गोरिल्ला वार के जरिये चुनौती बन रहे नक्सलियों से मुकाबले के लिए सन् 2005 तक देश के किसी भी राज्य में ऐसा कोई प्रशिक्षण केन्द्र नहीं था, जहां पुलिस अधिकारी-कर्मियों को नक्सलियों से लड़ना सिखाया जाता. नतीजा पुलिस वालों को मारकर नक्सली चुनौती पेश करते रहे. पहली बार कांकेर में सीटीजेडब्ल्यूसी की स्थापना कर छत्तीसगढ़ ने नक्सलियों को जवाब दिया. गौरतलब है कि 1983 में बस्तर में नेशनल पार्क दलम के गठन के साथ ही नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में अपना पैर जमाना शुरु किया. हालाकि इससे कुछ साल पहले ही यहां नक्सलियों की आमदरफ्त शुरु चुकी थी. पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्रप्रदेश समेत कई राज्यों में नक्सली गतिविधियां बढ़ती जा रही थी. 2005 के पहले तक नक्सलियों ने देश के कई राज्यों के बड़े हिस्से में कब्जा कर अपनी समानांतर सत्ता शुरु कर दी. गोरिल्ला वार के जरिये हजारों पुलिस अधिकारियों-कर्मियों की जान ले ली. पुलिस के पास इसका जवाब देने के लिए न कोई नीति थी और न ही गोरिल्ला वार में प्रशिक्षण के लिए कोई केन्द्र. पहली बार छत्तीसगढ़ ने इस दिशा में विचार करने के साथ ही अपने पुलिस अधिकारियों-कर्मियों को गोरिल्ला वार में प्रशिक्षित करने सीटीजेडब्ल्यूसी की स्थापना की. पोनवार का इंतजार यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना के जवानों को गोरिल्ला वार में दक्ष करने के लिए मिजोरम के कोलाशिप जिले में वारंगटे नामक स्थान पर प्रशिक्षण संस्थान है पर समूचे भारत में ऐसा कोई प्रशिक्षण केन्द्र 2005 तक नहीं था, जहां पुलिस के अधिकारियों-कर्मियों को ऐसे युध्द के लिए प्रशिक्षण दिलाया जा सके. हालांकि सेना के प्रशिक्षण केन्द्र में सशस्त्र बल और पुलिस के अधिकारियों-कर्मियों को प्रशिक्षण दिलाया जा रहा था लेकिन गोरिल्ला वार में दक्ष नक्सलियों की बढ़ती संख्या और प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षण प्राप्त पुलिस अधिकारियों-कर्मियों की जरुरत को पूरा करना चुनौती थी. यह संयोग ही है कि सेना के जवानों को गोरिल्ला वार में दक्ष बनाने वाले ब्रिगेडियर बी.के. पोनवार मार्च 2005 में वारंगटे में सेवानिवृत्त हुए और दूसरी ओर छत्तीसगढ़ उनका इंतजार कर रहा था. कांकेर में सीटीजेडब्ल्यूसी यानी काउंटर टेरेरिस्ट जंगलवार फेयर कॉलेज की स्थापना हुई और एक अप्रैल 05 को श्री पोनवार ने बतौर निदेशक कार्यभार संभाल लिया. लेफ्टिनेंट कर्नल रवि कुमार और मेजर कोटनीश जैसे अधिकारियों की अथक मेहनत से यहां फायरिंग रेंज समेत कई तरह के प्रशिक्षण स्थलों का विकास हुआ. इसका नतीजा ही है कि स्थापना के महज चार महीनों के भीतर अगस्त 05 में पहला प्रशिक्षण सत्र (यंग कमांडो) शुरु हो गया. जनवरी 2010 तक यहां 11 हजार 866 पुलिस अधिकारी-कर्मियों ने प्रशिक्षण लिया. इनमें आईपीएस और छत्तीसगढ़ पुलिस के अलावा पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड, उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारी-कर्मी शामिल हैं. पांच सौ एकड़ जमीन चाहिए सीटीजेडब्ल्यूसी के लिए शुरुआती दौर में 165 एकड़ जमीन मांगी गई, इसके विरुध्द 68.12 एकड़ जमीन आबंटित की गई. हालांकि प्रशिक्षण केन्द्र के आसपास की दो सौ एकड़ जमीन कलेक्टर की अनुमति से प्रशिक्षण केन्द्र के अधीन आ चुकी है. सुरक्षा और फायरिंग प्रशिक्षण रेंज को ध्यान में रखते हुए करीब पांच सौ एकड़ जमीन की जरुरत है. तीन नदियों समेत कई नालों और बड़े-बड़े पहाड़ों को समेटे सीटीजेडब्ल्यूसी वाकई गोरिल्ला वार में दक्षता हासिल करने के लिए सक्षम प्रशिक्षण केन्द्र है. यहां प्रशिक्षण देने के लिए हर तरह का स्थान हैं. ऐसे पहाड़ हैं जहां केवल रस्सी से ही चढ़ा-उतरा जा सकता है. झाड़ियों वाले जंगल में घातक किस्म के वन्य पशुओं का खतरा रहता है तो ऐसे जंगल में भटक जाना सामान्य है. यहां पहले खतरे की बारीकी से जानकारी दी जाती है और बाद में खतरे के बीच उससे मुकाबले करना सीखाया जाता है. सुबह से शुरु होकर रात तक और रात में भी प्रशिक्षण दिया जाता है. पहाड़ी, जंगल, नदी, नाले, झाड़ियों के बीच बैठ कर प्रशिक्षण आसान नहीं है तो धूप, ठंड और बारिश के दौरान भी प्रशिक्षण जारी रहता है. इन तमाम परिस्थितियों के बीच रहते हुए पुलिस पर हमले कर अपना बचाव करने का दूसरा नाम ही नक्सलियों का गोरिल्ला वार है तो पुलिस भी उसी नीति को अपनाते हुए नक्सलियों को जवाब देने के लिए प्रशिक्षित हो रही है. 'रमन टॉप' यानी... मौसम चाहे जैसा हो, जंगल के किसी भी हिस्से में, पहाड़ी पर टेंट में ही रहना पहली शर्त है तो ऐसे प्रशिक्षण कोर्स भी हैं जिसे जानकर कोई भी भाग सकता है. चार दिन के लिए निर्धारित राशन देकर बतौर प्रशिक्षण जंगल में छोड़ दिया जाता है. दिन-रात टास्क पूरा करते रहे. इसी बीच भोजन-आराम भी. सतर्क नहीं रहे तो छद्म दुश्मन के हाथों परास्त होना भी तय है. यहां सारे प्रशिक्षण केन्द्र भालु, शेर, नाग समेत कई वन्य पशुओं के नाम पर ही हैं. दिलचस्प है कि एक प्रशिक्षण केन्द्र मुख्यमंत्री रमन सिंह के नाम पर भी है. करीब सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्रशिक्षण केन्द्र 'रमन टॉप' पर हेलीकॉप्टर का प्रतिरुप स्थापित किया गया है. यहां बेहद मुश्किल खड़ी चढ़ाई से पहुंचा जा सकता है. प्रशिक्षु जवान इस हेलीकॉप्टर पर चढ़ने के बाद रस्सी से नीचे उतरने के साथ ही कुछ सेकेन्ड के भीतर कई गङ्ढों में कूदते हुए सैकड़ों फीट गहराई में उतर जाते हैं. चूक की कोई गुंजाइश नहीं होने का मतलब ही गोरिल्ला वार में पारंगत कमांडो है.
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