Wednesday, May 19, 2010

एसपीओ बने नक्सलियों की आंख की किरकिरी

रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में शामिल पुलिस जवानों की आंख के रूप में विख्यात विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) नक्सलियों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। यहीं कारण है कि नक्सली समय.समय पर इन एसपीओ को निशाना बनाने से नहीं चूकते हैं।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में वर्ष 2005 में जब जन-आंदोलन सलवा जुडूम की शुरुवात हुई तब से नक्सलियों ने इस इलाके में पुलिस तथा अपने खिलाफ खड़े होने वाले आदिवासियों के खिलाफ एक युद्ध छेड़ दिया है। वर्ष 2005 से लेकर अब तक इन पांच सालों में नक्सलियों ने तीन हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली हैं जिनमें पुलिस कर्मी, विशेष पुलिस अधिकारी और आम आदमी शामिल हैं।

बस्तर में लड़ने वाले अर्ध सैनिक बलों और पुलिस जवानों में एसपीओ का नाम सबसे अंत में भले ही आता है लेकिन यहीं एसपीओ आज बाहर से आने वाले केन्द्रीय बल और राज्य पुलिस बल की आंख के रूप में काम करते हैं।

दंतेवाड़ा जिले में जब सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुवात हुई तब नक्सलियों ने भारी संख्या में आदिवासियों को निशाना बनाना शुरू किया और उनका मुख्य निशाना सलवा जुडूम शिविर था। इस शिविर में रहने वाले आदिवासी युवकों ने जब नक्सलियों के खिलाफ खड़े होने की बात कही तब इन्हें ट्रेंनिग देकर विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्ति दी गई वहीं इसमें कुछ ऐसे युवक भी शामिल थे जो नक्सलियों की हिंसा को देखकर उनसे अलग हो गए थे। राज्य के पुलिस विभाग के प्रवक्ता आर के विज बताते हैं कि पिछले तीन दशक से छत्तीसगढ़ में आम आदमी के लिए लड़ने की बात कह हिंसा फैला रहे नक्सलियों ने सबसे पहले आदिवासी संस्कृति पर ही धावा बोला और उनके हाट बाजार बंद करवा दिए तथा पूजा स्थलों को क्षतिग्रस्त कर दिया।

नक्सलियों की इन हरकतों से आदिवासी परेशान थे और उन्हें अपनी ही जमीन पर अपनी ही संस्कृति से बेदखल होने का दुख था। वर्ष 2005 में जब सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुवात हुई तब आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने पुलिस का साथ देने का बीड़ा उठाया।

राज्य सरकार ने जब इन्हें एसपीओ बनाने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा तब केन्द्र सरकार ने इनके लिए 15 सौ रुपए प्रतिमाह का मानदेय निर्धारित करते हुए राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर मोहर लगा दी। बाद में इनके मानदेय में 650 रुपए प्रतिमाह की बढ़ोतरी कर दी गई।

पिछले माह जब राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह बस्तर के प्रवास पर थे तब उन्होंने एसपीओ को तीन हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय और तीन रुपए किलो प्रति किलो के दर से प्रतिमाह 35 किलो चावल देने की घोषणा की गई। आज बस्तर क्षेत्र में लगभग चार हजार एसपीओ काम कर रहे हैं।

राज्य के दंतेवाड़ा जिले में सलवा जुडूम की शुरुवात हुई और यहां के आदिवासी युवक एसपीओ बन गए तब से यह एसपीओ नक्सलियों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं।

राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि एसपीओ क्षेत्र के आदिवासी युवक है और वे जंगल, पहाड़ों और यहां के भूगोल से भली भांति परिचित हैं। नक्सलियों के खिलाफ लड़ रहे फोर्स को यह एसपीओ रास्ता बताने में जैसे महत्वपूर्ण काम करते हैं। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि एसपीओ के भरोसे सुरक्षा बलों ने कई बड़े अभियान भी चलाए हैं और उन्हें सफलता भी मिली है। एसपीओ स्थानीय नक्सली नेताओं को भी पहचानते हैं और उन्हें गिरफ्तार करवाने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। इससे नक्सली एसपीओ से नाराज हैं और इन्हें लगातार नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं और जब इन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं तब वे इनके परिवार वालों की हत्या करने से नहीं चूकते हैं।

ऐसी ही एक घटना में नक्सलियों ने वर्ष 2007 में एसपीओ और पुलिस के रानीबोदली शिविर में हमला कर 55 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था जिसमें 39 एसपीओ शामिल थे।

अधिकारियों के मुताबिक राज्य शासन अब एसपीओ को पुलिस की नियमित भर्ती में प्रमुखता दे रहा है और कई एसपीओ आज सिपाही में रूप में भर्ती हैं। इस महीने की 17 तारीख को जब यात्री बस पर हमला किया गयाय और 31 लोगों की हत्या की गई तब इसमें 15 पुलिसकर्मी भी शहीद हुए जिसमें पांच एसपीओ थे और 11 एसपीओ से सिपाही बने जवान थे।

पुलिस अधिकारी कहते हैं कि नक्सली इस बात से नाराज हैं कि जिन स्थानीय लोगों को डराकर वे राज करना चाहते हैं वही आज पुलिस का साथ दे रहे हैं तथा पुलिस जंगल में कामयाब भी हो रही है। पुलिस एसपीओ को जंगल में आंख समझती हैं तो नक्सली आंख की किरकिरी।

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