Sunday, January 17, 2010

बस्तर में गांधीवाद


कहते हैं - गांधीवाद अंतर और बाहर दोनों से सादगी और सरलता का ही दूसरा नाम है । गांधीवाद की आत्मा सरलता और सादगी में है अतः वह निजत्व का भी कायल है । गांधीवाद इसलिए भारतीयता या स्वदेशीयता को भी विकसित करता है । किन्तु, दंतेवाड़ा में आदिवासियों के कथित मानवाधिकार के लिए संघर्षरत वनवासी चेतना आश्रम में जो पिछले दिनों आश्रम के संचालक गांधीवादी के लिए काम कर रहे थे उन्हें इससे कोई मतलब नहीं था कि गांधीवादी तौर-तरीके क्या होते हैं ?

जी हाँ, यहाँ जो चित्र आप देख रहे हैं वह पाश्चात्य बाला का नहीं, मुंबई की उस कन्या का है जो हिमांशु कुमार को बस्तर का गांधी बनाने के लिए दंतेवाड़ा में डेरा डाला हुआ था और देश-दुनिया को बता रहा था कि हिमांशु सचमुच गांधी है। वह आदिवासियों का मसीहा है । उसकी जनसुनवाई को सरकार ने रोक लगा दी । सरकार दमनकारी है आदि, आदि । जबकि दूसरी और यह भी दंतेवाड़ा में देखने को मिला कि नक्सलियों के सहयोगी होने, स्थानीय संस्कृति को विकृत करने का आरोप लगाकार 10,000 हजार से अधिक आदिवासियों ने उसका विरोध किया था । आदिवासियों के नाम पर उसकी संस्था को प्राप्त विदेशी धन की अफरा-तफरी के खिलाफ राज्य से लेकर केंद्र तक शिकायत की थी । जो, भी हो...

इस चित्र को देखने से सबसे पहले जो विचार मन में आता है – वह है – यह अर्धनग्न वस्त्रधारी यानी बरमूडा पेंट और टी शर्टधारिणी, कथित पत्रकार प्रियंका बारपुजारी बस्तर की वादियों में लेटी अमेरिकन सेव खा रही है । सर पर जाने क्या रखा है ! इसे तो वही बता सकती है । वाह, क्या गांधीवाद है ! सेव खाकर बस्तर के आदिवासियों के लिए संघर्ष !!
अब यह दीगर बात है कि मन की शुद्धि के लिए उपवास पर बैठे हिमांशु कुमार तो जाने कहाँ फरार हो गया । बीच में ही उपवास तोड़कर । जब हिमांशु ही गायब हो गया तो प्रियंका बारपुजारी कहाँ दंतेवाड़ा में आदिवासियों के गांधी हिमांशु के लिए ब्लॉग पर कमेन्ट्री सुनाती । शायद वह भी चली गयी, जहाँ से आयी थी, पर दंतेवाड़ा के आदिवासियों को तो अपना असली चेहरा दिखा गयी कि लो पत्रकार कैसे होते हैं, क्या क्या करते हैं, कैसे रहते हैं ?

भगवान बचाये हिमांशु कुमार जैसे गांधीवादियों से देश और प्रियंका बारपुजारी जैसी पत्रकारों से ...

No comments:

Post a Comment