जगदलपुर। बस्तर में लगातार हो रही नक्सली वारदातों में जवानों की शहादत के लिए सरकारें दोषी हैं। केन्द्र और राज्य की सरकारें एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर अपनी गलतियों को ढंकने का प्रयास कर रही है। दरअसल राजनीतिक सामंजस्य के अभाव में बस्तर की हालत बदतर हुई है।
अगर प्रदेश सरकार केपीएस गिल को अपने हिसाब स काम करने देती तो शायद बस्तर की तस्वीर कुछ और होती। नक्सली आतंक से निपटने का एक मात्र विकल्प यही है कि बस्तर फोर्स के हवाले कर दें। राजनीतिक पार्टियां देश हित में अपना स्वार्स्थ छोड़ दें। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता।
सब को अपनी पड़ी है। उक्त बातें संजय मार्केट में खरीददारी करने आए सीआरपीएफ के जवानों ने कही है। दक्षिण बस्तर में मंगलवार की सुबह हुई बड़ी वारदात से क्षुब्ध जवानों ने साथियों की मौत के लिए सरकारों को दोषी मानते हैं। इनका आरोप है कि सरकारों में दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव हैं वे सुरक्षा तंत्र को अपने हिसाब से उपयोग करना चाहते हैं। जवानों ने कहा कि सरकारों की खुदगर्जी के चलते जवान वेतन के लिए नौकरी कर रहा है। उन्हें सीमाओं में बांध कर रख दिया गया है। यह कैसी विडंबना है कि उसे गोली भी अपने अधिकारी से पूछ कर चलानी पड़ती हैं सीआरपीएफ जवानों का कहना है कि केपीएस गिल के पास अपना अनुभव व रणनीति है। अगर प्रदेश सरकार उन्हें अपनी मर्जी से नक्सली उन्मूलन करनेदेती तो वे महज ६-७ महीने में ही आतंकियों का सफाया कर देते। इनकी राय है कि बस्तर सहित सीमावर्ती राज्यों के गलियारे से नक्सलियों का सफाया करने के लिए बस्तर को सेना के हवाले कर देना चाहिए। चूंकि अब आर-पार की लड़ाई जरूरी है। लेकिन अपने अधिकारों के छीनने के डर से नेता मंत्री फोर्स का विरोध कर रहे हैं। ऐसा कर वे देश और यहां की जनता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वहीं जवानों को कठपुतली समझे हुए हैं।
नई दुनिया, जगदलपुर, ७ अप्रैल
अगर प्रदेश सरकार केपीएस गिल को अपने हिसाब स काम करने देती तो शायद बस्तर की तस्वीर कुछ और होती। नक्सली आतंक से निपटने का एक मात्र विकल्प यही है कि बस्तर फोर्स के हवाले कर दें। राजनीतिक पार्टियां देश हित में अपना स्वार्स्थ छोड़ दें। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता।
सब को अपनी पड़ी है। उक्त बातें संजय मार्केट में खरीददारी करने आए सीआरपीएफ के जवानों ने कही है। दक्षिण बस्तर में मंगलवार की सुबह हुई बड़ी वारदात से क्षुब्ध जवानों ने साथियों की मौत के लिए सरकारों को दोषी मानते हैं। इनका आरोप है कि सरकारों में दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव हैं वे सुरक्षा तंत्र को अपने हिसाब से उपयोग करना चाहते हैं। जवानों ने कहा कि सरकारों की खुदगर्जी के चलते जवान वेतन के लिए नौकरी कर रहा है। उन्हें सीमाओं में बांध कर रख दिया गया है। यह कैसी विडंबना है कि उसे गोली भी अपने अधिकारी से पूछ कर चलानी पड़ती हैं सीआरपीएफ जवानों का कहना है कि केपीएस गिल के पास अपना अनुभव व रणनीति है। अगर प्रदेश सरकार उन्हें अपनी मर्जी से नक्सली उन्मूलन करनेदेती तो वे महज ६-७ महीने में ही आतंकियों का सफाया कर देते। इनकी राय है कि बस्तर सहित सीमावर्ती राज्यों के गलियारे से नक्सलियों का सफाया करने के लिए बस्तर को सेना के हवाले कर देना चाहिए। चूंकि अब आर-पार की लड़ाई जरूरी है। लेकिन अपने अधिकारों के छीनने के डर से नेता मंत्री फोर्स का विरोध कर रहे हैं। ऐसा कर वे देश और यहां की जनता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वहीं जवानों को कठपुतली समझे हुए हैं।
नई दुनिया, जगदलपुर, ७ अप्रैल
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