Tuesday, May 18, 2010

मानवता के दुश्मनों को मसलने का सही वक्त

राज हिन्दुस्तानी
सोमवार को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में रणनीति बदलकर निहत्थे और निर्दोष ग्रामीणों का भी खून बहाया। बारूदी विस्फोट करके उन्होंने एक यात्री बस उड़ा दी। अभी तक नक्सली यह कहते रहे कि वे वनवासियों के हिमायती हैं, उनके हक और अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन इस घटना के बाद यह साबित हो गया कि नक्सली उन वनवासियों के कतई सगे नहीं हैं,जिनके नाम पर वे सरकार से हिंसक लड़ाई लड़ रहे हैं। कुछ दिनों पहले नक्सलियों ने जनगणना का विरोध करते हुए ११ सूत्री माँग-पत्र जारी किया था, जिसमें कई ऐसी बातें थीं, जिन्हें पढ़कर लगा कि नक्सली वनवासियों के चिंतक हो सकते हैं।


उनके माँग-पत्र में सभी को रोजगार और राशन कार्ड देने की बात थी। उन्होंने हर पंचायत में अस्पताल खोले जाने और दवा वितरण पर जोर दिया था। स्थापित आश्रमों को फिर से ग्रामों में संचालित करने और हर पंचायत में पहली से आठवीं तक आश्रम स्कूल खोलने का मुद्दा उठाया था। इन माँगों को सरकार के साथ मिल-बैठकर भी पूरा कराया जा सकता है। इसके लिए निर्दोषों का लहू बहाने की कोई जरूरत नहीं। सरकार खुद भी विभिन्न कल्याणकारी योजनाएँ चलाकर वनवासियों की जरूरतें पूरी कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह बराबर यह प्रयास करते रहे हैं कि नक्सली समर्पण कर मुख्यधारा में लौट आएँ और बेहतर जिंदगी की शुरुआत करें। केंद्र सरकार भी नक्सलियों के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाए हुए है कि शायद वे देर-सबेर सुधरें, लेकिन जिस तरह की लड़ाई नक्सली अब लड़ रहे हैं, उससे तो सरकार को अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए मुँहतोड़ जवाब देना ही होगा। बहुत हो चुका नक्सलियों को समझाना, मुख्यधारा में लौटने का आग्रह करना, बातचीत के लिए रास्ता खुला रखना, बैठक, बयानबाजी, निंदा, आक्रोश, शांतियात्रा। अब तो वही कार्रवाई जायज होगी, जिससे नक्सलियों का सफाया हो सके। उनके प्रति तनिक भी नरमी छत्तीसगढ़ के विकास के लिए घातक होगी। कथित मानवाधिकारवादियों के विरोध की परवाह न करते हुए हर वह कदम उठाया जाए, जिससे पैशाचिक प्रवृत्ति वाले नक्सली छत्तीसगढ़ की पावन माटी को अब और खून से न रंगने पाएँ। बहुत खेल चुके वे खून की होली, अब उन्हें यह जता देना है कि सरकार किसी मामले में कमजोर नहीं है। वह तो संभलने व सुधरने का मौका दे रही थी।


अब तो चाहे नक्सलियों के खात्मे के लिए वायुसेना का सहारा लेना पड़े या मौजूदा पुलिस बल बढ़ाना पड़े, कुछ भी करना पड़े, लेकिन मानवता के इन विरोधियों को समूल मिटाना होगा। जो लोग देश को आंतरिक रूप से कमजोर करने की कोशिश में लगे हुए हैं, उनके फन को कुचलना समय की माँग है। राज्य में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव से बौखलाए नक्सलियों को ठिकाने लगाने का यही सही वक्त है। वरना वे बौखलाहट में आम जनता को और भी अधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं। वनवासी भी यह समझें कि नक्सली उनके कितने शुभचिंतक हो सकते हैं। गाँव के लोग एकजुट होकर नक्सलियों का विरोध करें, वे डरे नहीं कि नक्सली उन पर हमला करेंगे। यह डर और पनाह देने का ही दुष्परिणाम है कि नक्सली आज समूचे छत्तीसगढ़ में अपने पैर जमाकर राज्य के विकास के लिए घातक बने हुए हैं।

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