Thursday, May 20, 2010

नक्सलवाद का सच



विश्वरंजन

पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ


नक्सलवाद या माओवाद का सच वह नहीं है जो कुछ बुद्धिजीवियों या कुछ मानवाधिकार संगठनों या मीडिया के ज़रिये प्रसारित-प्रचारित होता आया है । माओवाद का सच उनके गोपनीय दस्तावेज़ों के ज़रिये पता लगता है जिसकी जानकारी आम जनता को नहीं होता । परन्तु माओवाद का सच जानने समझने के बहुत से रास्ते और भी हैं । माओवाद को समझने का एक रास्ता माओवादी चीन के इतिहास पढ़ने से खुलता है । कैसे माओ ने झूठ और दिल दहला देने वाली हिंसा का इस्तेमाल किया, चीन पर काबिज़ होने के लिये ? कैसे चीन में माओवादी सत्ता परिवर्तन के बाद आम नागरिकों से असहमति के अधिकार से वंचित किया गया ? कैसे सौ फूलों को खिलने दो का मुहिम चला कर माओ ने लोगों को असहमत होने अधिकार सिर्फ़ इस उद्देश्य से लौटाया कि उसे मालूम हो जाये कि चीन में कौन लोग हैं जो उसकी नीति और नियत पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं और कैसे उनमें से हर को सांस्कृतिक क्रांति के ज़माने में चुन-चुन कर मारा गया या उन्हें सार्वजनिक रूप से ज़लील किया गया । उन पर थूका गया । उनके बाल मुड़ा दिये गये । उनके घुटने तोड़े गये । औरतों और बच्चों के साथ भी रहम नहीं किया गया। एक और तरीक़ा है माओवादी सच तक पहुँचने का । और वह है भारत में माओवादी घटनाओं का सही विश्लेषण... । परन्तु पता नहीं क्यों हम यह सब नहीं करते हैं और हमारे गणतांत्रिक व्यवस्था में जो माओवादी घुसपैठिये हैं उन्हें ज़्यादा तवज्जो देते हैं ।


चलिए, हम और आप माओवादी हरक़तों का विश्लेषण करें । उनकी कथनी और करनी में फ़र्क करना सीखें । माओवादी कहते हैं कि वे एक समतावादी समाज का गठन करना चाहते हैं और उसके लिये वे एक हिंसात्मक युद्ध करने के लिए तैयार हैं । अधिक दूर मत जायें, सिर्फ आप बस्तर की स्थिति पर ग़ौर करें । वहाँ नक्सलियों द्वारा कौन मारा जा रहा है ? माओवादी वहाँ के अमीर तबक़े के लोगों को नहीं ज़्यादातर ग़रीब तबक़े के आदिवासियों को ही मार रहे हैं । अमीर से तो वह पैसे बटोर रहे हैं और ग़रीब आदिवीसी सिर्फ़ इसलिये मारे जा रहे हैं क्योंकि उनमें से बहुतों ने माओवादी क्रियाकलापों पर अपनी असहमति व्यक्त की । आपको प्रश्न करना चाहिये कि क्यों बस्तर की तमाम सड़कें बारूद से क्षतिग्रस्त किये गये ? क्यों आदिवासियों के बहुत सारे हाट बाज़ार बंद किये गये ? क्यों स्कूली भवनों को ध्वस्त किये गये ? क्यों आदिवासी परिवारों से ज़बरन बच्चों को, बच्चियों को वे ले जाते हैं । अपने तौर-तरीक़ों और सोच में प्रशिक्षित करने.... । क्यों उन्होंने बस्तर के हर इलाक़े में लैंड माइंस बिछा रखा है ? क्या इन लैंड-माइंसों में आम आदिवासी नहीं फँसता ? निश्चित ही फँसता है और मारा जाता है । इन सब तथ्यों से बस्तर में माओवादी कार्यकलापों से साफ़ ज़ाहिर हो जायेगा कि ग़रीब आदिवासी के बेहत्तरी के लिए नहं सत्ता हथियाना माओवादियों का एकमात्र उद्देश्य है । और सत्ता में आने के लिए पूर्व भी जिस तरह का आंतकी और हिंसात्मक रूप वे दिखा रहे हैं तो फिर ज़रा सोचिए कि सत्ता में आ जाने के बाद वे हिंसा के किन आयामों को छुएँगे?


