Wednesday, January 20, 2010

अब तिरंगा अबूझमाड़ में !


संपादकीय, नई दुनिया, रायपुर से साभार....


धुर नक्सली क्षेत्र में पहली बार तिरंगा फहराने का मंसूबा बनाया सुरक्षा बलों ने "ऑपरेशन ग्रीन हंट" एवं "त्रिशूल" के चलते इस मर्तबे पहली बार बस्तर के धुर नक्सल इलाकों को घेरने का सिलसिला शुरू हो गया है। इस मुहिम में सीमा सुरक्षा बल तथा अर्धसैन्य बलों के जवानों के सामूहिक अभियान के तहत नक्सलियों के अंदरूनी ठिकानों तक पहुँचने की कवायद ने, नक्सलियों के हार्डकोर जत्थों को भी सहमा दिया है। दरअसल,"ग्र्रीन हंट" के अभियान के जरिए लगता है, आरपार की लड़ाई का मंजर अब दिनोंदिन देखने को मिलेगा। किसी भी संघर्ष के दौरान हार्डकोर नक्सली अपने समर्थन में संघम दलों के सदस्यों तथा नक्सल क्षेत्रों के ग्रामीणों को अपनी रणनीति का हिस्सा बनाकर चलते हैं। यही वजह है कि पुलिसिया मुठभेड़ में हार्डकोर नक्सलियों के मारे जाने की कोई खबर नहीं मिलती। संभवतः इसी काट को तरजीह देते हुए सीमा सुरक्षा बल तथा अर्धसैन्य बलों की टुकड़ियों ने इस बार धुर नक्सल क्षेत्रों को अपना लक्ष्य बना लिया है। चूँकि, ऐसा माना जाता है कि जब तक इन अंदरूनी क्षेत्रों के नक्सलियों को रणनीति के तहत घेरा नहीं जाएगा, तब तक कोई कामयाबी हासिल नहीं हो सकती है। "ऑपरेशन ग्र्रीन हंट" के जरिए पहली बार बस्तर के बीहड़ नक्सली इलाके मसलन अबूझमाड़ जैसे धुर नक्सल क्षेत्रों में गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा फहराए जाने का संकल्प बना लिया गया है। इस बाबत सुखद बात यह देखने को मिल रही है कि सरकारी अमले और स्कूली बच्चों ने संयुक्त तौर पर सघन जंगलों में इस बार तिरंगा फहराने का रिहर्सल शुरू कर दिया है। जिन धुर नक्सल क्षेत्रों में कभी काला झंडा फहराया जाता था, उन क्षेत्रों में राष्ट्रीय ध्वज का फहराया जाना एक परिवर्तित मानसिकता का परिचायक है। अबूझमाड़ जैसे क्षेत्रों में तिरंगा फहराए जाने का प्रतीकात्मक प्रभाव आदिवासियों के मानस को झकझोरने के लिए एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। लगता है, बीहड़ में रहने वाले आदिवासियों को आजादी के बाद से पहली बार स्वतंत्रता की असलियत से अवगत कराया जाएगा और इस प्रतीति को सार्थक बनाने की दृष्टि से राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा। इससे पूर्व न तो इन क्षेत्रों में कभी राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाने का दुस्साहस किया गया और न ही, इस तरह की पहल का कोई अंजाम ही देखने को मिला है। लेकिन, "ऑपरेशन ग्र्रीन हंट" के चलते इस तरह की गतिविधियों का होना कोई असमंजस की बात नहीं रह गई है। चूँकि, "ग्र्रीन हंट" के तहत सुरक्षा टुकड़ियों ने इस बार घने जंगलों में अपनी पैठ बढ़ाकर इस तरह की गतिविधियों को सुगम बना दिया है। इस तरह की पहल से निश्चित तौर पर यह अभियान कई नजरिए से फलदायी माना जा सकता है।

(नई दुनिया, रायपुर, २१ जनवरी, २०१०, )संपादकीय

No comments:

Post a Comment