रायपुर। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में पुलिस ने तीन नक्सलियों को गिरफ्तार कर हथियार और विस्फोटक सामाग्री बरामद की। कांकेर जिले के पुलिस अधीक्षक अजय यादव ने बताया कि जिले के रावघाट थाना क्षेत्र के अंतर्गत निब्रा गांव के जंगल में जिला पुलिस बल, विशेष पुलिस अधिकारी और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के संयुक्त दल ने तीन नक्सलियों को गिरफ्तार किया तथा उनसे हथियार और विस्फोटक सामाग्री बरामद की।
यादव ने बताया कि निब्रा के जंगल में नक्सली गतिविधि की सूचना पर रावघाट थाना से पुलिस दल रवाना किया गया था। पुलिस दल जब जंगल पहुंचा तब नक्सली वहां से भागने लगे। पुलिस ने जंगल में घेराबंदी की और तीन नक्सलियों को गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने नक्सलियों से एक भरमार बंदूक, बारूदी सुरंग, डेटोनेटर और वायर समेत अन्य नक्सल समाग्री बरामद की।
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पुलिस को जानकारी मिली है कि तीनों नक्सलियों के खिलाफ क्षेत्र के विभिन्न थानों में हत्या और हत्या के प्रयास समेत अन्य मामले दर्ज हैं। पुलिस नक्सलियों से पूछताछ कर रही है।
कोलकाता । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर माओवादियों को हिंसा छोड़ने और बातचीत के लिए आगे आने का संदेश देने के बाद शीर्ष माओवादी नेता किशनजी ने मंगलवार को दोनों पक्षों की ओर से तीन महीने के संघर्ष विराम का और शांति प्रक्रिया के लिए बातचीत का सुझाव दिया।
किशनजी ने एक अज्ञात स्थान से बताया कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधनों में माओवादियों से हिंसा छोड़ने की अपील की है। हम कभी हिंसा के पक्ष में नहीं रहे बल्कि सरकार ने हमें हथियार उठाने के लिए उकसाया है।
किशनजी ने कहा कि जब हमारे कामरेड आजाद बातचीत के लिए आधार तैयार कर रहे थे तो उन्हें धोखेबाजी से मार दिया गया, इसलिए सरकार की गतिविधियों से यह बहुत स्पष्ट है कि वे बिल्कुल शांति नहीं चाहते। माओवादी नेता ने दावा किया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से कुछ खबरें आई हैं कि ममता बनर्जी को मध्यस्थ के तौर पर काम करने के लिए कहा गया है। यदि वह तैयार हो जाती हैं तो हमें कोई समस्या नहीं है।
किशनजी ने कुछ मध्यस्थों के नाम भी सुझाए। जिनमें लेखिका अरुंधति राय, गायक और तणमूल कांग्रेस सांसद कबीर सुमन, बीडी शर्मा, गोपाल नारलेकर और रमन्ना आदि नाम हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन हम तब तक एकपक्षीय तरीके से संघर्षविराम घोषित नहीं करेंगे जब तक कि सरकार की तरफ से कुछ सकारात्मक कदम नहीं उठाए जाएं।
किशनजी ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री देश के समस्याग्रस्त इलाकों में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करना चाहते हैं तो उन्हें संयुक्त बलों को वापस लेने का और आजाद की हत्या के मामले में न्यायिक जांच का आदेश देना होगा। किशनजी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में आतंकवाद और भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प लिया था।
उन्होंने कहा कि हम हमेशा आतंकवाद और किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं। भ्रष्टाचार से लड़ना हमारी पार्टी का विचार रहा है और इसलिए हम पूरे देश में लोगों को तैयार कर रहे हैं कि वे उनके साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं। पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और झारखंड में सूखे का जिक्र करते हुए किशनजी ने कहा कि हम सरकार से अपील करते हैं कि इन राज्यों के प्रत्येक सूखा प्रभावित जिले के लिए 50 करोड़ रुपये को मंजूरी दें।
उन्होंने यह मांग भी की कि पुलिस बल के आधुनिकीकरण के लिए स्वीकृत आठ हजार करोड़ रुपये और नक्सल रोधी अभियान पर हर दिन खर्च किए जा रहे 60 लाख रुपये का इस्तेमाल देश के कम विकसित जिलों में रोजगार और आय बढ़ाने की योजनाओं में किया जाए।
गुरुआ (गया) । प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के हथियारबंद दस्ते ने जिले के गुरारू थाना के मंगरावां गांव में स्थित एक निजी कंपनी के मोबाइल टावर, जेनरेटर और डीजी मशीन को पेट्रोल छिड़ककर गत सोमवार की रात आग लगा दी।
नक्सली केन्द्र सरकार के आपरेशन ग्रीन हंट के विरोध में नारेबाजी की। साथ ही चेतावनी दी है कि यदि आपरेशन ग्रीनहंट के तहत कार्रवाई बंद नहीं हुई तो अंजाम और बुरा होगा। घटना के बाद इलाके में दहशत का माहौल है।
दंतेवाड़ा । छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष की गोली मारकर हत्या कर दी है।राज्य की पुलिस विभाग के प्रवक्ता पुलिस महानिरीक्षक आर के विज ने बताया कि दंतेवाड़ा जिले के केरलापाल गांव में नक्सलियों ने आज शाम जिले के पूर्व भाजपा अध्यक्ष बुधरा सोढ़ी की गोली मारकर हत्या कर दी है। विज ने बताया कि जिले के सुकमा कस्वे में रहने वाले सोढ़ी आज अपने रिश्तेदार के यहां वैवाहिक कार्यक्रम में शामिल होने केरलापाल गांव गए हुए थे। इस दौरान तीन नक्सलियों ने सोंढ़ी को घर से बाहर बुलाया और देशी कटे से गोली मार कर उसकी हत्या कर दी। पुलिस अधिकारी ने बताया कि घटना की जानकारी मिलते ही परिवारजनों ने सोढ़ी को अस्पताल पहुंचाया जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
विज ने बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर किया है तथा हमलावरों की खोज शुरू कर दी गई है।इधर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सोढ़ी की हत्या पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे नक्सलियों का अमानवीय क्रत्य कहा है।सिंह ने कहा है कि सोढ़ी की हत्या कर नक्सलियों ने अपने अमानवीय चेहरे को एक बार फिर उजागार किया है। नक्सलियों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर कम, हिंसा और आतंक के जरिए अपनी लोकतंत्र विरोधी निरंकुश मानसिकता का परिचय दिया है।
गौरतलब है कि राज्य का बस्तर क्षेत्र सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित क्षेत्र है तथा नक्सली यहां लगालगातार जनप्रतिनिधियों को भी निशाना बना रहे है। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में जहां भाजपा के ब्लाक अध्यक्ष की हत्या कर दी थी वहीं लगभग छह महीने पहले राज्य के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मंत्री केदार कश्यप के भाई तानसेन कश्यप की जगदलपुर जिला मुख्यालय से कुछ दूरी पर गोली मार कर हत्या कर दी थी।
