Saturday, January 2, 2010

मुआवजे पर नक्सल टैक्स

अनिल मिश्रा
पत्रकार, नईदुनिया


दंतेवाड़ा। दक्षिण बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में नक्सलियों ने मुआवजे पर टैक्स लगा दिया है। मृतकों के परिजनों को सरकार से मिलने वाले पैसे का २० फीसदी हिस्सा नक्सली जबरन हथिया ले रहे हैं। शोषण के खिलाफ संघर्ष का दम भरने वाले नक्सली मुख्यमंत्री खाद्यान्न योजना के तहत ग्रामीणों को मिलने वाले चावल पर भी डाका डाल रहे हैं। इतना ही नहीं, नक्सली मजदूरों से भी उनकी कमाई में हिस्सा माँग रहे हैं। नक्सलियों की इन हरकतों से त्रस्त ग्रामीणों ने पुलिस से मदद की गुहार की है।

बस्तर में समानांतर सरकार चलाने का दावा करने वाले नक्सली अब अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों और आदिवासियों की कमाई और खाने की थाली में भी हिस्सा माँगने लगे हैं। नक्सली वारदात में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकार एक लाख रुपए मुआवजा देती है। नक्सली इसमें से २० हजार रुपए यह कहकर ले लेते हैं कि यह पैसा तुम्हें हमारी वजह से मिला है। पैसे देने से मना करने वालों को जान से मारने की धमकी दी जाती है।

नक्सलियों की यह करतूत गंगालूर के ग्रामीणों ने उजागर की है। नक्सलियों के अत्याचार से त्रस्त ग्रामीणों ने डीआईजी एसआरपी कल्लूरी को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई है। इस पत्र की एक प्रति "नईदुनिया" को भी मिली है। इसमें सावनार, पुसनार, पेद्दाजोजेर, पेद्दाकोरमा आदि के ग्रामीणों ने सुरक्षा की माँग करते हुए गाँवों में पुलिस कैंप खोलने का आग्रह किया है। पत्र के माध्यम से ग्रामीणों ने बताया है कि प्रभाव वाले गाँवों में नक्सली खाद्यान्न योजना में मिलने वाले ३५ किलो चावल में से १५ किलो हर महीने जबरन लेते हैं। साथ ही गाँव की सुरक्षा के नाम पर नक्सलियों की ओर से तैनात जनमिलिशिया सदस्यों को हर परिवार से पाँच किलो चावल अलग से देना पड़ता है। इस प्रकार ३५ में से २० किलो चावल हर परिवार से प्रतिमाह नक्सली ले जा रहे हैं। इतना ही नहीं, ग्रामीणों को अपनी मजदूरी का एक चौथाई हिस्सा भी नक्सलियों को देना पड़ता है।

बीजापुर जिले के गंगालूर जुडूम कैंप अध्यक्ष हेमला सीका, गंगालूर सरपंच, चेरपाल व गंगालूर के ग्रामीणों द्वारा की गई शिकायत में नक्सलियों पर कई अन्य गंभीर आरोप लगाए गए हैं। बच्चों की शिक्षा बाधित कर रहे हैं नक्सली व छात्रावासों से बच्चों का राशन भी उठाकर ले जाते हैं। विकास कार्यों के नक्सली विरोध के चलते ग्रामीणों को मजदूरी तक नहीं मिल पाती है। पहाड़ों व घने जंगलों से घिरे इस इलाके में नक्सलियों की बंदूक के दबाव में ग्रामीणों को उनका साथ देना पड़ता है।

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