Monday, May 24, 2010

असल सिपाही तो है आम आदमी

मुशीरूल हसन, इतिहासकार व राजनीतिक चिंतक
आंतरिक सुरक्षा का सवाल बेहद पेचीदा होता जा रहा है, आपके अनुसार लोकतंत्र में आंतरिक सुरक्षा का विमर्श और ढा़चा किस तरह का होना चाहिए? लोकतंत्र में बड़ी ताकत होती है। इसकी बड़ी अहमियत है। आज आम जनता को इस ताकत व अहमियत के प्रति संवेदनशील बनाने और जागृत करने की जरूरत है। हमें उन्हें बताना है कि इस लोकतंत्र के साथ उनके जीवन के कौन–कौन से हित गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं और किस तरह वे लोकतंत्र में अपने दावे को और ज्यादा बढा़ सकते हैं। आम जनता के संवेदीकरण और जागृति की इसी निरंतर चलती रहने वाली प्रक्रिया के जरिए स्थायित्व और आंतरिक शांति कायम हो सकती है। हमारे यहां बहुत सी अच्छी संस्थाएं हैं, मसलन राष्ट्रीय एकता परिषद और अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यक आयोग। आज इन संस्थाओं को आम जनता तक पहुंचने की भी जरूरत है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि जनता ही सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटर और लोकतंत्र की सबसे दृढ़ रक्षक होती है। हमने इस बात को सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में साबित होते देखा है। आंतरिक सुरक्षा व लोकतंत्र की बात उठते ही आतंकवाद पर चर्चा होने लगती है, जिनमें ‘इस्लामी’ आतंकवाद, उत्तर–पूर्व का अलगाववाद तथा माआ॓वादी आतंक प्रमुख हैं। लेकिन पिछले बीस वर्षों में ‘हिंदू आतंकवाद’ के रूप में एक नया खतरा उपस्थित हुआ है। इस ‘हिंदू’ आतंकवाद की अनेक जंगी टुकड़ियां हैं, जिन्होंने 1992 से अब तक काफी ताकत हासिल कर ली है। मालेगांव, अजमेर, कर्नाटक, गोवा की वारदातों में इनके हाथ रहे हैं। आप इस नए खतरे को कैसे देखते हैं? आतंकवाद एक बला है जो सभी तक फैल सकती है। जैसा कि मैंने पहले कहा कि जब राज्य और लोकतंत्र में जनता की दावेदारी बढ़ेगी, तब जनता खुद ही नफरत की भावना से परहेज करेगी और इस या उस आतंकी खतरे व चुनौती से निबट लेगी। लेकिन, हां... इसके लिए राज्य और सरकारी एजेंसियों को नए ढ़ंग से कारगर रणनीति बनाकर आगे बढ़ना होगा। क्या हिंदुस्तान के संवैधानिक गणतंत्र में गरीब मजदूर–किसानों, नौजवानों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और राष्ट्रीयताओं की लोकतांत्रिक आकांक्षाएं पूरी हुईं और राज्य ने उन्हें राजनीतिक स्वाधीनता के माहौल में जीने दिया? हिंदुस्तानी स्टेट (राज्य) का चरित्र लोकतांत्रिक और सेकुलर रहा है। इस चरित्र को बनाए रखने में आम जनता की बड़ी भूमिका रही है। समय–समय पर इस चरित्र पर आंच आती रही, लेकिन जनता ने अपनी बातों के जरिए, अपनी मुहिम के जरिए राज्य के इस चरित्र को सुरक्षित रखा और बार–बार ‘सेकुलर मैनडेट’ (धर्मनिरपेक्ष जनादेश) दिया। हथियार और हिंसा समस्याओं के हल नहीं हैं। जो सवाल हैं, उन्हें जनवादी उसूलों के दायरे में ही मनवाने की कोशिश करनी चाहिए। आज जरूरत है कि अल्पसंख्यक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बढ़–चढ़कर भागीदारी करें और नीतियों व कार्यक्रमों को प्रभावित करें। चंद सालों में कई नई योजनाएं आयी हैं... सूचना का अधिकार कानून, रोजगार गारंटी कानून... महिला आरक्षण कानून आने वाला है। इन सबसे एक बडा़ बदलाव आयेगा। अगर इन सब पर सही तरीके से अमल किया गया तो न सिर्फ गरीब–मेहनतकशों को फायदा मिलेगा, बल्कि उनकी आवाज भी ज्यादा सुनी जाएगी। हमारे यहां संस्थाओं का क्षरण बहुत सी वजहों से हुआ है। सबसे बड़ी वजह यह रही कि संस्थाएं आम जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रहीं। जब कोई ढांचा आम जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, तो वह कमजोर हो जाता है। ऐसी हालत में भी वह आम जनता ही होती है जिसकी मदद से आप उन संस्थाओं में पुन: जान फूंक सकते हैं। आप राज्य के लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष चरित्र और आम जनता की चौकसी की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसा क्यों है कि आजादी के साठ साल बाद भी हमारे यहां सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और जातिवाद की राजनीति चलती है और लोकतंत्र खोखला होता जाता है? एक जनतांत्रिक व्यवस्था के भीतर लोकतांत्रिक और अलोकतांत्रिक दोनों ही राजनीति चला करती हैं। इन दोनों में मुठभेड़ भी चलती रहती है और इसी मुठभेड़ के जरिए लोकतांत्रिक राजनीति अपनी सर्वोच्चता हासिल करती है। राजनीतिक पार्टियों के भीतर भी यह प्रक्रिया चलती रहती है। ‘डेमोक्रेटाइजेशन’ (लोकतंत्रीकरण) एक लगातार चलती रहने वाली प्रक्रिया है। उसका कोई एक अंतिम मुकाम नहीं होता। वह हर मुकाम पर पहुंचने के बाद आगे के लिए सफर शुरू करती है। देश में एक राय यह भी है कि हम अपनी राजसत्ता के अमेरिकापरस्त–पाकिस्तानविरोधी नीतियों की वजह से आतंकवाद की चपेट में पहुंचे। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे? दुनिया बदल चुकी है... हमारी विदेश नीति में भी बदलाव आना जरूरी है। लेकिन, मैं समझता हूं कि हमारे यहां विदेश नीति के मामले में एक निरंतरता रही है। कुछ मुद्दों पर हमारे रूख में कभी बदलाव नहीं आए, जैसे फिलिस्तीन का मुद्दा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ हमारे रिश्ते मजबूत हुए हैं। चीन से ताल्लुकात बेहतर हो रहे हैं जो एक बड़ी अच्छी बात है। रूस के साथ रिश्ता बना हुआ है। पहली बार चिली जैसे लातिनी अमरीकी देश के साथ व्यापार में इजाफा हुआ है। श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ रिश्ते भिन्न–भिन्न वजहों से अच्छे हो रहे हैं।

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