६ अप्रैल, २०१० को दंतेवाड़ा के चिंतलनार में हुए हमले में शामिल नक्सली कमांडर को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। नक्सली कमांडर को सोमवार को मीडिया के सामने पेश किया गया।आरोपी कमांडर बारसे लखमा के साथ पुलिस ने 5 और लोगों को भी मीडिया के सामने पेश किया। इन तमाम लोगों की गिरफ़्तार रविवार को हुई थी।गिरफ़्तार नक्सली ने बताया कि वो हमले के दिन अपने साथ 30 लोगों के साथ चल रहा था। इन लोगों पर चिंतलनार से निकली फोर्स की निगरानी की ज़िम्मेदारी थी। नक्सली ताड़मेटला में घात लगाकर बैठ गए जहां डेढ़ घंटे तक फ़ायरिंग हुई। इस हमले में नक्सलियों ने घायल जवानों को गोली मारकर उनका सामान लूट लिया था।घटना को अंजाम देने के बाद नक्सली कमांडर पापा राव ने गांव में जाकर नक्सलियों को बधाई भी दी थी । पापा राव ने कहा था कि लड़ाई जारी रखना है।मालूम हो कि हमले के दौरान जवानों के गुम हुए वायरलेस सेट से नक्सलियों को ताज़ा जानकारी मिल रही थी । इसी जानकारी के आधार नक्सलियों ने चिंतलनार में बड़ी वारदात को अंजाम दिया जिसमें कुल 76 जवानों की मौत हुई थी । इनमें 74 सीआरपीएफ़ के जवान थे जबकि दो लोग स्थानीय पुलिस के भी थे ।
अजय साहनी, आतंकवाद विरोधी सुरक्षा विशेषज्ञ यह बड़े क्षोभ और शर्म की बात है कि हम लगातार तरह–तरह के आतंक की गिरफ्त में आते जा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा का कोई मुकम्मल तार्किक विमर्श नहीं बन पा रहा है। इस काम में बौद्धिक बेईमानी और निहित स्वार्थ सबसे बड़ी बाधा बन रहे हैं। आतंक के मुद्दों पर हर किसी के पास अपनी व्याख्या है। ऐसे लोग बहुत कम हैं जो इन मुद्दों का गहराई से अध्ययन कर तथ्यों और ऐतिहासिक रिकार्ड के आधार पर उनका विश्लेषण करना चाहते हों। इसीलिए हमें ‘विकास’, ‘राजनीतिक समाधान’ और ‘दिल व दिमाग से जीतने’ जैसे सबको पसंद में आने वाले शब्दजालों का सामना करना पड़ता है। क्या किया जाये, क्या किया जा सकता है और इनको करने में कितने संसाधनों की जरूरत है ..... इन सबको समझने की फुर्सत किसी को नहीं है। हद तो यह है कि बहुतेरे मामलों में राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों ने चरमपंथियों व देशद्रोही तत्वों के साथ सांठगांठ तक कर ली है। अपने भौगोलिक क्षेत्रों पर पूर्ण दबदबा और सभी नागरिकों के जीवन व संपति की रक्षा आंतरिक सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। न्याय का प्रावधान और कानून की व्यवस्था दूसरा अनिवार्य तत्व है। इनकी अनुपस्थिति में आंतरिक सुरक्षा बराबर ही छलावा बनी रहती है और दुस्साहसी या हथियारबंद समूह इस छलावे का इस्तेमाल करते रहते हैं। आंतरिक सुरक्षा के बुनियादी तत्वों की हिफाजत के लिए जरूरी है कि हम एक पेशेवर माहौल में अपनी इंटेलिजेंस और पुलिस की क्षमताएं बढा़ते जाएं। अफसोस की बात है कि पिछले कई दशकों में सत्ता पर काबिज होने वाली सरकारों ने सुनियोजित ढंग से देश की आंतरिक सुरक्षा के ढांचे को क्षत–विक्षत करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। आंतरिक सुरक्षा, विकास और सुशासन एक सोच है कि संसाधनों का न्यायसंगत समान वितरण, सुशासन और राजनीतिक लोकतंत्र के डिलीवरी की गारंटी ही मजबूत आंतरिक सुरक्षा के मूलाधार होते हैं। आदर्श स्थिति में यह सोच पूरी तरह सही है, लेकिन हमारे देश की जो जमीनी हकीकत है वह ऐसे किसी समाधान को अर्थहीन बना देती हैं। समता, सुशासन और लोकतंत्र के आदर्श तक हर किसी को पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए। न्याय और कानून की व्यवस्था ऐसी जरूरतें हैं जो यूटोपिया नहीं हैं। इन्हें पूरा किया जा सकता है। यह दूसरी बात है कि राज्य और उसकी एजेंसियों के लगातार क्षरण की वजह से ये जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं। हमें युद्ध स्तर पर इन कमजोरियों से लड़ना है। इसका यह भी मतलब नहीं है कि हम विकास और सुशासन के अन्य संदर्भों की चिंता ही न करें। आतंकवाद या विद्रोह हो या नहीं, राज्य का तो फर्ज ही है कि वह विकास और सुशासन की गारंटी देने का प्रयास करे । मेरा सिर्फ यह कहना है कि आंतरिक सुरक्षा से जुड़े सवालों का समाधान विकास व सुशासन से जुड़े सवालों के समाधान का मोहताज नहीं है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, रणनीति और क्षमता निर्माण आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में मुख्य समस्याएं केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति और एकीकृत रणनीति के अभाव की ही नहीं हैं। पर्याप्त क्षमताओं की कमी भी एक बड़ी समस्या है। एन.आई.ए. और प्रस्तावित एन.सी.टी.सी. जैसे ‘मेटास्ट्रक्चर्स’ (बड़े व्यापक ढांचे) पर गौर करिए ... ये ढांचे अन्य कार्यरत एजेंसियों की बेहद सीमित क्षमताओं को बढ़ाने के बजाय उन्हें हड़प रहे है। जमीनी स्तर पर पर्याप्त ‘ऑपरेशनल’ क्षमताओं के बगैर शीर्ष पर नये–नये ढांचों का निर्माण संसाधनों की बर्बादी ही है। निचले स्तरों पर भरपूर क्षमता विकास के बाद ही ‘मेटास्ट्रक्चर्स’ कारगर हो सकते हैं। अमेरिका की अफ–पाक नीति में भारत की भूमिका ‘प्रोअमेरिका–एंटीपाकिस्तान’ नीति को बदलने के बजाय ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम देश में मौजूद ‘एंटीअमेरिका व प्रोपाकिस्तान’ सोच को बदलें। हम पाकिस्तान के प्रति कुछ ज्यादा ही नरम और दिलफेंक रहे हैं। पाकिस्तान हमारी जमीन पर लगातार आतंकवादी कार्रवाईं और तोड़–फोड़ कराता रहा है, लेकिन हम अपनी क्षमताओं का तेज गति से विकास कर इस्लामाबाद पर उसके किए की कीमत चुकाने का दबाव नहीं बना पाये हैं। हमारे यहां की राजनीति इस कदर विकृत हो चुकी है कि हम आंतरिक सुरक्षा की जरूरतों को गहराई में नहीं समझ पा रहे हैं
