिश्र ने प्रशांत भूषण सहित ऐसे लोगों की भी निंदा की है जो कथित जनवाद और गरीबों के कल्याण के नाम पर बौद्धिक प्रलाप के लिए बाहर के वकीलों को राज्य में आमंत्रित कर उनके माध्यम से अपनी बात को प्रमाणित करने की कुचेष्टा करते हैं । ज्ञातव्य हो कि प्रशांत भूषण द्वारा यह वार्ता जाने माने वकील श्री कनक तिवारी के निवास पर आयोजित हुई है । रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध भाषाविद् व डॉ. चित्तरंजन कर ने प्रशांत भूषण जैसे अतिवादी अधिवक्ता के आक्रोश को न्यायविरोधी और संविधान विरोधी निरूपित किया है । ऐसे तत्वों राज्य के विकास के लिए हानिप्रद हैं जो एकतरफा फतवा जारी करते हैं और दूसरी ओर प्रकारांतर से नक्सली हिंसा की वकालत करते हैं । पहचान यात्रा के संपादक डॉ. राजेन्द्र सोनी ने अपने बयान में कहा है कि प्रशांत भूषण जैसे माओवादी समर्थक वकील, जो स्वयं न्यायपालिका और कानून का पालन नहीं करते, बाहर से आकर छत्तीसगढ़ की जनता को चुनौती दे रहे हैं, यह राज्य पर बाहरी तत्वों का आक्रमण है । स्थानीय मीडिया को बिकाऊ कहकर जो आरोप प्रशांत द्वारा लगाया गया है वह उनके पागलपन का नमूना है । वरिष्ठ व्यंग्यकार भिलाई निवासी श्री रवि श्रीवास्तव ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा है कि विश्वरंजन जो कलम और हथियार दोनों से राज्य की शांति बहाली का काम करने में प्राणप्रण से जुटे हैं, के विरूद्ध किसी भी तरह की हिंसक टिप्पणी बर्दास्त नहीं की जायेगी । युवा साहित्यकार जयप्रकाश मानस ने प्रशांत भूषण के बयान को राज्य की अस्मिता, सुरक्षा और विकास के लिए किये जा रहे प्रयास के विरूद्ध निरूपित किया है और यह माओवादियों द्वारा व्यवस्था के विरोध में दिये जा रहे साईवार का एक हिस्सा है जिसे कुछ स्थानीय बौद्धिक लोग भी प्रोत्साहित कर रहे हैं, इससे ऐसे लोगों की बौद्धिकता की पोल भी खुलती है । कवयित्री डॉ. वंदना केंगरानी ने कहा कि शासन और कानून में ऐसा कौन सा अधिकार उल्लेखित है जिसका प्रयोग सुप्रीम कोर्ट के वकील करते हुए राज्य के डीजीपी को जान से मारने की धमकी दे रहे हैं । क्या प्रशांत भूषण के मुताबिक नक्सली, जो निसहाय आदिवासी को मार रहे हैं उन्हें फूल का गुलदस्ता देंगे ? इसके अलावा, चेतन भारती, डॉ. बिहारी लाल साहू, नंदकिशोर तिवारी, कमलेश्वर साहू, बी. एल. पाल, एच. एस. ठाकुर, सुरेश तिवारी, डॉ. कुँजबिहारी शर्मा, हरकिशोर दास, डॉ. महेन्द्र ठाकुर, संजीव ठाकुर आदि ने राज्य के साहित्यकार पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के खिलाफ़ टिप्पणी करने वाले के खिलाफ़ भर्त्सना की है।

1 comment:

  1. इसकी रिपोर्ट तो उच्चतम न्यायालय और बार काउंसिल को की जानी चाहिए

    ReplyDelete