Monday, January 11, 2010

पुलिस महानिदेशक या तो मारे जाएंगे या जेल जाएंगे



- सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण का आक्रोश


विशेष संवाददाता, रायपुर, 11 जनवरी (छत्तीसगढ़)। प्रसिद्ध सुप्रीम कोर्ट वकील और अनेक जनवादी संगठनों की ओर से विभिन्न मामलों में पैरवी करने वाले प्रशांत भूषण छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन पर जमकर बरसे। उन्होने आपरेशन ग्रीन हंट को तत्काल रोकने की मांग करते हुए कहा कि जिस हिसाब से छत्तीसगढ़ पुलिस निर्दोष आदिवासियों का खून बहा रही है उसके चलते जल्द ही या तो विश्वरंजन गोली से मार दिए जाएंगे अथवा वे जेल के भीतर होंगे।

उन्होने चेतावनी दी कि ग्रीन हंट से सिविल वार का अंदेशा है और यह गृह युद्ध छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों को भी अपनी लपेट में ले लेगा। उन्होने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एमनेस्टी इंटरनेशनल भेजे जाने की मांग भी की। उन्होने विश्वरंजन को छद्म साहित्यकार निरूपित करते हुए छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों की इस बात को लेकर आलोचना की कि वे विश्वरंजन को साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित कर उन्हे सिर पर उठाए घूम रहे हैं।


एक कार्यक्रम के सिलसिले में बिलासपुर आए प्रशांत भूषण कल प्रसिद्ध वकील कनक तिवारी के कार्यालय में शहर के कुछ चुनिंदा पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत कर रहे थे। उन्होने इस बात को मानने से इंकार कर दिया कि नक्सलवादियों द्वारा भी निर्दोष आदिवासियों के कत्ल किए जा रहे हैं। उन्होने कहा कि हो सकता है नक्सलियों की ओर से कुछ लोग मारे गए हों परंतु इसका अनुपात एक के मुकाबले सौ ही है। यानि अगर पुलिस वाले सौ बेगुनाहों को मार रहे हैं तो एकाध आदिवासी नक्सलियों की ओर से मारा जा रहा होगा। हालांकि उन्होने कहा कि इस बात की उन्हे ज्यादा जानकारी नहीं है कि नक्सली क्या कर रहे हैं।


उन्होने कहा कि ग्रीन हंट के नाम पर विश्वरंजन जंगलों में जो कर रहे हैं वह उन्हे 'सबसे बड़ा अपराधी साबित करने के लिए पर्याप्त है और उचित समय पर वे जेल जाएंगे। उन्होने बताया कि इस ऑपरेशन से नक्सलियों की तादाद बढ़ेगी। जिन निर्दोषों को सताया जा रहा है उनमें से कम से कम एक फीसदी तो नए नक्सली बनेंगे।


प्रशांत भूषण का मानना है कि ग्रीन हंट का असर कम से कम दो लाख आदिवासियों पर होगा पर इनमें से दो हजार लोग निश्चित ही नक्सली बनेंगे। इस तरह डीजीपी नए नक्सली पैदा कर रहे हैं और माओवादियों का कैडर विस्तारित कर रहे हैं। उन्होने चेतावनी दी कि ग्रीन हंट के खिलाफ इतना भीषण रोष है कि यह गृह युद्ध में तब्दील हो जाएगा। उन्होने चेतावनी दी कि शहर वाले ये न समझें कि वे इस युद्ध से अछूते रह जाएंगे। जंगलों से निकलकर नक्सली शहरी इलाकों में भी कार्रवाई करेंगे।


प्रशांत भूषण ने इस बात पर रोष जताया कि आदिवासियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले और मानवाधिकार की चिंता करने वाले हर किसी को विश्वरंजन नक्सली बताने पर तुले हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। डॉ. बिनायक सेन, हिमांशु आदि इसी नीति के शिकार हो रहे हैं। उन्होने बताया कि इन तमाम परिस्थितियों पर विचार-विमर्श करने के लिए दिल्ली में एक बैठक इसी शनिवार को बुलाई गई है जिसमें अनेक प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल होंगे।