आंतरिक सुरक्षा का सवाल बेहद पेचीदा होता जा रहा है, आपके अनुसार लोकतंत्र में आंतरिक सुरक्षा का विमर्श और ढा़चा किस तरह का होना चाहिए? लोकतंत्र में बड़ी ताकत होती है। इसकी बड़ी अहमियत है। आज आम जनता को इस ताकत व अहमियत के प्रति संवेदनशील बनाने और जागृत करने की जरूरत है। हमें उन्हें बताना है कि इस लोकतंत्र के साथ उनके जीवन के कौन–कौन से हित गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं और किस तरह वे लोकतंत्र में अपने दावे को और ज्यादा बढा़ सकते हैं। आम जनता के संवेदीकरण और जागृति की इसी निरंतर चलती रहने वाली प्रक्रिया के जरिए स्थायित्व और आंतरिक शांति कायम हो सकती है। हमारे यहां बहुत सी अच्छी संस्थाएं हैं, मसलन राष्ट्रीय एकता परिषद और अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यक आयोग। आज इन संस्थाओं को आम जनता तक पहुंचने की भी जरूरत है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि जनता ही सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटर और लोकतंत्र की सबसे दृढ़ रक्षक होती है। हमने इस बात को सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में साबित होते देखा है। आंतरिक सुरक्षा व लोकतंत्र की बात उठते ही आतंकवाद पर चर्चा होने लगती है, जिनमें ‘इस्लामी’ आतंकवाद, उत्तर–पूर्व का अलगाववाद तथा माआ॓वादी आतंक प्रमुख हैं। लेकिन पिछले बीस वर्षों में ‘हिंदू आतंकवाद’ के रूप में एक नया खतरा उपस्थित हुआ है। इस ‘हिंदू’ आतंकवाद की अनेक जंगी टुकड़ियां हैं, जिन्होंने 1992 से अब तक काफी ताकत हासिल कर ली है। मालेगांव, अजमेर, कर्नाटक, गोवा की वारदातों में इनके हाथ रहे हैं। आप इस नए खतरे को कैसे देखते हैं? आतंकवाद एक बला है जो सभी तक फैल सकती है। जैसा कि मैंने पहले कहा कि जब राज्य और लोकतंत्र में जनता की दावेदारी बढ़ेगी, तब जनता खुद ही नफरत की भावना से परहेज करेगी और इस या उस आतंकी खतरे व चुनौती से निबट लेगी। लेकिन, हां... इसके लिए राज्य और सरकारी एजेंसियों को नए ढ़ंग से कारगर रणनीति बनाकर आगे बढ़ना होगा। क्या हिंदुस्तान के संवैधानिक गणतंत्र में गरीब मजदूर–किसानों, नौजवानों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और राष्ट्रीयताओं की लोकतांत्रिक आकांक्षाएं पूरी हुईं और राज्य ने उन्हें राजनीतिक स्वाधीनता के माहौल में जीने दिया? हिंदुस्तानी स्टेट (राज्य) का चरित्र लोकतांत्रिक और सेकुलर रहा है। इस चरित्र को बनाए रखने में आम जनता की बड़ी भूमिका रही है। समय–समय पर इस चरित्र पर आंच आती रही, लेकिन जनता ने अपनी बातों के जरिए, अपनी मुहिम के जरिए राज्य के इस चरित्र को सुरक्षित रखा और बार–बार ‘सेकुलर मैनडेट’ (धर्मनिरपेक्ष जनादेश) दिया। हथियार और हिंसा समस्याओं के हल नहीं हैं। जो सवाल हैं, उन्हें जनवादी उसूलों के दायरे में ही मनवाने की कोशिश करनी चाहिए। आज जरूरत है कि अल्पसंख्यक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बढ़–चढ़कर भागीदारी करें और नीतियों व कार्यक्रमों को प्रभावित करें। चंद सालों में कई नई योजनाएं आयी हैं... सूचना का अधिकार कानून, रोजगार गारंटी कानून... महिला आरक्षण कानून आने वाला है। इन सबसे एक बडा़ बदलाव आयेगा। अगर इन सब पर सही तरीके से अमल किया गया तो न सिर्फ गरीब–मेहनतकशों को फायदा मिलेगा, बल्कि उनकी आवाज भी ज्यादा सुनी जाएगी। हमारे यहां संस्थाओं का क्षरण बहुत सी वजहों से हुआ है। सबसे बड़ी वजह यह रही कि संस्थाएं आम जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रहीं। जब कोई ढांचा आम जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, तो वह कमजोर हो जाता है। ऐसी हालत में भी वह आम जनता ही होती है जिसकी मदद से आप उन संस्थाओं में पुन: जान फूंक सकते हैं। आप राज्य के लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष चरित्र और आम जनता की चौकसी की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसा क्यों है कि आजादी के साठ साल बाद भी हमारे यहां सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और जातिवाद की राजनीति चलती है और लोकतंत्र खोखला होता जाता है? एक जनतांत्रिक व्यवस्था के भीतर लोकतांत्रिक और अलोकतांत्रिक दोनों ही राजनीति चला करती हैं। इन दोनों में मुठभेड़ भी चलती रहती है और इसी मुठभेड़ के जरिए लोकतांत्रिक राजनीति अपनी सर्वोच्चता हासिल करती है। राजनीतिक पार्टियों के भीतर भी यह प्रक्रिया चलती रहती है। ‘डेमोक्रेटाइजेशन’ (लोकतंत्रीकरण) एक लगातार चलती रहने वाली प्रक्रिया है। उसका कोई एक अंतिम मुकाम नहीं होता। वह हर मुकाम पर पहुंचने के बाद आगे के लिए सफर शुरू करती है। देश में एक राय यह भी है कि हम अपनी राजसत्ता के अमेरिकापरस्त–पाकिस्तानविरोधी नीतियों की वजह से आतंकवाद की चपेट में पहुंचे। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे? दुनिया बदल चुकी है... हमारी विदेश नीति में भी बदलाव आना जरूरी है। लेकिन, मैं समझता हूं कि हमारे यहां विदेश नीति के मामले में एक निरंतरता रही है। कुछ मुद्दों पर हमारे रूख में कभी बदलाव नहीं आए, जैसे फिलिस्तीन का मुद्दा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ हमारे रिश्ते मजबूत हुए हैं। चीन से ताल्लुकात बेहतर हो रहे हैं जो एक बड़ी अच्छी बात है। रूस के साथ रिश्ता बना हुआ है। पहली बार चिली जैसे लातिनी अमरीकी देश के साथ व्यापार में इजाफा हुआ है। श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ रिश्ते भिन्न–भिन्न वजहों से अच्छे हो रहे हैं।
आंतरिक सुरक्षा का सवाल कोई नया नहीं है। आजादी मिलने के साथ ही देश के विभिन्न हिस्से हिंसक आंदोलनों से लहूलुहान होने लगे थे। पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्य अलगाववाद के रास्ते पर चल पड़े तो दक्षिण भारत को तेलंगाना के हिंसक किसान आंदोलन का सामना करना पड़ा। पंजाब की जनता के साथ देश ने पहली बार आतंकवाद का खौफनाक चेहरा देखा। विदेशी ताकतें पिछले दो दशक से जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नागरिकों को गुमराह करके अपने नापाक मंसूबों को हवा दे रही हैं। इधर, नक्सलवाद का तेजी से उभार हुआ है जो हमारी राज्य व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा को जबरदस्त चुनौती दे रहा है। आखिर क्या है इसका समाधान? इस सवाल पर कुछ लोग जहां एक ओर नक्सलवादियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के पक्षधर हैं तो दूसरी ओर कुछ बुद्धिजीवी लोकतंत्र और राज्य व्यवस्था के प्रति आमजन की भागीदारी बढ़ाने का तर्क दे रहे हैं। आंतरिक सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं को समेटते हुए प्रस्तुत है इस बार का हस्तक्षेप- आज इस बात को अनदेखा करना असंभव हो गया है कि हमारे देश की एकता और अखंडता को जितना बडा़ खतरा सरहद पर किसी दुश्मन से है उससे कम बड़ा जोखिम आतंरिक सुरक्षा का नहीं। कोई साल भर पहले ही प्रधानमंत्री यह घोषणा कर चुके थे कि देश के सामने सबसे बड़ी सामरिक–सुरक्षा विषयक चुनौती नक्सलवादी हिंसा की है। तब से अबतक यह बात बार–बार दर्दनाक ढंग से उजागर हो चुकी है कि इस मामले में राई–रत्ती मतभेद की गुंजाइश नहीं। अतिवादी वामपंथी विद्रोही जिस तरह की खूनी वारदातों को अंजाम देते रहे हैं उससे यह बात अच्छी तरह प्रमाणित हो चुकी है कि इस समस्या को सिर्फ केन्द्र या राज्य सरकार की विफलता या हिंसा के सामाजिक–आर्थिक बुनियादी कारणों की पहेलियों में उलझाकर खारिज़ नहीं किया जा सकता। और न ही इस बहस को सिर्फ मानवाधिकारों