Saturday, May 22, 2010

कोई तो बताए हम होश में कब आएं

सरकार के एक बयान से नक्सलवादियों के समर्थकों और उनके दलालों की नींद उड़ सकती है. इसमें कहा गया है कि जो भी व्यक्ति या संगठन नक्सलियों के मनोबल को बढ़ाने या अन्य किसी भी प्रकार से उनका समर्थन करता पाया गया उसे दस साल तक की कैद हो सकती है. इस प्रकार की कार्यवाही गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के तहत की जाएगी. इस कानून की धारा 39 के तहत दोषी व्यक्ति को अधिकतम दस साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों ही किए जा सकते हैं.

निश्चित रूप से इस बयान ने तमाम तथाकथित बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार की बात कर अपनी स्वार्थ पूर्ति करने वाले लोगों को झटका लगाया है. अभी तक ऐसे समर्थक और दलाल भारत राष्ट्र के खिलाफ एक जंग छेड़े हुए हैं. अपनी उदर पूर्ति के लिए ये दलाल अपनी मॉ-बहनों को बेचने से भी गुरेज नहीं करने वाले हैं इसलिए इनके खिलाफ ऐसा ही क्या, इससे भी कई गुना कठोर दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए.

हाल की कुछ घटनाओं से मुझे कई नए अनुभव मिले हैं. जहॉ पहले मैं समझता था कि अधिकांश युवा, बुद्धिजीवी और गैर-सरकारी संगठन वाकई देश हित में कार्य कर रहे हैं वहीं अब मैं स्पष्ट कह सकता हूं कि नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. हमारे ही बीच कुछ ऐसे लोग पनप रहे हैं जो खाते तो देश की हैं किंतु काम करते हैं देशद्रोहियों के लिए.

और उस पर तुर्रा ये कि सब कुछ गरीब आदिवासियों के नाम पर होता है। गरीबों के खून से पोषण पाने वाले इन दलालों को ये अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि भारत भूमि के खिलाफ युद्ध का आरंभ करने वाले किसी भी व्यक्ति, संगठन या देश को कुचल दिया जाएगा. अभी भी देश में द्रोहियों से अधिक संख्या देशभक्तों की है जो किसी भी आतंकी और नक्सली का समूल विनाश करने में सक्षम हैं. आजकल एक नया ट्रेंड यह देखने में यह आ रहा है कि कई लोग अत्याधिक उदार बनने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि उदारता कहॉ दिखानी है और कहॉ कठोरता होनी चाहिए। इस नासमझी में वे अनायास देशद्रोह के लिए बीज तैयार करने लगते हैं. और यह चलन मीडिया की वजह से और भी अधिक बढ़ रहा है.


आर के पांडेय,

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