यह पूछे जाने पर कि क्या नक्सलियों को भी बातचीत के लिए आगे नहीं आना चाहिए, उन्होने कहा कि आखिर वे (नक्सली) किस विषय पर बातचीत करेंगे। उनका तो लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है और वे इस राज्य की सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। प्रशांत भूषण ने तत्काल राज्य की ओर से युद्ध विराम की मांग करते हुए कहा कि इसके साथ ही तीन काम किए जाने अत्यंत आवश्यक हैं, वे हैं-भूमि सुधार लागू करना, खदान माफिया खत्म करना और एसईजेड के नाम पर होने वाले गैर कानूनी भूमि अधिग्रहण व निजीकरण को रोकना।


प्रशांत भूषण का दावा है कि इतना भी अगर किया जाता है तो माओवादियों की गतिविधियां काफी सीमित हो जाएंगी। जब उनके ध्यान में लाया गया कि छत्तीसगढ़ में एसईजेड जैसी कोई चीज ही नहीं है और निजीकरण भी माओवादियों की गतिविधियों के मुकाबले हाल ही में लागू हुआ है तो उन्होने कहा कि किसी भी रूप में जमीनों का हो रहा अधिग्रहण रोका जाना चाहिए क्योकि इससे आदिवासियों में व्यापक असंतोष फैल रहा है और उनके जीवन-यापन के साधन छिन रहे हैं।


उन्होने पूरे लाल गलियारे (माओवादियों के प्रभाव वाला पट्टा) में एसईजेड के कारण नक्सली गतिविधियों के बढऩे की बात कही। उन्होने कहा कि एसईजेड दरअसल पैसे वालों के लिए अनैतिक और गैर सांवैधानिक तरीके से जमीन हथियाने की सरकारी चाल है जिसमें जनता का कोई फायदा नहीं है। यहां बड़े-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान आएंगे और उसके बाद आदिवासियों और ग्रामीणो के लिए कोई भी विकल्प नहीं बचेगा। वे या तो अपनी जमीनें छोडक़र भाग जाएंगे अथवा नक्सली बनकर लड़ते रहेंगे। माओवादियों के इलाकों में खदानों के निजीकरण पर तत्काल रोक की मांग करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि इससे सरकार को कोई विशेष फायदा नहीं हो रहा है।


कर्नाटक में सरकार को लौह अयस्क में प्रति टन रायल्टी 27 रुपए मिलती है जबकि उसे उद्योगपति छह सौ रुपए प्रति टन की दर से खुले बाजार में बेचते हैं। उड़ीसा में स्टरलाईट इंडस्ट्रीज ने कई लाख टन बाक्साइट भंडार वाले नियामगिरी खदानों पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा कर लिया है जिससे वहां के आदिवासियों में व्यापक असंतोष फैला हुआ है। उन्होने आरोप लगाया कि इसमें गृह मंत्री पी. चिदंबरम का भी शेयर है।


प्रशांत भूषण के अनुसार यह खदान माफिया लगातार फल-फूल रहा है और लगभग सभी राजनैतिक दलों की इसमें हिस्सेदारी है। इसीलिए सरकार ने उनसे जमीनें अधिग्रहित कर इन कंपनियों को दे दी है। इसी के चलते माओवादियों का प्रभाव क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है तथा कोई भी सरकार उन पर प्रभावशाली ढंग से अंकुश नहीं कर पा रही है। इसका कारण उन्होने यह भी बताया कि पुलिस का मनोबल अत्यंत गिरा हुआ है जबकि माओवादी कई वर्षों से इतने बड़े क्षेत्र में बढ़ते मनोबल के साथ संघर्षरत है।


हालांकि प्रशांत भूषण ने यह भी माना कि नक्सलियों का कोई संगठित नेतृत्व नहीं है और जो बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता उनके बीच काम करने जा रहे हैं वे भी उन्हे प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है और न ही किसी बातचीत में उनका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। उन्होने कहा कि सबसे पहले आदिवासियों को बराबरी के स्तर पर लाया जाए तभी कोई बातचीत अर्थर्पूण रहेगी। गैर बराबर पक्षों के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती। इस दिशा में उन्होने राज्य और लोगों के सहयोग को भी आवश्यक बताया।