के उल्लंघन वाली बहस तक सीमित रखा जा सकता है। दंतेवाड़ा के रक्तपात और उसके बाद की घटनाओं ने यह दर्शा दिया है कि डाक्टर विनायक सेन की गिरफ्तारी और उनके उत्पीड़न अथवा अरूंधति रॉय द्वारा वंचितों की मुखर वकालत के बावजूद भारतीय राजनीति को अराजकता की कगार पर ढकेलने वाले इन तत्वों को आदर्शवादी या बलिदानी क्रांतिकारी करार देने में जल्दबाजी नहीं की जा सकती। जहां तक मासूमों की हत्या और निरीह लोगों के मानवाधिकार की अनदेखी का प्रश्न है माआ॓वादी होने का दावा करने वालों को भी दूसरे दहशतगर्दों की तरह इस मामले में जवाबदेह बनाना ही होगा। विडंबना यह है कि आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल या आंध्रप्रदेश, उड़ीसा या महाराष्ट्र का प्रश्न हो नक्सलवादी हिंसा के कारण ही सरकारी विकास कार्यक्रमों को लागू करने में रूकावट आती रही है और इस बात को नकारना भी कठिन है कि उपद्रव ग्रस्त इलाकों में जो थोड़ा बहुत काम खनन, वन संपदा के दोहन, भवन–पुल-सड़क निर्माण की दिशा में हो भी रहा है उसके लिए निर्धारित राशि का एक बड़ा हिस्सा इन नक्सली मुखौटा पहने इन असामाजिक तत्वों की जेब में पहुंच जाता है। अरूंधति जैसे लोगों के इस कुतर्क को भी कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए कि नक्सली हिंसा सिर्फ सरकारी हिंसा के जवाब में प्रतिशोध में होने वाली प्रतिक्रिया है। फिलहाल यह बहस जारी है कि आंतरिक सुरक्षा की इस चुनौती का सामना कैसे किया जाए? कुछ लोगों का मानना है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाना चाहिए। जनतांत्रिक प्रणाली का दुरूपयोग कर उसे ही बर्बाद करने पर आमादा द्रोहियों को किसी भी रूप में संरक्षण नहीं दिया जा सकता। इन भितरघातियों के साथ वैसा ही सलूक किया जाना चाहिए जैसा कसाब के साथ अपेक्षित है। इस बिरादरी का मानना है कि नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए फौज और वायु सेना का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हालांकि इस बारे में वायु सेना अध्यक्ष और थल सेना अध्यक्ष पहले ही यह राय प्रकट कर चुके हैं कि इस तरह का बल प्रयोग देश के नागरिकों के विरूद्ध नहीं किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय भी एकाधिक बार यह स्पष्ट कर चुका है कि उसका भी ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है। यहां एक बात साफ करने की जरूरत है। सेना के तीनों अंगों का काम देश की सुरक्षा करना है, चाहे खतरा बाहर से हो या आंतरिक, उससे निपटना सेनाओं की जिम्मेदारी बनती है। सरकार के सामने असली मुश्किल यह है कि अब तक वह किसी भी देश के भीतर चाहे वह इराक हो या पाकिस्तान या पड़ोसी म्यांमार सैनिक अभियानों की आलोचक रही है। लेकिन यह बात भुलाई नहीं जानी चाहिए कि आजादी के बाद से ही देश के अनेक हिस्सों में अलगावादियों पर काबू पाने के लिए भारत सरकार ने कई बार सेना का उपयोग किया है। पूर्वोत्तर के प्रदेशों और जम्मू–कश्मीर के अलावा पंजाब में भी ऑपरेशन ब्लूस्टार इसका उदाहरण है। मणिपुर हो या जम्मू–कश्मीर दोनों ही जगह अहतियात के तौर पर सेना आज भी तैनात है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पड़ोस में श्रीलंका हो या नेपाल दोनों ने क्रमश: लिट्टे और माआ॓वादी हिंसा का सामना करने के लिए अपने नागरिकों के विरूद्ध फौजी कार्रवाई की है। ऐसे में आज इस विकल्प की बात सुझाने वालों को फांसीवादी कहकर बदनाम करना बेमानी ही समझा जा सकता है। इसका यह अर्थ कतई न निकाले कि हम इस विकल्प की हिमायत कर रहे हैं। हिंसक बगावत से सिर्फ अहिंसक तरीके से सत्याग्रही संघर्ष जारी रखना और शत्रु के हृदय परिवर्तन की बाट जोहते रहना किसी भी तरह से बुद्धिमानी नहीं समझा जा सकता। विचित्र बात यह है कि आतंरिक सुरक्षा विषयक सरकारी नीति को लेकर केन्द्रीय मंत्रिमंडल तथा सत्ताधारी दल के वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद सतह तक आ चुके हैं। दिग्विजय सिंह गृहमंत्री की अक्लमंदी पर छींटाकशी कर चुके हैं और मणिशंकर अय्यर उनके सुर में सुर मिला चुके हैं। कभी ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की राजनीति के दबाव में नक्सलियों के साथ नज़र आती है तो कभी भाजपा की बैसाखी पर टिके शिबू सोरेन झारखण्ड में जीयो और जीने दो का तराना अलापते हैं। नीतीश कुमार और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी इस समस्या का राजनैतिक संवाद के माध्यम से निपटारा चाहते हैं और हिंसक मुठभेड़ में अपने रक्षक दस्तों को हताहत होने से हर कीमत पर बचाए रखना चाहते हैं। उधर चिदंबरम यह बात दो टूक अंदाज में कह चुके हैं कि शांति और सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। भारत की मौजूदा संघीय व्यवस्था में जबतक संविधान में संशोधन नहीं होता, कथनी और करनी नीयत और नीति का अंतर विरोध दूर नहीं होगा। के. सुब्रह्मण्यम जैसे सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि आतंरिक सुरक्षा की चुनौती से निपटने के लिए राज्य पुलिस, केन्द्रीय अर्धसैनिक दस्तों और जंगली छापामारी का सामना करने के लिए विशेषरूप से प्रशिक्षित कमांडों दलों की जरूरत है। विडंबना यह है कि दंतेवाडा़ हो या गढ़चिरोली, उड़ीसा हो बंगाल नक्सलियों ने ऐसे एलीट सैनिक जवानों को ही घात लगाकर निशाना बनाया है। हर बार यही तर्क दिया जाता है कि अगर खुफिया जानकारी सुलभ हो तो ऐसी दुर्घटनाएं न हो। जाहिर है कि स्थानीय सीआईडी, आईबी और फौजी गुप्तचरी से प्राप्त सूचनाएं कही भी संतुलित ढंग से विश्लेषित नहीं हो रहीं। आला अफसर मुख्यालयों में निरापद रहते हैं या फिर उतावलेपन में खुद मोर्चा संभालने पहुंच जाते हैं, ऐसे में फोर्स की प्राथमिकता अभियान न होकर इनकी सुरक्षा करना रह जाता है। जाहिर है आतंरिक सुरक्षा के मामले में सरकारी रणनीति या गोपनीय जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जा सकती। सियासी दलों को इस विषय पर दलगत पक्षधरता से उपर उठकर सोचने की जरूरत है। अन्त में यह भी याद रखें कि आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती सिर्फ नक्सली हिंसा ही नहीं, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता और सरहद पार से देश के अस्थिर करने के लगातार किए जा रहे प्रयास भी हैं।
