Saturday, January 23, 2010

नक्सली और मच्छर दोनों से जूझ रही है पुलिस

जगदलपुर। नक्सली उन्मूलन के लिए बस्तर में तैनात सैन्य बल को एक साथ दो मोर्चो पर संघर्ष करना पड़ रहा है। पहले तो उन्हें नक्सलियों के संघर्ष में उलझना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर उनके समान्तर एक और खतरे से भी मुकाबला करना पड़ रहा है और भौगोलिक परिवेश से जुड़े इस दूसरे मोर्चे पर सैनिक अपने को बेहद असहाय और विवश महसूस कर रहे है और यह विवशता क्षेत्रीय मच्छरों व मलीरिया जैसी संक्रमक बीमारियों के कारण है जिससे निपट पाना उनके बस की बात नहीं रहे गई। आए दिन मलेरिया से प्रभावित सैनिकों को अस्पताल की शरण लेना पड़ रहा है कुछ को तो अकाल मौत की त्रसदी भी झेलनी पड़ी है।
क्षेत्र के प्रसिद्ध पैथोलाजिस्ट डा. हेमंत कुमार का कहना है कि निश्चय ही बस्तर जिले के लिए मलेरिया एक अविशाप है विशेष कर दक्षिण बस्तर के ग्रामीण अंचलों में इसका प्रकोप भारी मात्रा में देखा जाता रहा है। आए दिन सुदूर ग्रामीण अंचलों में मलेरिया से मौतो का होना एक आम सी बात हो चली है। जिससे सैन्य बलों को भी रूबरू होना पड़ रहा है।
डा. हेमंत कुमार का यह भी कहना है कि बस्तर से बाहर रहने वालों की प्रतिरोधात्मक शक्ति बस्तरवासियों की तुलना में कम है। डा. हेमंत का कहना है कि मलेरिया की सबसे बड़ी वजह है एनाफीलिस मादा मच्छरों की बड़ी संख्या बस्तर के ग्रामीण क्षेत्र में एनाफीलिस मच्छरों की संख्या लगभग 60 प्रतिशत है और इन मच्छरों को भौगोलिक परिस्थितियों पहाड़ी व डबरो और गंदे पानी के गड्ढों में पनपने का पर्याप्त अवसर मिल जाता है। इसलिए ऐसी परिस्थितियां प्रदेश में जहां कही भी बहुतायात से उपलब्ध वहां पर मलेरिया का प्रोकोप ज्यादा देखा जा रहा है। विशेषकर बस्तर कोरिया, कोरबा, जसपुर, सरगुजा, अम्बिकापुर जैसे विपरित भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में मलेरिया को पनपने का पूरा अवसर मिलता है आज सैन्य बालों के सामने या दूसरे मोर्चे का संघर्ष ज्यादा हावी होता दिख पड़ रहा है और इस पर इनका कुछ जोर भी नहीं चल पा रहा है। बीजापुर भोपालपटनम, तोंगपाल, कुआकोण्डा, कटेकल्याण, बारसूर, कुकानार, कुरेंजी, बकावण्ड, मारडूम, भैरमगढ़ जैसे क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप भारी मात्रा में व्याप्त है। उल्लेखनीय है कि मलेरिया के घातक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार ने कुछ विशेष प्रकार के रोगों के निदान हेतु एक अलग से कार्य योजना तैयार की गई है। जिसके अंतर्गत आदिवासी क्षेत्रों में फायलेरिया, मलेरिया को विशेष रूप चिन्हित कर उसके निदान की पहल की जा रही है और इस दिशा में केन्द्र शासन करोड़ों रूपए नियमित रूप से व्याय कर रहा है।
डा. हेमंत कुमार का मानना है कि यद्यपि शासन का यह प्रयास अत्यंत सार्थक है जिसके परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक रूप से सामने आएंगे लेकिन अभी से आश्वास्त होने जैसी स्थिति नहीं है एक लंबी कार्य योजना के अंतर्गत ही इसके परिणाम सामने आएंगे इसमें संदेह नहीं है लेकिन चूंकि अभी इसमें समय लगेगा इसलिए प्रत्येक आदिवासी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारी स्वास्थ्य अधिकारी और जिला मलेरिया अधिकारियों से यह अपेक्षा है कि वे इस विक्रल होती समस्या को एक गंभीर चुनौती के रूप में लेकर विस्तृत कार्ययोजना तैयार करें और पूरी सजगता के साथ क्षेत्रीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इस दिशा में सतर्कता बरतने हेतु निर्देशित करें ताकि इसके परिणाम संतोषप्रद रूप में सामने आ सके।
(सुधीर जैन, जगदलपुर की रपट)

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