क्योंकि हम सही प्रश्न नहीं करते हैं इसलिए गणतांत्रिक व्यवस्था में जो माओवादी घुसपैठिये हैं उनकी बातों में आ जाते हैं । यह अमूमन कहा जाता है कि पिछड़ापन माओवाद का कारण है । परन्तु इस बात पर कोई प्रश्न नहीं उठाता कि बस्तर में जो कुछ भी विकास आदिवासियों के लिये किया गया था; पिछले पचास सालों से, उन्हें नक्सलियों ने ध्वस्त क्यों किया ? आज भी विकास कार्य में जुड़े अमलों को बस्तर के इलाकों में विकास कार्य संपादित करने से नक्सली क्यों रोकते हैं ? पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि नक्सली वास्तव में बस्तरिहा आदिवासी और पिछड़े जन के बहुप्रतीक्षित और कथित विकास की बहाली के लिए कटिबद्ध थे तो क्यों कर उन्होंने बहुआयामी विकास के संवैधानिक, नैतिक, सर्वमान्य तरीकों पर चिंतन-मनन कर सर्वग्राह्य निष्कर्षों पर काम करना उचित नहीं समझा ? आख़िर क्योंकर वे एक विद्रोहात्मक रास्तों पर आदिवासियों को खींचने लगे जिसका अंत परिणाम केवल ध्वंस है । यह प्रश्व भी स्वाभाविक है कि उनके पास विकास का वह कौन सा माडल था जिसके मूल में अस्त्र-शस्त्र का एकत्रीकरण भी शुरुआती दौर में प्रमुख लक्ष्य रहा है । रचनात्मक विकास के कोई उदाहरण आख़िर कार क्यों अब तक नक्सली प्रस्तुत नहीं कर सके हैं । और फिर यह भी नहीं पूछा जाता है कि जो ख़ुद हिंसा और युद्ध का सहारा लेकर सत्ता पर काबिज़ होना चाहता हैं, उसके ख़िलाफ़ अगर राज्य न्यायोचित हिंसा का सहारा लेकर रोकने का प्रयास करता है तो राज्य के नकसल विरोधी आपरेशन को रोकने का बहुआयामी प्रयास सभ्य समाज में घुसे नक्सली घुसपैठिये क्यों करते हैं?


यदि हम इन प्रश्नों को नहीं पूछेंगे और इन प्रश्नों का उत्तर खोजने की कोशिश नहीं करेंगे तो हम ग़फ़लतों का शिकार होते रहेंगे और नक्सली प्रोपेगैंडा, झूठ और अर्धसत्यों के शिकार होते रहेंगे । माओवादी सच दरअसल एक हिंसात्मक युद्ध के ज़रिये गणतांत्रिक व्यवस्था को दरक़िनार कर एक ऐसी तानाशाही व्यवस्था क़ायम करने का षडयंत्र है जो यदि कामयाब हो गया तो आप-हम-सब को जो कुछ भी अधिकार एक गणतांत्रिक व्यवस्था में मिले हुए हैं, वे सब हमसे छीन लिये जायेंगे । हमारी स्वतंत्रता, हमारी अस्मिता सब कुछ हमसे छीन ली जायेगी । दरअसल माओवादी सच यही है!

अमृत संदेश, रायपुर, २० मई, २०१० से साभार

1 comment:

  1. main sahmat hun aapse. par ek sacchaai yah bhi hai ki naxalvaad khatm karne men sarkaar ke paas paryaapt ichhaashakti ki kami hai. is desh men maovaad ke liye prakruti ne koi isthaan upalabdha nahin karaayaa hai. budhhijiviyon ko aayaatit vichaar ki apekshaa swadeshi vichaar se bhaartiya parivesh men chintan karnaa chaahiye.

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