दंतेवाड़ा के चिंतलनार में हुए हमले में शामिल नक्सली कमांडर को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। नक्सली कमांडर को सोमवार को मीडिया के सामने पेश किया गया।आरोपी कमांडर बारसे लखमा के साथ पुलिस ने 5 और लोगों को भी मीडिया के सामने पेश किया। इन तमाम लोगों की गिरफ़्तार रविवार को हुई थी।गिरफ़्तार नक्सली ने बताया कि वो हमले के दिन अपने साथ 30 लोगों के साथ चल रहा था। इन लोगों पर चिंतलनार से निकली फोर्स की निगरानी की ज़िम्मेदारी थी। नक्सली ताड़मेटला में घात लगाकर बैठ गए जहां डेढ़ घंटे तक फ़ायरिंग हुई। इस हमले में नक्सलियों ने घायल जवानों को गोली मारकर उनका सामान लूट लिया था।घटना को अंजाम देने के बाद नक्सली कमांडर पापा राव ने गांव में जाकर नक्सलियों को बधाई भी दी थी । पापा राव ने कहा था कि लड़ाई जारी रखना है।मालूम हो कि हमले के दौरान जवानों के गुम हुए वायरलेस सेट से नक्सलियों को ताज़ा जानकारी मिल रही थी । इसी जानकारी के आधार नक्सलियों ने चिंतलनार में बड़ी वारदात को अंजाम दिया जिसमें कुल 76 जवानों की मौत हुई थी । इनमें 74 सीआरपीएफ़ के जवान थे जबकि दो लोग स्थानीय पुलिस के भी थे ।
बीजापुर। पुलिस ने भैरमगढ़ थाना क्षेत्र के संजयपारा और मुचनार के बीच घेराबंदी कर शनिवार की शाम जनमिलिशिया के नक्सली कोरसा मुन्ना(२५) पिता सन्नू को गिरफ्तार किया। आरोपी बेलनार का निवासी है। चार साल पहले तालीकोड़ में सलवा जुड़ूम की सभा से लौट रहे ग्रामीणों को बम से उड़ाने के प्रयास में यह शामिल था। इस पर हत्या के प्रयास, आगजनी आदि मामलों में शामिल होने का आरोप है। जनमिलिशिया मेम्बर की पुलिस को कई मामलों में तलाश थी।
बिलासपुर। कल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खुलासा करते हुए कहाकि अपनों के ऊपर हवाई हमला नहीं किया जाएगा। वायु सेना का उपयोग नक्सलहिंसा में आहत होने वाले जवानों की मदद के लिए किया जाएगा। प्रदेश मेंपिछले एक महीने के दौरान जो घटनाएं घटीं, इससे पूरे देश का ध्यान छत्तीसगढ़की ओर है। इसमें विकास कार्यों से लेकर नक्सली घटनाएं भी शामिल हैं।
सीएमडॉ. सिंह रविवार को यहां पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। बातचीत के दौरानउन्होंने खुलासा किया कि वायु सेना से मिलने वाली मदद का कदापि दुヒपयोगनहीं किया जाएगा। नक्सल हमले में घायल होने वाले जवानों को तत्काल चिकित्सासुविधा मुहैया कराने के अलावा ऐसे सघन इलाके, जहां सड़क मार्ग से पहुंचनाकठिन है, पर एयर सर्पोट की जरूरत महसूस की जा रही है। बारूदी सुरंगों मेंघायल होने वाले जवानों की मदद के लिए यह कारगार उपाय साबित हो सकता है।एकसवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नक्सली हिंसा का जो स्वरूप सामने आयाहै, उससे लोगों के बीच तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। एक सवाल के जवाबमें उन्होंने कहा कि नक्सली पहले गुरिल्ला युद्ध करते थे। अब पारंपरिकतरीके में बदलाव लाया है। प्रदेश सरकार भी रणनीति बनाने पर विचार कर रहीहै। इसके लिए विशेषज्ञों की टीम है। नक्सल हिंसा पर काबू पाने और नक्सलियोंको खदेड़ने के लिए जो भी जरूरी उपाय हैं, सब किए जा रहे हैं। उन्होंने कहाकि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात पैरा मिलिट्री फोर्स बेहतर ढंग से कामकर रही है। पिछले ६-७ महीने के दौरान उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।दिल्ली प्रवास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में बढ़ रही नक्सलीहिंसा, बस्तर व आसपास के इलाकों के समुचित विकास के मुद्दे को लेकरप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के अलावा भाजपा के आला नेताओं से सकारात्मक चर्चाहुई है। प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के सामने विकास कार्यों का खाका खींचागयाहै।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ के विकास केलिए योजना आयोग के अफसरों से चर्चा की गई है। सीएम ने कहा कि प्रदेश मेंचलाई जा रही मुख्यमंत्री खाद्यान सहायता योजना को एक मॉडल के रूप मेंराष्ट्रीय स्तर पर लागू करने केंद्र सरकार ने योजना बनाई है। क्रियान्वयनके संबंध में दिल्ली में छत्तीसगढ़ की ओर से प्रेजेंटेशन दिया गया है।पीडीएस के अलावा प्रदेश सरकार द्वारा कुपोषण के खिलाफ चलाई जा रही योजनाओंको लेकर भी देश में छग की एक विशेष पहचान बनी है। स्मार्ट कार्ड के जरिएगरीबों को ३० हजार रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा को लेकर भी पूरे देश मेंचर्चा छिड़ी हुई है। डॉ. सिंह ने कहा कि विकास कार्यों की दिशा में हम सतत्आगे बढ़ रहे हैं। विकास कार्यों के साथ ही सामाजिक सहभागिता में भी हम पीछेनहीं है।
बीजापुर । आवापल्ली थाना क्षेत्र के मुरदण्डा गाँव से दो दिन पहले अपहृत नोटरी सल्लूर एंकटी को नक्सलियों ने मुक्त कर दिया है। बताते हैं कि शनिवार की शाम माओवादियों ने उन्हें छोड़ दिया। अपहरण का कारण अज्ञात है। पुलिस के मुताबिक वकील से पूछताछ की गई लेकिन वे ना तो रिपोर्ट लिखाने के पक्ष में हैं और ना ही अपहरण का ब्यौरा देने के पक्ष में। वकील ने पुलिस को बताया कि नक्सलियों ने उनसे बातचीत की और फिर उन्हें छोड़ दिया। नक्सलियों से उनकी क्या बात हुई, इस बारे में नोटरी श्री एंकटी मौन हैं।
बीजापुर । कल से नक्सलियों ने मद्देड़ थाना क्षेत्र के लोदेड़ और पामगल गाँव के बारह ग्रामीणों को बंधक बना रखा है। दो दिन पहले इनका अपहरण किया गया था। इनकी पतासाजी की जा रही है। इस बारे में थाने में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है। अपहरण का कारण अज्ञात है। एसपी अविनाश मोहंती ने बताया कि पुलिस को इस बारे में सूचना मिली है लेकिन रिपोर्ट नहीं होने से इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट दर्ज होने पर ही इसकी पुष्टि की जा सकती है।
सरकार के एक बयान से नक्सलवादियों के समर्थकों और उनके दलालों की नींद उड़ सकती है. इसमें कहा गया है कि जो भी व्यक्ति या संगठन नक्सलियों के मनोबल को बढ़ाने या अन्य किसी भी प्रकार से उनका समर्थन करता पाया गया उसे दस साल तक की कैद हो सकती है. इस प्रकार की कार्यवाही गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के तहत की जाएगी. इस कानून की धारा 39 के तहत दोषी व्यक्ति को अधिकतम दस साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों ही किए जा सकते हैं.
निश्चित रूप से इस बयान ने तमाम तथाकथित बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार की बात कर अपनी स्वार्थ पूर्ति करने वाले लोगों को झटका लगाया है. अभी तक ऐसे समर्थक और दलाल भारत राष्ट्र के खिलाफ एक जंग छेड़े हुए हैं. अपनी उदर पूर्ति के लिए ये दलाल अपनी मॉ-बहनों को बेचने से भी गुरेज नहीं करने वाले हैं इसलिए इनके खिलाफ ऐसा ही क्या, इससे भी कई गुना कठोर दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए.
