Tuesday, January 19, 2010

आतंक के साये में जी रहे हैं लोग

व्यक्ति अधिकार एवं कर्तव्य के जाल में जकड़ा हुआ है। जहाँ पर एक व्यक्ति अधिकार के लिए शासन से अपेक्षा रखता है वही पर कर्तव्य विमुख होना संभव नहीं हैं वर्तमान में नक्सलियों के समर्थन में मानव अधिकार की भूमिका संदिग्ध है। महानगरों के न्यायविदों का मत है कि पुलिस एवं राज्य शासन द्वारा नक्सलियों की हत्या की जा रही है। मानवाधिकार का हनन हो रहा है। लेकिन, मेरी दृष्टि से नक्सलियों के प्रति सहयोग की भावना के बारे में सोचना उचित नहीं है। एक ओर नक्सलियों द्वारा व्यक्तियों के मौलिक अधिकार में गतिरोध उत्पन्न किया जा रहा है। ग्रामों में जहाँ पर नक्सलियों की अधिक से अधिक संख्या में होना पाया जाता है। संबंधित ग्रामों में व्यक्ति आतंक मय जीवन जी रहे हैं। उनको पुलिस मुखबीर के कारण आए दिन हत्याएँ होती है। शिक्षण संस्थानों के भवन को नष्ट कर देना आम बात है। जंगल से लगे गाँवों को जहाँ सड़कों का निर्माण होता रहता है। बाधा उत्पन्न करना खास बात है। नक्सलियों द्वारा व्यक्तियों के विकास में होने वाले कार्यों में अवरोध उत्पन्न होता रहता है। शासकीय धन की हानि होती रहती है। उनके द्वारा अभी तक ५०० से अधिक संस्था के भवन गिराए जा चुके हैं। नक्सली क्षेत्रों में बिजली, पानी, स्वास्थ्य संबंधी विकास मुख्य मुद्दा है।

विजयप्रताप सिंह, क्लबपारा, महासमुंद

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