प्रशांत भूषण ने यह मानने से इंकार किया कि नक्सलवादी भी निर्दोष आदिवासियों का बड़े पैमाने पर कत्ल कर रहे हैं। उनका दावा था कि जिस पैमाने पर पुलिस आदिवासियों को मार रही है उसके मुकाबले नक्सलियों द्वारा निर्दोषों को काफी कम तादाद में मारा जा रहा है। उन्होने कहा कि हो सकता है कुछ मुखबिर आदि उनके हाथों मारे गए हों। लेकिन इस बारे में उन्हे ज्यादा जानकारी न होने से उन्होने किसी तरह की टिप्पणी करने से इंकार किया। उन्होने मांग की कि इस क्षेत्र में एमनेस्टी इंटरनेशनल या राष्ट्रसंघ द्वारा नियुक्त कोई एजेंसी या व्यक्तियों को भेजा जाना चाहिए जो वहां जाकर वस्तुस्थिति की निष्पक्ष जांच करे और निदान सुझाए।


सलवा जुडूम को पूरी तरह से गैर कानूनी और असंवैधानिक सशस्त्र बल बताते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर यहां हिंसा को रोकना है तो सलवा जुडूम को तत्काल खत्म करना होगा। इन क्षेत्रों के चुनावों को भी उन्होने छद्म बताया।


स्कूल और अन्य विकास कार्यों में नक्सलियों द्वारा अवरोध पैदा करने और उन पर हमले किए जाने की ओर ध्यान दिलाने पर प्रशांत भूषण ने कहा कि नक्सली उन्ही स्कूलों को अपना निशाना बना रहे हैं जहां पर कोई पढ़ाई नहीं होती और उनमें माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे सशस्त्र बल ने अपना ठिकाना बना रखा है। उन्होने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योकि वे तो पुलिस वालों के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं सो उन पर वे हमले तो करेंगे ही। उन्होने यह भी माना कि मुख्य सडक़ों से ज्यादा अंदर विकास कार्य होने संभव ही नहीं है। सरकारी एजेंसियां और मुलाजिम उनमें घुस ही नहीं सकते क्योकि वहां माओवादियों ने बारूदी सुरंगे बिछा रखी हैं।


छत्तीसगढ़ के मीडिया के कामकाज पर भी उन्होने असंतोष जताते हुए कहा कि राष्ट्रीय मीडिया और स्थानीय समाचार पत्रो में उन्हे एकदम अलग तरह की रिपोर्टिंग इस विषय पर देखने को मिली है। राष्ट्रीय मीडिया ज्यादा सही और जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग कर रहा है जबकि यहां का मीडिया पुलिस के खौफ से अथवा किसी अन्य प्रभाव से पुलिस के पक्ष में लिख रहा है। प्रशांत भूषण ने बताया कि इन स्थितियों को देखते हुए कहा कि यहां के मीडिया पर बहुत विश्वास नहीं किया जा सकता और वे कोई मानवाधिकार आयोग अथवा उच्चस्तरीय समिति लाने की कोशिश करेंगे ताकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जो हो रहा है उसकी वस्तुस्थिति का पता चल सके।


न्यायपालिका को पुलिस विभाग के बाद दूसरा सबसे बड़ा भ्रष्ट विभाग बताते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि यह कोई सोच ही नहीं सत्ता कि सुप्रीम कोर्ट जैसे प्रतिष्ठान में भी पचास फीसदी से ज्यादा जस्टिस भ्रष्ट हैं। उन्होने कहा कि अगर कोई यह कहता है कि ज्यादा भ्रष्टाचार नीचे स्तर पर है और ऊपर के स्तर पर कम तो ऊपर की कोर्ट निचली कोर्ट के भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कोई कदम क्यो नहीं उठाती? उन्होने कहा कि गाजियाबाद प्रकरण से तो यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे चलता है तथा उस स्तर पर भ्रष्टाचार की राशि का एक बडा हिस्सा उपर तक जाता है।


दैनिक छत्तीसगढ़, ११ जनवरी, 2009

No comments:

Post a Comment