हाल की कुछ घटनाओं से मुझे कई नए अनुभव मिले हैं. जहॉ पहले मैं समझता था कि अधिकांश युवा, बुद्धिजीवी और गैर-सरकारी संगठन वाकई देश हित में कार्य कर रहे हैं वहीं अब मैं स्पष्ट कह सकता हूं कि नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. हमारे ही बीच कुछ ऐसे लोग पनप रहे हैं जो खाते तो देश की हैं किंतु काम करते हैं देशद्रोहियों के लिए.
और उस पर तुर्रा ये कि सब कुछ गरीब आदिवासियों के नाम पर होता है। गरीबों के खून से पोषण पाने वाले इन दलालों को ये अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि भारत भूमि के खिलाफ युद्ध का आरंभ करने वाले किसी भी व्यक्ति, संगठन या देश को कुचल दिया जाएगा. अभी भी देश में द्रोहियों से अधिक संख्या देशभक्तों की है जो किसी भी आतंकी और नक्सली का समूल विनाश करने में सक्षम हैं. आजकल एक नया ट्रेंड यह देखने में यह आ रहा है कि कई लोग अत्याधिक उदार बनने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि उदारता कहॉ दिखानी है और कहॉ कठोरता होनी चाहिए। इस नासमझी में वे अनायास देशद्रोह के लिए बीज तैयार करने लगते हैं. और यह चलन मीडिया की वजह से और भी अधिक बढ़ रहा है.
कांकेर । छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में पुलिस को 40 किलो विस्फोटक वाली बारूदी सुरंग मिली है। वहीं नागपुर में एक स्थानीय अदालत ने नक्सलियों को कथित रूप से गोला-बारूद सप्लाई करने वाले एक व्यक्ति को पुलिस रिमांड में भेज दिया।
कांकेर के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि जिला पुलिस और सीमा सुरक्षा बल के संयुक्त गश्ती दल को फरफुदी गांव के पास एक बारूदी सुरंग मिली है जिसमें 40 किलो विस्फोटक लगाया गया है। गश्ती दल को मिली गुप्त सूचना के आधार पर इसे निकाल गया। बाद में इसे निष्क्रिय कर दिया गया। इसके साथ ही पिछले दो सप्ताह में 180 किलोग्राम विस्फोटक बरामद किया जा चुका है।
यादव ने बताया कि नक्सलियों ने कांकेर में हाइवे के साथ यह बारूदी सुरंग बिछा रखी थी। विस्फोटक की इतनी मात्रा का मतलब यही निकलता है कि वे किसी बड़ी घटना को अंजाम देना चाहते थे।
उधर, हाल ही में आंध्र प्रदेश में गिरफ्तार किए गए और बाद में नागपुर पुलिस के हवाले कर दिए गए नक्सलियों के एक कथित आर्म्स सप्लायर को नागपुर की एक स्थानीय अदालत ने 28 मई तक पुलिस रिमांड में भेज दिया है।
पुलिस ने बताया कि सुनील कुमार विष्णु प्रसाद उर्फ नागार्जुन कथित रूप से कई श्रोतों से हथियार व गोला-बारूद जुटाता था और फिर नियमित रूप से माओवादियों को सप्लाई करता था। प्रसाद 2006 से ही भगोड़ा हो गया था। उस पर आर्म्स एक्ट व गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत नागपुर के पुलिस स्टेशन में दर्ज थे।
मुजफ्फरपुर-नरकटियागंज रेलखंड पर बुधवार (19 मई, 2010) की देर रात नक्सलियों ने ट्रैक उड़ा दिया, जिससे बरौनी से गोंडा जा रही पेट्रोलियम से लदी मालगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। ये पदार्थ अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं इसलिए इस घटना के बाद मालगाड़ी के पेट्रोलियम टैंकरों में आग लग गई। 14 डिब्बे राख हो गए। पूर्व मध्य रेलवे के इस खंड में यह अब तक की सबसे बड़ी उग्रवादी वारदात थी। इस घटना में तीन करोड़ चार लाख रुपये के पेट्रोलियम तथा दो करोड़ रुपये की रेल परिसंपत्ति का नुकसान हुआ। हालांकि अब रेल परिचालन चालू हो गया है, लेकिन इससे पहले कई ट्रेनें रद होने और कुछ के रास्ता बदलने से सैकड़ों आम रेल यात्रियों को फजीहत उठानी पड़ी। इन साधारण लोगों की इस अवांछित परेशानी के लिए कौन जिम्मेदार है? किनकी नीतिगत, राजनीतिक या प्रशासनिक चूक के कारण भयमुक्त वातावरण में जीने के मूल लोकतांत्रिक अधिकार से जनता को लगातार वंचित किया जा रहा है? चंद घंटों में देश की पांच करोड़ रुपये की जो संपत्ति नष्ट कर दी गई, उसके लिए किसको सजा दी जानी चाहिए?
दुभार्ग्यवश, लोकतंत्र की मलाई काटने वाले कुछ प्रमुख राजनीतिक दल देश की संसदीय व्यवस्था के लिए भस्मासुर बनते नक्सलवाद पर अपनी दो दशक पुरानी राय से काम चला रहे हैं। एक घिसा-पिटा तर्क दिया जाता है कि विकास के जरिये नक्सल समस्या का समाधान किया जा सकता है। उनके वैचारिक वकील भले विकास के अभाव को आगे कर उग्रवादी हिंसा का समर्थन करें, लेकिन नक्सली वास्तव में विकास विरोधी हो चुके हैं। उनके कारण नक्सल प्रभावित सिर्फ मगध प्रमंडल में ही करीब 250 योजनाएं अधर में हैं। हिंसा के भय से निर्माण बंद कर ठेकेदार फरार है। हकीकत यह है कि उग्रवादी विकास होने ही नहीं देना चाहते। यदि विकास हो गया तो उनके हाथ से भारतीय गणराज्य के विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ने का बहाना छिन जाएगा। आये दिन जिस निर्ममता से सुरक्षा बलों पर हमले हो रहे हैं, उससे साफ है कि बात वर्तमान शासन प्रणाली और संविधान के दायरे में रह कर गरीबी और विषमता दूर करने की नहीं रह गई है। लक्ष्य दिल्ली फतह है। घटनाओं की प्रकृति और आवृत्ति का संकेत यह है कि इनका वैचारिक व आपरेशनल रिमोट कंट्रोल सीमा पार की भारत-विरोधी शक्तियों के पास है। यदि राजनीतिक पार्टियां बल प्रयोग समेत सभी उपायों से नक्सल समस्या के कालबद्ध समाधान पर आमसहमति बनाने में ज्यादा देर करेंगे, तो आधी सदी बाद वे शायद इतिहास की किताब में मिलेंगे।
संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत में माओवादियों द्वारा अपने संगठन में बच्चों की भर्ती पर गहरी चिंता प्रकट की है और कहा है कि इस बात की विश्वसनीय रिपोर्ट है कि कुछ बच्चे जबरदस्ती स्कूल से भर्ती कर लिए जाते हैं।
सशस्त्र संघर्ष पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में माओवादियों द्वारा सशस्त्र संघर्ष में बच्चों का इस्तेमाल बहुत ही चिंताजनक है। इस अंतरराष्ट्रीय संगठन ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा है कि अक्टूबर, 2009 में नक्सलियों ने अपने सशस्त्र संगठन के लिए पांच लड़के-लड़कियां देने के लिए गांववासियों को मजबूर किया था।
महासचिव बान की-मून द्वारा इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की कई विश्वसनीय रिपोर्ट हैं कि स्कूलों से लाकर जबरदस्ती बच्चे माओवादी संगठन में भर्ती किए जाते हैं। यह रिपोर्ट अब सुरक्षा परिषद को सौंपी जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सली कहते हैं कि बच्चे केवल संदेशवाहक और मुखबिर के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन उन्होंने यह भी माना है कि बच्चों को बारूदी सुरंग समेत घातक और गैरघातक हथियारों का प्रशिक्षण देते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक नक्सली सरकारी भवनों को नुकसान पहुंचाने और स्थानीय लोगों में दहशत फैलाने के लिए स्कूलों पर सुनियोजित तरीके से हमले करते हैं। उनकी वजह से कई स्कूल या तो बंद हैं या वीरान पड़ गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सल समस्या मध्य से पूर्व तक कई राज्यों में फैली हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड पुलिस ने नक्सल प्रभावित जिलों में 43 स्कूलों में 28 खाली करवा लिए तथा 13 और स्कूलों को खाली करवाने जा रही है।
हालांकि, रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा नक्सली हिंसा की निंदा और उनकी गतिविधियों पर काबू पाने की उनकी कटिबद्धता की सराहना की गई है।
पुरी। देश के विभिन्न भागों में हो रहे संत्राशवाद और आतंकवाद की घटना देश के लिए चिंता का विषय है। आतंकवाद कार्यकलाप के साथ नक्सलपंथी हिंसा देश के शांत वातावरण को भंग कर रही है। आतंकवाद और नक्सल समस्या का समाधान निहायत जरूरी है। देश के साधु संतो ने अपने स्तर पर इस समस्या के समाधान के लिए अपने स्तर पर प्रयास शुरू किया है। आतंकवादी कार्यकलाप सरकार और सभी देश वासियों के लिए एक चुनौती है। सरकार को इस चुनौती से निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए। साधु-संत, बुद्धिजीवी और जागरूक व्यक्तियों को मिलकर इस समस्या के समाधान हेतु प्रयास करना चाहिये। पुरी गोबर्द्धनपीठ के असली शंकराचार्य के रूप में दावेदार स्वामी अधोक्षानंद जी महाराज ने यह मत व्यक्त किया है। भगवान आदि शंकराचार्य के जयंती के अवसर पर आश्रम में तीन दिवसीय अनुष्ठान सम्पन्न होने के अवसर पर स्वामी जी ने बताया कि देश में आतंकवादी घटनाएं हो रही है और हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों में नक्सली हिंसा में मारे गए शहीदों की आत्मा शांति के लिए आश्रम में प्रार्थना किया गया है। उनके परिवरों को सम्भलने के लिए आराधना की गयी है। अधोक्षानंद जी ने पत्रकारों को बताया कि देश के किसी भी हिस्से में आतंकवादी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। जब तक यह जारी रहेगा, सरकारी व्यवस्था और धर्म के लिए शर्मनाक है। सरकार जिस तरह आतंकवाद को चुनौती के रूप में स्वीकार कर काम कर रही है। वैसे ही हम धार्मिक तरीके से पूरे देश में ऐसा अभियान शुरू करने वाले है। जिससे हमारे भटके हुए नौजवान मुख्यधारा में लौट आएं और देश के निर्माण में अपनी शक्ति का प्रयोग करे। दूसरी ओर हम सरकार से ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे है कि अपने ही लोगों को मारकर विजश्री नहीं मिलती है। भटके हुए युवाओं को कानूनी मुख्य धारा में लाने के लिए कानूनी कार्रवाई की जाए। हालांकि वह हमारे बच्चे है, इसको ध्यान में रखना चाहिए। उन्हे वापस विश्वास में लाने के लिए दोनों ही पक्ष के सबसे पहले मध्यस्थ को विश्वास दिलाना जरूरी है। आगामी रथयात्रा के आयोजन के बारे में उल्लेख करते हुए अधोक्षानंद जी महाराज ने कहा कि पिछले साल रथयात्रा में भगदड़ में 6 भक्तों की मौत हो गयी थी। ऐसा दुबारा नहीं होना चाहिए। इसके लिए केन्द्रांचल राजस्व आयुक्त ने नीचे से ऊपर तक सभी अधिकारी, सेवायत और अन्य लोगों के साथ समन्वय बनाकर रथयात्रा का परिचालन करना आवश्यक है।
कोलकाता। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने कहा कि माओवादियों से निपटने के लिए सेना की मदद नहीं ली जायेगी। माओवादी गतिविधियां रोकने के लिए जंगल महल में सेना के जवानों को तैनात करने की जरूरत नहीं है। राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस अभियान शुरू हुआ है लेकिन उसी तरह का अभियान पड़ोसी राज्यों झारखंड और उड़ीसा में शुरू नहीं होने पर बंगाल में माओवादियों को पूरी तरह नियंत्रण करना संभव नहीं होगा। श्री भंट्टाचार्य ने एक निजी बांग्ला टीवी चैनल को दिये साक्षात्कार में यह बाते कही। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में माओवादी गतिविधियां रोकना तब तक संभव नहीं होगा जब तक समान रूप से पुलिस अभियान झारखंड और उड़ीसा में चालू नहीं होता। उन्होंने माओवादियों से निपटने में सेना की मदद लेने इनकार किया। उन्होंने कहा कि माओवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए आम लोगों का संगठित होना भी जरूरी है। सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य तेज करने पर ध्यान दे रही है। सार्वजनिक वितरण प्रंणाली के जरिये सबको राशन उपलब्ध कराने, पेय जल तथा पर्याप्त स्कूलों की व्यस्था करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। माओवादी समस्या के लिए आर्थिक-,सामाजिक कारणों के जिम्मेदार के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक कारण हो सकता है लेकिन माओवादी भौगोलिक रूप से दुरुह क्षेत्र को अपनी गतिविधियों के संचालन का केंद्र बना रहे हैं।
सुंदरराज ने बताया कि पुलिस ट्रक चालक से पूछताछ कर रही है। उससे मिली जानकारी के अनुसार पुलिस ने बताया कि पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश के शहर विशाखापटनम से रायपुर के लिए ट्रक के जतिरए 17 टन अमोनिया नाइट्रेन रवाना किया गया था। मंगलवार को जब ट्रक भानपुरी क्षेत्र में पहुंचा तब नक्सलियों ने ट्रक को अगवा कर लिया और दूसरे दिन बुधवार को चालक को ट्रक संहित छोड़ दिया। इस घटना की जानकारी जब ट्रक चालक ने अपने मालिक को दी तब मामले की रपट लिखाई गई। पुलिस अधिकरी ने बताया कि घटना की जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने ट्रक चालक से पूछताछ शुरू की और विस्फोटकों की खोज शुरू की गई लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई सुराग नहीं मिल पाया है। उन्होंने बताया कि अमोनिया नाइट्रेट का इस्तेमाल फर्टीलाइजर के रूप किया जाता है, लेकिन नक्सलियों इसमें अन्य सामान मिलाकर इसका इस्तेमाल विस्फोटक के रूप में करते है। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पुलिस इस संबंध में ट्रक चालक और ट्रक मालिक से पूछताछ कर रही है। गौरतलब है कि कुछ महीने पहले भी नक्सलियों ने भानपुरी इलाके से डेटोनेटर से भरे ट्रक की लूट लिया था जिसका कोई सुराग नहीं मिला पाया है।
पटना।बिहार के मुजफ्फरपुर रेलखंड पर नक्सलियों ने गुरुवार की सुबह करीब दो बजे जीवधारा और पीपरा रेलवे स्टेशन के बीच रेल पटरी को उड़ा दिया , जिससे एक टैंकर मालगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई तथा इसकी १३ बोगियों में आग लग गई। पुलिस के अनुसार मोकतहारी जिला के बंगारी हॉल्ट के समीप नक्सलियों ने रेल पटरी को विस्फोट कर उड़ा दिया। इसके बाद इस पटरी पर एक टैंकर मालगाड़ी आ रही थी , जो दुर्घटनाग्रस्त हो गई। मुजफ्फरपुर राजकीय पुलिस बल के पुलिस अधीक्षक अवधेश शर्मा ने गुरुवार को बताया कि इस घटना में मालगाड़ी की १३ बोगियों में आग लग गई। सभी बोगियों में डीजल और केरोसिन तेल भरा होना बताया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आग पर काबू पा लिया गया है तथा घटनास्थल पर पुलिस पहुंचकर मामले की जांच कर रही है। घटना के बाद इस रेलमार्ग पर आवागमन ठप हो गया है। गौरतलब है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( माओवादी ) ने बिहार सहित पांच राज्यों में सोमवार मध्य रात्रि से ४८ घंटे के बंद का आह्वान किया था।
नक्सलवाद या माओवाद का सच वह नहीं है जो कुछ बुद्धिजीवियों या कुछ मानवाधिकार संगठनों या मीडिया के ज़रिये प्रसारित-प्रचारित होता आया है । माओवाद का सच उनके गोपनीय दस्तावेज़ों के ज़रिये पता लगता है जिसकी जानकारी आम जनता को नहीं होता । परन्तु माओवाद का सच जानने समझने के बहुत से रास्ते और भी हैं । माओवाद को समझने का एक रास्ता माओवादी चीन के इतिहास पढ़ने से खुलता है । कैसे माओ ने झूठ और दिल दहला देने वाली हिंसा का इस्तेमाल किया, चीन पर काबिज़ होने के लिये ? कैसे चीन में माओवादी सत्ता परिवर्तन के बाद आम नागरिकों से असहमति के अधिकार से वंचित किया गया ? कैसे ‘सौ फूलों को खिलने दो’ का मुहिम चला कर माओ ने लोगों को असहमत होने अधिकार सिर्फ़ इस उद्देश्य से लौटाया कि उसे मालूम हो जाये कि चीन में कौन लोग हैं जो उसकी नीति और नियत पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं और कैसे उनमें से हर को “सांस्कृतिक क्रांति” के ज़माने में चुन-चुन कर मारा गया या उन्हें सार्वजनिक रूप से ज़लील किया गया । उन पर थूका गया । उनके बाल मुड़ा दिये गये । उनके घुटने तोड़े गये । औरतों और बच्चों के साथ भी रहम नहीं किया गया। एक और तरीक़ा है माओवादी सच तक पहुँचने का । और वह है भारत में माओवादी घटनाओं का सही विश्लेषण... । परन्तु पता नहीं क्यों हम यह सब नहीं करते हैं और हमारे गणतांत्रिक व्यवस्था में जो माओवादी घुसपैठिये हैं उन्हें ज़्यादा तवज्जो देते हैं ।
चलिए, हम और आप माओवादी हरक़तों का विश्लेषण करें । उनकी कथनी और करनी में फ़र्क करना सीखें । माओवादी कहते हैं कि वे एक समतावादी समाज का गठन करना चाहते हैं और उसके लिये वे एक हिंसात्मक युद्ध करने के लिए तैयार हैं । अधिक दूर मत जायें, सिर्फ आप बस्तर की स्थिति पर ग़ौर करें । वहाँ नक्सलियों द्वारा कौन मारा जा रहा है ? माओवादी वहाँ के अमीर तबक़े के लोगों को नहीं ज़्यादातर ग़रीब तबक़े के आदिवासियों को ही मार रहे हैं । अमीर से तो वह पैसे बटोर रहे हैं और ग़रीब आदिवीसी सिर्फ़ इसलिये मारे जा रहे हैं क्योंकि उनमें से बहुतों ने माओवादी क्रियाकलापों पर अपनी असहमति व्यक्त की । आपको प्रश्न करना चाहिये कि क्यों बस्तर की तमाम सड़कें बारूद से क्षतिग्रस्त किये गये ? क्यों आदिवासियों के बहुत सारे हाट बाज़ार बंद किये गये ? क्यों स्कूली भवनों को ध्वस्त किये गये ? क्यों आदिवासी परिवारों से ज़बरन बच्चों को, बच्चियों को वे ले जाते हैं । अपने तौर-तरीक़ों और सोच में प्रशिक्षित करने.... । क्यों उन्होंने बस्तर के हर इलाक़े में लैंड माइंस बिछा रखा है ? क्या इन लैंड-माइंसों में आम आदिवासी नहीं फँसता ? निश्चित ही फँसता है और मारा जाता है । इन सब तथ्यों से बस्तर में माओवादी कार्यकलापों से साफ़ ज़ाहिर हो जायेगा कि ग़रीब आदिवासी के बेहत्तरी के लिए नहं सत्ता हथियाना माओवादियों का एकमात्र उद्देश्य है । और सत्ता में आने के लिए पूर्व भी जिस तरह का आंतकी और हिंसात्मक रूप वे दिखा रहे हैं तो फिर ज़रा सोचिए कि सत्ता में आ जाने के बाद वे हिंसा के किन आयामों को छुएँगे?
क्योंकि हम सही प्रश्न नहीं करते हैं इसलिए गणतांत्रिक व्यवस्था में जो माओवादी घुसपैठिये हैं उनकी बातों में आ जाते हैं । यह अमूमन कहा जाता है कि पिछड़ापन माओवाद का कारण है । परन्तु इस बात पर कोई प्रश्न नहीं उठाता कि बस्तर में जो कुछ भी विकास आदिवासियों के लिये किया गया था; पिछले पचास सालों से, उन्हें नक्सलियों ने ध्वस्त क्यों किया ? आज भी विकास कार्य में जुड़े अमलों को बस्तर के इलाकों में विकास कार्य संपादित करने से नक्सली क्यों रोकते हैं ? पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि नक्सली वास्तव में बस्तरिहा आदिवासी और पिछड़े जन के बहुप्रतीक्षित और कथित विकास की बहाली के लिए कटिबद्ध थे तो क्यों कर उन्होंने बहुआयामी विकास के संवैधानिक, नैतिक, सर्वमान्य तरीकों पर चिंतन-मनन कर सर्वग्राह्य निष्कर्षों पर काम करना उचित नहीं समझा ? आख़िर क्योंकर वे एक विद्रोहात्मक रास्तों पर आदिवासियों को खींचने लगे जिसका अंत परिणाम केवल ध्वंस है । यह प्रश्व भी स्वाभाविक है कि उनके पास विकास का वह कौन सा माडल था जिसके मूल में अस्त्र-शस्त्र का एकत्रीकरण भी शुरुआती दौर में प्रमुख लक्ष्य रहा है । रचनात्मक विकास के कोई उदाहरण आख़िर कार क्यों अब तक नक्सली प्रस्तुत नहीं कर सके हैं । और फिर यह भी नहीं पूछा जाता है कि जो ख़ुद हिंसा और युद्ध का सहारा लेकर सत्ता पर काबिज़ होना चाहता हैं, उसके ख़िलाफ़ अगर राज्य न्यायोचित हिंसा का सहारा लेकर रोकने का प्रयास करता है तो राज्य के नकसल विरोधी आपरेशन को रोकने का बहुआयामी प्रयास सभ्य समाज में घुसे नक्सली घुसपैठिये क्यों करते हैं?
यदि हम इन प्रश्नों को नहीं पूछेंगे और इन प्रश्नों का उत्तर खोजने की कोशिश नहीं करेंगे तो हम ग़फ़लतों का शिकार होते रहेंगे और नक्सली प्रोपेगैंडा, झूठ और अर्धसत्यों के शिकार होते रहेंगे । माओवादी सच दरअसल एक हिंसात्मक युद्ध के ज़रिये गणतांत्रिक व्यवस्था को दरक़िनार कर एक ऐसी तानाशाही व्यवस्था क़ायम करने का षडयंत्र है जो यदि कामयाब हो गया तो आप-हम-सब को जो कुछ भी अधिकार एक गणतांत्रिक व्यवस्था में मिले हुए हैं, वे सब हमसे छीन लिये जायेंगे । हमारी स्वतंत्रता, हमारी अस्मिता सब कुछ हमसे छीन ली जायेगी । दरअसल माओवादी सच यही है!